गृहमंत्री अमित शाह द्वारा बारंबार पूरे देश में एनआरसी लागू करने के आह्वान की संवैधानिक और नैतिक आधार पर काफी आलोचना हुई है, लेकिन इससे उनका उत्साह कम नहीं हुआ है. सोमवार को शाह ने कहा कि वह ये सुनिश्चित करेंगे कि 2024 तक सारे घुसपैठिए भारत से खदेड़ दिए जाएं.
इस हास्यास्पद प्रस्ताव की व्यावहारिकता की अधिक चर्चा नहीं हुई है, जोकि मेरी समझ से अमेरिका-मेक्सिको सीमा पर दीवार बनाने की डोनल्ड ट्रंप की योजना से भी कहीं कम व्यवहार्य है. बहुत से रूढ़िवादी अपनी विचारधारा की वजह से एनआरसी और सीमा पर दीवार खड़ा करने जैसे फैसलों का समर्थन कर सकते हैं, पर उनके आर्थिक बोझ से कोई भी इनकार नहीं कर सकता.
असम का प्रयोग बड़ा ही बेतरतीब रहा है, जिसमें इस बात का संकेत है कि राष्ट्रव्यापी प्रयोग का नतीजा क्या हो सकता है. असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को अपडेट करने की कवायद में चार साल से अधिक का समय लगा और खबरों के अनुसार उस पर केंद्र सरकार के 1,600 करोड़ रुपए खर्च हुए. करीब 55,000 लोगों को काम पर लगाया गया, और 3.2 करोड़ से अधिक लोगों ने खुद को रजिस्टर कराने के लिए आवेदन किया.
यह भी पढ़ें: बीजेपी भले ही राज्यों में सिकुड़ रही हो लेकिन विचारधारा फल-फूल रही है
इस बारे में कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है कि आम आदमी को ज़रूरी दस्तावेजों को जुटाने, आवेदन पत्र भरने, यात्राएं करने, घंटों कतार में लगे रहने, खुद को रजिस्टर कराने, और उसके बाद सत्यापन की प्रक्रिया से गुजरने में कितना खर्च करना पड़ा.
उल्लेखनीय है कि नागरिकता साबित करने के लिए बहुत से लोगों को बारंबार संबंधित कार्यालयों में हाजिरी भरनी पड़ी. कई मामलों में तो पूरे परिवार को लंबी यात्राएं करनी पड़ी. शुरुआत में, 40 लाख लोगों को एनआरसी से बाहर रखा गया था, जिसकी वजह से सत्यापन की प्रक्रिया और लंबी खिंची. इन सबके कारण समय, धन और उत्पादकता का भारी नुकसान हुआ.
नोटबंदी जैसा ‘मास्टरस्ट्रोक’
मोदी सरकार को नोटबंदी से सीख लेनी चाहिए थी कि बिना तैयारी के लागू किसी योजना का कैसा घातक परिणाम हो सकता है.
2016 की नोटबंदी इसलिए व्यर्थ की कवायद साबित हुई क्योंकि एक तो उसका मूल विचार ही मूर्खतापूर्ण था, और ऊपर से उसे मनमाने तरीके से लागू किया गया. नवंबर 2016 में अनेक बैंकरों ने कथित रूप कमीशन खाकर ‘काले धन’ को सफेद धन में बदला था, और परिणामस्वरूप बंद किए गए लगभग सारे नोट बैंकिंग प्रणाली में वापस आ गए.
एनआरसी की प्रक्रिया भी उससे मिलती-जुलती है. बस बैंकर की जगह सत्यापन अधिकारी रखकर देखें जिसे कि किसी को रजिस्टर में शामिल करने या बाहर रखने का अधिकार हो.
इस बात की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि कुछेक या बहुत से अधिकारियों ने पैसे लेकर लोगों को रजिस्टर से बाहर रखने और शामिल करने का काम किया हो. इसलिए, आश्चर्य की बात नहीं कि एनआरसी की अंतिम सूची से लगभग सभी को निराशा हुई. कुछ ने हिंदुओं को बाहर रखे जाने का रोना रोया; तो कुछेक को अवैध मुस्लिम प्रवासियों की संख्या काफी कम होने का मलाल था.
एनआरसी की कवायद इस मामले में नोटबंदी से भी बड़ी भूल है कि अंतिम सूची के प्रकाशन भर से ही इस पर पूर्णविराम नहीं लग रहा है. दरअसल ये तो पूरी प्रक्रिया का पहला भाग मात्र है. कहीं बड़ी समस्या तब नजर आती है जब आप रजिस्टर से बाहर रखे गए लोगों के बारे में सोचते हैं – उनका क्या होगा? वे कहां जाएंगे?
एनआरसी के समर्थकों से पूछें तो उनका फौरी जवाब होता है— उन्हें वापस बांग्लादेश भेज दो. ये बात उतनी ही हास्यास्पद है जितना ट्रंप का ये कहना कि सीमा पर दीवार बनाने का खर्च मेक्सिको भरेगा. मेक्सिको को उससे क्या मिलेगा? इसी तरह, बांग्लादेश को इससे क्या मिलेगा? वो भला ‘अवैध प्रवासियों’ को क्यों स्वीकार करेगा, जब तक कि उसे कोई राजनीतिक या आर्थिक फायदा नहीं मिलता हो?
यह भी पढ़ें: अगर भाजपा नेता राहुल बजाज की तरह बोल सकते तो वे मोदी और अमित शाह को यह बताएंगे
शेख हसीना सरकार पहले ही कह चुकी है कि उनका देश भारत से निष्कासित लोगों को नहीं स्वीकार करेगा. मोदी सरकार को इस मुश्किल का अंदाज़ा है, तभी तो वो दूसरे विकल्प यानि हिरासत केंद्रों पर काम कर रही है.
‘समाधान’ में छुपी भारी समस्या
हिरासत केंद्रों से जुड़ी कई तरह की नीतिपरक, नैतिक और संवैधानिक चिंताएं हैं. लेकिन हम यहां उनकी व्यावहारिकता मात्र पर गौर कर रहे हैं, क्योंकि ‘अवैध प्रवासियों’ को इन शिविरों में रखे जाने को लेकर पहले ही बड़ी संख्या में लोग सहमत दिख रहे हैं.
असम का पहला हिरासत केंद्र 46 करोड़ रुपये की लागत से बनाया जा रहा है. करीब ढाई एकड़ में फैले इस केंद्र में 3,000 लोगों को रखा जाएगा. पर अंतिम एनआरसी सूची से बाहर रह गए लोगों की संख्या करीब 19 लाख है. अगर इनका हिसाब लगाया जाए तो सूची से बाहर सारे लोगों के लिए सिर्फ हिरासत केंद्र बनाने पर ही 27,000 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च आएगा. और ये तो सिर्फ असम की बात हुई. पूरे देश में ऐसे हिरासत केंद्रों के निर्माण की लागत का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है. सवाल ये भी है कि खुद मोदी सरकार कितने हिरासत केंद्रों का निर्माण करेगी?
साथ ही, इस लागत में इन केंद्रों के रखरखाव तथा वहां रखे जाने वालों के भोजन-पानी, आश्रय, देखरेख आदि का खर्च शामिल नहीं है. इन मदों पर लाखों करोड़ रुपये खर्च करने पड़ सकते हैं. इतने निवेश से हजारों स्कूल और अस्पताल बनाए जा सकते हैं और झुग्गी बस्तियों के पुनर्वास की योजनाएं कार्यान्वित की जा सकती हैं, और इनसे वास्तव में भारतीयों का भला होगा.
पैसा कहां खर्च हो
इस संबंध में सहज उठने वाला सवाल है: ‘तो फिर अवैध प्रवासियों का क्या हो?’ ‘उन्हें कैसे नियंत्रित किया जाए?’ समाधान बहुतों की अपेक्षा के मुकाबले कहीं अधिक सरल है; बस राजनीतिक रूप से इनको भुनाया नहीं जा सकता है – सीमा पर बेहतर नियंत्रण व्यवस्था कायम करना और बांग्लादेश जैसे देशों को विदेशी सहायता बढ़ाना.
हमें सीधे उन वजहों से निपटना चहिए कि जिनके चलते लोग अपना देश छोड़ने को बाध्य होते हैं. कौशल विकास एवं व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों, स्कूलों और विश्वविद्यालयों पर किया गया निवेश बेहतर परिणाम देता है क्योंकि इससे लोगों को रोजगार के काबिल बनाया जा सकता है.
यह भी पढ़ें: आंकड़ों से जाहिर है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों के उच्च जाति के मतदाता हिंदुत्व के मूल मुद्दों के साथ हैं
इससे न सिर्फ भारत और बांग्लादेश दोनों ही देशों में आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि इससे पड़ोसी देशों से हमारे समग्र संबंधों में बेहतरी आएगी, जिससे वे प्रवासियों के मुद्दे पर ज्यादा सहयोग कर सकेंगे. इस तरह, पड़ोसी देशों में जीवनस्तर में सुधार लोगों को अवैध रूप से सीमा पार करने से रोकता है – और इस पर बराबर या कम ही खर्च करने की दरकार होती है.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
(लेखक एक सामाजिक कार्यकर्ता और यूट्यूबर हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)
आपने लिखा तो बहुत सही पर ये नही लिखा कि इन घुसपैठियों के वजह से देश का क्या क्या नुकसान हो रहा है।
देश का जनसंख्या बेवजह बढ़ रही है।
घुसपैठियों में सबसे ज्यादा मुसलमान है और औसतन एक के पास 10 बच्चे है जो हर रोज देश पर एक बोझ बढ़ते जा रहे है।
उनके वजह से क्राइम भी बढ़ रहा है,और तमाम समस्या पैदा हो रही है।
और इस देश के संसाधनों पर पहला हक इस देश के नागरिकों का है।
ये बात सही है कि इसके लिए देश का पैसा खर्च होगा,पर पैसे के डर से हम घुसपैठियों को देश मे आने दे,ये ठीक बात नही हो सकती।
ये देश भारतीयों का है और इस देश से हर एक घुसपैठि को जाना होगा।
Aap jaisi ki wajah se hi to desh trakki nhi krta…dusra Muslim kehte h .hum is desh ko Muslim nation bnayeng. TB kha jata h .tumahre thought.