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Monday, 6 May, 2024
होममत-विमतमोदी मंत्रिमंडल के ‘प्रधान’ मंत्री अमित शाह वहीं वार करते हैं जहां दर्द करे

मोदी मंत्रिमंडल के ‘प्रधान’ मंत्री अमित शाह वहीं वार करते हैं जहां दर्द करे

अब देश में किसी भी आतंकी हमले की जवाबदेही गृहमंत्री के रूप में अमित शाह की होगी.

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ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि नरेंद्र मोदी का तीसरा कार्यकाल पाना इस बात पर निर्भर करेगा कि उनकी सरकार कितने अच्छे ढंग से जम्मू कश्मीर के मसले से निपटती है, आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों का सामना करती है, अतिवादी तत्वों को काबू में रखती है और अयोध्या विवाद का समाधान करती है.

और इनमें से जम्मू कश्मीर उनके नए गृहमंत्री अमित शाह के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी.

जम्मू कश्मीर में निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के लंबित कार्य पर मिश्रित संकेत दिए जाने से पहले ही विवाद शुरू हो चुका है. महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और फ़ारूक अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस जैसे राज्य के मुख्य राजनीतिक किरदार ऐसे किसी भी कदम के खिलाफ आवाज़ उठा चुके हैं.

जो भी हो, अमित शाह के काम करने के तरीके के मद्देनज़र, बस कुछ समय की बात है. जब वह जम्मू कश्मीर में प्रतिनिधित्व की मौजूदा व्यवस्था में कुछ न कुछ बदलाव करेंगे. हालांकि, इसमें भी संदेह नहीं कि जम्मू कश्मीर नए गृहमंत्री की धैर्य और दृढ़संकल्प की परीक्षा लेगा.

राज्य में चुनाव स्थगित कर दिए गए हैं और जब भी चुनाव होते हैं एक बार फिर परिणाम खंडित जनादेश और त्रिशंकु विधानसभा के रूप में सामने आ सकता है.

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हिंसा से गुरेज नहीं करने वाले जनरलों के संरक्षण में पाकिस्तान से संचालित आतंकवादी संगठन कभी भी अपने दुस्साहसिक कृत्यों पर उतारू हो सकते हैं. गृह मंत्रालय ने राज्य में सक्रिय 10 शीर्ष चरमपंथियों की सूची बनाई है. इस बारे में अटकलें ही लगाई जा सकती हैं कि इस ‘खात्मे की सूची’ में शामिल लोगों के बारे में गृहमंत्री का क्या निर्देश होगा. (आमतौर पर ये माना जाता है कि सीआईए नियमित रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति को ‘खात्मे की सूची’ सौंपता है, और ओसामा बिन लादेन ऐसी सूची में शामिल रहा था.)


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चूंकि अभी सीमा पार एक और सर्जिकल हमला या बालाकोट जैसा हवाई हमला करना संभव नहीं है- ना ही मौजूदा परिस्थितियों में ऐसा करने की ज़रूरत है. ऐसे में गृहमंत्री अमित शाह की चुनौती आतंकवादियों को एक छोटे से इलाके में सीमित करने की होगी. आखिरकार, अब देश में किसी भी आतंकी हमले की जवाबदेही गृहमंत्री होने के कारण शाह की होगी.

एनआरसी और अन्य चुनौतियां

भाजपा के लिए, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) बहुत फायदेमंद साबित हुआ है. इसे लेकर दंगों की स्थिति बनने की आशंका जताई जा रही थी, पर केंद्र द्वारा इस मामले को कुशलता से संभाले जाने के कारण इसका विरोध बढ़ नहीं पाया और असम में शांतिपूर्ण चुनावों की स्थिति बन सकी, जिसका सर्वाधिक चुनावी लाभ भाजपा को मिला.

भाजपा अध्यक्ष के रूप में पश्चिम बंगाल में अपने चुनावी भाषणों में अमित शाह ने अवैध आप्रवास के मुद्दे को उठाया था. उन्होंने राज्य में एनआरसी को लागू करने और ‘घुसपैठियों को निकाल फेंकने’ का वादा किया. बंगाल में एनआरसी के मुद्दे को नए सिरे से उठाने के कारण भाजपा की ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस से सीधी भिड़ंत हुई.

पर गृहमंत्री के रूप में अमित शाह को अवैध आप्रवास की समस्या के समाधान और एनआरसी के कार्यान्वयन के लिए राज्य सरकार की मशीनरी और मुख्यमंत्री (ममता बनर्जी) के साथ मिलकर चलना होगा.

नक्सल हिंसा एक और मुद्दा है जिस पर कि गृहमंत्री अमित शाह को तत्काल ध्यान देने की ज़रूरत है. अभी पिछले महीने ही गढ़चिरौली के पास नक्सल हमले में 15 सुरक्षाकर्मी मारे गए थे. नक्सलियों के खिलाफ अभियान चलाए जाने के बावजूद उन्होंने सुरक्षा बलों पर लगातार हमले किए हैं.

अमित शाह के पूर्ववर्ती राजनाथ सिंह ने नक्सल समस्या से निबटने और 2023 तक उन्हें उखाड़ फेंकने की बात की थी. उस लक्ष्य को पूरा करने के लिए गृहमंत्री शाह को शीघ्रता से कार्रवाई करनी होगी.

गुजरात मॉडल का दोहराव

मोदी और शाह से लोगों की अपेक्षाएं स्पष्टतया बहुत अधिक हैं. शाह गुजरात में मोदी के गृहमंत्री थे, और दोनों ने ‘गुजरात मॉडल’ को लोकप्रिय बनाया था. भाजपा ने 2014 के चुनाव में विकास के गुजरात मॉडल को अपना मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया था और कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंका था.

नए केंद्रीय मंत्रिमंडल में, माना जाता है कि शाह की वास्तविक हैसियत उप-प्रधानमंत्री की है. वह सभी आठ कैबिनेट कमेटियों में शामिल हैं, जबकि दो की अध्यक्षता उनके जिम्मे है.

मोदी के कप्तान और शाह के उप-कप्तान बनने के बाद अब नई सरकार को शासन के हर क्षेत्र में बड़ी प्रगति हासिल करनी होगी और काम करने का नया रिकॉर्ड बनाना होगा.


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पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने नई सरकार को एक चेतावनी भरा संदेश दिया है. कानपुर में संघ कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, ‘लोकतांत्रिक व्यवस्था में निर्वाचित होने वालों के पास अपार ताकत होती है, पर इसका मतलब ये नहीं है कि उसका दुरुपयोग किया जाए.’

क्या आरएसएस अमित शाह से संयमित व्यवहार की अपेक्षा करता है? शाह उन लोगों में से नहीं हैं जो वार करना तो चाहता है पर चोट पहुंचाने से घबराता है. वह तो वहीं वार करते हैं जहां दर्द करे.

मोदी और खास कर गृहमंत्री अमित शाह की पांच साल की परीक्षा शुरू हो चुकी है.

(लेखक ‘ऑर्गनाइज़र’ के संपादक रहे हैं. यहां व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं.)

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