आज से करीब 90 साल पहले, 20 मार्च, 1927 को डॉ. आंबेडकर ने महाड़ के चावदार तालाब से दो घूंट पानी पीकर ब्राह्मणवाद के हजारों वर्षों के कानून को तोड़ा था और ब्राह्मणवाद को चुनौती दी थी. वहीं, 6 अप्रैल, 1930 को गांधी ने नमक हाथ में लेकर अंग्रेजों के कानून को तोड़ा और ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी. दोनों इतिहास की बड़ी घटनाएं हैं और दोनों का असर वर्तमान राष्ट्र और समाज पर आज भी देखा जा सकता है.
आइए गांधी के नमक सत्याग्रह और डॉ. आंबेडकर के पानी के लिए किए गए सत्याग्रह की एक तुलना करते हैं और यह समझने की कोशिश करते हैं कि क्यों आधुनिक भारत के वाम-दक्षिण, सेकुलर-कम्युनल तमाम विचारधाराओं के इतिहासकारों ने नमक सत्याग्रह को विश्व इतिहास की घटना बना दिया और क्यों पानी के लिए आंबेडकर के सत्याग्रह को कोई महत्ता नहीं दी. साथ ही ये भी समझने की कोशिश करते हैं कि ये दोनों आंदोलन अपने लक्ष्यों को पूरा करने में किस हद तक कामयाब रहे.
महाड़ सत्याग्रह डॉ. आंबेडकर की अगुवाई में 20 मार्च 1927 को महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ जिले के महाड़ स्थान पर हुआ था. हजारों की संख्या में अछूत कहे जाने वाले लोगों ने डॉ. आंबेडकर के नेतृत्व में सार्वजनिक तालाब चावदार में पानी पीया. सबसे पहले डॉ. आंबेडकर ने अंजुली से पानी पीया; उनका अनुकरण करते हुए हजारों दलितों ने पानी पीया. अगस्त 1923 को बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल ( अंग्रेजों के नेतृत्व वाली समिति) के द्वारा एक प्रस्ताव लाया गया, कि वो सभी ऐसी जगहें, जिनका निर्माण और देखरेख सरकार करती है, का इस्तेमाल हर कोई कर सकता है. इसी कानून को बाबा साहेब ने लागू कराया.
चावदार तालाब में पानी पीने की जुर्रत का बदला सवर्ण हिन्दुओं ने दलितों से लिया. उनकी बस्ती में आकर तांडव मचाया और लोगों को लाठियों से पीटा. बच्चों, बूढ़ों, औरतों को पीट-पीटकर लहूलुहान कर दिया. घरों में तोड़फोड़ की. हिन्दुओं ने इल्जाम लगाया कि अछूतों ने तालाब से पानी पीकर तालाब को भी अछूत कर दिया. ब्राह्मणों के कहे अनुसार पूजा-पाठ और पंचगव्य (गाय का दूध, घी, दही, मूत व गोबर) से तालाब को फिर से शुद्ध किया गया.
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महाड़ सत्याग्रह पानी पीने के अधिकार के साथ-साथ इंसान होने का अधिकार जताने के लिए भी किया गया था. डॉ. आंबेडकर ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा था कि ‘क्या यहां हम इसलिए आए हैं कि हमें पीने के लिए पानी मयस्सर नहीं होता है? क्या यहां हम इसलिए आए हैं कि यहां के जायकेदार कहलाने वाले पानी के हम प्यासे हैं? नहीं! दरअसल, इंसान होने का हमारा हक जताने के लिए हम यहां आए हैं.’
गांधी ने महाड़ सत्याग्रह को दुराग्रह कहा था
महाड़ सत्याग्रह के तीन साल बाद गांधी ने नमक सत्याग्रह किया. 12 मार्च 1930 को गांधी ने साबरमती में अपने आश्रम से समुद्र की ओर चलना शुरू किया. तीन हफ्ते बाद वह अपने गंतव्य स्थान दांडी पहुंचे. वहां उन्होंने 6 अप्रैल को मुट्ठी भर नमक बनाकर ब्रिटिश कानून तोड़ा. हम सभी जानते हैं कि ब्रिटिश सत्ता ने नमक के उत्पादन और बिक्री पर राज्य का एकाधिकार घोषित कर दिया था यानी अब नमक का उत्पादन और बिक्री केवल सरकार ही कर सकती है. गांधी ने कानून तोड़ा और ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी.
महाड़ सत्याग्रह और नमक सत्याग्रह दोनों प्रतीकात्मक सत्याग्रह थे. पहले में हजारों वर्षों की सवर्ण सत्ता (सामंती सत्ता) को चुनौती दी गई थी, जो अछूतों को वह भी हक देने को तैयार नहीं थी, जो जानवरों को भी प्राप्त था. हम सभी जानते हैं कि किसी भी तालाब में कोई भी जानवर पानी पी सकता था, लेकिन अछूतों को यह हक प्राप्त नहीं था. दूसरी तरफ, नमक सत्याग्रह के माध्यम से ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी गई थी.
अभी अधूरा है महाड़ आंदोलन का लक्ष्य
नमक सत्याग्रह की जीत हुई, महाड़ सत्याग्रह की पराजय. यानी इन सत्याग्रहों में गांधी की जीत हुई, कांग्रेस का नेतृत्व गांधी के पास आ गया और वो देश के नेता कहलाने लगे. जबकि उनके देश की कल्पना में अछूत कहां थे, ये सर्वविदित है. हालांकि बाद में गांधी ने अपने विचारों में कुछ संशोधन किए लेकिन जीवन पर्यन्त वे वर्ण व्यवस्था के समर्थक बने रहे.
महाड़ में डॉ. आंबेडकर की कम से कम तात्कालिक तौर पर हार ही हुई. आंबेडकर को अपनी लोकतांत्रिक विचारधारा की जीत के लिए संविधान बनने तक इंतजार करना पड़ा, जिसमें छुआछूत का निषेध किया गया.
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आधुनिक भारत के राष्ट्रवादी और वामपंथी इतिहासकारों ने महाड़ सत्याग्रह को हाशिए पर रखा. नमक सत्याग्रह को न केवल भारत, बल्कि विश्व इतिहास की महान् घटना की तरह प्रस्तुत किया. नमक सत्याग्रह की अंतिम परिणति के तौर भारत की सत्ता ब्रिटिश लोगों के हाथ से निकल उच्चवर्गीय सर्वणों के हाथ में चली गई.
महाड़ सत्याग्रह की विजय तब मानी जाती जब उसकी अंतिम परिणति ब्राह्मणवाद (सामंतवाद) के अंत के रूप में होता, भारत में जातियों का निषेध होता और जाति वर्चस्व का अंत होता. नमक सत्याग्रह से जिनको सत्ता मिली, उन्होंने गांधी को महात्मा, बापू और राष्ट्रपिता बना दिया. महाड़ सत्याग्रह आज भी अपनी अंतिम विजय की प्रतीक्षा कर रहा है. जाति के विनाश के साथ ही महाड़ सत्याग्रह अपनी अंतिम परिणति तक पहुंचेगा. तब गांधी नहीं, आंबेडकर राष्ट्रनिर्माता के रूप में पूरी तरह स्थापित होंगे.
(लेखक हिंदी साहित्य में पीएचडी हैं और फ़ॉरवर्ड प्रेस हिंदी के संपादक हैं.)