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Thursday, 31 October, 2024
होममत-विमतमुलायम को क्लिंटन से जोड़ने वाले अमर सिंह को इंतज़ार है बिग बी के कॉल का

मुलायम को क्लिंटन से जोड़ने वाले अमर सिंह को इंतज़ार है बिग बी के कॉल का

अमर सिंह जैसे बिचौलिए अब नहीं होते. पर एक दौर था, जब अमर सिंह आपके साथ होते तो आपके लिए कुछ भी संभव था, कुछ भी किया जा सकता था.

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एक समय था जब अमर सिंह नामी-गिरामी हस्तियों को जुटाने और बड़े व्यवसायियों, फिल्मी सितारों और नेताओं को परस्पर जोड़ने वाले शख्स हुआ करते थे. उन्होंने परिवारों को जोड़ा था, हालांकि बाद में उन्हें तोड़ा भी. पर ये तब की बात है जब तक कि उन्हें एक असल परिवार ने बेदखल नहीं कर दिया.

नरेंद्र मोदी के इस दौर में एक ही व्यक्ति है जो लोगों को एक मंच पर लाने और उन्हें परस्पर जोड़ने का काम करता है, अब चाहे वो विभिन्न देशों के राष्ट्रपति हों, बड़े उद्यमी हों, फिल्मी सितारे हों या फिर खेल जगत के स्टार. बात राष्ट्रपति ट्रंप की हो, फेसबुक के मार्क ज़ुकरबर्ग की, बड़े उद्यमियों या बॉलीवुड सुपरस्टारों की, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद ही अपने डील-मेकर हैं. क्षेत्रीय दलों के अपने राज्यों में सिमटे रहने और राष्ट्रीय परिदृश्य पर भाजपा के वर्चस्व के चलते क्षेत्रीय नेताओं के लिए दायरा बहुत सीमित रह गया है. और इसी के साथ दिल्ली दरबार में उनके प्रतिनिधियों की भूमिका भी नाममात्र की रह गई है.

लेकिन उदारीकरण के बाद के भारत में जब आईटी और दूरसंचार जैसे सेक्टरों में नए उद्योगपतियों का उदय हो रहा था, नीरा राडिया से पहले के उस दौर में, अमर सिंह प्रधान बिचौलिया हुआ करते थे. एनडीए की पहली सरकार और यूपीए के दो कार्यकालों के दौरान गठबंधन राजनीति में वह किसी भी मुद्दे पर अपने दोस्त मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी का समर्थन सुनिश्चित करने की हैसियत रखते थे. मामला मनमोहन सिंह के परमाणु समझौते का हो या राष्ट्रपति पद के लिए प्रणब मुखर्जी की उम्मीदवारी का. अंबानियों और बच्चनों जैसे मुंबई के शीर्ष परिवारों की घरेलू राजनीति की बात करें तो वह ‘जया भाभी’ की मदद के लिए या ‘यूपीए के कार्यकाल में आयकर अधिकारियों द्वारा तंग किए जाने’ पर ‘बड़े भैया’ की लड़ाई लड़ने के लिए सदैव उपलब्ध रहते थे. उस दौरान अमर (सिंह)/अमिताभ (बच्चन)/अनिल (अंबानी) की एक त्रिमूर्ति हुआ करती थी जिसे सहारा समूह के सुब्रत रॉय का सहारा और मुलायम सिंह यादव का सहयोग प्राप्त था. इस समीकरण ने मुलायम को मुफस्सिल से सीधे ग्लोबल कर दिया, जब 2005 में अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन अपने सम्मान में आयोजित भोज के लिए लखनऊ आए थे.

वो ज़िंदगी का ‘सर्वश्रेष्ठ दौर’ था

लेकिन ये सब तब की बात थी. अब अंबानी बंधु, कम से कम कागजों में ही सही, दोबारा साथ आ चुके हैं, और अनिल अंबानी घोषणा कर चुके हैं कि उनकी हैसियत ‘शून्य नेटवर्थ’ की है. बच्चन खानदान में अब भी एक चमकता सितारा है जो मंद पड़ने को तैयार नहीं है. सुब्रत रॉय 2017 में पैरोल पर छूटने के बाद से पहले जैसा उत्साह नहीं बचा है. अमर सिंह के सबसे बड़े संरक्षकों में से एक मुलायम सिंह यादव का उत्तर प्रदेश में अब कोई जलवा नहीं रहा, भले ही उनका बेटा अखिलेश योगी आदित्यनाथ के हिंदुत्व के खिलाफ़ मैदान में डटा हुआ हो.

इसलिए सिंगापुर के अस्पताल के बेड से अपनी बात कहते दुर्बल और हताश अमर सिंह को देखकर आश्चर्य नहीं होता है. वह किडनी संक्रमण के इलाज के लिए सिंगापुर के उसी अस्पताल में हैं, जहां 10 साल पहले उनका किडनी प्रत्यारोपण हुआ था, और तब बच्चन परिवार ने वहां उनके साथ रहने के लिए समय निकाला था. वह अपने ‘बड़े भैया’ को लेकर व्यथित और निराश हैं, पर आभारी हैं कि उन्होंने (बच्चन) उनके पिता की बरसी पर उनके लिए संदेश भेजा. कभी सबके प्रिय रहे अमर सिंह कहते हैं, ‘ईश्वर सबको उनके कर्मों के अनुसार न्याय देंगे.’

विवादित सुर्खियों में भी उनकी निरंतर मौजूदगी रहती थी. चाहे ये भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर वाम मोर्चे की समर्थन वापसी के बाद शक्ति परीक्षण का सामना कर रही यूपीए सरकार के पक्ष में वोट के लिए भाजपा के तीन सांसदों को कथित रूप से रिश्वत देने के लिए 2008 में उनकी गिरफ्तारी का मामला हो या 2011 की फोन टैपिंग का मामला जब कथित रूप से अन्य बातों के अलावा उन्हें भद्दी टिप्पणियां करते पाया गया था, या फिर ‘जज को फिक्स’ करने का मामला जब एक सीडी में सिंह और मुलायम को शांति भूषण से बात करते दिखाया गया था, जिसमें ये बात सामने आ रही थी कि किसी जज को रिश्वत दी जा सकती है.

संतुलन बिगड़ा और अमर सिंह संभल नहीं सके

उत्तर कोलकाता के बड़ा बाज़ार के ठाकुर अमर सिंह के पिता हार्डवेयर की दुकान चलाते थे. सिंह ने पहले केके बिड़ला परिवार में एक संपर्क अधिकारी के रूप में जगह बनाई, फिर उन्होंने अमिताभ बच्चन का प्यार हासिल किया, और आखिरकार 1996 में उन्होंने मुलायम सिंह यादव के दिल में जगह बनाई. वह अपनी चुटीली टिप्पणियों के लिए जाने जाते थे, जिनमें वे अक्सर प्रसिद्ध गानों या शेरों का इस्तेमाल करते. ताकतवरों से नजदीकियों के कारण लोग उनसे भय भी खाते थे. वह खबरें रुकवाने के लिए सीधे संपादकों को फोन कर सकते थे और नौकरशाहों को ये अहसास करा सकते थे कि वह उनके राजनीतिक आकाओं को जानते हैं. वह हमेशा ये सुनिश्चित करते थे कि वह प्रसिद्ध शख्सियतों के साथ दिखें.

एक समय था जब ट्रिपल-ए – अमर सिंह, अनिल अंबानी और अमिताभ बच्चन– की तिकड़ी तथा सुब्रत रॉय और मुलायम सिंह यादव का एक अटूट बंधन था. और फिर सब कुछ बिखर गया. अमर सिंह बच्चन के सबसे मुखर आलोचक बन गए और मुलायम सिंह यादव से उनका ऐसा दुराव हुआ कि उन्हें उस पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया जिसकी राजधानी दिल्ली में साख बनाने में उन्होंने एक दशक से ज़्यादा का वक़्त लगाया था.

लखनऊ स्थित वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान के अनुसार मुलायम सिंह यादव पर उनका इतना अधिक प्रभाव था कि 2003 से 2007 तक समाजवादी पार्टी के साथ-साथ उत्तर प्रदेश की सरकार की बागडोर भी वास्तव में उन्हीं के पास थी. प्रधान ने दिप्रिंट को बताया, ‘वह मालदार और प्रभावशाली पदों पर नियुक्तियों तथा नोएडा और एनसीआर में सोने की खान माने जाने वाले औद्योगिक एवं कॉमर्शियल प्लॉटों के वितरण पर अपना पूर्ण नियंत्रण रखना चाहते थे. जब अखिलेश यादव 2012 में मुख्यमंत्री बने और अपना रुतबा दिखाते हुए उनकी बातें मानने से इनकार करने लगे, तो अमर सिंह ने उन्हें बुरी तरह नीचा दिखाना शुरू कर दिया.’

अमर सिंह की फाइल फोटो | फोटो: प्रवीन जैन/दिप्रिंट

प्रधान के अनुसार, मुलायम सिंह के शासनकाल में वह इतना प्रभावशाली बन चुके थे कि उनके लिए बाराबंकी जिले के राजस्व रिकॉर्ड में फेरबदल तक करना संभव था ताकि अमिताभ बच्चन को ‘किसान’ दिखाया जा सके. बच्चन को महाराष्ट्र में कृषि भूमि के स्वामित्व को सही ठहराने के लिए खुद को किसान दिखाने की ज़रूरत थी. इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि आखिरकार बच्चन को बाराबंकी की भूमि सरेंडर करनी पड़ी.

अमर सिंह को घोर अवसरवादी करार देते हुए प्रधान बताते हैं, ‘वह गिरगिट से भी अधिक तेज़ी से रंग बदलते रहे हैं. मैंने देखा है कि चर्चा में रहने के लिए कैसे वह बच्चन परिवार के इर्द-गिर्द मंडराते रहते थे. यदि जया बच्चन समाजवादी पार्टी की तरफ से राज्यसभा में भेजी गईं तो ये मुलायम के कारण हुआ था क्योंकि वह समाजवादी पार्टी से बच्चन के जुड़ाव का फायदा देख रहे थे. पर अमर सिंह हमेशा ये संकेत देने की कोशिश करते कि इसके पीछे उनका हाथ है.’

संडे गार्डियन को साक्षात्कार में 2013 में अमर सिंह ने कहा था, ‘बड़े लोगों की बीमारी ये है कि वे हमेशा यही सोचते हैं कि वे आप पर उपकार कर रहे हैं. उनको ये लगता है कि आपके साथ खाना खाकर उन्होंने आपको सम्मान दिया है. वे आपकी खाएंगे पर तारीफ नहीं करेंगे. उनकी राय कुछ ऐसी होगी, ‘आपकी मिठाई में चीनी अधिक थी, इससे मुझे मधुमेह हो गया, या नमक इतना था कि मैं रक्तचाप से परेशान रहूंगा. ज़िंदगी असल शिक्षक है. इसने मुझे ये सीख दी है कि अंबानी और बच्चन जैसे कथित बड़े लोग ये सोचते हैं कि वे आप पर कृपा कर रहे हैं, और अपनी सेवा करने देकर वे आपको आगे बढ़ा रहे हैं.’

बिचौलिया

प्रधान के अनुसार अमर सिंह इस बात को पचा नहीं पाए कि बच्चनों को उनकी उतनी ज़रूरत नहीं थी, जितनी कि उन्हें उनकी ज़रूरत थी. ‘यदि उन्होंने अचानक बच्चन से क्षमा याचना का फैसला किया है, तो मुझे यकीन है कि इसमें उनका कोई मतलब है. वह ऐसा व्यक्ति है जो निहित स्वार्थ के बिना कुछ नहीं करता.’

अब अमर सिंह जैसे बिचौलिए नहीं होते. पहली बार सामने आने पर सिंह को कोई खेद नहीं था, यहां तक कि अपने क्रियाकलापों पर उन्हें गर्व था. उन्होंने जो भी किया, खुलकर किया. इस तरह राजनीति हो, या व्यवसाय या लॉबिंग– लुटियंस दिल्ली को इसका खुला खेल देखने को मिला. करीब डेढ़ दशक तक ऐसा ही चला. हर जगह यही ढर्रा था, चाहे दिल्ली हो, या मुंबई या लखनऊ.

यदि आपके साथ अमर सिंह थे, तो सबकुछ संभव था, कुछ भी किया जा सकता था. उनके ज़रिए आप धनवानों और प्रसिद्ध लोगों तक बेरोकटोक पहुंच सकते थे और वह हमेशा मदद को तैयार मिलते. वास्तव में, वह बड़े दिलवाले थे. जहां अरुण जेटली सिर्फ अपने मित्रों की मदद करते थे, अमर सिंह अपनी देहरी पर आए हर शख्स की मदद के लिए तैयार मिलते थे क्योंकि उन्हें आपके सपने को पूरा करने में मददगार बनना अच्छा लगता था, उन्हें संरक्षक होने का अहसास होता था. किसी बात का खेद नहीं होने के मामले में आप उन्हें सुहेल सेठ का हिंदी संस्करण मान सकते हैं. पर जहां तक प्रभाव की बात है तो उस दौर में सुहेल जैसे उनके सामने कहीं नहीं टिकते.

अमर सिंह की फाइल फोटो | फोटो: प्रवीन जैन/दिप्रिंट

हालांकि अमर सिंह पर बहुत लिख चुकीं वरिष्ठ पत्रकार प्रिया सहगल के अनुसार अमर/अनिल/अमिताभ की तिकड़ी भले ही बिखर चुकी हो, पर उसकी चर्चा खत्म नहीं होने वाली है. ये रेखा वाला मामला है. रेखा के साथ साक्षात्कार में हम हमेशा अमिताभ के ज़िक्र का इंतजार करते हैं, उनके लिए एक अंतहीन लालसा के संकेत का. इन दिनों अमर सिंह को लेकर यही स्थिति है. उनके किसी भी साक्षात्कार में हम बच्चन परिवार के प्रति उनके एकतरफा अनुराग के संकेत ढूंढते हैं.

सहगल कहती हैं, ‘ऐसा कोई इंटरव्यू नहीं होगा जिसमें उन्होंने अमिताभ और अनिल का ज़िक्र ना किया हो– अमिताभ का तो बहुत ही ज़्यादा– और ये अफसोस नहीं जताया हो कि इतने ‘एहसान फरामोश’ व्यक्ति के लिए उन्होंने अपने जीवन के 20 साल व्यर्थ गंवा दिए. अमर सिंह उन्हें कब का ‘भुला’ चुकने का दावा करने के बावजूद हर दूसरी बात में उनका ज़िक्र करते हैं, जिससे जाहिर है कि वह अमिताभ को भुला नहीं पाए हैं. और अब, अस्पताल के अपने बेड से वह एक बार फिर दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे हैं. सच्चे बॉलीवुड स्टाइल में अमर सिंह दोस्ती के लॉकेट का अपना वाला हिस्सा थामे हुए हैं– क्या अमिताभ दूसरे हिस्से के साथ सामने आएंगे?

हमें इंतजार रहेगा, भले ही कहानी खत्म हो चुकी हो और नए भारत में समाजवादी सोशलाइट और उनके सेलिब्रेटी दोस्तों के लिए जगह नहीं रह गई हो.

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं. व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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