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Monday, 25 November, 2024
होममत-विमतआयशा बहाव से लेकर तेनमोई सुंदरराजन, अमेरिका के जातिवाद विरोधी आंदोलन का नेतृत्व महिलाओं के हाथ में

आयशा बहाव से लेकर तेनमोई सुंदरराजन, अमेरिका के जातिवाद विरोधी आंदोलन का नेतृत्व महिलाओं के हाथ में

अमेरिका के जातिवाद विरोधी आंदोलन में इस समय सबसे जाना पहचाना चेहरा तेनमोई सुंदरराजन का है. अमेरिका में ही जन्मी तेनमोई जाति के प्रश्न पर चले कई आंदोलनों और मुकदमों से जुड़ी रही हैं.

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कैलिफोर्निया की सीनेट ज्यूडिशरी कमेटी ने जाति आधारित भेदभाव पर पाबंदी लगाने के विधेयक SB 403 को सर्वसम्मति से अपनी मंजूरी दे दी है. अब ये विधेयक सीनेट के पास मतदान के लिए जाएगा. डेमोक्रेट और रिपब्लिकन दोनों पक्ष ने इस बिल का समर्थन किया, जो कम ही मामलों में होता है. ये घटना ये बता रही है कि अमेरिका, खासकर कैलिफोर्निया में जाति के प्रश्न को बेहद गंभीरता से लिया जा रहा है. जातिवाद विरोधी आंदोलन की ये बड़ी कामयाबी है, क्योंकि इसी की वजह से जाति वहां एजेंडे पर है.

इस आंदोलन का एक दिलचस्प पहलू महिलाओं की इसमें व्यापक हिस्सेदारी और नेतृत्वकारी भूमिका में होना है. कैलिफोर्निया की राजधानी सेक्रामेंटो में सीनेट कमेटी में जब इस बिल पर चर्चा हो रही थी तो अपना पक्ष रखने के लिए बड़ी संख्या में रविदासिया, बुद्धिस्ट और आंबेडकरवादी महिलाएं वहां मौजूद थीं. इससे पहले सीनेटरों के बीच बिल के पक्ष में प्रचार करने के लिए भी ज्यादातर महिलाएं ही गई थीं. इन सबके बीच कुछ चेहरे चर्चा में आए. उन्हें प्रशंसा और उससे ज्यादा विरोध झेलना पड़ा.

एसबी403 और आयशा बहाव

जातिवाद विरोधी इस बिल को सीनेटर आयशा बहाव ने तैयार किया है और उन्होंने ही इसे सीनेट में पेश किया. वे पिछले कई हफ्तों से इस बिल के पक्ष में लगातार प्रचार कर रही हैं. सीनेट कमेटी के सामने भी इस बिल के पक्ष में उन्होंने अपनी बात रखी और कहा कि जाति के आधार पर भेदभाव एक गंभीर समस्या है और इसकी असर पीढ़ियों तक रहता है. उन्होंने इसे इस महान अमेरिकन ड्रीम के खिलाफ बताया है, जिसमें हर अमेरिकी को अपना सर्वश्रेष्ठ करने का मौका मिलता है. आयशा बहाव सदन में हेवर्ड और फ्रीमोंट इलाके का प्रतिनिधित्व करती है, जहां दक्षिण एशिया के लोगों की खासी संख्या है. वे अमेरिका में पहली अफगानअमेरिकी महिला हैं, जो किसी महत्वपूर्ण सरकारी पद पर पहुंची हैं. उनका बचपन काफी कठिनाइयों में बीता है, उन्हें किसी और के घर पर रहना पड़ा और इसकी छाप उनके जीवन पर है. 2018 में पहली बार सीनेटर बनने के बाद से वे शिक्षा तथा छोटी कारोबारियों और वंचितों के सवालों को उठा रही हैं. वे इस समय अमेरिका में चल रहे जातिवाद विरोधी आंदोलन का प्रमुख चेहरा हैं.

कैलिफोर्निया के आंदोलन का केंद्र  

अमेरिका के जातिवाद विरोधी आंदोलन में इस समय सबसे जाना पहचाना चेहरा तेनमोई सुंदरराजन का है. उनके मातापिता तमिलनाडु से आकर अमेरिका में बसे. अमेरिका में ही जन्मी तेनमोई जाति के प्रश्न पर चले कई आंदोलनों और मुकदमों से जुड़ी रही हैं. वे मानवाधिकार के लिए काम करने वाली संस्था इक्वैलिटी लैब की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हैं और उनका मुख्य फोकस टेक सेक्टर में जातिवाद पर है. कैलिफोर्निया में जातिवाद विरोधी कानून का ड्राफ्ट बनाने से लेकर उसके लिए समर्थन जुटाने के अभियान में वे अग्रणी हैं.

पिछले साल प्रकाशित उनकी किताब ट्रॉमा ऑफ कास्ट में वे जाति को लेकर अपने जीवन के अनुभवों के बारे में बताती हैं. उनके नेतृत्व में इक्वैलिटी लैब ने अमेरिका में 1500 लोगों पर एक सर्वे किया, जिससे पता चला कि अमेरिका में 67 प्रतिशत दलितों को भेदभाव झेलना पड़ा है. इस रिपोर्ट से जाति विरोधी आंदोलन को एक मजबूत आधार मिला. सिएटल शहर में बने जातिवाद विरोधी कानून की पृष्ठभूमि में भी इस रिपोर्ट की चर्चा है. कैलिफोर्निया राज्य बनाम सिस्को केस को चर्चा में लाने में भी तेनमोई ने भूमिका निभाई है.

सिएटल का जातिवाद विरोधी कानून

क्षमा सावंत अमेरिका में जाति विरोधी आंदोलन का एक प्रमुख नाम है. वे खुद ब्राह्मण जाति से हैं, पर जातिवाद को उन्होंने बड़ा धक्का दिया है. वे सोशलिस्ट अल्टर्नेटिव नामक राजनीतिक संगठन से जुड़ी हैं और सिएटल सिटी काउंसिल में एकमात्र भारतीय सदस्य हैं. उन्होंने ही सिएटल में जातिवाद विरोधी बिल लाया, जो अपार बहुमत से पारित हो गया. इस तरह सिएटल अमेरिका का पहला शहर बन गया, जिसने जातिवाद विरोधी कानून बनाया है. ये कानून नौकरियों, घर खरीदने और किराए पर लेने, सार्वजनिक स्थानों पर जाने आदि में जाति के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है. क्षमा सावंत जातिवाद विरोधी आंदोलन को मजदूर आंदोलन और अन्य आंदोलनों से जोड़ना चाहती हैं.


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गूगल में जाति पर चर्चा और एक इस्तीफा

तनुजा जैन गुप्ता का नाम पिछले दिनों सुर्खियों में आया. वे गूगल में सीनियर मैनेजर पद पर कार्यरत थीं. उन्होंने अपनी टीम के लोगों में जाति और जातिवाद के प्रति चेतना पैदा करने के लिए कार्यशाला और भाषण का आयोजन किया और उसमें तेनमोई सुंदरराजन को बुलाया. इसे लेकर कंपनी में काम करने वाले भारतीय लोगों के बीच बवाल हो गया. उन्होंने तेनमोई को हिंदूविरोधी भावनाएं भड़काने वाली महिला बताकर इस टॉक का विरोध किया. कंपनी ने आखिरकार वह चर्चा रद्द कर दी. इस विवाद से क्षुब्ध होकर तनुजा ने गूगल से इस्तीफा दे दिया. इस घटना ने टेक सेक्टर में जातिवाद की कई परतें खोल दीं. तनुजा जैन गुप्ता अब स्वतंत्र रूप से जातिवाद विरोधी आंदोलन से जुड़कर काम कर रही हैं.   

जर्सी सिटी में इक्वैलिटी डे और आंबेडकर

स्वाति सावंत न्यू जर्सी में सक्रिय वकील हैं और उनका ज्यादातर काम प्रवासी मामलों को लेकर है. 2021 में न्यूजर्सी में बीएपीएस के बन रहे मंदिर में कथित रूप से वंचित जातियों के कुछ लोगों को बंधक बनाकर मजदूरी कराने की घटना सामने आई थी. इस मामले में एफबीआई ने छापा डाला. इसकी जांच और कानूनी कार्रवाई अभी जारी है. इस मामले में मजदूरों का पक्ष सावंत रख रही हैं. इससे उन्हें काफी ख्याति मिली. वे जर्सी सिटी काउंसिल के इमिग्रेट अफेयर्स कमीशन में सदस्य भी हैं. जर्सी सिटी बाबा साहब की जयंती को इक्वैलिटी डे के तौर पर मनाता है. इस साल 13 अप्रैल को सिटी कौंसिल बिल्डिंग पर अमेरिकी झंडे के साथ नीला झंडा भी फहराया गया, जिसके बीच में अशोक चक्र है.

इस तरह से कई और महिलाएं हैं जो जाति के सवालों को उठाकर चेतना फैला रही हैं. अंबेडकर एसोसिएशन ऑफ नॉर्थ अमेरिका (AANA) का नेतृत्व इस समय एक महिला के हाथ में है, जो निजी कारणों और विवादों से बचने के लिए अपना वास्तविक नाम गोपनीय रखती हैं और माया कांबले नाम से जानी जाती हैं. वे भी जातिभेद के खिलाफ लोगों को एकजुट करने में लगी हैं.

एक्टिविज्म के अलावा, शैक्षणिक और एकेडमिक कार्यों और लेखन से भी अमेरिका में जाति को लेकर जागृति बढ़ी है. इस दिशा में जिन लोगों का काम महत्वपूर्ण है उसमें कास्ट: ऑरिजन्स ऑफ आवर डिसकटेंट की लेखिका इजाबेल विल्कर्सन, कमिंग आउट एज दलित की लेखिका याशिका दत्त और कास्ट ऑफ मेरिट की लेखिका अजंता सुब्रह्मण्यण के नाम प्रमुख हैं. विल्कर्सन के किताब को चर्चित बनाने में अमेरिका की सबसे बड़ी सेलिब्रिटी ओपरा विनफ्रे और फिल्म मेकर आवा डुवर्नी प्रमुख हैं.  

इन सारी बातों की वजह से अमेरिका में जातिभेद का मामला सतह पर हैं और वहां दो दर्जन से ज्यादा विश्वविद्यालय जातिभेद पर पाबंदी लगा चुके हैं.

जाति विरोधी आंदोलन में महिलाओं के नेतृत्व का मामला सिर्फ चंद नामों तक सीमित नहीं है. जमीन पर सैकड़ों रविदासिया और आंबेडकरवादी महिलाएं इस काम को कर रही हैं. पुरुष नेतृत्व के साथ मिलकर वे इस मुहिम को आगे बढ़ा रही हैं.

सवाल उठता है कि इस आंदोलन से इतनी सारी महिलाएं क्यों जुड़ी हैं और नेतृत्व महिलाओं के हाथ में क्यों है? इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि महिलाओं के लिए जातिवाद को झेलने का अनुभव दोहरा है क्योंकि वे एक साथ जाति और लिंग भेद की शिकार होती है. दक्षिण एशिया में लिंग भेद का स्रोत भी अक्सर जाति ही है. इसलिए महिलाएं जातिवाद की ज्यादा प्रखर विरोधी हैं. इस क्रम में वे विभिन्न वंचित अस्मिताओं के साथ साझा संबंध बनाने के लिए बेहतर स्थिति में होती हैं और समावेशी तरीके से आंदोलन को चलाती है. उनके साथ वे सहानुभूति के आधार पर सहजता से जुड़ पाती हैं.

साथ ही, जातिवाद विरोधी आंदोलनों में महिला नेतृत्व की लंबी परंपरा रही है. इनमें सावित्री बाई फुले, पंडिता रमाबाई, ताराबाई शिंदे से लेकर बहन मायावती की पूरी श्रंखला है. अमेरिका के मौजूदा महिला नेतृत्व के पीछे एक महान विरासत है.

(दिलीप मंडल इंडिया टुडे हिंदी पत्रिका के पूर्व प्रबंध संपादक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @Profdilipmandal है.  यहां व्यक्त विचार निजी हैं.)

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस लेख़ को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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