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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतएयर मार्शल चौधरी जानते हैं IAF की परेशानी, उन्हें सरकार पर और लड़ाकू विमानों के लिए ज़ोर डालना चाहिए

एयर मार्शल चौधरी जानते हैं IAF की परेशानी, उन्हें सरकार पर और लड़ाकू विमानों के लिए ज़ोर डालना चाहिए

IAF चीफ के कंधों पर उसे एक आधुनिक लड़ाकू फोर्स बनाने की ज़िम्मेदारी है, जो न सिर्फ अपनी सीमाओं की रक्षा कर सके, बल्कि बाहर भी अपनी ताक़त दिखा सके.

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एयर मार्शल विवेक राम चौधरी, जो फिलहाल वाइस चीफ ऑफ एयर स्टाफ के तौर पर सेवाएं दे रहे हैं, अगले हफ्ते वायुसेना प्रमुख का कार्यभार संभालेंगे. और नए एयर चीफ के पास मुश्किल से सांस लेने का समय होगा, क्योंकि उनके पास काम करने की एक लंबी फहरिस्त है.

नरेंद्र मोदी सरकार का जुलाई में उन्हें वाइस चीफ नियुक्त करने का क़दम बहुत अहम था- उन्हें उस महत्वपूर्ण मोड़ को समझने का समय मिल गया, जिस पर आईएएफ फिलहाल खड़ी है.

आदर्श रूप में, पदस्थ सेवा प्रमुख के रिटायरमेंट से बस कुछ दिन पहले, नए प्रमुख की नियुक्ति का ऐलान करने की बजाय, सरकार को ये नाम कम से कम एक महीना पहले तय कर लेना चाहिए. इससे उत्तराधिकारी को अपने विचारों को संगठित करने, अपनी प्राथमिकताएं तय करने, और निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा बनने का समय मिल जाता है, भले ही वो अनौपचारिक आधार पर हो.

एयर मार्शल चौधरी भाग्यशाली हैं कि उन्होंने वायु मुख्यालय में महत्वपूर्ण पदों पर सेवाएं दी हैं, जिनमें डिप्टी चीफ के तौर पर योजना और खरीद का प्रभार शामिल है. वो पश्चिमी वायु कमांडर और पूर्वी वायु कमान में चीफ ऑफ स्टाफ भी रहे हैं.

लेकिन हॉट सीट में होने का मतलब है, कि अब वो एक पर्यवेक्षक नहीं बने रहेंगे, और उन्हें वायु सेना के लिए महत्वपूर्ण निर्णय लेने होंगे, जो आधुनिकीकरण की भारी चुनौतियों का सामना कर रही है.

शुक्र है कि पदस्थ एसीएम आरकेएस भदौरिया ने बहुत से कार्यों की पहल की है, और आपात ख़रीद के लिए कई समझौते किए हैं, जो अल्प काल और दीर्घ काल दोनों में, ख़ासकर मिसाइल्स और संचार के क्षेत्र में, फोर्स को फायदा पहुंचाएंगे.


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थिएटर कमांड्स

एयर मार्शल चौधरी के लिए, वायुसेना उस सबसे बड़े रक्षा सुधार की कगार पर खड़ी है, जो भारतीय सेना देखेगी- थिएटर कमान की प्रक्रिया. इसमें कोई शक नहीं है कि एक एकीकृत कमान, एकीकृत ख़रीद, साझा योजना और ऑपरेशंस से बहुत फायदा हासिल होगा. लेकिन वास्तविकता ये भी है कि थिएटर कमान और उसे कैसे आकार लेना चाहिए, इसे लेकर वायुसेना के अपने अलग विचार हैं. पिछले कुछ महीने कटुतापूर्ण रहे हैं, जिनमें थिएटर कमान की संरचना को लेकर, तीखे आपसी मतभेद खुलकर सामने आए हैं.

सभी की निगाहें एयर मार्शल चौधरी पर लगी होंगी, कि वो इस उलझे हुए मुद्दे, और इससे जुड़ी जनता की धारणा से कैसे निपटते हैं.

लड़ाकू विमानों की घटती संख्या

नए वायुसेना प्रमुख के सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी, लड़ाकू विमान स्क्वॉड्रन की घटती संख्या से निपटना. वर्तमान में, वायुसेना की स्क्वॉड्रन ताक़त घटकर 30 रह गई है, जबकि स्वीकृत संख्या 42 है.

एयर मार्शल चौधरी का सबसे ज़्यादा ज़ोर, अधिक लड़ाकू विमान हासिल करने पर होगा. बतौर डिप्टी चीफ ख़रीद के प्रभारी रहते हुए, वो अच्छी तरह वाक़िफ हैं कि वायुसेना में इस समय क्या गड़बड़ी है. वास्तविक रूप में 30 स्क्वॉड्रन्स का मतलब 30 स्क्वॉड्रन्स नहीं होता, क्योंकि कुछ प्रकार के विमानों की उपलब्धता का अनुपात बेहद ख़राब है. इसका मतलब है कि किसी भी दिन विमानों की वास्तविक उपलब्धता कम रहती है, क्योंकि ज़्यादातर या तो सर्विसिंग में होते हैं, या फिर स्पेयर-पार्ट्स न होने की वजह से खड़े होते हैं.

नए वायुसेना प्रमुख को सरकार पर ज़ोर डालना होगा, कि या तो 114 फाइटर्स के लिए खुले टेंडर्स के ज़रिए, प्रतिस्पर्धा का एक और राउंड शुरू करे, या फिर और राफेल विमान ख़रीद ले. दोनों स्थिति में, कोई भी देरी छोटी और लंबी अवधि में, वायुसेना की क्षमता को प्रभावित करेगी.

कुछ ख़बरों में कहा गया है कि वायुसेना से कहा गया है, कि राफेल विमान की बढ़ी हुई क्षमता, और आने वाले एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम के मद्देनज़र, वो अपनी स्क्वॉड्रन शक्ति का तर्कसंगत ढंग से पुनर्गठन करे.

लेकिन अभी तक ये स्पष्ट नहीं है कि एस-400, किसी लड़ाकू विमान की ज़रूरत कैसे पूरी कर सकता है. ये कहना ऐसा ही है कि अब गोलियां ख़रीदने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि हमारे पास एक बुलेट-प्रूफ जैकेट है.

ना ही राफेल विमान की दो स्क्वॉड्रन्स शामिल करने का मतलब है, कि वायुसेना 42 स्क्वॉड्रन्स की अपनी नियोजित आवश्यकता को छोड़ सकती है, जिसमें 126 मल्टी मीडियम मल्टी रोल एयरक्राफ्ट भी शामिल थे, जिनके लिए 2012 में फ्रांसीसी फाइटर्स का चयन किया गया था.

2019 में मैंने ख़बर दी थी, कि स्थिति इतनी निराशाजनक है कि वायुसेना के अनुमानों के अनुसार, अगर 36 राफेल, तेजस की छह स्क्वॉड्रन्स (तेजस मार्क 1ए समेत), और एसयू30 एमके आई की दो और स्क्वॉड्रन्स को जोड़ लिया जाए, तो भी 2032 तक स्क्वॉड्रन्स की संख्या घटकर 27, और 2042 तक महज़ 19 रह जाएगी. इसका कारण ये है कि अगले दो दशकों में, एमआईजी 21 बाइसन्स और जैगुआर्स, यहां तक कि मिराज 2000 और मिग 29 की मौजूदा स्कॉड्रन्स भी, धीरे धीरे हटा दी जाएंगी.

लेकिन तब क्या होगा अगर हम हिसाब लगाएं, कि तेजस एमके2 (अभी डिज़ाइन की अवस्था में), 114 नए लड़ाकू विमान (इस योजना पर निर्णय लिया जाना है), और देश में बन रहे एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (अभी डिज़ाइन की अवस्था में), वायुसेना में शामिल कर लिए जाएंगे.

सबसे अच्छी स्थिति में भी, साल 2042 तक वायुसेना 42 स्क्वॉड्रन्स की अपनी स्वीकृत संख्या तक नहीं पहुंच पाएगी.

और अगर आप मान लें कि भविष्य में तीनों आधुनिक विमान, योजना के मुताबिक़ शामिल कर लिए जाते हैं, तो भी 2042 तक स्क्वॉड्रन ताक़त 37 ही रहेगी. आख़िरी बार जब वायुसेना के पास 42 स्क्वॉड्रन्स, साल 2002 में थीं.


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उन्नत ड्रोन्स, रीफ्यूलर्स, स्पेस तकनीक का आगमन

आम धारणा के विपरीत, ड्रोन्स के मामले में भारत ने जल्दी शुरूआत की है. 1980 के दशक में ही वायुसेना ने अमेरिका में निर्मित चुकर ड्रोन्स का इस्तेमाल शुरू कर दिया था. फिर उसने इसराइल से सर्चर ड्रोन्स हासिल किए और उसके बाद ज़्यादा सक्षम हेरोन्स की ख़रीद की. भारत क़रीब दो दशकों से घूमने वाला जंगी सामान इस्तेमाल करता रहा है. लेकिन ऐसा लगता है कि वो कहीं बीच में भटक गया.

समय की ज़रूरत ये है कि घूमने वाला और अधिक जंगी सामान, तथा अलग अलग प्रकार के ड्रोन्स- सशस्त्र, लंबी दूरी की निगरानी, और स्वर्म ड्रोन्स भी हासिल किए जाएं.

नए वायुसेना प्रमुख के एजेण्डे में ये भी होगा कि भारत की हवा में ईंधन भरने की क्षमता और अंतरिक्ष क्षमता को बढ़ाया जाए जो वायुसेना के दायरे में आती है.

वायुसेना चीफ के कंधों पर उसे एक आधुनिक लड़ाकू फोर्स बनाने की ज़िम्मेदारी है, जो न सिर्फ अपनी सीमाओं की रक्षा कर सके, बल्कि बाहर भी अपनी ताक़त दिखा सके.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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