तेलंगाना में भारतीय जनता पार्टी में अचानक से विड्रॉल सिम्पटम दिखने से जैसे कांग्रेस में रचनात्मकता का संचार होने लगा है. सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति पर निशाना साधते हुए, कांग्रेस ने हाल में हैशटैग #BRSLOVESBJP के साथ एक शादी का कार्ड ट्वीट किया. इसमें शादी की तारीख 30 नवंबर बताई गई है जब राज्य में चुनाव होने वाले हैं और आयोजन स्थल मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव का फार्महाउस बताया गया है. जहां तक दहेज का सवाल है, निमंत्रण कार्ड में कहा गया है, केसीआर की बेटी और विधायक के कविता को दिल्ली शराब घोटाले में गिरफ्तार नहीं किया जाएगा. नोटबंदी, कालेश्वरम सिंचाई परियोजना, पेपर लीक की कोई सीबीआई जांच नहीं होने और बंदी संजय कुमार की जगह जी किशन रेड्डी को राज्य भाजपा प्रमुख बनाने समेत अन्य मुद्दों पर “सात फेरे” होंगे.
हास्य और व्यंग्य वाला कांग्रेस का शादी का निमंत्रण कार्ड पार्टी की रणनीति का हिस्सा है. कांग्रेस बीआरएस और असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) पर क्रमशः भाजपा की बी और सी टीमें होने का आरोप लगाती रही है. कांग्रेस कहती है कि सीएम केसीआर की बेटी को ईडी ने शराब घोटाले में गिरफ्तार नहीं किया और यह इस बात की ओर इंगित करता है कि बीजेपी-बीआरएस में डील हो गई है. दिप्रिंट के साथ एक साक्षात्कार में, बीआरएस की कविता ने पलट कर पूछा की नेशनल हेराल्ड मामले में राहुल गांधी को गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया.
अगर कांग्रेस बीआरएस को बीजेपी का साथी दिखाने की कोशिश कर रहा है तो इसकी वजह मुस्लिम वोट बैंक है. तेलंगाना में मुसलमानों की आबादी लगभग 13 प्रतिशत है और कहा जाता है कि वो 119 विधानसभा क्षेत्रों में से लगभग एक-तिहाई पर नतीजे बदलने की किसमत रखते हैं. कांग्रेस जिस तरह से आक्रामक तरीके से तेलंगाना में मुसलमानों को लुभा रही है यह दिलचस्प है. राहुल गांधी ने ओवैसी की पार्टी पर राज्यों में उम्मीदवार खड़ा करने के लिए बीजेपी से पैसे लेने का आरोप लगाया है.
गांधी परिवार और ओवैसी
हालांकि कांग्रेस के नेताओं द्वारा एआईएमआईएम को भाजपा की बी टीम के रूप में वर्णित करना कोई नई बात नहीं है, यह यकीनन पहली बार है कि किसी गांधी ने ओवैसी की पार्टी पर सीधा हमला किया है. एक समय था जब गांधी परिवार का हैदराबाद के सांसद के साथ बहुत अच्छा तालमेल था. वास्तव में, जब कांग्रेस आंध्र प्रदेश को विभाजित करने के विकल्प पर विचार कर रही थी, तो ओवैसी ने सोनिया गांधी से कहा था कि यह एक बुरा विचार है, हालांकि, इसके परिणामस्वरूप AIMIM को भाजपा के उदय से लाभ होगा.
एआईएमआईएम द्वारा कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) से समर्थन वापस लेने के बाद, कांग्रेस उन्हें वापस लाने में लगी रही. 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले, सोनिया गांधी ने वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को ओवैसी से मिलने और उन्हें वापस मनाने के लिए हैदराबाद भेजा था. अपनी बैठक को गुप्त रखने के लिए, ओवैसी बुलेट मोटरसाइकिल पर आए थे और हेलमेट पहनकर सिंह से मिलने होटल पहुंचे थे. यह अलग बात है कि सिंह ने उन्हें कुछ घंटों तक इंतजार कराया, जिससे ओवैसी को अपने निर्णय के प्रति दृढ़ कर दिया कि अब कांग्रेस के साथ नहीं जाएंगे. इसके बाद ही ओवैसी ने दूसरे राज्यों में चुनाव लड़ना शुरू किया, कांग्रेस के पारंपरिक मुस्लिम वोटों में सेंध लगाई, दोनों पार्टियां दूर हो गईं और कड़वाहट बढ़ गई.फिर भी गांधी परिवार ने कभी उन पर सीधे तौर पर हमला नहीं किया . अब राहुल ने इस रणनीति को बदल कर ओवैसी पर हमला करना शुरू किया है.
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एआईएमआईएम पर पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष का हमला कांग्रेस द्वारा मुसलमानों के प्रति अपनी रणनीति बदलने का एक मजबूत संकेत है. गुरुवार को, तेलंगाना कांग्रेस ने अल्पसंख्यक घोषणापत्र जारी किया, जिसमें अल्पसंख्यकों के लिए कई रियायतों और प्रोत्साहनों का वादा किया गया. पार्टी की 2014 की लोकसभा हार पर अपनी रिपोर्ट में, एके एंटनी ने कांग्रेस द्वारा अल्पसंख्यक तुष्टिकरण करने के बारे में जनता की धारणा का हवाला दिया था. इसके बाद के महीनों और वर्षों में कांग्रेस और उसके नेता, विशेषकर गांधी परिवार, हिंदू-समर्थक पहचान पर जोर देने के लिए अपनी छवि में बदलाव करते दिखे. जब मुसलमानों से संबंधित मुद्दे उठाने की बात आई तो वे भी सशंकित दिखे. कर्नाटक विधानसभा चुनाव, जिसमें मुसलमानों ने कांग्रेस को वोट देने के लिए जनता दल (सेक्युलर) को छोड़ दिया, ने पार्टी को अपनी अल्पसंख्यक रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित किया है. यह तेलंगाना में मुसलमानों को लुभाने की पार्टी की आक्रामकता में साफ साफ दिखाई दे रहा है. कांग्रेस के अपने दृष्टिकोण को लेकर आशावादी महसूस करने के कई कारण हैं.
मुहब्बत की दुकान
जब मैं पिछले हफ्ते हैदराबाद में चारमीनार के बाहर भीड़-भाड़ वाले बाज़ार से गुज़रने की कोशिश कर रहा था, एक रिकॉर्डेड आवाज़ मेरे कानों में आती रही : “मुहब्बत का मीठा शरबत बीस रुपये में, बीस रुपये में.” जिज्ञासु खरीदार उस स्टॉल की ओर खिंचे चले आए जहां 20 रुपये में मुहब्बत या प्यार का एक मीठा पेय पेश किया जा रहा था. यह मसले हुए तरबूज और बर्फ के साथ दूध का मिश्रण था. विक्रेता, अनूप गोपालराव पाटिल इसे मोहब्बत की दुकान नहीं कहेंगे, जैसा कि राहुल गांधी द्वारा अपनी भारत जोड़ो यात्रा के बाद कहते हैं. पाटिल ने दावा किया कि उनका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है. लेकिन यदि गांधी के नारे ने कुछ जिज्ञासु ग्राहक दुकान में आते हैं तो इसमें क्या बुरा है.
कुछ मीटर की दूरी पर, कढ़ाई वाली साड़ियां बेच रहे शेख एज़ाज़ ने जोर देकर कहा कि असदुद्दीन ओवैसी का भाजपा से कोई लेना-देना नहीं है क्योंकि उन्होंने “अल्लाह की कसम” खाई है. उनके मुताबिक एमआईएम सबसे अच्छी है और केसीआर भी धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करती. उन्होंने कहा, ”लेकिन कांग्रेस केंद्र में सर्वश्रेष्ठ होगी.” हैदराबाद में मुसलमानों के साथ मेरी बातचीत से पता चला कि असदुद्दीन औवेसी वहां के निर्विवाद सुल्तान बने रहेंगे. हालांकि, हैदराबाद से परे, परिवर्तन की बयार काफी साफ दिखाई दे रही है.
हैदराबाद से लगभग 165 किमी उत्तर में करीमनगर में असलामी मस्जिद के इमाम मोहम्मद शफीउद्दीन इस बार कांग्रेस के समर्थन में मुखर थे. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “ओवैसी मुसलमानों को मूर्ख बना रहे हैं. वह भाजपा का समर्थन करने के लिए उन्हें बांट रहे हैं. कोई कांग्रेसी मुझसे नहीं मिला लेकिन राहुल गांधी ने दिल से दिल मिलाने का काम किया है. विभाजित मुस्लिम वोट ही भाजपा के (केंद्र में) सत्ता में आने का कारण है.”
165 किलोमीटर की इस पूरी दूरी में हम कई बार लोगों से बात-चीत करने के लिए रुके. मुसलमानों के बीच कांग्रेस के प्रति बढ़ती रुचि और समर्थन बहुत स्पष्ट था. उनमें से एक वर्ग हालांकि विधानसभा चुनाव में “गैर-भेदभावपूर्ण” होने और अपने हितों की रक्षा करने के लिए बीआरएस को प्राथमिकता दे रहे थे.
एआईएमआईएम और बीआरएस, हालांकि कभी भी औपचारिक गठबंधन में नहीं थे, सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए निकटतम सहयोगी रहे हैं. केसीआर वास्तव में ओवेसी के क्षेत्र हैदराबाद से दूर रहते हैं, जबकि ओवेसी अन्य जगहों पर सत्तारूढ़ पार्टी का समर्थन करते हैं. एआईएमआईएम प्रमुख, जिन्होंने इस चुनाव में तेलंगाना में नौ उम्मीदवार उतारे हैं – जिनमें से सात हैदराबाद में हैं – इस बार भी बीआरएस के समर्थन और कांग्रेस के विरोध में काफी मुखर हैं.
मुस्लिम वोट और भारत
तेलंगाना विधानसभा चुनाव परिणाम, खासकर इस संदर्भ में कि मुसलमान किसको वोट देते हैं, INDIA पर गहरा प्रभाव डालेगा. 28 दलों के गठबंधन के जन्म के कुछ समय बाद से ही इसमें दरारें दिखनी शुरू हो गई हैं. समाजवादी पार्टी, जनता दल (यूनाइटेड) और आम आदमी पार्टी (आप) सहित कई INDIA घटक दल मध्य प्रदेश और दूसरे राज्यों में मैदान में उतर आए हैं, जिससे कांग्रेस की राह मुश्किल हो सकती है. कांग्रेस के खिलाफ सपा प्रमुख की नाराजगी पर पूछने पर कमल नाथ की संक्षिप्त टिप्पणी “छोड़ो अखिलेश वखिलेश” ने INDIA के कई घटकों को नाराज कर दिया है, जिससे विपक्षी गठबंधन के भविष्य पर सवालिया निशान लग गया है.
क्षेत्रीय दल स्पष्ट रूप से अपनी ताकत दिखाने और कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने की क्षमता साबित करने के लिए चुनावी मैदान में हैं. जबकि इन विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन का INDIA में उसकी स्थिति पर बड़ा असर पड़ेगा. क्षेत्रीय दल तेलंगाना के घटनाक्रम पर अधिक उत्सुकता से नजर रखेंगे कि क्या मुस्लिम कांग्रेस के पीछे एकजुट हो रहे हैं या नहीं.
कांग्रेस के लिए कड़वा सच यह है कि सपा, आप, जद(यू), राष्ट्रीय जनता दल और तृणमूल कांग्रेस जैसी पार्टियां कांग्रेस को इसके पुराने मुस्लिम समर्थकों – या जो कुछ भी बचे हुए हैं— उसके लिये साथ रखना चाहती है. एक समय था जब इन वोटों का बड़ा हिस्सा कांग्रेस को मिलता था लेकिन पिछले तीन दशकों में स्थिति बदल गई है. कई राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियां मुसलमानों की पहली पसंद बन गई हैं.
2019 के लोकसभा चुनाव के बाद के सर्वेक्षण से पता चला कि जहां मुसलमानों ने द्विध्रुवीय राजनीति वाले राज्यों में कांग्रेस को भारी वोट दिया. वहीं उन्होंने जहां क्षेत्रीय दल मजबूत थे इन दलों के प्रति अपनी निष्ठा दिखाई. उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश में 73 फीसदी मुसलमानों ने एसपी-बहुजन समाज पार्टी गठबंधन को वोट दिया. 2014 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में 40 फीसदी मुसलमानों ने तृणमूल कांग्रेस को वोट दिया था, जो 2019 में बढ़कर 70 फीसदी हो गया. 2014 में तेलंगाना में 60 फीसदी मुसलमानों ने कांग्रेस को वोट दिया था, जो आगे कम हो गया. सीएसडीएस-लोकनीति के चुनाव बाद सर्वेक्षण से पता चला कि 2019 में तेलंगाना राष्ट्र समिति (अब बीआरएस) 43 प्रतिशत मुसलमानों की पसंदीदा पसंद थी.
जैसे-जैसे कई राज्यों में बहुकोणीय मुकाबलों में कांग्रेस की मुस्लिम वोटों पर पकड़ ढीली होती दिख रही थी, वैसे-वैसे विपक्षी खेमे में उसका प्रभाव भी कम होता जा रहा था. पिछले साल कर्नाटक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की वापसी के पीछे मुसलमानों का भी समर्थन एक कारण था. उन्होंने अपने वोटों के विभाजन से बचने के लिए जद (एस) को छोड़ दिया और कांग्रेस की तरफ आ गए. यदि तेलंगाना विधानसभा चुनाव भी इसी तरह का रुझान दिखाते हैं, तो यह INDIA में क्षेत्रीय दलों को 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बड़े भाई की स्थिति को स्वीकार करने के लिए मजबूर कर देगा. निःसंदेह, यहां ‘यदि’ एक बहुत ही महत्वपूर्ण शब्द है.
डीके सिंह दिप्रिंट में पॉलिटिकल एडिटर हैं. यहां व्यक्त विचार निजी हैं.
(संपादन/अनुवाद: पूजा मेहरोत्रा)
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