मध्य पूर्व और यूरोप में चीन का राजनयिक मध्यस्थता करना उसका एक ऐसे देश के रूप में उभरने के उसके एजेंडे का हिस्सा है जो एक वैकल्पिक सुरक्षा के लिए ढांचा प्रदान कर सकता है. अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में यह तमगा अब तक वाशिंगटन के पास रहा है. हाल ही में चीन का सऊदी-ईरान राजनयिक सौदा और शी जिनपिंग की रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ आगामी बैठक व यूक्रेन के वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की के साथ बातचीत अमेरिकी प्रभाव को कम करने के दृष्टिकोण से किया गया है.
वैकल्पिक सुरक्षा तंत्र विकसित करने और अमेरिका से दूरी बनाए हुए देशों को अपनी ओर लुभाने के चीन के रणनीतिक मिशन का केंद्र बिंदु इसका ग्लोबल सिक्युरिटी इनीशिएटिव (जीएसआई) है. शी ने पहली बार 21 अप्रैल 2022 को बोआओ फोरम फॉर एशिया सम्मेलन में जीएसआई का प्रस्ताव दिया था, लेकिन इसके औचित्य के लिए बहुत थोड़े विवरण पेश किए गए थे.
इस साल फरवरी में बीजिंग ने इस पहल पर एक श्वेत पत्र जारी किया. जिसमें कहा गया, “जीएसआई का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय संघर्षों के मूल कारणों को खत्म करना, ग्लोबल सिक्युरिटी गवर्नेंस में सुधार करना, अस्थिर और बदलते युग में अधिक स्थिरता और निश्चितता लाने के लिए संयुक्त अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को प्रोत्साहित करना और दुनिया में टिकाऊ शांति और विकास को बढ़ावा देना है.”
सऊदी अरब और ईरानी प्रतिनिधिमंडलों के बीच बातचीत का समापन करते हुए, चीन के विदेश मामलों के आयोग के निदेशक वांग यी ने कहा कि वार्ता “ग्लोबल सिक्युरिटी इनीशिएटिव के मजबूत कार्यान्वयन के लिए एक सफल उदाहरण बन गया है.”
जीएसआई श्वेत पत्र में ‘मिडिल ईस्ट सिक्युरिटी फोरम’ की मेजबानी का बीजिंग की सिक्युरिटी आर्किटेक्चर विजन के हिस्से के रूप में उल्लेख किया गया है.
यहां तक कि चीन के एक्सर्ट्स कम्युनिटी ने भी रियाध और तेहरान के बीच राजनयिक मध्यस्थता को जीएसआई से जोड़ दिया है.
शंघाई अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन विश्वविद्यालय के मध्य पूर्व अध्ययन संस्थान के प्रोफेसर लियू झोंगमिन ने कहा, “सऊदी अरब और ईरान का चीन पर भरोसा, चीन और दोनों पक्षों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध, एक प्रमुख शक्ति के रूप में चीन का प्रभाव व अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा, और चीन की वैश्विक सुरक्षा पहलों ने सऊदी अरब और ईरान के बीच चीन की मध्यस्थता की नींव रखी है.
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वैकल्पिक सुरक्षा संरचना
जब विदेश नीति पर बीजिंग की सार्वजनिक रूप से स्पष्ट किए गए विचारों की बात आती है, तो यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि हर चीज को वैसे ही नहीं लिया जा सकता जैसा वह सीधा-सीधा जाहिर होता है. लेकिन जो स्पष्ट है वह यह है कि जीएसआई चीन को अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष और राजनयिक विवादों में एक वैकल्पिक सुरक्षा गारंटर और वार्ताकार के रूप में पेश करना चाहता है.
जीएसआई श्वेत पत्र में कहा गया. “प्रमुख देशों के बीच समन्वय और बेहतर बातचीत को बढ़ावा देना और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, समग्र स्थिरता और संतुलित विकास की विशेषता वाले एक प्रमुख देश संबंध का निर्माण करना. प्रमुख देश अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाते हैं. जीएसआई श्वेत पत्र में, ‘समानता, सद्भावना, सहयोग और कानून के शासन का सम्मान करने को कहा गया है और साथ ही बड़े देशों से संयुक्त राष्ट्र चार्टर व अंतर्राष्ट्रीय कानून का पालन करने का उदाहरण प्रस्तुत करने को भी कहा गया है.
बीजिंग सऊदी अरब के साथ अपने आर्थिक संबंधों को विकसित करने में सालों से लगा हुआ है. वास्तव में, बीजिंग 2021 में 87.3 बिलियन डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार के साथ रियाध का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है. आर्थिक संबंधों ने बीजिंग को रियाध के कानों में अपनी बात कहने का अवसर दिया जो दशकों से व्हाइट हाउस की बात सुन रहा था.
अब, रियाध अपनी सुरक्षा को लेकर चिंताओं के बारे में बीजिंग के साथ गंभीरता से बात करने में ज्यादा सहज प्रतीत होता है.
फाइनेंशियल टाइम्स के साथ एक साक्षात्कार में मिडिल ईस्ट स्टडीज इंस्टीट्यूट के एक प्रोफेसर फैन होंगडा ने कहा, “मध्य पूर्वी देश तेजी से उम्मीद कर रहे हैं कि चीन आर्थिक संबंधों से ऊपर उठकर सुरक्षा समस्याओं को हल करने में मदद कर सकता है.”
बीजिंग इस बात पर भी ध्यान दे रहा है कि वह कूटनीति कैसे करता है. सऊदी, ईरानी और चीनी टीमों के बीच बीजिंग में दस्तावेज़ और बातचीत अरबी, फ़ारसी और चीनी में थी. बीजिंग की योजनाओं में इन छोटी-छोटी बातों का भी ध्यान रखा जाता है जैसे अंग्रेजी के प्रयोग का मतलब अमेरिका की शक्तियों के प्रसार की स्वीकृति से है.
खंडित भू-राजनीति की एक नई दुनिया
सऊदी-ईरान वार्ता की सफलता ने यह आभास दिया है कि बीजिंग रूस और यूक्रेन के बीच शांति की मध्यस्थता कर सकता है. लेकिन अगर हम मान लें कि बीजिंग शांतिदूत बनने का इरादा रखता है, तो इसका मतलब यह है कि जीएसआई को लेकर हमारी समझ कमजोर है.
एक साल पहले यूक्रेन में युद्ध शुरू होने के बाद से राष्ट्रपति शी और राष्ट्रपति पुतिन ने वर्चुअल और व्यक्तिगत रूप से कई मुलाकातें की हैं. वह संभवतः अगले सप्ताह मास्को की यात्रा पर रवाना होंगे. युद्ध शुरू होने के बाद से यह उनकी पहली यात्रा होगी. लेकिन अब तक यूक्रेनी राष्ट्रपति द्वारा बार-बार बातचीत के लिए बुलाए जाने के बावजूद शी ने ज़ेलेंस्की के साथ बातचीत से परहेज किया है. द वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार, उनके ज़ेलेंस्की से बात करने की उम्मीद है. यह यूक्रेन में शत्रुता के मौजूदा चरण को समाप्त करने के लिए बीजिंग द्वारा बातचीत का एक प्रयास हो सकता है.
चीन ने रूस-यूक्रेन युद्ध में बातचीत को बढ़ावा देने की मांग करने वाले देश के रूप में खुद को प्रस्तुत किया है और अमेरिका को हथियार आपूर्तिकर्ता के रूप में चित्रित किया है.
विशेषज्ञों ने कहा है कि बीजिंग ‘दुनिया का पुलिसमैन’ नहीं बनना चाहता है.
सिंघुआ यूनिवर्सिटी में अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और रणनीति केंद्र के वरिष्ठ साथी झोउ बो ने कहा, “मुझे लगता है कि चीन-अमेरिकी प्रतियोगिता ज्यादातर पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र तक ही सीमित है, जो कि चीन का द्वार है. दक्षिण चीन सागर के अलावा, सुरक्षा के मुद्दों पर चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच कोई बड़ी प्रतिस्पर्धा नहीं है, क्योंकि चीन का दुनिया का पुलिसमैन बनने का कोई इरादा नहीं है.”
बीजिंग खंडित भू-राजनीति की एक नई दुनिया में कदम रख रहा है – जिसका एक हिस्सा उसकी खुद की रचना है – जहां वह इस बात की चिंता किए बिना कि वहां शासन किस तरह का है अपने लिए कुछ फायदेमंद सौदेबाजी कर सकता है. लेकिन चीन ‘दुनिया का पुलिसवाला’ नहीं बनना चाहता क्योंकि इसके लिए उसे जो कीमत अदा करनी पड़ेगी उससे वह बचना चाहता है. इसके बदले में उसे मध्य पूर्व जैसे क्षेत्र में विद्रोह व स्थानीय युद्धों में शामिल होने जैसी लागत चुकानी पड़ेगी.
बीजिंग केवल वहीं शांति लाएगा जहां चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और स्टेट काउंसिल ऑफ चाइना के मुख्यालय झोंगनहाई के हितों की सबसे बेहतर तरीके से रक्षा होगी. रूस-यूक्रेन युद्ध के लिए तथाकथित चीनी शांति योजना कोई बड़ा सौदा नहीं होगा जैसा कि हमने सऊदी-ईरान मामले में देखा.
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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