21वीं सदी के दूसरे दशक के अंत में, जब भारत चांद पर यान भेजने की तैयारी में है, एक और दलित युवा की हत्या कर दी गई. वजह सिर्फ इतनी-सी कि उसने उच्च जाति की लड़की से प्रेम करने और उससे शादी करने की जुर्रत की. गुजरात के अहमदाबाद जिले के वारमोर गांव में 9 मई को 8 लोगों ने मिलकर दलित युवा हरेश सोलंकी पर तलवार, चाकू, रॉड और डंडे से हमला बोला और उसे मार डाला. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इन लोगों की अगुआई लड़की के पिता दशरथ सिंह जाला कर रहे थे. लड़की का नाम उर्मिला है जिस समय उसके पति की हत्या हुई उस समय उसके गर्भ में दो महीने का बच्चा पल रहा है.
करीब 6 महीने पहले हरेश और उर्मिला ने शादी की थी. मई में उर्मिला के घर वाले उसे अपने साथ ले गए. हरेश पर हमला उन्होंने महिलाओं की सहायता के लिए नियुक्त सरकारी टीम (अभयम्) और साथ गई महिला सिपाही के सामने किया. हमलावरों ने अभयम् की टीम पर भी हमला बोला. यह टीम लड़की वालों के परिवार को समझाने गई थी, कि वे उर्मिला को हरेश के साथ वापस भेज दें. हमलावरों पर अन्य धाराओं के साथ एससी-एसटी एक्ट भी लगाया गया है.
यह भी पढ़ेंः दलित से शादी के बाद बीजेपी विधायक की बेटी ने बताया पिता से जान का खतरा, सुरक्षा मांगी
इसी तरह उत्तर प्रदेश में एक लड़की साक्षी मिश्रा को डर है कि उसके विधायक पिता राजेश मिश्रा उसे और उसके पति को नुकसान पहुंचा सकते हैं क्योंकि उसने एक दलित युवक से शादी की है. साक्षी ने इस बारे में पुलिस को सूचित कर दिया है.
कुछ दिनों पहले तेलंगाना में एक कारोबारी पिता ने अपनी गर्भवती बेटी अमृता के पति की किराए के गुंडों से सरेआम हत्या करा दी, क्योंकि लड़की ने पिता की मर्जी के खिलाफ एक दलित युवक प्रणय से शादी कर ली थी. ये हत्या लड़की के आंखों के सामने हुई. हालांकि लड़की ने बाद में प्रणय के बेटे को जन्म दिया और अब वह अपने पिता के खिलाफ केस लड़ रही है.
क्या आपने कभी ऐसी कोई खबर सुनी या पढ़ी है कि किसी ब्राह्मण युवक की इसलिए हत्या कर दी गई कि उसने अपने से नीची जाति की किसी लड़की से शादी कर ली? कम से कम मेरे संज्ञान में ऐसी कोई घटना आज तक नहीं हुई है. आखिर ऐसा क्या है कि किसी बाप को इस बात पर गुस्सा नहीं आता कि उनकी बेटी ने किसी ब्राह्मण युवक से शादी कर ली है.
यानी मामला सिर्फ अंतर्जातीय शादियों से नाराजगी का नहीं है. इस संदर्भ में तीन बातें साफ समझ में आती हैं.
1. अंतर्जातीय विवाह से शिकायत सिर्फ लड़कियों के परिवार को है. ऑनर किलिंग में लड़कियों का परिवार ही शामिल पाया जाता है.
2. अंतर्जातीय शादियों से समाज को दिक्कत है. लेकिन हर अंतर्जातीय शादी से नहीं. वरना कभी तो किसी ब्राह्मण युवक की भी जाति से बाहर शादी करने के कारण ऑनर किलिंग होती.
3. सिर्फ उन्हीं अंतर्जातीय विवाहों से लड़की के परिवार वालों को दिक्कत है, जिसमें लड़का अपने से नीची जाति का हो, खासकर अगर लड़का दलित हो तो ज्यादा ही दिक्कत हो जाती है.
भारतीय परंपरा स्त्रियों की आजादी के पक्ष में नहीं
भारतीय आदमी का दिमाग इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं है कि कोई भी बालिग लड़की इस बात के लिए स्वतंत्र है कि वह जिससे चाहे प्रेम करे और जिससे चाहे शादी. भले ही यह अधिकार संविधान हर बालिग लड़की-लड़के को प्रदान करता है. इसी की अभिव्यक्ति मनुस्मृति में इन शब्दों में की गई है –
पिता रक्षति कौमारे भर्ता रक्षति यौवने.
रक्षन्ति स्थविरे पुत्रा न स्त्री स्वातन्त्र्यं अर्हति. (9/3)
यानी स्त्री जीवन के किसी भी पड़ाव पर स्वतंत्रता के योग्य नहीं होती है. बचपन में उसकी रक्षा पिता करे, जवानी में उसकी रक्षा पति करे और बुढ़ापे में रक्षा पुत्र करे. हिंदुओं के महान महाकाव्य रामचरितमानस में भी तुलसीदास कहते हैं कि स्वतंत्र होते ही स्त्री बिगड़ जाती है- ‘जिमि स्वतंत्र होइ, बिगरहि नारी’.
अपने से नीची जाति की लड़की से शादी को शास्त्रों की मान्यता
सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया में हिंदुओं का एक हिस्सा प्रेम विवाह को मजबूरी में स्वीकार करने को तैयार हुआ है; लेकिन शर्त यह है कि लड़का अपनी जाति का होना चाहिए. अन्तर्निहित शर्त यह भी है कि आर्थिक हैसियत (यानी वर्ग) कमोवेश बराबर हो. वर्ग की शर्त तो वे छोड़ सकते हैं, पर जाति की शर्त छोड़ने को वे तैयार नहीं होते. कुछ लोग जाति की भी शर्त छोड़ने को तैयार हैं बशर्ते लड़का, लड़की वालों से ऊंची जाति को हो. इसे मनु ने अनुलोम विवाह कहा है और इसे स्वीकृति प्रदान की है. इस संदर्भ में मनु का कहना है कि-
शूद्रैव भार्या शूद्रस्य सा च स्वा च विश: स्मृते.
ते च स्वा चैव राज्ञश्च ताश्चस्वा चाग्रजन्मन: (3/13)
(यानी शूद्र केवल शूद्र महिला के साथ ही शादी कर सकता है. वैश्य, वैश्य व शूद्र दोनों वर्ण की महिला के साथ शादी करने का अधिकारी है. वहीं क्षत्रिय को क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र तीनों वर्णों की महिलाओं के साथ शादी का अधिकार है. जबकि ब्राह्मण को चारों वर्णों की महिला से विवाह का अधिकार है.)
यानी किसी भी कीमत पर लड़के वालों की जाति लड़की वालों से नीची नहीं होनी चाहिए. अगर लड़के की जाति नीची हुई तो ऐसा धर्म के विरुद्ध शादी को प्रतिलोम विवाह कहते हैं. इसकी इजाजत हिंदू धर्म-शास्त्र नहीं देते.
कन्यां भजन्तीमुत्कृष्टं न किंचदपि दापयेत्.
जघन्ये सेवामानां तुंसयतो वावसयेदगृहे. (8/365)
(इसके मुताबिक, उत्तम जाति के पुरुष के साथ संभोग करने वाली कन्या किसी प्रकार के दंड की भागी नहीं है. जबकि नीच जाति के पुरुष के साथ संभोग करने वाली कन्या को कठोर दंड दिया जाना चाहिए.)
समाज का एक हिस्सा आज इससे भी आगे बढ़ने को तैयार है. वह किसी विशेष हालात या स्वार्थ में प्रतिलोम विवाह भी करने को तैयार हो सकता है; लेकिन वह जाति किसी हालत में ‘अछूत’ कही जाने वाली जाति नहीं होनी चाहिए. अपवादस्वरूप दलित जाति के लड़के से उच्च जाति का व्यक्ति अपनी बेटी या बहन की शादी तभी स्वीकार कर सकता है, जब लड़का कोई बड़ा राजनेता, अधिकारी या कोई बड़ा कारोबारी हो जिससे लड़की के परिवार वालों की हैसियत बढ़ने वाली हो और उन्हें आर्थिक-राजनीतिक फायदा मिलने वाला हो. हालांकि ये लिखते हुए इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि समाज का एक छोटा सा हिस्सा इन बातों से ऊपर उठ चुका है लेकिन वह किसी भी मायने में समाज की मुख्यधारा नहीं है.
यह भी पढ़ेंः डॉ. आंबेडकर ने इस्लाम, ईसाई या सिख धर्म की जगह बौद्ध धम्म ही क्यों अपनाया
इस संदर्भ में दलित युवा हरेश कुमार सोलंकी और उर्मिला जाला के संबंधों को देखते हैं. उर्मिला तथाकथित उच्च जाति की लड़की थी. उसने हरेश से प्रेम और शादी करके हिंदू धर्मशास्त्रों, परंपराओं, संस्कारों और इससे बनी मानसिकता के हिसाब से तीन अपराध एक साथ किए. पहला, प्रेम करके एवं अपने मन से शादी करके उसने अपनी स्वतंत्रता का परिचय दिया और अपने अभिवावकों के वर्चस्व एवं नियंत्रण को चुनौती दी. दूसरा, अपने से निम्न जाति के लड़के, जो दलित है, से शादी की यानी प्रतिलोम विवाह किया, जो धर्म विरुद्ध है. इसके साथ एक और अपराध भी उसने किया; उसने एक ऐसे दलित लड़के से शादी की, जो चौकीदार (सिक्योरिटी गार्ड) का बेटा था और खुद भी छोटी-मोटी नौकरी करता था. हरेश कोई बड़ा नेता, अधिकारी या व्यापारी तो था नहीं; जो उसे तथाकथित उच्च जाति की लड़की के पिता अपने दामाद के रूप में स्वीकार कर लेते.