मेहमानों को नाराज करने से बचने के लिए स्विमिंग पूल के ऊपर खड़े शानदार ताऊ ताऊ (अंतिम संस्कार के पुतले) को ढकने के लिए कचरे के बड़े-बड़े थैलों का इस्तेमाल किया गया था. ऊर्जा क्षेत्र के दिग्गज यूनोकल के अध्यक्ष मार्टी मिलर ने कहा, “स्टेच्यू से यह स्पष्ट था कि लड़का कौन है और लड़की कौन है.” स्टेच्यू को ढकने का आदेश एक सलाहकार द्वारा किया गया था ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कहीं गलत ढंग से सांस्कृतिक संदेश देने की वजह से 4.5 बिलियन डॉलर का पाइपलाइन सौदा खटाई में न पड़ जाए, जिसकी 1997 की उस शाम ऑयल टाइकून को रात के खाने पर मुहर लगने की उम्मीद थी.
रात का खाना अच्छा रहा: एक तस्वीर में मदरसा-शिक्षित तालिबान के विदेश मंत्री वकील अहमद मुत्तवकील टेक्सास के शुगर लैंड में मिलर की हवेली में रोशनी से जगमगाते क्रिसमस ट्री के सामने पोज देते दिख रहे थे.
अफगानिस्तान के अमु दरिया बेसिन में तेल की संभावना के लिए चीन और तालिबान के 540 मिलियन डॉलर के सौदे की घोषणा के कुछ ही दिनों बाद, इस हफ्ते की शुरुआत में, इस्लामिक स्टेट के आतंकवादियों ने काबुल में विदेश मंत्रालय पर हमला किया. यह जानलेवा आत्मघाती हमला उस समय हुआ जब बीजिंग का एक प्रतिनिधिमंडल तेल समझौते पर चर्चा करने के लिए विदेश मंत्रालय के अधिकारियों से मिलने वाला था.
कुछ ही हफ़्तों में काबुल में चीनी ठिकानों पर दूसरे बड़े हमले की घटना ने एक चेतावनी की तरह है कि मध्य और दक्षिण एशिया में ऊर्जा पाइपलाइनों को बिछाने की महाशक्ति की महत्वाकांक्षाएं दिवास्वप्न साबित हो सकती हैं.
उससे पहले के संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ की तरह, चीन को सिखाया जा रहा है कि अफगानिस्तान में महत्त्वपूर्ण पावर होना ज़रूरी नहीं कि अच्छी बात हो. मार्टी मिलर की कोशिशों का दुखद अंत उन सभी के लिए एक चेतावनी है जो बड़े खेल खेलते हैं.
चीन पर इस्लामिक स्टेट युद्ध
अफगानिस्तान को फिर से आकार देने की चीन की महत्वाकांक्षाओं के रास्ते में रोड़े अटकाने वाला व्यक्ति एक समय इंजीनियरिंग स्टूडेंट था जो कि 1996 में सिर्फ दो साल का बच्चा था जब काबुल में तालिबान ने सत्ता पर कब्जा कर लिया था. विद्वान आमिर जादून और उनके सह-लेखकों बताते हैं कि जिहादी सरगना गुलबुद्दीन हिकमतयार – जिसे काबुल में सत्ता से हटा दिया गया था – के हिज्ब-ए इस्लामी से गहरे संबंध रखने वाले एक परिवार से ताल्लुक रखने वाले सनाउल्लाह गफ़ारी को माना जाता है कि काबुल विश्वविद्यालय में पढ़ते समय जिहादी हलकों से उनका परिचय हुआ था.
तालिबान नेता सिराजुद्दीन हक्कानी के नेटवर्क में एक वरिष्ठ कमांडर ताजमीर जवाद के अंतर्गत लड़ते हुए गफारी ने अफगान सरकार और अमेरिका को टारगेट करते हुए आत्मघाती बम विस्फोटों को अंजाम देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
बाद में, सनाउल्लाह इस्लामिक स्टेट में चला गया, और साल 2020 में संगठन का नेतृत्व उसके हाथ में आ गया. उसके सामने महत्वपूर्ण चुनौती थी. इस्लामिक स्टेट अमेरिका के नेतृत्व वाले सैन्य अभियानों और तालिबान के साथ लड़ाई से पस्त हो गया था. विद्वान एंटोनियो गिउस्टोज़ी लिखते हैं कि अत्यधिक ज़बरदस्ती और जबरन वसूली ने अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों के निवासियों को भी खिलाफ कर दिया था. कुछ समय के लिए तो ऐसा लग रहा था कि संगठन का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा.
2021 में दूसरे इस्लामिक अमीरात के उदय ने इस्लामिक स्टेट को वह अवसर दिया जिसकी वह तलाश कर रहा था. शक्तिशाली कमांडरों द्वारा सत्ता पर एकाधिकार होने से नाराज तालिबान के हताश सामान्य सदस्यों की निष्ठा संगठन के प्रति घटने लगी. विश्लेषक अटल अहमदजई कहते हैं कि तालिबान में जातीय-भाषाई रूढ़िवादिता की वजह से इस्लामिक स्टेट को अफगानिस्तान के उत्तर और पश्चिम से काफी नई भर्तियां करने में मदद मिली.
अपने फॉलोवर्स के लिए, इस्लामिक स्टेट जिहाद का प्रतिनिधित्व करता है, जो कयामत तक जारी रहेगा. चीन – जिसे कि शिनजियांग में मुसलमानों के उत्पीड़क के रूप में दिखाया जाता है – उसके साथ तालिबान के संबंध इस्लामिक स्टेट के प्रचार में अमीरात के आंतरिक भ्रष्टाचार के मुख्य सबूत के रूप में पेश किए गए हैं.
यहां तक कि जब वह खुद का पुनर्निर्माण करता है, तो इस्लामिक स्टेट जानता है कि उसे तालिबान को स्थिर होने से रोकना चाहिए- और ऐसा करने के लिए, उसे यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि चीन की आर्थिक योजना विफल हो जाए.
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खनिज संपदा का मायाजाल
विश्लेषक कैथरीन पुत्ज़ कहते हैं, तालिबान के साथ नया तेल समझौता, वास्तव में, एक पुराना समझौता है. 9/11 के दस साल बाद, अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति हामिद करजई के अमेरिका के साथ संबंध तालिबान का समर्थन करने के लिए पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहने पर बिगड़ गए. अफगान सरकार ने चीन की दरबारगिरी शुरू कर दी. करज़ई ने एक सरकारी स्वामित्व वाली चीनी कंपनी को मेस अयनाक में तांबे की खान का 3 बिलियन डॉलर का ठेका दे दिया. चीन अफगानिस्तान को पाकिस्तान के बंदरगाहों से जोड़ने के लिए तोरखम तक एक रेलवे लाइन बनाने के लिए भी प्रतिबद्ध है.
करजई ने परियोजनाओं को बीजिंग के लिए रिश्वत के रूप में देखा: सोच यह थी कि बदले में बीजिंग पाकिस्तान पर अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके उसे तालिबान पर लगाम लगाने के लिए मजबूर करेगा.
2011 के अंत में, करजई के अफगानिस्तान ने चीन के राष्ट्रीय पेट्रोलियम निगम (सीएनपीसी) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें अमु दरिया बेसिन से तेल निकालने के अधिकार सौंपे गए. तत्कालीन खनन मंत्री वहीदुल्लाह शाहरानी ने 2012 में घोषणा की कि परियोजना ने तेल के लिए ड्रिलिंग शुरू कर दी है. अगले साल की शुरुआत में, उन्होंने कहा कि गर्मियों में व्यावसायिक रूप से तेल निकालने का काम शुरू हो जाएगा.
तेल के कुएं सूखे रहे, हालांकि—और छह महीने बाद, बढ़ती हिंसा के बीच, सीएनपीसी के कर्मचारियों ने अफगानिस्तान छोड़ दिया.
अफगानिस्तान में हस्तक्षेप करने वाले अन्य ग्रेट पावर्स की तरह, चीन को उम्मीद है कि वह अपनी बहुमूल्य खनिज संपदा का उपयोग करके देश को स्थिर करने में सक्षम होगा. अफगान कैंपेन की दीर्घकालिक लागतों के बारे में बढ़ती चिंता का सामना करते हुए, अमेरिकी सैन्य कमांडरों ने अपनी खनिज संपदा के दावों की बात करना शुरू कर दिया था. पेंटागन ने तर्क दिया कि संसाधन एक आत्मनिर्भर अफगान राज्य की नींव रखने में मदद कर सकते हैं.
फ्रिक एल्स जैसे विशेषज्ञों ने बताया कि दावे लगभग निश्चित रूप से बढ़ा-चढ़ा कर पेश किए गए थे—और यदि खनिजों के प्रसंस्करण और परिवहन के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण की लागत को शामिल किया जाता तो यह उतना आकर्षक नहीं होता. इसके अलावा, तालिबान विद्रोह ने इस बुनियादी ढांचे के निर्माण को लगभग असंभव बना दिया था. अमु दरिया बेसिन में ड्रिल करने की योजना के साथ, 2013 में मेस अयनाक परियोजना को छोड़ दिया गया था.
तालिबान के उदय को चीन के वापसी की उम्मीद है – उसे लगता है कि सरकारी स्वामित्व वाले उद्यम काबुल में स्थिरता पैदा करने में मदद कर सकते हैं.
चीन का अफगानिस्तान जाल
तालिबान को गले लगाना बीजिंग की एक भू-राजनीतिक आवश्यकता है. हालांकि चीन ने अब तक अफगानिस्तान में सीमित पूंजी लगाई है, लेकिन विद्वान वांडा फेबाब-ब्राउन का कहना है कि देश को स्थिर करना मध्य एशिया और पाकिस्तान में अपने बड़े निवेश को सुरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण है. अफगानिस्तान में उग्रवाद ने पहले मध्य एशिया में बड़े पैमाने पर हिंसा को भड़काया है. कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान-चीन की तरह-जिहादियों द्वारा उत्तरी अफगानिस्तान से हमला करने से रोकने के लिए तालिबान पर निर्भर हैं.
चीन मध्य एशिया में पाइपलाइनों के नेटवर्क का निर्माण करके अपनी ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करने की भी उम्मीद करता है. हालांकि पाइपलाइन द्वारा तेल का परिवहन महंगा है, एंड्रयू एरिकसन और गेब्रियल कोलिन्स ने कहा कि, चीन इसे पश्चिमी समुद्री प्रतिबंधों के खिलाफ बचाव के रूप में देखता है.
अंत में, चीन को काबुल में ऐसे शासन की जरूरत है जो उससे दोस्ताना व्यवहार रखे, ताकि झिंजियांग के अशांत प्रांत को धमकी देने वाले जिहादियों को प्रभावी ढंग से टारगेट कर सके. इस्लामाबाद में चीन के पूर्व राजदूत लू शूलिन ने 9/11 से ठीक पहले तालिबान नेताओं के साथ बातचीत शुरू की थी.
लू की तरह, अमेरिकी राजनयिकों को भी पहले तालिबान अमीरात के साथ व्यापार करने में सक्षम होने की उम्मीद थी. 1996 में रूस के उप विदेश मंत्री अल्बर्ट चेर्नशेव के साथ अमेरिकी उप विदेश मंत्री रॉबिन राफेल ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि “क्षेत्र में शांति प्रस्तावित यूनोकल पाइपलाइन की तरह संयुक्त राज्य अमेरिका के व्यापारिक हितों को सुविधाजनक बनाने में मदद करेगी”.
उस वर्ष बाद में, राफेल काबुल पहुंचे, उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से “तालिबान को शामिल करने” का आह्वान किया. उन्होंने कहा, “तालिबान इस्लाम को पूरी दुनिया में लागू नहीं करना चाहता, केवल अफगानिस्तान को आजाद कराना चाहता है.” अमेरिका को उम्मीद थी कि तालिबान का उदय, सोवियत संघ की वापसी के बाद हुई बर्बर अंतर-जिहादी लड़ाई को समाप्त कर देगा. पाइपलाइन शांति स्थापित करने में मदद करेगी.
तालिबान को शुगर लैंड तक ले जाने वाला सपना 9/11 के साथ खत्म हो गया. मार्टी मिलर के डिनर गेस्ट, विदेश मंत्री मुत्तवकिल की अंतिम परिणति, बगराम में अमेरिका द्वारा संचालित जेल में हुई जहां उन्होंने दो साल बिताए. तालिबान के साथ मधुर संबंधों ने अमेरिका को दो दशकों के एक अविजित युद्ध में घसीट लिया, जिसे उसने लंबे समय से टालने की कोशिश की थी.
भले ही चीन जानता है कि इस रास्ते पर आगे चलने से कुछ भी हो सकता है, लेकिन उसके पास उस रास्ते पर चलने के अलावा कोई विकल्प नहीं है जिसने अन्य ग्रेट पावर्स को विनाश की ओर अग्रसर किया.
(प्रवीण स्वामी राष्ट्रीय सुरक्षा संपादक हैं. विचार व्यक्तिगत हैं.)
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(संपादन: शिव पांडे)
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