scorecardresearch
Friday, 27 December, 2024
होममत-विमतकवि की आत्मा वाले राजनेता: बुद्धदेव भट्टाचार्य को कैसे याद किए जाना चाहिए

कवि की आत्मा वाले राजनेता: बुद्धदेव भट्टाचार्य को कैसे याद किए जाना चाहिए

पश्चिम बंगाल के दो बार के मुख्यमंत्री, वामपंथ में सुधार के पोस्टर बॉय, जिन्होंने इस बात की परवाह नहीं की कि बिल्ली काली है या सफेद, जब तक वह चूहे पकड़ती है, अब इतिहास बन गए हैं.

Text Size:

कार्ल मार्क्स, फिल्में, गैब्रियल गार्सिया मार्केज़ और वन हंड्रेड इयर्स ऑफ सॉलिट्यूड से प्यार करने वाले व्यक्ति अब हमारे बीच नहीं रहे.

पश्चिम बंगाल के दो बार के मुख्यमंत्री, वामपंथ में सुधार के पोस्टर बॉय, जिन्होंने इस बात की परवाह नहीं की कि बिल्ली काली है या सफेद, जब तक वो चूहे पकड़ती है, भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन के शाश्वत युवा तुर्क, बुद्धदेव भट्टाचार्य अब इतिहास बन गए हैं.

आज सुबह 8 बजकर 20 मिनट पर कोलकाता के पाम एवेन्यू में अपने छोटे से दो कमरों वाले घर में उनका निधन हो गया. उन्हें अस्पतालों से नफरत थी और वे वहां रहने से इनकार करते थे. इस बार, वे इतनी जल्दी चले गए कि किसी को भी उन्हें वहां जल्दी से ले जाने का मौका नहीं मिला. कई साल से क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी नामक बीमारी के कारण दौरान पिछले कुछ दिनों से उन्हें बुखार था. उनके परिवार में उनकी पत्नी मीरा और बेटा सुचेतन भट्टाचार्य हैं. एक मार्च को वे 80 वर्ष के हो गए.

सत्ता में आना

प्रेसिडेंसी कॉलेज में बंगाली साहित्य के छात्र रहे भट्टाचार्य 1966 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) में शामिल हो गए. वे पहले छात्र नेता बने, फिर 1977 के ऐतिहासिक विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की, जिसमें वामपंथी पहली बार पश्चिम बंगाल में सत्ता में आए.

वे अगला चुनाव हार गए, लेकिन 1987 में सूचना मंत्री बनकर वापस लौटे. 1996 में वे गृह मंत्री बने. साल 2000 में जब पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु 23 साल के कार्यकाल के बाद रिटायर हुए, तो भट्टाचार्य उनके उत्तराधिकारी के लिए स्पष्ट और नामित विकल्प थे. 2006 में वे विधानसभा में अब तक की सबसे बड़ी सीटों – 294 में से 235 – के साथ फिर से मुख्यमंत्री बने.

अंत की शुरुआत

उस जनादेश के साथ, भट्टाचार्य ने उद्योग को पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ावा दिया. मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के कुछ ही देर बाद, उन्होंने और टाटा समूह के अध्यक्ष रतन टाटा ने सिंगूर में नैनो कार फैक्ट्री की घोषणा की. उन्हें लगा कि वे बंगाल और उससे आगे के लिए एक नई शुरुआत कर रहे हैं. कई लोगों ने उनके दृष्टिकोण को साझा किया.

लेकिन यह एक अंत की शुरुआत थी.

इतिहास उन्हें कैसे याद रखेगा? वो व्यक्ति जिनके शासन में एक कार फैक्ट्री धातु के कब्रिस्तान में बदल गई? जिनके शासन में नंदीग्राम में पुलिस की गोलीबारी में 14 लोग मारे गए? कम्युनिस्ट पोस्टर बॉय जिन्होंने पश्चिम बंगाल में लाल युग का अंत किया? वे मुख्यमंत्री जो ममता बनर्जी से हार गए?

बुद्धदेव भट्टाचार्य कैसे याद किए जाना चाहेंगे? एक कवि की आत्मा वाले राजनेता, एक ऐसे व्यक्ति जो सिनेमा से प्यार करते थे और सबसे चुनौतीपूर्ण समय में भी फिल्में देखते थे क्योंकि, जैसा कि उन्होंने कहा था, भूखा आदमी भी गाता है.

(लेखिका कोलकाता स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनका एक्स हैंडल @Monidepa62 है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: शेख हसीना प्रगतिशील नहीं थीं, इस्लामी कट्टरपंथियों के आगे घुटने टेक कर उन्होंने भस्मासुर को पनपने दिया


 

share & View comments