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Thursday, 28 March, 2024
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रंग-बिरंगे बनाये जा रहे बनारस में एक डॉक्टर मांग रहा एम्स

रंग-बिरंगी लाइटिंग और चटख रंगों की पेंटिंग के बीच कराहते बनारस में एक कार्डियोलॉजिस्ट एम्स की मांग को लेकर आंदोलनरत है, ताकि लोगों को अच्छा इलाज मिल सके.

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उत्तर प्रदेश के तीन शहर- प्रधानमंत्री का लोकसभा क्षेत्र वाराणसी, मुख्यमंत्री का जनपद गोरखपुर और कुंभ नगरी इलाहाबाद – रंगाई-पुताई के लिए चर्चा में है. दिल्ली-एनसीआर के पुलों और प्रमुख सड़कों की तर्ज पर इन जिलों की सड़कों, पुलों और कुछ सार्वजनिक स्थलों को सजाया जा रहा है. इसमें वाराणसी पहले स्थान पर है. वाराणसी में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के सिंहद्वार से लेकर तमाम चौराहे और प्रमुख घाट शाम होते ही उच्च वोल्टेज और तेज रोशनी से नहा जाते हैं.

सिंहद्वार पर ही इस समय काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. ओम शंकर टेंट लगाकर 20 जनवरी से आमरण अनशन पर बैठे हैं. वहीं बैठकर वे अपनी फ्री ओपीडी भी चला रहे हैं, जहां हर दिन मरीजों की भारी भीड़ उमड़ती है. उनकी मांग है कि देश के स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार हो और हर छह करोड़ की आबादी पर एक एम्स बने. अनशन पर बैठे डॉ. शंकर ने लंबे समय तक दिल्ली के एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट में काम किया, जो एक समय हार्ट की बीमारियों के लिए देश का सबसे नामी और महंगा संस्थान हुआ करता था.


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बाद में उन्होंने दिल्ली छोड़ दी और काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में हृदय रोग विशेषज्ञ के रूप में सेवाएं शुरू कीं. वह बताते हैं कि एस्कॉर्ट्स के मरीज़ ऐसे नहीं लगते थे कि उनके परिवार के हैं. गांव-गिरांव रिश्तेदारी में आने पर अलग दुनिया दिखती थी, जो आलीशान अस्पताल में इलाज नहीं करा सकते थे. उनका मकसद था कि जिस पारिवारिक पृष्ठभूमि से वे निकलकर आए हैं, उनके स्वास्थ्य के लिए कुछ किया जाए, दिल्ली में पैसे ज़रूर ज़्यादा मिल रहे हैं, लेकिन उन लोगों के लिए कुछ करने का मौका नहीं मिल रहा है, जिन्होंने उन्हें पढ़ाया है.

डॉ. शंकर अस्पताल की दुर्दशा और ओवरलोडिंग से दुखी हैं. वह चाहते हैं कि एम्स के ही टक्कर का अस्पताल वाराणसी में भी हो, जहां से मरीज निराश होकर न जाने पाएं. ग्रामीण इलाकों के लोग इलाज के बगैर मरने न पाएं. प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र होने के नाते वह प्रधानमंत्री से काफी उम्मीद लगाए भी बैठे हैं.

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वह चाहते हैं कि समान स्वास्थ्य के अधिकार को राष्ट्रीय नीति घोषित किया जाए. इस समय मौजूद सभी मेडिकल कॉलेजों को एम्स की तर्ज पर विकसित किए जाए. आयुष्मान भारत के बदले सरकारी संस्थानों में सभी वर्ग के लोगों के लिए मुफ्त जांच और उपचार की नीति अपनाई जाए. आयुष्मान भारत आखिरकार मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों के ही हवाले कर रहा है.

डॉ. शंकर का कहना है कि इस समय हालत यह है कि देश के कुछ महानगरों को छोड़ दिया जाए तो बनारस में सबसे ज्यादा मरीज इलाज कराने आते हैं. यहां रोज़ लगने वाले भीषण जाम में ही कई मरीज दम तोड़ देते हैं. इसके बावजूद सरकार अलग से कोई इंतज़ाम नहीं कर रही है.

वाराणसी चिकित्सा और शिक्षा का बड़ा केंद्र रहा है. हालांकि, कम लोगों को जानकारी है कि शहर में काशी हिंदू विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय सहित 3 पूर्ण विश्वविद्यालय चल रहे हैं. इनके अलावा पूर्वांचल विश्वविद्यालय जौनपुर का हरिश्चद्र कॉलेज और उदय प्रताप स्वायत्तशासी महाविद्यालय भी हैं. सारनाथ में बौद्ध अध्ययन के लिए एक विश्वविद्यालय है, जहां तिब्बत, नेपाल, भूटान, चीन, इंडोनेशिया, थाईलैंड जैसे पूर्वी दुनिया के विद्यार्थी अध्ययन करने आते हैं. इसके बावजूद यहां स्वास्थ्य सेवाओं का हाल अच्छा नहीं है.

अस्पताल के नाम पर वाराणसी में बीएचयू का आईएमएस और जिला अस्पताल ही प्रमुख है. हाल फिलहाल में हेरिटेज हॉस्पिटल और उसके मेडिकल कॉलेज में भी भीड़ बढ़ी है. निजी क्षेत्र के अस्पताल भी औसत दर्जे के ही नज़र आते हैं. रोजगार के बड़े केंद्र के रूप में डीज़ल रेल कारखाना है. बुनकरी और बनारसी साड़ी तो इस कदर विख्यात है कि भारत में लंबे समय तक शादी के रोज़ दुल्हन को बनारसी साड़ी पहनना अनिवार्य सा बन गया था. सोने की तारों से साड़ियां बुनी जाती थीं. लेकिन अब इसकी हालत खस्ता है. यही हाल विश्व प्रसिद्ध लकड़ी के खिलौना उद्योग और तांबे व कांसे की मूर्ति कला उद्योग का है. लोग भूल चुके हैं कि बनारस में यह सब भी होता था.


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ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बेहतर स्वास्थ्य, बेहतर शिक्षा, बेहतर रोजगार, बदहाल होते लघु व कुटीर उद्योगों में सुधार की आस थी. अब बनारस निराश होने लगा है. शहर में पेंटिंग और लाइटिंग के अलावा कुछ नया नहीं बना है.

वाराणसी की पेंटिंग और लाइटिंग का आलम यह है कि रेलवे स्टेशन, बीएचयू गेट, दशाश्वमेघ घाट, सिगरा से लेकर हर चौराहा रंगा पुता चमचमा रहा है. रामनगर से बीएचयू को जोड़ने वाले पुल को भी एक उपलब्धि माना जा रहा है. मडुआडीह स्टेशन के सामने बना पुल भी रंगा जा रहा है. इन पेंटिंग्स और लाइटिंग को देखकर शहर में कॉस्मेटिक बदलाव दिखता है. रंग लोगों को आकर्षित करते हैं. लेकिन रोज़ी रोज़गार और स्वास्थ्य की समस्या जस की तस है.

सरकार पेंटिंग और लाइटिंग का जो काम कर रही है, वह उसके चुनावी वादे में नहीं था. चुनावी वादे में उत्तर प्रदेश में 6 एम्स और 24 स्पेशलिटी सेंटर बनाए जाने की बात थी. इसी मांग को लेकर डॉ. शंकर आमरण अनशन पर हैं.

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