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Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतलागत कम करने का Blinkit जैसा एप्रोच इकॉनमी के लिए ठीक नहीं, इनोवेशन के जरिए बढ़ाना होगा रेवेन्यू

लागत कम करने का Blinkit जैसा एप्रोच इकॉनमी के लिए ठीक नहीं, इनोवेशन के जरिए बढ़ाना होगा रेवेन्यू

लेबर फोर्स को बढ़ाने के बजाय अधिक पूंजी में निवेश करना ज्यादातर देशों में काम कर सकता है. लेकिन भारत आंख बंद करके विकसित अर्थव्यवस्थाओं को फॉलो नहीं कर सकता है और काम करने वालों की संख्या को कम करना ठीक नहीं होगा.

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ब्लिंकिट जैसी कंपनियां भले ही लागत कम करने के लिए वेतन कम करने की आजमाई हुई तकनीक का पालन कर रही हों, लेकिन उनका दृष्टिकोण अर्थव्यवस्था और श्रमिकों दोनों को नुकसान पहुंचा रहा है. वास्तव में, कंपनी सहित जो लोग भी इससे संबंधित हैं उनके लिए सबसे अच्छा तरीका लागत कम करने के बजाय राजस्व बढ़ाने की दिशा में कोशिश होनी चाहिए. यानी कर्मचारियों की तनख्वाह काटने की बजाय उनसे ज्यादा काम लिया जाए. यह पता लगाने के लिए इनोवेशन की जरूरत होगी कि कर्मचारियों द्वारा बहुत ज्यादा मेहनत किए बिना इसे कैसे लागू किया जाए.

दो हफ्ते पहले, इस कॉलम में तर्क दिया गया था कि हमें इनोवेशन और अनुसंधान एवं विकास के बारे में अपनी बातचीत में लेबर इनोवेशन को शामिल करने की आवश्यकता है. इसका मतलब यह नहीं है कि हमें अत्याधुनिक तकनीक और सॉफ्टवेयर पर शोध नहीं करना चाहिए. जैसा कि इस सप्ताह के कॉलम में इस पर चर्चा की जाएगी कि अगर हम ऐसी चीजों में निवेश करने जा रहे हैं, तो निवेश प्रौद्योगिकी और सॉफ्टवेयर के लेबर-ओरिएंटेड एप्लीकेशंस में होना चाहिए.

आइए थोड़ा अर्थशास्त्र से शुरू करते हैं. कैपिटल-लेबर रेशियो नाम का एक पैमाना मौजूद है. संक्षेप में, यह नियोजित श्रम की प्रति इकाई अर्थव्यवस्था या कंपनी में उपयोग की जाने वाली पूंजी की मात्रा है. दूसरे शब्दों में, यह उस अर्थव्यवस्था या कंपनी की कैपिटल इंटेन्सिटी को मापता है.

मोटे तौर पर, पूंजी की सघनता को बढ़ाने का प्रयास किया गया है क्योंकि लेबर को नियोजित करने की तुलना में अधिक पूंजी में निवेश करना अधिक लागत प्रभावी माना जाता है.

यह ज्यादातर देशों में काम कर सकता है. लेकिन भारत ‘ज्यादातर देश’ नहीं है. हमारी जनसंख्या ऐसी है कि हम आंख बंद करके विकसित अर्थव्यवस्थाओं को फॉलो नहीं कर सकते हैं और उसके समाधान के रूप मेंं ऐसा कदम नहीं उठा सकते हैं जो हमारे द्वारा नियोजित लेबर की मात्रा को कम करते हैं. आप एक तरफ उच्च बेरोजगारी के स्तर के लिए सरकार की आलोचना नहीं कर सकते हैं और इनोवेशन पर भी जोर दे सकते हैं जो बेरोजगारी को और बढ़ा देगा.

भारत में, हमें लेबर-कैपिटल रेशियो की तर्ज पर कुछ चाहिए, जो मापता है कि पूंजी की प्रति इकाई में कितना श्रम नियोजित किया जा रहा है. अनुसंधान एवं विकास में निवेश के पीछे का विचार रोजगार में वृद्धि के साथ-साथ लाभ में वृद्धि करना होना चाहिए.

अब, अंतिम रूप से, इस कॉलम में यह उदाहरण देने के लिए ब्लिंकिट का उल्लेख किया गया है कि इनोवेशन में कैसे लेबर को नियोजित किया जाता है. कंपनी को वर्तमान में जो परेशानी हो रही है, उसे देखते हुए इसका समय दुर्भाग्यपूर्ण साबित हुआ. लेकिन ये मुसीबतें हैं जो वास्तव में दिखाती हैं कि इनोवेशन को टारगेट करना कितना महत्वपूर्ण है.

ब्लिंकिट की परेशानी डिलीवरी पार्टनर्स को किए जाने वाले प्रति डिलीवरी भुगतान को 25 रुपये से घटाकर 15 रुपये किए जाने की वजह से उत्पन्न हुई है. जिसकी वजह से डिलीवरी पार्टनर्स, हड़ताल पर चले गए हैं. ब्लिंकिट को केवल लागत को घटाने पर ही ध्यान नहीं देना चाहिए. इसके बजाय, थोड़ा सा निवेश और नई सोच उसी लागत पर राजस्व बढ़ाने में मदद कर सकती है.


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डिलीवरी के तरीके

लोगों द्वारा पता लगता है कि इन क्विक डिलीवरी ऐप्स पर ज्यादातर ऑर्डर सुबह या शाम को दिए जाते हैं. इन कंपनियों के लिए यह पता लगाना बहुत आसान है कि दिन के कौन से समय सबसे व्यस्त हैं. वे पहले से ही सर्ज प्राइसिंग को लागू करते हैं, लेकिन यह पता लगाने की जरूरत है कि गैर-सर्ज अवधि के दौरान राजस्व कैसे बढ़ाया जाए.

नॉन-पीक ऑवर्स के दौरान उनके पास ड्राइवरों और बाइक्स का कम इस्तेमाल होता है. इसलिए यहां इनोवेशन की भूमिका अहम हो जाती है कि इस समय को कैसे प्रोडक्टिव बनाया जाए.

इस क्विक डिलीवरी मॉडल की एक और समस्या यह प्रतीत होती है कि ऑर्डर्स को क्लब नहीं किया जाते हैं. अगर एक घर में कोई एक केले का ऑर्डर देता है, और उनका पड़ोसी अलग से एक सेब का ऑर्डर देता है, तो दो राइडर्स को इन उत्पादों को डिलीवर करने के लिए तैनात किया जाएगा, भले ही दोनों ऑर्डर्स एक-दूसरे से 10 मिनट के भीतर दिए गए हों.

यह अविश्वसनीय रूप से संसाधनों का उचित प्रयोग न करने जैसा लगता है, लेकिन यह भी एक उदाहरण है कि कैसे गलत R&D के कारण जितना बेहतर रिजल्ट मिल सकता था उतना नहीं मिल रहा. यहां सबसे आसान समाधान एक ऐसे सॉफ़्टवेयर में निवेश करना होगा जो कुशलतापूर्वक ऑर्डर, स्थान और उपलब्ध ड्राइवरों को इस तरह से ट्रैक कर सके कि एक ही राइडर कई ऑर्डर डिलीवर कर सके. अमेज़ॉन पहले से ही ऐसी डिलीवरी करता है.

लेकिन यह लेबर-कैपिटल सिस्टम के अनुसार बहुत बेहतर नहीं होगा जिसकी भारत को जरूरत है, क्योंकि इसकी वजह से अभी भी आवश्यक डिलीवरी ड्राइवरों की संख्या कम होगी. इसके बजाय, हमें समस्या के बारे में सोचने के तरीके में नएपन की आवश्यकता है. बिना सोचे-समझे ‘लागत कम करने’ का तरीका सही नहीं है.

डिलीवरी मॉडल की एक बड़ी कमी यह है कि राइडर को डिलीवरी लोकेशन से खाली हाथ लौटना पड़ता है. यानी वापसी ट्रिप से न तो ड्राइवर को और न ही कंपनी को कोई पैसा मिलता है. हमें इस समस्या को दूर करने के लिए इनोवेशन की ज़रूरत है.

उदाहरण के लिए, अगर डिलीवरी ऐप्स कैब एग्रीगेटर्स के साथ टाई-अप कर लें तो कैसा रहेगा? वापसी के वक्त, डिलीवरी ड्राइवर किराया लेकर एक ऐसे व्यक्ति को छोड़ सकता है जिसे गोदाम के आस-पास जाना हो. हालांकि, इसमें कुछ परेशानियां है, जैसे एक बात तो यही है कि कई डिलीवरी बाइक्स के पीछे बड़े कंटेनर लगे होते हैं. लेकिन मुद्दा यह नहीं है कि यह उपाय सबसे अच्छा है बल्कि कोशिश उस समस्या को उजागर करने की है जिसका हमें हल चाहिए.

डिलीवरी ड्राइवर की वापसी यात्रा को मॉनेटाइज करना कंपनी, ड्राइवर और जो कोई भी राइड के लिए खड़ा है उन सभी के लिए ही फायदेमंद है. यह अर्थव्यवस्था में भी मदद करता है क्योंकि एक ड्राइवर का आउटपुट डबल हो जाता है.

ऐसा करने से कंपनियों को ऑर्डर्स को क्लब करने और ड्राइवर्स की संख्या को घटाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

एआई का प्रयोग करें

यह कंपनी के स्तर पर है. एक बड़े सरकारी नीति स्तर पर, ऐसे तरीकों की संख्या बढ़ रही है जिससे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी चीजों में R&D से लेबर की अधिक कुशल तैनाती हो सकती है और समग्र रूप से रोजगार में वृद्धि हो सकती है.

भारत में एक बड़ी समस्या स्किल्ड लेबर की मांग और आपूर्ति के बीच भारी गैप का होना है. यह एक ऐसी समस्या हो जो एआई के द्वारा फिक्स की जा सकती है. एक डायनमिक सॉफ्टवेयर विकसित करने के लिए अधिक निवेश किया जा सकता है जो आज से पांच साल बाद उत्पन्न होने वाले स्किल्स की एकुरेसी के बारे में पता लगा सकता है.

जब छात्र स्कूल से पास होते हैं तो उन्हें बताया जा सकता है कि आगामी पांच वर्षों में किस व्यवसाय की भारी मांग होने की संभावना है, और इससे वे इस बात का बेहतर फैसला कर सकते हैं कि कॉलेज में उन्हें क्या पढ़ना है. इसके साथ ही, एआई के जरिए जरूरी स्किल्स के बारे में एनालिसिस करके वोकेशनल ट्रेनिंग सहित यूजफुल सिलेबस बनाया जा सकता है.

फिर, समस्या का हल क्या होगा इससे ज्यादा जरूरी है पहले समस्या की पहचान करना. हमें अपनी टीचिंग को देश की रियल-टाइम समस्याओं के अनुरूप बनाना होगा क्योंकि इस वक्त हर साल ग्रेजुएट होने वाले छात्र बेरोजगार हो रहे हैं. यहीं पर अनुसंधान एवं विकास में इनोवेशन और निवेश की जरूरत है.

इस विचार से पीछे हटने के बजाय कि सरासर कैपिटल-इंटेसिव इनोवेशन आगे का रास्ता नहीं है, भारतीय नीति निर्माता और आर्थिक टिप्पणीकार खुद को पारंपरिक तरीके से आगे ले जाने की कोशिश करेंगे. संभवतः उनकी सोच में पहले स्तर के इनोवेशन की जरूरत है.

(लेखक का ट्विटर हैंडल @SharadRaghavan है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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