5 फुट 4 इंच का एक आदमी, जो जिहाद करने गया पर शारीरिक परीक्षण में छंट जाने के कारण बाहर हो गया, उसने अपने विचारों से हजारों भारतीयों की जानें ले ली है. हर आतंकी घटना के बाद इस आदमी का नाम बाहर आता है- मसूद अजहर. पर जो इंसान खुद हथियार चलाने जा नहीं पाया, वो दूसरों को आत्मघाती हमले के लिए कैसे तैयार कर लेता है?
भारत में मोहम्मद मसूद अजहर का नाम दिसंबर 1999 में पॉपुलर हुआ जब भारतीय एयर लाइन के एक विमान को 8 दिनों तक हाइजैक करके रखा गया और अफगानिस्तान के कंधार ले जाया गया. विमान और सवारियों के बदले में जिहादी मोहम्मद मसूद अजहर और बाकी दो कैदियों को रिहाई मांगी गई. भारत सरकार ने तीन जिहादियों के बदले विमान की 178 सवारियों को बचाने का फैसला लिया.
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इस घटना के एक साल बाद 2001 में जम्मू-कश्मीर की विधानसभा पर आतंकी हमले में जिहादी मसूद अजहर का नाम आया. फिर 2001 में ही मसूद अजहर का नाम भारत के संसद भवन पर हुए आतंकी हमले में आया. उसके बाद 2008 में हुए बम्बई बम ब्लास्ट में मसूद अजहर का नाम आया. अभी हाल ही में हुए पठानकोट, उरी और अब पुलवामा में आतंकी हमले करवाने की जिम्मेदारी मसूद अजहर के संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली है.
सैकड़ों लोगों की जान ले चुका मसूद अजहर क्या कहता है अपने बारे में?
‘…मेरे पिताजी बवालपुर में हेडमास्टर थे. हम 5 भाई और 6 बहनें हैं. जब मैं जामिया इस्लामिया (पाकिस्तान के) में पढ़ रहा था तब मैं अफगानिस्तान में फैले जिहाद से काफी प्रभावित था. वहां कई और छात्र भी इस विचारधारा के प्रभाव में थे. ज्यादातर लोग देवबंदी विचारधारा का अनुसरण करते थे. उन दिनों मुझे भी हरकत-उल-मुजाहिदीन में शामिल होने का अवसर दिया गया. लेकिन मेरे कमजोर शरीर के चलते मैं अफगानिस्तान में होने वाली 40 दिन का ट्रेनिंग पूरी नहीं कर सका. मेरे लेखन की वजह से फजल-उल-रहमान जो कि हरकत-उल-मुजाहिदीन के लीडर थे, ने मुझे इसकी बजाय इस आतंकी संगठनके लिए मासिक पत्रिका निकालने को कहा…’
मसूद अजहर की ये बातें फ्रंटलाइन मैगजीन के 2001 के एक अंक में छपी थीं.
भारत में कई आत्मघाती हमले करवा चुका मसूद कभी था ब्रिटेन का वीआईपी मेहमान
नब्बे के दशक में देश-दुनिया की राजनीति में काफी कुछ घट रहा था. मौजूदा समय में पाकिस्तान के सबसे खतरनाक जिहादी समूहों को लीड करने वाले इस आतंकवादी को ब्रिटेन ने इस्लामिक स्कॉलर के तौर पर वीआईपी मेहमान बनाकर बुलाया था. मौका पाकर मसूद अजहर ने यूके में जिहाद फैलाया. इसमें उसका साथ दिया ब्रिटेन के बड़े इस्लामिक स्कॉलर्स ने. ब्रिटेन में मसूद की ये यात्रा करीब एक महीने तक चली. जिसमें उसने करीब 40 भाषण दिए. स्कूली बच्चों और अध्यापकों को बताया कि कुरान में पैगंबर मोहम्मद ने कहा है- अल्लाह के नाम पर मारा जा सकता है. यूके में ही एक जगह जामिया मिलिया मस्जिद के उद्घाटन के दौरान बयान दिया कि जिहाद में संलिप्त लोगों को जन्नत की प्राप्ति होती है. जवां होते लड़कों को बिना देर किए जिहाद के काम में लग जाना चाहिए. जहां भी मौका मिले तुरंत ट्रेनिंग ले लेनी चाहिए.
साथ ही, दावे के साथ एक बात बोली कि हम जिहाद से जन्नत तक का रास्ता दिखाते हैं. जब जिहाद और इस्लाम के लिए मरने की बातें फैलाईं तब मसूद की उम्र महज 25 साल की थी.
जिहाद से लेकर आतंकी हमलों तक
ब्रिटेन में जिहाद की जंग छेड़कर मसूद ने बाकी जगह ये आग ले जाने की कोशिशें कीं. आजाद कश्मीर से लेकर बांग्लादेश तक. इसी क्रम में मसूद ने जम्मू और कश्मीर में अपना वैचारिक साम्राज्य फैलाने की कोशिश की. 1994 में ये फर्जी पासपोर्ट पर हिंदुस्तान आया और दिल्ली के रास्ते श्रीनगर पहुंचने की तैयारी में था. भारतीय सरकार ने उसकी गतिविधियों को देखते हुए उसे जम्मू-कश्मीर के कोट भलवाल जेल में डाल दिया. मसूद को छुड़वाने के लिए पाकिस्तानी जिहादी ग्रुप्स ने 15 जून 1999 को कोट भलवाल की जेल तोड़ने की भी कोशिश की. इस दौरान हाफिज सज्जाद खान नाम का मिलिटेंट पुलिस अधिकारियों द्वारा मारा गया.
यही दिन था जब मसूद ने तय किया था कि वह पुलिस और सैन्य बलोें पर हमले करेगा. कांधार विमान अपहरण के बाद उसे सफलता पूर्वक रिहा करवा लिया गया. रिहा होने के बाद उसने जैश-ए-मोहम्मद के नाम से एक नया आतंकी संगठन बनाया. अपने पुराने संगठन हरकत-उल-मुजाहिदीन से अलग होने के बाद उसने उग्र भाषाणों की बदौलत अपनी एक खास इमेज बनाई. पुराने संगठन के ऑफिस बियर्रस को छोड़कर बाकी लोग उससे जुड़ने लगे. हरकत-उल-मुजाहिदीन और जैश-ए-मोहम्मद के बीच चीजें बिगड़ने लगीं. हरकत-उल-मुजाहिदीन के जिहादियों ने उसे भारत का एजेंट बताया. लेकिन मसूद तब तक स्टेनगन लिए बॉडी गार्ड्स का काफिला लेकर चलने लगा था. आतंक के साम्राज्य की नींव रख चुका था.
‘यहूद की चालीस बीमारियां’ किताब में दी जन्नत की हूरों की थ्योरी
1998 में स्थापित हुई मिडिल ईस्ट और साउथ एशिया पर रिसर्च करने वाली मेमरी नामक एक संस्था ने मसूद अजहर की किताब ‘यहूद की चालीस बीमारियां’ का रिव्यु लगाया है. इस रिव्यु को लिखनेवाले तुफैल अहमद हैं. यह किताब मसूद अजहर ने कश्मीर की जेल में रहते हुए लिखी थी. मसूद अजहर को पढ़ने के लिए जेल के अधिकारियों ने हिंदुस्तान, पाकिस्तान से किताबें मुहैया कराईं थीं.
मसूद अजहर के साथ जेल में बंद कश्मीर के जिहादी दूसरी जेलों में ले जाए जाने पर अपनी किताबें उसी के लिए छोड़ जाते थे. इस तरह मसूद के पास कुल 250 किताबें जमा हो गईं थीं. यहां मसूद और उनके साथ जेल में बंद बाकी जिहादियों ने कुरान की आयतों से अपने मन-मुताबिक मतलब निकाले. यहूदियों और ईसाइयों को इस्लाम का सबसे बड़ा दुश्मन बताया. इसमें थ्योरी दी गई कि यहूदी अल्लाह के सबसे करीबी थे. जन्नत के दरवाजे उनके लिए हमेशा खुले रहते थे. जन्नत की हूरें उन पर मर मिटती थीं. लेकिन कुछ बीमारियों के चलते उन्होंने अल्लाह की नजर में वो स्थान खो दिया. इसलिए अब वे उन सुविधाओं से वंचित रखे जाने लगे हैं.
मसूद ने लिखा कि यही हाल अब मुस्लिमों का हो चला है. उनमें भी यहूदियों वाली वो बीमारियां आ गई हैं. इस किताब में बार-बार यहूदियों और ईसाइयों से दोस्ती न करने की सलाह दी गई है. मसूद यहूदियों द्वारा की गई नई खोजों को भी बुराई बताकर इस्लाम के लिए खतरा बताता है.
हालांकि मसूद ने बात छेड़ी तो 40 बीमारियों के बारे में आगाह करने की थी लेकिन इस किताब में सिर्फ 10 का जिक्र करके बात खत्म कर दी गई है. ये किताब मसूद के जेल के दिनों ही छप भी गई थी. तुफैल एक सवाल भी पूछते हैं कि जेल से निकलने के बाद बची 30 बीमारियों के बारे में क्यों नहीं बताया, जब मसूद जेल से रिहा होने के बाद से पाकिस्तान में आराम कर रहा था?
हो सकता है कि ये किताब 10 बीमारियों को गिनाने के बाद मसूद अजहर को मालूम हो कि आगे लिखने की जरूरत नहीं है. जब 10 से ही इतनी तबाही मचाई जा रही है.
पाकिस्तान सरकार और मदरसों से मिला संरक्षण
2014 में मसूद की एक किताब के अनावरण पर मुजफ्फराबाद की एक रैली में हजारों की संख्या में लोग इकट्ठे हुए थे. अफजल गुरू को फांसी दिए जाने के बाद हुई इस रैली में मसूद ने सरकार से जिहादियों से पाबंदियां हटाने के लिए कहा. साथ ही, मसूद के भड़काऊ भाषण को रिकॉर्ड करने से रोका गया.
पाकिस्तान सिविल और मिलिट्री अथॉरिटीज का ऐसे ग्रुप्स को बैन करने के सवाल का जवाब होता है कि ये जिहादी ग्रुप्स पाकिस्तान में तो बैन हैं. ये बस ‘आजाद कश्मीर’ में काम कर रहे हैं. लेकिन मसूद का आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद उसकी पैतृक जगह बहावलपुर से सक्रिय है. दो साल पहले की रिपोर्टस के मुताबिक, तकरीबन 60,000 की आबादी वाले इस शहर से थोड़ी दूर ही 10 एकड़ में जैश-ए-मोहम्मद का एक और कैंप बन रहा है.
2001 में भारतीय पार्लियामेंट पर हमले के बाद इसे अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन की सूची में रखा गया था. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बैन किए जाने के बावजूद जैश-ए-मोहम्मद के आका मसूद अजहर को कभी डिटेन नहीं किया गया. दक्षिण पाकिस्तान में जैश-ए-मोहम्मद की अच्छी जड़ें होने की वजह से मसूद इस इलाके में खुला घूमता रहा है. खबरें आईं थीं कि मसूद को अब कई बीमारियों ने जकड़ लिया हैऔर वह बिस्तर पर पड़ा है. जैश-ए-मोहम्मद का सारा काम अब उसके भाई-भतीजे देख रहे हैं जिन्होंने कंधार कांड को अंजाम दिया था. लेकिन उसके भड़काऊ भाषणों की ऑडियो अभी भी जवान मुसलमान लड़कों को जिहादी बनाने के काम में इस्तेमाल किए जा रहे हैं.
2001 के बाद जैश-ए-मोहम्मद को बैन किए जाने के मसूद ने इसका नाम बदलकर तहरीक-उल-फुरकान रख दिया. नाम बदलने के बाद जब इसे फिर से बैन कर दिया गया तो मसूद ने इसे खुदाम-उल-इस्लाम के नाम से रजिस्टर करा लिया. 2003 में रावलपिंडी में परवेज मुशर्रफ की हत्या के लिए आत्मघाती हमलावर भेजे जाने के बाद से खुदाम-उल-इस्लाम के ऑफिसों में छापे मारे गए. सैकड़ों जिहादियों को पकड़ा गया.
गौरतलब है कि परवेज मुशर्रफ पर आत्मघाती हमले से पहले तक मसूद सबसे भरोसेमंद जिहादी नेताओं में से एक माना जाता था. कभी वह भारत विरोधी बयानबाजी करता और कभी आतंकवादियों कोभारत-पाक नियंत्रण रेखा के पार भेजकर भारत को सुलगता हुआ देखकर आंनदित होता. इसके बदले में पाकिस्तान का खुफिया तंत्र उसे संरक्षण प्रदान करता.
जब अमेरिका ने मसूद अजहर को गिरफ्तार करने के प्लान बनाए
अमेरिका द्वारा इंटरपोल की कार्रवाई के तहत मसूद ( इंडियन एयरलाइंस की उड़ान IC-814 का अपहरण) और शेख अहमद उमर सईद ( 2002 पत्रकार डैनियल पर्ल की हत्या ) को अमेरिकी नागरिकों के खिलाफ कम से कम दो अपराधों में शामिल होने के आरोपों में केस चलाना चाहता था. अमेरिका ने दावा किया था कि उनके कानून के तहत उन्हें दुनिया में कहीं भी अपने नागरिकों के खिलाफ होने वाले अपराधों की जांच करने का अधिकार है. लेकिन मुशर्रफ प्रशासन ने इंटरपोल को रिजेक्ट कर दिया.
अलकायदा के साथ कथित संबंधों के लिए अजहर से पूछताछ करने के एफबीआई के अनुरोध को भी पाकिस्तान सरकार द्वारा खारिज कर दिया गया था. तर्क दिया गया कि पत्रकार डैनियल पर्ल की हत्या में मसूद की कोई भूमिका नहीं थी. मुख्य अपराधी शेख अहमद उमर सईद और उसके तीन साथियों परपहले ही मुकदमा चलाकर उन्हें पाकिस्तानी अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई दी गई है.
क्या कहता है जिहाद पर लिखा साहित्य
पाकिस्तानी लेखक हुसैन हक्कानी श्रीलंका व संयुक्त राज्य अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत रहे हैं. एक पत्रकार और एकेडमिशियन हुसैन बेनजीर भुट्टो समेत 4 पाकिस्तानी प्रधानमंत्रियों के सलाहकार भी रहे हैं. उन्होंने दो किताबें ‘पाकिस्तान: बिटविन मॉस्क एंड मिलिटरी’ और ‘मैग्निफिशंट डेल्युजन्स: यूएस, पाकिस्तान एंड एन एपिक हिस्ट्री ऑफ मिस अंडरस्टैंडिंग’ लिखी हैं. हुसैन ने अपनी किताब ‘भारत Vs पाकिस्तान: हम क्यों दोस्त नहीं हो सकते’ में भारतीय सेना को लेकर पाकिस्तान की सोच का एक किस्सा बताते हुए लिखा है- 1951 में पाकिस्तानी जनरल अयूब का मानना था कि हिंदुओं का आत्मबल बहुत कमजोर है सही समय पर कारगर हमले के आगे वो बिखर जाएंगे.
हुसैन ने 2009 में मसूद अजहर की लिखी ‘फजल-इल-जिहाद’, फजल मोहम्मद की लिखी “तोहफा-ए-शाहदत” व ‘दावत-ए-जिहाद’, अबु नौमान मुहम्मद शैफुला की लिखी ‘बैत-उल-जिहाद’ और ‘ज़ाद-उल-मुजाहिद’ जैसी किताबों पर एक रिसर्च पेपर लिखा है. इस पेपर में हुसैन ने लिखा है कि 1857 के बाद किस तरह अफगानिस्तान के आसपास जिहाद फैला. इस आंदोलन के संस्थापक सईद अहमद नेआदमी और पैसे सीमाओं के पार भेजने शुरू किए. इस आंदोलन से जुड़ने वाले लोगों ने खुद को मुजाहिदीन कहते हुए जिहाद की इस्लामी अवधारणा के विपरीत अपने युद्ध से जोड़ते हुए मन-मुताबिक व्याख्या निकाल ली.
हक्कानी लिखते हैं कि ब्रिटिशर्स ने सईद अहमद के मुजाहिदीन आंदोलन को ‘वहाबी’ कहना शुरू किया. क्योंकि इस आंदोलन के रूढ़िवादी विश्वास सऊदी अरब के18वीं शताब्दी के मुहम्मद अबदुल वहाब के जैसे थे. अहमद ने जिहाद की इस विचारधारा को पुनर्जीवित कर दक्षिण और मध्य एशिया में आतंक फैलाना शुरू किया.
मौजूदा समय में जिहाद का स्वरूप सईद अहमद के समय के जिहाद से अलग है. ये किसी एक भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित नहीं रह गया है. सोशल मीडिया नेटवर्किंग की वजह से वैश्विक स्तर पर जिहाद फैलाना आसान है. लेकिन तकनीक और नई खोजों के बावजूद आज भी 19वीं शताब्दी का मुजाहिदीन जिहादियों का रोल मॉडल बना हुआ है.
हक्कानी के मुताबिक 2001 से पहले तक जिहाद आंदोलन को पश्चिम में फैलाया गया. मुस्लिम समुदायों के बीच जिहाद साहित्य एक लोकप्रिय शैली बन गई है. पूरे पाकिस्तान और मध्य -पूर्व में प्रकाशक ऐसी किताबें छापते और वितरित करवाते हैं. शुक्रवार की नमाज के बाद मस्जिदों के बाहर जिहाद पर लिखी किताबें बेचीं जाती हैं. पाकिस्तान की साक्षरता दर 40% है. कुछ हज़ार प्रतियां बिकने पर ही उसकिताब को हिट माना जाने लगता है. फिर ये साहित्य मुंह-जबानी फैलाया जाता है. इनके पाठक भी अक्सर युवा मुसलमान होते हैं जो बेरोजगारी के चलते अपने जीवन में कोई अर्थ खोज रहे होते हैं. जिनके पास कानूनी तौर पर उथले देश में आगे बढ़ने का कोई माध्यम नहीं होता. ऐसे युवाओं को फिदायीन बनाना आसान होता है
हक्कानी ने ये भी लिखा है कि इन किताबों के माध्यम से संदेश दिया जाता है कि पिछली दो शताब्दियों से मुसलमानों के साथ ज़्यादतियां हुई हैं. मसूद अज़हर ने अपनी तीसरी किताब ‘द स्ट्रगल एंड वरच्युऑफ जिहाद’ में लिखा है कि दुनिया में फैले असंतुलन को सही करने के लिए अल्लाह की तरफ मुड़ जाओ. वह बार-बार कुरान का ज़िक्र करते हुए लिखता है कि पैगंबर मुहम्मद ने कहा है कि अल्लाह के लिए लड़ो. मसूद की लिखी किताबों से एक बात जाहिर होती है कि उसे तरक्कीपसंद और सेक्युलर दुनिया पसंद नहीं है. युवा मुसलमानों को जैश से जुड़ने के लिए वह इस्लाम के शुरुआती दौर के प्रेरणादायक किस्से बताता है.
जिहाद साहित्य में मुसलमानों के धार्मिक शुद्धता की कमी का व्याख्यान किया गया है. इन किताबों को लिखने वालों ने देश, सीमाओं और नागरिकों के कॉन्सेप्ट्स को नकारते हुए सिर्फ और सिर्फ इस्लाम केकाल्पनिक दुश्मन खोज लिए हैं.