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Sunday, 22 December, 2024
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कोविड-19 लॉकडाउन सफल रहा या नहीं, पांच तरीके से दिए जा सकते हैं इस सवाल के जवाब

कोविड-19 के मद्देनजर भारत में लगाया गया लॉकडाउन सफल रहा या नहीं, इसका जवाब इस पर निर्भर होगा कि आप उसके लिए किन संकेतकों को कसौटी बनाते हैं.

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इस सप्ताह देश में लॉकडाउन खत्म हो जाना था, लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार ने इसे दो सप्ताह के लिए बढ़ा दिया. अब अगले दो सप्ताह तक सारी बहस इस एक सवाल पर केन्द्रित होगी कि क्या लॉकडाउन कारगर रहा? इसका आकलन करने की पांच कसौटियां हैं, कि भारत इन ‘मेट्रिक्स’ (कसौटियों) के मुताबिक किस स्थिति में है, और मोटा-मोटी कौन किस संकेतक को पसंद कर सकता है.

आंकड़े हैं, ब्यौरे नहीं

पहला मेट्रिक यह है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद ‘कन्फर्म’ मामलों की कुल संख्या मॉडल द्वारा अनुमानित संख्या से कम है या ज्यादा. यह स्वास्थ्य मंत्रालय का पसंदीदा मेट्रिक है. मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने 11 अप्रैल को प्रेस ब्रीफिंग में एक ग्राफ प्रस्तुत करते हुए कहा— यह ग्राफ दर्शाता है कि लॉकडाउन ने 8.1 लाख से ज्यादा लोगों को कोविड-19 वायरस से संक्रमित होने से बचा लिया.

दरअसल, यह ग्राफ यह मान कर चलता है कि लॉकडाउन और बाड़बंदी न की जाती तो हर दिन सामने आने वाले मामलों में 41 फीसदी की वृद्धि होती और 15 अप्रैल तक संक्रमण के 8.2 लाख मामले हो जाते. मंत्रालय यह भी मान कर चल रहा है कि अगर केवल बाड़बंदी की जाती और लॉकडाउन न किया जाता तो मामलों की संख्या की वृद्धि दर धीमी होती, फिर भी 15 अप्रैल तक कुल 1.2 लाख मामले सामने आ जाते लेकिन 11 अप्रैल तक केवल 7500 मामले ही हुए. परंतु सरकार ने यह नहीं बताया कि उसने ये आंकड़े गणित या महामारी विज्ञान के किन मॉडलों के आधार पर हासिल किए हैं.

Source: Twitter/ @PIB_India
सोर्स | ट्विटर/ @PIB_India

लॉकडाउन का बचाव करने का सरकार के पास यही पसंदीदा साधन है. नीति आयोग के ‘अधिकार संपन्न समूह-1’ के अध्यक्ष वीके पॉल ने 24 अप्रैल को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जो ग्राफ पेश किया वह सांख्यिकीय दृष्टि से और भी कमजोर था. इस ग्राफ में एक ऐसा ‘कर्व’ दिखाया गया, जो न केवल सपाट हो रहा था बल्कि 16 मई को शून्य के आंकड़े को छू रहा था. पॉल ने कहा, ‘यह कर्व सपाट होने लगा है. अगर हमने देशव्यापी लॉकडाउन लगाने का फैसला न किया होता तो एक उपयुक्त अनुमान के मुताबिक अब तक कोविड-19 के करीब 1 लाख मामले सामने आ गए होते लेकिन आज महामारी को नियंत्रित कर लिया गया है.’

एक बार फिर, ग्राफ में दर्शाई गई वृद्धि दरों और अचानक कमी तथा नीचे जाने के आधारों का खुलासा नहीं किया गया.

Source: Twitter/ @PIB_India
सोर्स पीआईबी: ट्विटर | / @PIB_India

लेकिन यह सच है कि भारत में अभी भी जितने मामलों की आशंका की जा रही थी उससे काफी कम मामले हुए हैं. उदाहरण के लिए, मिशिगन यूनिवर्सिटी के बायो-स्टैटिस्टिशियन्स के एक दल ने ‘प्रेडिक्टिव मॉडलिंग’ का उपयोग करते हुए 24 मार्च को अनुमान लगाया था कि भारत में 25 अप्रैल तक कोरोना के 1.25 लाख ‘कन्फर्म’ मामले सामने आ सकते हैं. तो क्या इससे यह साबित होता है कि भारत में लॉकडाउन कारगर हुआ है?

Source: COV-IND-19 Study Group
सोर्स: कोविड-19 स्टडी ग्रुप

सरकार इस तथ्य को नहीं देख पा रही है या उसकी अनदेखी कर रही है कि मध्य-मार्च के बाद जो भी मॉडल तैयार किए गए उन सबने ‘कन्फर्म’ मामलों का अनुमान लगाते हुए ‘रोकथाम के उपायों’ का हिसाब नहीं रखा. इन मॉडलों ने लॉकडाउन की वकालत की, जो अपनी परिभाषा के मुताबिक मामलों को तेजी से बढ़ने नहीं देगा— फिलहाल के लिए.

अशोका यूनिवर्सिटी में फिजिक्स एवं बायोलॉजी के प्रोफेसर और महामारी विज्ञान के विशेषज्ञ गौतम मेनन ने कहा, ‘लॉकडाउन का मकसद संक्रमित लोगों से दूसरे लोगों के संक्रमण के जरिए होने वाले अनियंत्रित सामुदायिक संक्रमण को रोकना है.’ मेनन का कहना है कि लॉकडाउन के कारण मामलों की संख्या में वृद्धि धीमी होती है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह सफल हुआ, बल्कि इतना ही कि उसका जो विशेष काम होता है वह उसने कर दिया. इस बीच के समय में सरकार यह करने में सफल रही है, और यही महत्वपूर्ण है.

नये मामले, और दोगुना होने की गति

दूसरा ‘मेट्रिक’ यह है कि क्या रोज के नये ‘कन्फर्म’ मामलों की संख्या घट रही है? मेनन का मानना है कि यह मेट्रिक लॉकडाउन की ‘सफलता’ का बेहतर संकेतक है. इस संकेतक के मुताबिक लॉकडाउन सफल हुआ नहीं दिखता है, क्योंकि पिछले कुछ दिनों में हर दिन नये मामलों की संख्या घटने की जगह बढ़ रही है.

Graphic: Soham Sen/ThePrint
ग्राफिक: सोहम सेन | दिप्रिंट

इंडिया स्पेंड’ का कहना है कि लॉकडाउन में रहे आठ दूसरे देशों में इस अवधि के दौरान भारत के विपरीत मामलों की संख्या में गिरावट देखी गई है.

Source: Health Check
सोर्स: हेल्थ चेक

तीसरा ‘मेट्रिक’ यह है कि नये मामलों की वृद्धि दर घटी है या नहीं, और रोग के संक्रमण की गंभीरता किस स्तर पर पहुंची है. मामलों के दोगुना होने की गति सरकार का पसंदीदा मेट्रिक है. यह संकेतक दर्शाता है कि कुछ राज्यों ने कुल मामलों के दोगुना होने की गति को काफी कम करने में सफलता पाई है लेकिन कई राज्यों में यह गति चिंता का विषय बनी हुई है.

Source: Twitter/ @PIB_India
सोर्स l Twitter/ @PIB_India

‘पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ में महामारी विशेषज्ञ डॉ. गिरिधर बाबू का कहना है, ‘हम तो यह चाहेंगे कि लॉकडाउन खत्म होने से पहले ‘बेसिक रीप्रोडक्सन नंबर’ (‘आर नंबर’) 1 से नीचे चला जाए.’ यह नंबर यह बताता है कि एक कोरोना मरीज औसतन कितने लोगों को संक्रमित करता है. यह न केवल यह बताता है कि वायरस कितनी तेजी से फैल रहा है, बल्कि इसके प्रभावों का भी अंदाजा देता है. ‘आर नंबर’ को 1 से नीचे लाना कोरोनावायरस के विस्तार को रोकने का पहला कदम है. ‘इंस्टीट्यूट ऑफ मैथेमैटिकल साइंसेज’ चेन्नै के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि पिछले सप्ताह तक भारत का ‘आर नंबर’ 1.29 था.

स्वास्थ्य सेवा का ढांचा और टेस्टिंग

चौथा ‘मेट्रिक’ यह है कि क्या सरकार ने इस समय का उपयोग स्वास्थ्य सेवा ढांचे को इस तरह मजबूत बनाने में किया या नहीं, कि वह लॉकडाउन खत्म किए जाने के बाद कोविड-19 मामलों में आशंकित वृद्धि के कारण पैदा हुई मांगों को पूरा कर सके. लेकिन ‘अधिकार संपन्न समूह-3’ के अध्यक्ष पीडी वाघेला ने 1 मई को जो ‘प्रेजेंटेशन’ दिया वह दर्शाता है कि भारत अभी भी पाला छूने का खेल खेल रहा है. कई शहरों से खबर आ रही है कि वे अधिकतम क्षमता के स्तर पर काम कर रहे हैं, खासकर मुंबई.

Graphic: Soham Sen/ThePrint
ग्राफिक: सोहम सेन | दिप्रिंट

और अंतिम—गिरिधर बाबू के अनुसार प्रमुख— ‘मेट्रिक’ यह है कि क्या हम संक्रमण के अधिकतम मामलों की पहचान कर पाए हैं, उन्हें ‘सीमित’ कर पाए हैं. बाबू कहते हैं, ‘कुछ राज्यों से हम जान चुके हैं कि वे मामलों की पहचान, उनके संपर्क में आए लोगों का पता लगाने, और सभी मामलों को ‘सीमित’ करने का अच्छा काम कर रहे हैं. कुछ ऐसे जिले भी हैं जहां एक भी मामला नहीं हुआ है, या एक ही मौत हुई है. असली मुश्किल यहां है.’ बाबू का कहना है कि राज्यों को कोविड-19 के मामलों में सांस की गंभीर बीमारी (‘सारी’) के मामलों की जांच अति आवश्यक मान कर करनी चाहिए.

उनका कहना है कि इस जानकारी के बावजूद गरीब राज्यों ने मरीजों की टेस्टिंग करने में सुस्ती बरती, जबकि कोविड-19 मामलों की पहचान ना होने का खतरा बना रहा.

इसलिए, सवाल यह है कि क्या लॉकडाउन कोविड-19 को फैलने से रोकने में सफल रहा? जवाब ‘हां’ हो सकता है, लेकिन सरकार को संकेतकों के चुनाव और उपयोग में ईमानदारी बरतनी ही चाहिए.

(लेखिका चेन्नई स्थिति डेटा पत्रकार हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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