भारत की ‘पड़ोस पहले’ (नेबरहुड फर्स्ट) वाली नीति कितनी कारगर रही, इसका आकलन बारीक काम है क्योंकि इसके साथ कूटनीतिक उपलब्धियों से लेकर आर्थिक सहयोग और क्षेत्रीय स्थिरता से लेकर सामाजिक-राजनीतिक पहलू जैसी कई बातें जुड़ी हैं.
इस नीति से कुछ क्षेत्रों में लाभ तो हासिल हुए हैं, लेकिन इसके साथ कई चुनौतियों और झटकों का सामना भी करना पड़ा है. कुछ लोगों का कहना है कि भारत अंतरराष्ट्रीय मंच पर तो अपना कद बढ़ाने में काफी सफल रहा है लेकिन दक्षिण एशिया पर अपनी पकड़ वह खो रहा है.
अब जबकि चुनाव संपन्न हो चुका है, यह भावी कदम उठाने के बारे में चिंतन करने का वक्त है. इसलिए यहां हम इस नीति की सफलताओं और विफलताओं का जायजा लेते हुए इस पर विचार कर रहे हैं की सरकार इसमें कैस जान डाल सकती है.
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नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी की सफलताएं
कूटनीतिक संबंध : भारत ने अपने पड़ोसियों की तरफ कूटनीतिक हाथ बढ़ाने की जो सक्रियता दिखाई उसके कारण कई मंचों पर आपसी संवाद और संपर्क बढ़ा. द्विपक्षीय दौरों, शिखर बैठकों, और संयुक्त पहल ने संबंधों को सुधारने और आपसी चिंताओं का निवारण करने में मदद की.
इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास : ‘सार्क’ विकास कोष, एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) जैसी पहल ने पड़ोसी देशों में इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास की परियोजनाओं की राह आसान की, संपर्क और आर्थिक समावेश को आगे बढ़ाया.
सुरक्षा मामलों में सहयोग : चुनौतियों के बावजूद भारत ने आतंकवाद के विरोध, सीमा की देखभाल और समुद्री सुरक्षा समेत सुरक्षा के सभी मसले पर पड़ोसी देशों के साथ सहयोग किया. ‘इंडियन ओशन नवल सिंपोजियम’ (आईओएनएस) जैसी पहल ने सुरक्षा को लेकर साझा खतरों से निबटने में ज्यादा सहयोग की गुंजाइश बनाई.
क्षेत्रीय पहल : भारत ‘बे ऑफ बंगाल इनीशिएटिव फॉर मल्ट-सेक्टरल टेक्निकल ऐंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन’ (बिम्सटेक), ‘बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, इंडिया (बीबीआईएन) इनीशिएटिव’ और ‘इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन’ (आईओआरए) जैसे क्षेत्रीय संगठनों में सक्रियता से भाग लिया. इन सबने मिलकर क्षेत्रीय स्थिरता, आर्थिक सहयोग, और हिंद महासागर क्षेत्र में सामूहिक सुरक्षा के मामलों में योगदान दिया.
सांस्कृतिक आदान-प्रदान : ‘द इंडियन टेक्निकल ऐंड इकोनॉमिक को-ऑपरेशन प्रोग्राम’ (आईटेक) और सांस्कृतिक आदान-प्रदान के दूसरे मंचों ने क्षेत्र में लोगों के आपसी संबंधों को मजबूत किया और पड़ोसियों वाले सदभाव में वृद्धि की.
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चुनौतियां और विफलताएं
अनसुलझे सीमा विवाद : खासकर पाकिस्तान और चीन के साथ निरंतर जारी सीमा विवाद इस क्षेत्र में विश्वास और सहयोग का माहौल बनाने में बाधक रहा है. लाइन ऑफ कंट्रोल (एलसी) और लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (एलएसी) पर तनाव हमेशा रहा है जो द्विपक्षीय संबंधों में प्रगति को रोकता रहा है.
भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विताएं : खासकर चीन के साथ बढ़ती भू-राजनीतिक होड़ भारत के पड़ोसी रिश्ते को जटिल बनाता रहा है और स्वतंत्र विदेश नीति अपनाने की उसकी क्षमता को कमजोर करता रहा है. सत्ता के संघर्ष और दबदबा कायम करने के खेल इन प्रयासों पर हावी होते रहे हैं.
आर्थिक अंतर : आर्थिक विकास के मामलों में पड़ोसी देशों के साथ असमानता आर्थिक सहयोग की पहल को प्रभावित करती रही है. इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में पिछड़ापन, व्यापार संबंधी प्रतिबंधों और नौकरशाही अड़चनें पूर्ण क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग हासिल करने के रास्ते में रोड़ा बनती रही हैं.
आंतरिक अस्थिरता : पड़ोसी देशों में राजनीतिक अस्थिरता, जातीय संघर्ष और शासन संबंधी चुनौतियां करीबी सहयोग और क्षेत्रीय मजबूती के रास्ते में अड़चनें बनी हैं. सीमा-पार से आतंकवाद और बगावत को बढ़ावा भी संबंधों में कटुता पैदा करता रहा है और भारत और उसके पड़ोसियों के बीच आपसी विश्वास को कमजोर करता रहा है.
‘सार्क’ की कमजोरी : दक्षिण एशिया के आला अंतर-देशीय सरकारी संगठन का कामकाज द्विपक्षीय तनावों और पाकिस्तान तथा भारत के बीच प्रमुख मसलों पर सहमति के अभाव के कारण प्रभावित होता रहा है. इसने क्षेत्रीय सहयोग और एकता के मंच के रूप में इसकी प्रभावशीलता को सीमित किया है.
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नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी में फूंकी जान
भारत की नवनिर्वाचित सरकार को नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी में नई जान फूंकने के लिए कूटनीतिक प्रयासों, आर्थिक सहयोग, क्षेत्रीय मजबूती, और लोगों के आपसी संबंधों को सुधारने पर ध्यान देना चाहिए.
कूटनीतिक पहुंच और प्रयास : बकाया मसलों को सुलझाने और क्षेत्रीय सहयोगियों के बीच विश्वास और भरोसा बनाने के लिए उच्च-स्तरीय दौरों, शिखर बैठकों और नियमित संवाद को प्राथमिकता देनी चाहिए. इसके साथ ही, इन देशों की आंतरिक राजनीति पर औचक प्रतिक्रिया देने से बचना चाहिए. सियासत और कूटनीति में अंतर होता है और उनके अलग-अलग तौर-तरीके हैं. आज सुलझे हुए नेतृत्व की ज़रूरत है.
संघर्ष समाधान और भरोसा जगाने के उपाय : लंबे समय से अटके सीमा विवादों और दूसरे द्विपक्षीय संघर्षों को वार्ता के जरिए सुलझाने के प्रयास तेज किए जाने चाहिए. इनमें मध्यस्थता, भरोसा जगाने के संयुक्त सैन्य अभ्यास, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति जैसे कदम शामिल हैं.
आर्थिक एकीकरण और इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास : क्षेत्र में संपर्क और आर्थिक एकीकरण को बढ़ाने के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास परियोजनाओं में और व्यापार को आसान बनाने के उपायों को तेज किया जाए और निवेश के लिए प्रोत्साहन दिए जाएं. ‘बीबीआईएन’ और ‘बिम्सटेक’ जैसी पहल क्षेत्रीय सहयोग तथा व्यापार की पूर्ण संभावनाओं को उभार सकती हैं. हमारे पड़ोसियों को आर्थिक सहायता बेरोकटोक जारी रहनी चाहिए, चाहे किसी तरह का उकसावा क्यों न हो, क्योंकि यह ‘ज़रूरत में काम आने वाले मित्र के रूप में हमारी छवि बनी रहे.
सुरक्षा मामलों में सहयोग : आतंकवाद विरोध, समुद्री सुरक्षा और सीमा की देखभाल समेत सुरक्षा संबंधी सभी मसलों को लेकर सहयोग को मजबूत किया जाना चाहिए. सैन्य कूटनीति की क्षमता को बढ़ाने के उपायों को खोजने के बड़े प्रयास जारोर्री हैं. अगर दो देशों, मसलन नेपाल और भारत, की सेनाएँ सकारात्मक संबंध बनाती हैं तो राष्ट्रीय स्तर पर गलतफहमी पनपने के कम मौके आएंगे.
बहुपक्षीय संबंध : साझा चुनौतियों का मुकाबला करने और क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत बनाने के लिए ‘सार्क’, ‘बिम्सटेक’, और ‘आईओआरए’ जैसे बहुआयामी क्षेत्रीय संगठनों के एजेंडा को स्वरूप प्रदान करने में भारत सक्रिय भूमिका निभाए और अपने संबंधों में गहराई लाए. अगर हम शांघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (एससीओ) जैसे मंचों पर चीन और पाकिस्तान के साथ बैठ सकते हैं तो ‘सार्क’ में ऐसा क्यों नहीं कर सकते?
सांस्कृतिक कूटनीति और लोगों के आपसी रिश्ते : ‘आईटेक’, सांस्कृति उत्सव, पर्यटन को बढ़ावा देने जैसे कार्यक्रमों का विस्तार किया जाना चाहिए ताकि भारतीय नागरिकों और पड़ोसी देशों के नागरिकों के बीच आपसी संवाद और आदान-प्रदान बढ़े.
पर्यावरण के मसले पर सहयोग : पर्यावरण की सुरक्षा और टिकाऊ विकास परियोजनाओं में सहयोग से जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, और प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन जैसी चुनौतियों का अच्छा मुक़ाबला किया जा सकता है. अंतरराष्ट्रीय ‘सोलर अलायंस’ जैसे उपाय के बूते इस क्षेत्र में अक्षय ऊर्जा के प्रयोग और पर्यावरण को टिकाऊ बनाने के प्रयासों को आगे बढ़ाया जा सकता है.
विदेशी नागरिकों के मद्देनजर कूटनीति और ‘सॉफ्ट पावर’ : भारत को बॉलीवुड, योग, पारंपरिक कलाओं जैसे ‘सॉफ्ट पावर’ का भरपूर उपयोग करना चाहिए ताकि उसकी छवि और उनके प्रभाव में इजाफा हो. विदेशी नागरिकों के मद्देनज़र कूटनीति और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के विस्तार से भारत के बारे में सकारात्मक धारणा बनेगी और पड़ोसी देशों के साथ संबंध मजबूत होंगे. उदाहरण के लिए बौद्ध तीर्थस्थल बोधगया के तीर्थाटन को प्रायोजित करने या उसके खर्च में रियायत देने के फैसले से सदभाव मजबूत करने में बड़ी मदद मिलेगी.
संघर्ष की रोकथाम और संकट समाधान : संघर्ष की रोकथाम, संकट समाधान, और मानवीय सहायता के लिए मजबूत उपाय इस क्षेत्र में संघर्षों का, और प्राकृतिक आपदाओं के सामना करने के मामले में बड़ा फर्क ला सकता है. स्थिरता और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए भारत को क्षेत्रीय शांति और मानवीय राहत के प्रयासों में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए. बिना किसी परोक्ष शर्त के मानवीय सहायता और आपदा राहत (एचएडीआर) का वादा सकारात्मक और उदार छवि बनाने में काफी मदद कर सकता है.
युवाओं और सिविल सोसाइटी के साथ संबंध : युवाओं, सिविल सोसाइटी संगठनों और जमीनी आंदोलनों को मजबूत बनाने से इस क्षेत्र में शांति, सहिष्णुता और सहयोग को बढ़ावा दिया जा सकता है और विभाजनों को पाटने तथा ज्यादा समावेशी तथा लचीला पड़ोस बनाने में मदद मिल सकती है. लोगों के बीच पारस्परिक संपर्क नकारात्मक राजनीति से प्रेरित भारत विरोधी प्रचार के असर को कम करने में मदद दे सकता है.
इन उपायों को लागू करके नई सरकार भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी’ में नई जान फूंक सकती है और एक शांतिपूर्ण, समृद्ध और एकजुट क्षेत्र के अपने सपने को साकार कर सकती है. क्षेत्र में सुरक्षित तथा स्थिर वातावरण होगा तभी भारत ‘विकसित भारत’ के अपने लक्ष्य को हासिल कर सकेगा. ‘पड़ोस सबसे पहले’ का नारा तभी शब्दशः और भावनात्मक रूप से सार्थक होगा.
(जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, पीवीएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, भारतीय थल सेना के सेवानिवृत्त अध्यक्ष हैं. वे 28वें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ थे. उनका एक्स हैंडल @ManojNaravane है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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