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Saturday, 21 December, 2024
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राहुल गाँधी की शानदार इफ्तार पार्टी में इन तीन चीज़ों ने किया रंग में भंग

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प्रणब मुख़र्जी की उपस्थिति और प्रमुखता मुस्लिमों के प्रति सद्भावना के रूप में राहुल गांधी के इफ्तार प्रयासों के विपरीत साबित हुई।

राहुल गांधी की जल्दबाजी में आयोजित की गई इफ्तार पार्टी दुर्घटना की तरह थी। असली रोज़ेदारों की संख्या – जो उपवास रखते हैं – वास्तव में बहुत कम थी। रमजान की वास्तविक भावना और समतावाद की इस्लामी अवधारणा के विपरीत, आमंत्रण प्रतिबंधित थे और पद एवं प्रतिष्ठा के क्रम में दिए गए थे।

सोनिया गांधी (जो अभी भी विदेश में है) की अनुपस्थिति में विपक्षी एकता का दम ख़म गायब था। मायावती और अखिलेश यादव की अनुपस्थिति भी संदेह पैदा करती है । राहुल प्रणब मुखर्जी की अधिक खातिरदारी करते नजर आ रहे थे।
कांग्रेस के दिग्गजों का कहना है कि मुखर्जी ने नागपुर जाकर पहले ही अपने इरादे स्पष्ट कर दिए थे और वह अब पार्टी के लिए राजनीतिक रूप से उपयोगी नहीं हैं। एआईसीसी की अल्पसंख्यक शाखा राहुल को एक महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया देने से चूक गयी की मुसलमानों के बीच पूर्व राष्ट्रपति की छवि नागपुर की साहसिक यात्रा के बाद गंभीर रूप से धूमिल पड़ गई है। कई मुसलमानों के लिए, भारत के महान पुत्र के रूप में केबी हेडगेवार का वर्णन और ‘मुस्लिम आक्रमणकारियों’ द्वारा 600 साल के शासन पर एक टिप्पणी ने मुखर्जी को पी.वी. नरसिम्हा राव के लीग में शामिल कर दिया है।

संक्षेप में, प्रणव मुखर्जी की उपस्थिति और प्रमुखता मुस्लिमों के प्रति सद्भावना के रूप में राहुल गांधी के इफ्तार प्रयासों के विपरीत साबित हुई।

विपक्ष रहा ग़ैरहाज़िर

राहुल के इफ्तार आयोजन का दूसरा अनकहा लक्ष्य विपक्षी एकता का प्रदर्शन करना था। वह भी पूरा नहीं हो पाया।

हालांकि बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की अध्यक्ष मायावती ने सतीश मिश्रा के रूप में अपने उच्च स्तरीय अनुयायी को भेजा था, परंतु समाजवादी पार्टी (एसपी) के कोई वरिष्ठ नेता यहाँ तक कि राम गोपाल यादव भी वहाँ नहीं थे। क्या उत्तर प्रदेश में अपने लाभांश पर नजरें गड़ाए कांग्रेस के विचार पर सपा नगण्य है? जहाँ सपा-बसपा और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के बीच एक भव्य भाजपा विरोधी गठबंधन का काम किया जा रहा है।

राजनीतिक अफवाह यह है कि “फरवरी 2017 के बाद से उत्तर प्रदेश के लडकों” के बीच मनमुटाव हो गया था जब राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने इनको पास लाने का किरदार निभाया था। क्या “उत्तर प्रदेश के लड़कों” के बीच मनमुटाव के लिए चुनाव के बाद की भारतीय राजनीतिक कार्य समिति (आई-पीएसी) के चालान उत्तरदायी थे?

इस चरण में बहुत ज्यादा प्रचारित एकता एक मृगतृष्णा है। विपक्ष के बीच एकता का असली परीक्षण दिसम्बर की शुरुआत में होगा जब मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के राज्य विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित किए जाएंगे। यदि कांग्रेस इन तीन भाजपा शासित राज्यों में लाभ उठाती है, जैसा कि कुछ सर्वेक्षणकर्ताओं ने भविष्यवाणी की है, तो राहुल की अगुआई वाली कांग्रेस को बढ़ावा मिलेगा। बढ़ते साहस और ‘हम बीजेपी के विर्रध आ गए हैं’ की भावना में बीएसपी, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), एसपी और अन्य तीसरे मोर्चे जैसे धुरंधर गैर-एनडीए दलों के नाख़ुश होने की हर संभावना है।

यह एक खुला रहस्य है कि तीसरे मोर्चे के नेता कमजोर कांग्रेस के मई 2019 में 1996 के संयुक्त मोर्चा के अनुभव को दोहराने की उम्मीद कर रही हैं। यह असाधारण रूप से इच्छापूर्ण हो सकता है, लेकिन एसपी, बीएसपी और टीएमसी की राष्ट्रीय राजनीति का मुख्य स्तर प्राप्त करने की कांग्रेस की महत्वाकांक्षा को पूरा करने की कोई इच्छा नहीं है। खजूर और शरबत के साथ बिरयानी और कबाब पर आधारित इफ्तार पार्टी की क्षमता, व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और श्रेष्ठता के मुकाबले कम अथवा नगण्य है।

पाँच सितारा संस्कृति

इफ्तार के बाद, अतिथियों की श्रेणीवार सूची, बल्कि समुदाय के नेताओं को शामिल नहीं करना, मुस्लिम समुदाय के भीतर चर्चा का एक बड़ा मुद्दा बन गया। उर्दू अख़बार के कुछ संपादकों ने पूछा कि पार्टी ने केवल उन लोगों को क्यों आमंत्रित किया जिन्हें करीब माना जाता था। आखिरकार, जब राष्ट्रपति भवन या हैदराबाद हाउस में और यहां तक कि 24 अकबर रोड पर इफ्तार पार्टी आयोजित की गई थीं, तो पूरे देश से आए सामुदायिक नेताओं, विद्वानों, बुद्धिजीवियों और पुरोहित वर्ग की पहचान करने के लिए बहुत एहतियात बरता गया था।

ताज पैलेस, दिल्ली की जामा मस्जिद और यहाँ तक कि फतेहपुरी में आयोजित इफ्तार में भी प्रतिनिधित्व गायब था। मुस्लिम मौलवियों के विश्वसनीय नेताओं ने राजनीतिक इफ्तार पार्टियों के खिलाफ एक अनौपचारिक फतवा पारित किया था, जो कहता था की यह रमजान और इस्लाम की सच्ची भावना के खिलाफ है।

कांग्रेस की पाँच सितारा होटल की पसंद दिलचस्प है क्यूँकि यह कोंग्रेस की “पाँच सितारा संस्कृति” के बिलकुल विपरीत था। दरअसल, जब अभिषेक बच्चन ने वर्ष 2000 में फिल्म रिफ्यूजी से अपने करियर की शुरूआत की, तो सोनिया गाँधी को एक निमंत्रण भेजा गया। लेकिन विनम्रतापूर्वक उनकी सूचना मिली कि कांग्रेस अध्यक्ष महंगे पाँच सितारा होटलों में नहीं जाती हैं क्योंकि पार्टी का सिद्धांत सादा जीवन, उच्च विचार पर आधारित है।

रशीद किदवई एक पर्यवेक्षक रिसर्च फाउंडेशन के विजिटिंग फेलो, लेखक और पत्रकार हैं। यहां व्यक्त किए गए विचार उनके अपने हैं।

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