कांग्रेस जब तक अपनी सीटों की संख्या में अच्छा-खासा इजाफा नहीं करती, इंडिया गठबंधन बीजेपी को फिर से सत्ता में आने से नहीं रोक सकता भले ही तृणमूल कांग्रेस(टीएमसी), द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम्, जनता दल(युनाइडेट), और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) चाहे जितना बेहतर प्रदर्शन कर लें.
हमारे पास इंडिया गठबंधन के घटक दलों को सुनाने के लिए कुछ अच्छी खबरें हैं तो कुछ बुरी. आइए, सबसे पहले बुरी खबरों पर गौर करेः बीजेपी 2024 के चुनावों की दौड़ में अब भी सबसे आगे है. जी हां, आपने ठीक सुना ! 2024 के चुनावों की दौड़ में बीजेपी विपक्षी दलों के नव-निर्मित गठबंधन की मिलवां ताकत से बहुत आगे है. लेकिन अवसाद पैदा करती खबर की इस सुर्खी के पीछे बड़ी अच्छी खबरें छिपी हैं. देश के महत्वपूर्ण इलाकों में गठबंधन के पैर जमने लगे हैं. लोगों में मौजूदा सरकार के खिलाफ कम से कम कुछ मुद्दों पर रुझान अब घर करने लगा है. और, `मोदाणी` सत्ता होने का आरोप अब इस सरकार को डंसने लगा है. सो, 2024 की चुनावी दौड़ का मैदान अब भी खुला है.
ये खबरें बीते माह जारी हाल के दो राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण के निष्कर्षों से निकलती हैं. इनमें एक है इंडिया टीवी के लिए किया गया सीएनएक्स का सर्वेक्षण और दूसरा है इंडिया टुडे के लिए किया गया सी-वोटर का सर्वेक्षण. ये दोनों सर्वेक्षण इन टीवी चैनलों के द्वि-वार्षिक मूड ऑफ द नेशन ऋंखला के तहत किये गये हैं और दोनों ही सर्वेक्षणों का निष्कर्ष है कि आज की तारीख में लोकसभा के चुनाव हो जायें तो बहुमत बीजेपी को हासिल होगा लेकिन उसके सीटों की संख्या अपेक्षाकृत कम हो जायेगी. देश के 292 संसदीय क्षेत्रों के कुल 44,500 व्यस्क मतदाताओं के सर्वेक्षण के आधार पर सीएनएक्स का अनुमान है कि अभी के समय में आम चुनाव हो जायें तो एनडीए को कुल 318 सीटें मिलेंगी (इसमें अकेले बीजेपी को 290 सीट मिलने की बात कही गई है) और इंडिया गठबंधन को 175 (जिसमें कांग्रेस को 66 सीटें मिलेंगी). सी-वोटर ने जुलाई के मध्य से अगस्त के मध्य तक देश के सभी 543 संसदीय क्षेत्रों के कुल 2600 मतदाताओं का सर्वेक्षण किया तथा अपने विश्लेषण को ट्रैकर डेटा के लगभग 135,000 साक्षात्कार के साथ मिलान करके निष्कर्ष पेश किये हैं. इस सर्वेक्षण के मुताबिक लोकसभा के चुनाव निर्धारित समय से पहले हो जायें तो एनडीए को 306 सीटें ( इसमें बीजेपी को 287) मिलेंगी जबकि इंडिया को 193 सीटें ( इसमें कांग्रेस को 74) हासिल होंगी.
सीटों के इन आंकड़ों को ज्यादा गंभीरतापूर्वक लेने की जरूरत नहीं. चूंकि सीटों के ये पूर्वानुमान चुनाव के वास्तविक समय से 9 महीने पहले आये हैं तो इन्हें संकेतात्मक ही माना जा सकता है ना कि वस्तु-स्थिति के करीब. एक बात ये भी है कि दोनों सर्वेक्षणों में सैम्पल-साइज (प्रतिदर्श का आकार) तो बड़ा है लेकिन जो पद्धति अपनाई गई है उसे पूरी तरह संतोषजनक नहीं कहा जा सकता. सी-वोटर ने सर्वेक्षण फोन पर किया है जिसकी बराबरी प्रमाणिकता के मामले में कम से कम उस सर्वेक्षण से तो नहीं ही की जा सकती जो कुल मतदाताओं को ध्यान में रखकर रैंडम सैम्पलिंग के आधार पर नमूने के तौर पर चुने गये मतदाताओं के पास पहुंचकर आमने-सामने की बातचीत के आधार पर किया गया हो. सीएनएक्स ने अपनी पद्धति बताने की फिक्र ही नहीं की है. ऐसे सर्वेक्षणों में अमूमन समाज के हाशिए के तबके के लोग सैम्पल-साइज में कम संख्या में होते हैं जबकि ये ही लोग चुनाव के समय विपक्षी दलों को ज्यादा संख्या में वोट डालने आते हैं. बहरहाल, दोनों सर्वेक्षणों से इंडिया गठबंधन के नेताओं के लिए पांच बड़े सबक निकलते हैं.
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बीजेपी के रणनीतिकारों की चिन्ता का सबब
पहला सबक तो यही कि बीजेपी जितना जान पड़ती है उससे कहीं ज्यादा कमजोर है. सर्वेक्षणों में वोट शेयर के जो आंकड़ों बताये गये हैं वे सीटों के बारे में लगाये गये पूर्वानुमान की तुलना में कहीं ज्यादा बेहतरी से हमें बताते हैं कि मुकाबला कहीं ज्यादा करीबी रहने वाला है. सी-वोटर के सर्वे के मुताबिक अभी के समय में चुनाव हो जायें तो एनडीए को राष्ट्रीय स्तर पर 43 प्रतिशत वोट मिलेंगे जबकि इंडिया गठबंधन 41 प्रतिशत वोट शेयर के साथ उससे महज दो अंक पीछे रहेगा. बीजेपी साल 2019 में अपनी मजबूत पकड़ वाले इलाकों में सीटों के मामले में चरम पर पहुंच चुकी है. देश के पश्चिमोत्तर के इलाके में उसकी सीटों की संख्या अब बढ़नी नहीं बल्कि घटनी ही है.
सर्वेक्षणों में साफ दिख रहा है कि इंडिया गठबंधन बीजेपी के प्रभुत्व वाले इलाकों में कुछ जगहों पर बड़ी तथा कई जगहों पर छोटी बढ़त बना रहा है. इंडिया गठबंधन के लिए बड़ी बढ़त वाले इलाके हैं महाराष्ट्र तथा बिहार जहां विपक्षी गठबंधन सिर्फ उठ खड़ा ही नहीं हुआ बल्कि सरपट दौड़ लगा रहा है. दोनों ही सर्वेक्षणों का निष्कर्ष है कि महाराष्ट्र में खंडित जनादेश आयेगा और एनडीए को 17-21 सीटों का नुकसान होगा. बिहार के मामले में दोनों सर्वेक्षणों के निष्कर्ष अलग-अलग हैं लेकिन चाहे जिस रूप में देखें, दोनों ही सर्वेक्षण इतना तो बता ही रहे हैं कि बिहार में एनडीए को कम से कम 15 सीटों का घाटा होने जा रहा है. ये दोनों राज्य तथा पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, मध्यप्रदेश और राजस्थान जहां इंडिया गठबंधन को इकाई अंकों की साधारण बढ़त हासिल हो रही है, साथ मिलकर बीजेपी को बहुमत के आंकड़े से नीचे ला सकते हैं.
इस घाटे की भरपाई के लिए बीजेपी को उन राज्यों से सीटें जुटानी होंगी जहां वह लगभग नदारद है. लेकिन सर्वेक्षण की रिपोर्ट बताती है कि बीजेपी के लिए केरल, आंध्र प्रदेश, पंजाब तथा तमिलनाडु से सीटें जुटा पाना नामुमकिन है(भले ही बीजेपी के साथी दलों को छोटी बढ़त दिख रही है) साथ ही ओड़िशा और तेलंगाना में भी बीजेपी की स्थिति में किसी सुधार के आसार नहीं हैं. जाहिर है, ये बात बीजेपी के रणनीतिकारों के लिए चिन्ता का सबब हो सकती है.
बदलती तस्वीर
दूसरी बात, भीतर ही भीतर सरकार-विरोधी रुझान जड़ पकड़ते जा रहा है. बस, विपक्ष को ये पता होना चाहिए कि उसे कैसे और कहां भुनाया जाए. सी-वोटर के सर्वेक्षण के मुताबिक साक्षात्कार में शामिल हर पांच मतदाता में तीन (59 प्रतिशत) ने सरकार के कामकाज और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कामकाज (63 प्रतिशत) से सहमति जतायी. साल 2023 की जनवरी की तुलना में यह आंकड़ा तनिक नीचे की तरफ खिसका है. सर्वेक्षण में आधे से ज्यादा (52 प्रतिशत) मतदाताओं ने प्रधानमंत्री के पद के लिए नरेंद्र मोदी को अपनी पसंद बताया. उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के बाद मिले समर्थन के बावजूद प्रधानमंत्री पद के लिए मात्र 16 प्रतिशत मतदाताओं की पसंद हैं. सो, वक्त के इस मुकाम पर विपक्ष का मुकाबले की पेशबंदी मोदी बनाम राहुल के मुहावरे में करना बुद्धिमानी नहीं. इंडिया गठबंधन के लिए अभी वो वक्त नहीं आया कि वह `कौन बनेगा प्रधानमंत्री` की बहस में हिस्सा ले.
इसी तरह लोकतंत्र, सांप्रदायिक सौहार्द, अल्पसंख्यकों की हिफाजत तथा अभिव्यक्ति की आजादी जैसे मुद्दे लोगों को पहले की तुलना में कहीं ज्यादा अहम प्रतीत हो रहे हैं, खासकर अल्पसंख्यकों के बीच इन मुद्दों को ज्यादा तवज्जो मिल रही है लेकिन ये मुद्दे चुनावी बिसात पलटने के लिहाज से काफी नहीं. बात चाहे जितनी अटपटी जान पड़े लेकिन विदेश नीति के मामले में मोदी सरकार के कामकाज को सर्वेक्षण में 70 फीसद मतदाताओं ने ठीक माना है और मोदी सरकार मतदाताओं की एक बड़ी तादाद ( 79 प्रतिशत) को ये समझाने में कामयाब रही है कि सरकार ने चीन के सीमाई अतिक्रमण के मसले का संतोषजनक समाधान किया है.
सो, विपक्ष के लिए सबक ये है कि वह अर्थव्यवस्था पर ध्यान टिकाये. सर्वेक्षण के मुताबिक केवल 47 प्रतिशत मतदाता मानते हैं कि सरकार ने अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर अच्छा प्रदर्शन किया है जबकि इस साल के जनवरी में ऐसा मानने वाले मतदाताओं की तादाद 54 प्रतिशत थी. अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर अच्छा प्रदर्शन के मामले में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तुलना में नरेंद्र मोदी को मात्र 2 प्रतिशत ज्यादा मतदाता बेहतर मानते हैं जबकि आठ माह पहले इस मामले में मोदी को मनमोहन सिंह पर 15 अंकों की बढ़त हासिल थी. आश्चर्य नहीं कि ज्यादातर मतदाता महंगाई और बेरोजगारी को लेकर चिंतित हैं. सर्वेक्षण के तथ्यों से ये भी पता चलता है कि मतदाता अर्थव्यवस्था की भावी दशा तथा अपनी भावी पारिवारिक आमदनी को लेकर चिंतित हैं. अर्थव्यवस्था को लेकर यह रूझान भारतीय मतदाताओं के आम तौर पर आशावादी रहने वाले रूख के विपरीत है.
बड़े व्यावसायिक घरानों से सरकार की सांठगांठ को लेकर लोगों में गहरी आशंका है. सर्वेक्षण में शामिल ज्यादातर मतदाताओं(55 प्रतिशत) का कहना था कि मोदी सरकार की नीतियों से बड़े व्यावसायियों को फायदा पहुंचा है जबकि मात्र एक चौथाई मतदाताओं ने कहा कि छोटे व्यापारियों, वेतनभोगी वर्ग या फिर किसानों को मोदी सरकार की नीतियों का फायदा हुआ है. इंडिया टुडे पत्रिका ने सर्वेक्षण का एक अहम निष्कर्ष प्रकाशित किया है ( अचरज की टीवी कार्यक्रम में ये निष्कर्ष नदारद था) : सर्वेक्षण में शामिल लगभग 50 प्रतिशत मतदाता राहुल गांधी के इस आरोप से सहमत हैं कि अडाणी समूह के साथ मोदी सरकार तरजीही बरताव कर रही है, सिर्फ एक तिहाई मतदाता ही इस आरोप से सहमत नहीं थे. मतदाताओं की एक बड़ी तादाद को विश्वास है कि हिंडनबर्ग रिपोर्ट में अडाणी समूह के बारे में जो आरोप लगाए गए हैं वे सही हैं. तीसरी बार सरकार बनाने की मोदी की मंशा में विपक्ष के लिए खटाई डालने का मौका भी इसी बात में छिपा है.
तीसरी बात ये कि उत्तर प्रदेश विपक्ष के लिए अब भी दुर्जेय बना हुआ है. दोनों ही सर्वेक्षण से ये बात निकलकर आती है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी ना सिर्फ 2019 की अपनी बड़ी जीत दोहराने जा रही है बल्कि इस राज्य में जहां बीजेपी ने 2014 के बाद कोई भी बड़ा चुनाव नहीं गंवाया, उसकी सीटों की संख्या भी 62 से (सहयोगी दलों के साथ 64) आगे बढ़ने वाली है. सर्वेक्षणों का अनुमान कहता है कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी का वोट शेयर के अधिकांश पर कब्जा होगा और ऐसे में समाजवादी पार्टी(एसपी), कांग्रेस तथा राष्ट्रीय लोकदल(आरएलडी) का गठबंधन, जो अभी जमीनी शक्ल अख्तियार नहीं कर पाया है, बीजेपी के टक्कर का नहीं. बेशक सर्वेक्षण के तथ्यों से ये झांकता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता की बातें कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढ़ाकर कही जा रही हैं. फिर भी, उत्तर प्रदेश में इंडिया गठबंधन की राह, अगर इसके नेता ओबीसी के निचले तबके तथा दलितों को साथ में लेते हुए ज्यादा व्यापक राजनीतिक तथा सामाजिक गठबंधन नहीं बना लेते, तो बहुत कठिन होने जा रही है.
2024 की चुनावी दौड़ का मैदान अभी खुला हुआ है..
इस सिलसिले की आखिरी बात ये कि इंडिया गठबंधन का भविष्य कांग्रेस के प्रदर्शन पर निर्भर करता है. दोनों ही सर्वेक्षणों में कांग्रेस को महज 65-75 सीटें मिलने की बात कही गई है. फिर भी, इंडिया गठबंधन के घटक दलों में सिर्फ कांग्रेस है जिसके पास आगे बढ़ने के अधिकतम अवसर हैं. इन सर्वेक्षणों से पता चलता है कि कांग्रेस राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक, उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश में अच्छी स्थिति में नहीं है जबकि इन राज्यों में सभी या फिर ज्यादातर सीटों पर उसका बीजेपी से सीधा मुकाबला है. कांग्रेस जब तक अपनी सीटों की संख्या में अच्छा-खासा इजाफा नहीं करती, इंडिया गठबंधन बीजेपी को फिर से सत्ता में आने से नहीं रोक सकता भले ही तृणमूल कांग्रेस(टीएमसी), द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम्, जनता दल(युनाइडेट), और राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) चाहे जितना बेहतर प्रदर्शन कर लें. ये बात ठीक है कि दोनों ही सर्वेक्षणों में कांग्रेस को इन राज्यों में कुछ सीटों की बढ़त बतायी गई है ( मध्यप्रदेश में 5-6 सीटें, राजस्थान में 0-4 सीटें, कर्नाटक में 5-7 सीटें). मिसाल के लिए, राजस्थान तथा मध्यप्रदेश में कांग्रेस पर बीजेपी की बढ़त कम हुई है. साल 2019 में राजस्थान में बीजेपी को कांग्रेस पर 25 प्रतिशत की बढ़त हासिल थी जबकि हाल के सर्वेक्षण में यह घटकर 8 प्रतिशत पर आ गई है और मध्यप्रदेश में 10 प्रतिशत पर. कांग्रेस को 100 से ज्यादा सीटें ( आदर्श स्थिति होगी कि कांग्रेस 125 सीटें जीते) जीतनी होंगी तभी इंडिया गठबंधन सरकार बनाने की वास्तविक स्थिति को पहुंच सकेगा.
साल 2024 के लोकसभा चुनाव की दौड़ का मैदान अभी खुला हुआ है बशर्ते मुंबई में जुटे इंडिया के नेतागण अपने अंदरूनी मसले जल्द से जल्द सुलझा लें और बाहरी चुनौतियों तथा अवसरों पर नजर जमाए.
(योगेंद्र यादव जय किसान आंदोलन और स्वराज इंडिया के संस्थापकों में से एक हैं और राजनीतिक विश्लेषक हैं. उनका ट्विटर हैंडल @_YogendraYadav है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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