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Sunday, 3 November, 2024
होममत-विमतभले ही 2021 एक बुरा साल था लेकिन खराब वक्त में भी उसने खुश होने के कई मौके दिए

भले ही 2021 एक बुरा साल था लेकिन खराब वक्त में भी उसने खुश होने के कई मौके दिए

2021 से छुटकारा पाकर हम खुश भले हो रहे हों मगर यह न भूलें कि उसमें खेलों से लेकर उद्यमिता तक और कल्याणकारी योजनाओं से लेकर इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास तक कई सकारात्मक बातें भी हुईं.

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किसी ने कहा कि 2021 के बारे में सबसे अच्छी बात यह है कि वह गुजर गया. इस तरह के कटाक्ष की वजह समझी जा सकती है, हालांकि इस बीते साल के वायरस का खौफ नये साल में भी दिख रहा है. इसके बावजूद, बीते साल की सकारात्मक बातों की अनदेखी ठीक नहीं होगी. तो शुरुआत खेलों से ही करें.

क्रिकेट में तो यह साल भारत के लिए सबसे बढ़िया साल रहा ही, क्रिकेट के सभी फॉर्मेट में भारतीय टीम का प्रदर्शन बढ़िया रहा. ओलंपिक में भी भारत ने अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. जीते गए पदकों की संख्या भले अभी भी कम ही है मगर हॉकी में उसका पुराना फॉर्म लौटता दिखा. ट्रैक-एंड-फील्ड में नयी उपलब्धियां हासिल हुईं, बैडमिंटन में दबदबा बनाए रखा, कुश्ती (खासकर महिला वर्ग में), भारोत्तोलन, शूटिंग, तीरंदाजी, मध्य दूरी की दौड़ और गोल्फ में भी आशाजनक प्रदर्शन किए.

वैसे, अभी रास्ता लंबा है, खासकर फुटबॉल जैसे खेलों में जिनमें काफी दमखम, ताकत और कौशल की जरूरत होती है. यानी अभी बहुत कुछ करना बाकी है.

इसके बाद शेयर बाजार को देखें. ‘फाइनांशियल टाइम्स’ ने ‘एमएससीआई’ सूचकांकों का हवाला देते हुए कहा कि हाल के वर्षों में विकासशील देशों में शेयर बाज़ारों की स्थिति कमजोर रही है लेकिन भारत में ऐसा नहीं हुआ है. बल्कि, लगातार तीन वर्षों से सेंसेक्स में दहाई अंक वाली वृद्धि हो रही है. 2008 के वित्तीय संकट के बाद ऐसा एक ही बार हुआ है.

तीसरी सकारात्मक बात है- देश में उद्यमशील प्रतिभाओं का भंडार. यह कोई नयी बात नहीं है. पिछले तीन दशक से भारत ने प्रथम पीढ़ी के सुनील मित्तल और उदय कोटक सरीखे उद्यमियों, सॉफ्टवेयर और फार्मा सेक्टरों में कई अग्रणी हस्तियों, और ऑटो सेक्टर में मुंजाल बंधु जैसे देसी उद्यमियों को उभारा. इन्होंने और इनके जैसे दूसरों ने उन सेक्टरों को मजबूती दी जिनके बूते वृहत अर्थव्यवस्था आगे बढ़ी.

अब देखने वाली बात यह होगी कि आज उभरते सेक्टरों (बिजली से चलने वाले वाहन, ‘ग्रीन’ ऊर्जा, इलेक्ट्रोनिक समान के उत्पादन, खुदरा कारोबार) और टेक्नोलॉजी आधारित यूनिकॉर्न कंपनियों में जो अग्रणी भूमिका में हैं वे लायक उत्तराधिकारी साबित होते हैं या नहीं. यह इस पर निर्भर करता है कि उनके उपक्रम व्यवसाय के मजबूत नियमों-कायदों पर आधारित हैं या नहीं, पिछले दशकों में रियल एस्टेट, इन्फ्रास्ट्रक्चर, विमानन के क्षेत्रों में आगे बढ़े मगर विफल रहे उद्यमियों जैसे तो नहीं हैं.


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चौथी बात यह है कि जनकल्याण योजनाओं का लाभ सिर्फ नहीं तो मुख्यतः टेक्नोलॉजी की मदद से लक्षित तबकों तक सीधे पहुंचाने की सरकार की क्षमता का जिक्र भी जरूरी है. इसका श्रेय सबसे पहले प्रधानमंत्री और सरकारी कर्मचारियों तथा टेक्नो उद्यमियों को जाता है जिन्होंने इन योजनाओं को लागू किया. काश बेहतर बुनियादी शिक्षा और जन स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्रों में भी ऐसा कुछ किया जाता, जिसकी कमी के चलते देश पिछड़ रहा है.

पांचवीं सकारात्मक बात यह है कि सुरक्षा को लेकर बढ़ती चुनौतियों वाले इस देश में रक्षा उत्पादन की सक्षम व्यवस्था विकसित करने के निराशाजनक दशकों के बाद अधिक सफल दौर की शुरुआत की जा सकी है. हल्के लड़ाकू विमानों और हेलिकॉप्टरों का उत्पादन शुरू हो गया है. भारत ने पहला विमानवाही पोत देश में बना लिया है और वह परमाणु ताकत से लैस अपनी दूसरी पनडुब्बी भी कमीशन करने जा रहा है.

इसके अलावा कई तरह की मिसाइलें भी तैयार कर ली है. कामयाबी की इन कहानियों का आधार उन सप्लायर कंपनियों में है, जिनमें से कई मझोले और लघु क्षेत्र की हैं. इनमें से ज्यादातर में उत्पादन चक्र अभी ही काफी लंबा है, जिसे छोटा किया जाना चाहिए. लेकिन दुनिया में रक्षा उपकरणों का दूसरा सबसे बड़ा आयातक, भारत अब एक अहम उत्पादक देश बनने की ओर बढ़ रहा है.

अंत में, देश के भौतिक इन्फ्रास्ट्रक्चर में बड़े निवेशों के नतीजे हमें अगले दो साल में दिख सकते हैं, जब माल ढुलाई के तेज गति वाले पश्चिमी रेलवे कॉरीडोर का निर्माण पूरा हो जाएगा और नये एक्सप्रेस-वे तथा हाइ-वे के बूते आवागमन की बेहतर सुविधा उपलब्ध होगी.

बिजली की कमी वाला युग खत्म हो चुका है (हालांकि इस सेक्टर को नीची दरों का सामना करना पड़ रहा है), दूरसंचार क्षेत्र में क्रांति हो चुकी है, इंटरनेट तथा मोबाइल बैंकिंग और दूसरी ‘फिन-टेक’ सेवाओं ने करोड़ों लोगों का जीवन आसान बना दिया है. हवाई यात्रा अब पहले की तुलना में सस्ता हो गया है और जल्दी ही अधिक तेज, अधिक आरामदेह सवारी रेलगाड़ियां दौड़ने लगेंगी. इसलिए, ‘ईज़ ऑफ लिविंग’ जैसा मुहावरा चल पड़ा है.

जो देश अपनी कमजोरियों पर अक्सर या आम तौर पर ध्यान देता रहता है उसे अपनी ऐसी सकारात्मकताओं की याद दिलाने का बेहतर मौका नये वर्ष की शुरुआत के अलावा दूसरा क्या हो सकता है.

(बिजनेस स्टैंडर्ड से विशेष प्रबंध द्वारा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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