पाटीदार नेता का एजेंडा खतरनाक और सीमित है. हार्दिक पटेल उपमहाद्वीप के उन भड़काऊ नेताओं की सूची में आ गए हैं, जिन्होंने किसी नस्लीय, धार्मिक या जाति-समूह की शिकायतों को भुनाया और उसे यातना की तरह पेश किया.
गुजरात चुनाव की मुख्य बात तीन युवा नेताओं का उभरना थी. इनमें से दो, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर अब विधायक हैं, हालांकि तीसरे और सबसे अधिक लोकप्रिय हार्दिक पटेल अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाए.
मैंने उनके एजेंडा के खतरों और उनके राजनीतिक कौशल और प्रतिभा की कमी को अगस्त 2015 में लिखे इस आलेख में दिखाया था, जब उनका पटेल आंदोलन अपने चरम पर था.
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि किस तरह हार्दिक पटेल के उदय ने जन-भावनाओं और टिप्पणियों को इस आधार पर ध्रुवीकृत किया कि आप नरेंद्र मोदी को पसंद करते हैं या नहीं?
अगर आप मोदी को पसंद करते हैं, तो पटेल आंदोलन अहमद पटेल या अरविंद केजरीवाल या फिर दोनों द्वारा किया गया एक बृहत् षडयंत्र है.
अगर आप मोदी के खिलाफ हैं तो हार्दिक पटेल नया क्रांतिकारी है, भगत सिंह की तरह जो इस बार भारत को भाजपा और मोदी से बचाकर दूसरी आजादी दिलाने आया है.
दोनों ही गलत और खतरनाक है.
किसी भी मसले को उसके वजन के आधार पर देखना चाहिए. यह बिना किसी वास्तविक मांग वाला एक खतरनाक आंदोलन था. आगे आरक्षण की कोई संभावना नहीं है और पटेलों को तो इसकी सबसे कम जरूरत है. हार्दिक पटेल के तरीकों, भाषण या अदा में कुछ भी ऐसा नहीं है, जो उन्हें सामाजिक सशक्तिकरण या प्रजातांत्रिक राजनीति की नयी आवाज़ सिद्ध कर सके.
वह एक भड़काऊ नेता हैं, जो बंदूके लहराता है, लगभग हिंसक वक्तव्य और चलन करता है और वापस एक पूरी तरह कालबाह्य राजनीति की गोद में जा गिरता है. वह सेकुलर मुखौटा नहीं हो सकते.
और वह इतने मौलिक हैं कि किसी के पालतू या मोहरे भी नहीं हो सकते. उनके बारे में सबकुछ मुझे चीखकर बताता है कि वह राज ठाकरे का पटेल-प्रारूप हैं. राज ठाकरे को दस लाख की भीड़ के साथ सोचकर देखिए.
इस उपमहाद्वीप में ऐसे भड़काऊ नेताओं को बनाने की खासियत है, जो एक सुस्थापित नस्लीय, धार्मिक या जाति-समूह की वास्तविक या काल्पनिक समस्याओं को भुनाकर उन्हें जुल्म और शोषण की जटिल कहानी में बदल सकें.
इन लोगों में मैंने संत जनरैल सिंह भिंडरावाले, जाट नेता महेंद्र सिंह टिकैत, पाकिस्तान में एमक्यूएम के अल्ताफ हुसैन, गोरखा नेता सुभाष घीसिंग और गुज्जर नेता कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला (अवकाशप्राप्त) को देखा है. इन लोगों ने अपने समूहों का प्यार और आदर तो बहुत जल्दी पाया, लेकिन उनके लिए आखिरकार कुछ नहीं कर सके. उन्होंने अपने बुझने के पहले केवल तबाही और हिंसा के निशान छोड़े.
मुझे डर है कि युवा हार्दिक पटेल का भविष्य भी ऐसा ही न हो. इसीलिए, किसी को भी, चाहे वह मोदी का मित्र हो या शत्रु, हार्दिक पटेल में भविष्य नहीं दिखना चाहिए.
शेखर गुप्ता दिप्रिंट के एडिटर इन चीफ हैं.