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Saturday, 21 December, 2024
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हमारे लिबरल्स को अपने काम निपटाने के लिए ही कॉर्पोरेट फंडिंग भाती है, लाल किले के लिए नहीं

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वामपंथी उदारवादियों को कार्पोरेट से प्रायोजकों की भीख मांगने को लेकर कोई समस्या नहीं है जो कि उनके साहित्यिक समारोहों से लेकर वाइन और चीज तक की पार्टियों का आयोजन करते हैं।

हले हमने पखवाड़े की सुगन्ध में एक गुजरती हुई धुन का वर्णन किया था। नए उन्मादित डिजिटल भारत में यह सुगन्ध 48 घंटे और बेहतर होगी। जैसा कि मोदी सरकार ने देश के गौरव, लाल किले को एक मारवाड़ी व्यापारी के हाँथों में सौंप कर इसका अपमान किया है। थोड़े से शोध इस ध्रुवीकृत बहस के सात सिद्धान्तों की पुष्टि करते हैः

1). कोई भी व्यक्ति तथ्यों से भ्रमित नहीं होना चाहता: इसलिए वह तथ्यों की जांच ही नहीं करता है। इस विरासत, लाल किला, को कार्पोरेट के हाँथों में सौंपने को लेकर जो कुछ भी लिखा गया है उसको पूर्णताय पढ़ें, साथ ही उसकी सबसे महत्वपूर्ण नामित पंक्तियों को भी। इन सभी से आपको पता चलेगा कि सरकार कुछ विवरणों को छुपा रही है । यह पूरा घटनाक्रम उठाने और चुनने को लेके है। इस पूरी बात से पता चलता है कि देश के स्मारकों को चुनकर ब्रांडेड किया जा रहा है जैसे – डालमिया लाल किला और कौन जानता है कि टाटा ताज महल और विप्रो चित्तौड़गढ़ भी आ जाये।

राष्ट्रवादी उल्लंघन सबसे संक्रामक वायरस है और मैंने बहुत पहले ही इसका पता लगा लिया। तब मेरे संवाददाताओं ने इसको प्रसारित किया और मैंने केवल कुछ जांच पड़ताल कर ली थी। आलस से भरी चीज़े पर्यटन मंत्री के.जे. अल्फोन्स को इंगित करती है। लेकिन मैं देर रात तक गूगल पर सर्च करता रहा। मैं अपने आप को पर्यटन मंत्रालय की वेबसाइट पर ले गया जहाँ मुझको www.adoptaheritage.in एक पोर्टल मिला। इससे मुझको चयनित स्मारकों को “स्मारक मित्र” के रूप में कार्पोरेटों के हाँथों में सौंपने की योजना का पता चला। इन स्मारकों को भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण द्वारा चुना जाता है। यहाँ पर मैंने इसके बारे में बहुत महत्वपूर्ण जानकारी एकत्र कर ली।

कार्पोरेटों के हाथों में सौंपने के लिए लगभग सौ ऐतिहासिक स्मारकों को चुना गया था। इन स्मारकों को हरे, भगवे और नीले रंग की तीन श्रेणियों में सूचीबद्ध किया गया था। हरे स्मारकों की सूची में (लाल किला, ताजमहल, फतेहपुर सीकरी, चित्तौड़गढ़) में से एक को बोली लगा कर कार्पोरेट के हाँथों मे सौंपा जा चुका है। वेबसाइट आपको उससे भी अधिक जानकारी देगी जितना आप सरकार से उम्मीद करते हैं। यहाँ पर आपको पता चलता है कि 323 आवेदन प्राप्त हुए हैं, जिनमें से चार को अनुमोदित किया जा चुका है। यदि आप भी आवेदन करना चाहते हैं तो यह आपको चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ने के लिए निर्देशित भी करती है। यहाँ पर जो कुछ भी है सब छुपा हुआ, रहस्यमय और द्वेषपूर्ण है। अब मैं अल्फोन्स को फोन कर सकता हूँ।

2). अगर कोई भी पागलों जैसा नहीं सोचता है तो किसी भी राजनीतिक दल का देश के इन धरोंहरों पर एकाधिकार नहीं है – कांग्रेस इस नीति पर बिक्री का विरोध करके इस पर हमला कर रही है। अब अगर नाराज कांग्रेसी किसी को फोन करना चाहते हैं तो उनको एनडीए के पर्यटन मंत्री नहीं बल्कि अपने समय के, पर्यटन मंत्री अंबिका सोनी को फोन करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से वे मुर्ख नहीं दिखेंगे।

2007 में, मैंने ताजमहल पर एनडीटीवी के लिए “वॉक द टॉक रिकार्ड किया, उन्होंने मुझे भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण द्वारा ताजमहल के साथ की जाने वाली निम्न स्तर की नौकरशाही के बारे में बताया, जिससे यह स्मारक संघर्ष कर रहा था, जो टाटा द्वारा स्मारक पर की जा चुकी बहाली को तहस नहस करने के बारे में बताया। यदि आप अधिक जानकारी चाहते हैं तो इंडिया टुडे की Kaveree Bamzai को जरूर देखें, किस प्रकार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट से यह पूछने के लिए पहुँच गए थे कि क्या ताजमहल में बदलाव करने के लिए टाटा को मंजूरी दे दी गई है कि नहीं। क्योंकि, उनके अनुसार, न्यायालय पूरे ताज परिसर के लिए जिम्मेदार थी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के प्रमुख ने इस स्थिति से निपटने का बहुत प्रयास किया लेकिन वह असफल रहे। ताजमहल की मरम्मत के लिए विशेषज्ञों को बुलाया गया था जिसके लिए टाटा को 2 करोड़ रूपये और बहुत सारा समय लगाना पड़ा। इन विशेषज्ञों में Sir Bernard Fieldon और Milo Beach शामिल थे। इसलिए, मनीष तिवारी कृपया अंबिका सोनी से अपने दस्तावेजों की अदला-बदली कर लें।

3). करीब एक दशक पहले राजनीति अधिक सभ्य थी, शायद ऐसा इसलिए है क्योंकि पुराने राजनेता अधिक सभ्य थे और उस समय ट्विटर का आविष्कार नहीं हुआ था। प्रतिष्ठित राष्ट्रीय स्मारकों की देखभाल के लिए कार्पोरेटों को इसमें शामिल करने की योजना वाजपेई सरकार द्वारा 2001 में प्रारंभ की गई है। ताजमहल की देखभाल की जिम्मेदारी को अपने हाँथों में लेने की खुशी का जश्न मनाते हुए अनंक कुमार और रतन टाटा ने ताजमहल से एक साथ फोटो पोस्ट की थी। कांग्रेस ने बस अपने पहले के विचारों को जारी रखा था। ऐसी कोई भी चीज संभव है क्या?

4). भारतीय वामपंथी सरकार से प्यार करते हैं: वे सरकार को अपनी जान से ज्यादा चाहते हैं; लेकिन आधार पे उल्लेख कराने से विफर जाते हैं। लेकिन हर जगह वे भारत सरकार और उसी की नौकरशाही को पसंद करते हैं जिसको वो बुरा भला कहते हैं। संस्कृति, इतिहास और पुरातत्व पर राज्य का एकाधिकार क्यूं होना चाहिए ? निजी पूँजी, उद्यम और कार्यक्षमता इसमें शामिल क्यों नहीं की जा सकती? निश्चित रूप से, उन्हें (सभी प्रायोजकों द्वारा भुगतान किया जाता है) जिसमें “बुरे” कॉरपोरेट्स जो कि उनके साहित्यिक समारोहों से लेकर वाइन और चीज तक की पार्टियों का आयोजन करते हैं, और उनमें उपहार, यात्रा अनुदान, ट्रैक -2, सामाजिक विज्ञान सम्मेलन जैसी चीजे सम्मलित होती हैं। बौद्धिक-उदारवादियो में फोर्ड, मैकआर्थर, रॉकफेलर, बिल और मेलिंडा गेट्स और हमारे टाटा जैसे अन्य कॉर्पोरेट द्दुआरा छात्रवृत्ति, सम्मेलन, नए विश्वविद्यालय और यहाँ तक कि स्वतंत्र नए मीडिया को वित्त पोषित करने के कार्य किये जाते है। यह सब विधिसम्मत है क्योंकि यह हमारी तरफ आ रहा है जिसके हम लोग योग्य है। लाल किले की बात की बात की जाय,“वतन की आबरू खतरे में हैं सावधान हो जाओ” (राष्ट्र की प्रतिष्ठा दांव पर है, युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। उन गुस्साए हुए लोगों से पूछिए, जिन्होंने आखिरी बार अपनी स्कूल बस से लाल किले पर जाकर लॉलीपाप चूसा था और आइसक्रीम खाई थी।

5).एसएसआई द्वारा की गई गड़बड़ को शिकायत करने वाले बहुत से अभिजात वर्ग के लोग जान गए होते तो हाल ही में अपने स्मारकों पे नहीं जाते। संभव है कि हर जगह खुले शौचालय पर रोक लगाई गई हो लेकिन हम्पी और मामलपुरम समेत अधिकांश स्मारकों में नहीं, वहाँ पर खुली हवा के शौचालय अभी भी मौजूद हैं। उन शौचालयों की दीवारों में प्यार की दास्तां लिखी होती है कभी-कभी लोग चाकू का प्रयोग करके अपनी प्यार की दास्तां दीवारों पर लिखते हैं। पत्थरों पर चलते हुए बेतवा नदी के ऊपर बने शानदार पुल के माध्यम से महाशिला को पार करें, सुबह पुराने मंदिर ओरछा के सामने बैठकर खुद को मंत्रमुग्ध करें – लेकिन कृपया गंध से बचे। एएसआई के समूह ने कोणार्क में सूर्य मंदिर के जरिए पैसा लेके एक अभियान चलाया था जिसने लाल किले में सेना के लिए बैरकों का निर्माण करवाया था और एक प्रशिक्षित संग्रहालय विशेषज्ञ, मेरे सहयोगी राम लक्ष्मी ने मुझे नालंदा में एक छोटे से संग्रहालय के बारे में बताया कि इसमें एक थका हुआ चौकीदार, “धूलदार गिलास, मकड़ी के जाले, टूटी-फूटी दीवारें” हैं। वह कहती हैं कि वहाँ 12 वीं शताब्दी का एक छोटा सा कटोरा चावल से भरा रखा हुआ था। इसके टेक्स्ट लेबल पर “जले हुए चावल” लिखा हुआ था। यह 12 वीं शताब्दी का सबसे शक्तिशाली आर्टिफैक्ट का वर्णन है। यदि भारतीय अभिजात वर्ग के लोग अपने निजी स्मारकों पर प्रायः जाते, तो वो भी अच्छी गुणवत्ता वाले इकॉनमिक-स्मारिका- मग,कप, चाभियों के गुछो की जंजीर ,प्रतिकृतियों, से वंचित होते, इस प्रकार कुछ भी नहीं जैसे “मेरी माँ अजंता गई और वहा से उसे मेरे लिये ये घटिया टी-शर्ट मिली”। और कुछ भी नही, हमारे स्मारक सीपीडब्ल्यूडी की संपत्तियों की तरह चल रहे है ।

6) वे विदेशों में स्मारकों को देखते हैं लेकिन कुछ तथ्यों को वे भूल जाते हैं: इटली दुनिया में यूनेस्को धरोहर स्थलों की सबसे बड़ी विरासत है। कैश-तंगी की वजह से, सरकार बहाली और रखरखाव के लिए, ब्रांडिंग अवसरों के बदले में ज्यादातर फैशन ब्रांडों के हाथो इन निगमों को सौंप रही है। टोड के पास कोलोसियम , वेनिस में डीजल कारियाल्टो ब्रिज है। जब आप ट्रेविस फाउंटेन पर जाएं तो फेंडी (विदेशी फैशन ब्राण्ड) के प्रतीक चिन्ह और वेनिस के बड़े महल में प्राडा (विदेशी फैशन ब्राण्ड) के प्रतीक चिन्ह को देखें। मुझे पता है, इस बिंदु पर भारत में इतालवी ज्ञान का उल्लेख करना अफसोस की बात नहीं है। लेकिन दीवारों के लिए शिकायत बीजेपी वालों से करनी चाहिए, न कि “उदारवादी”आलोचकों से।

7) और अंत में और भी बुरा महसूस कराने के लिए। कई आलोचकों ने अपनी आलोचना के माध्यम से डालमियां ग्रुप को लाल किला देने के खतरों को बताते हुए कहा है कि डालमियां उन बड़े और पेचीदा परिवारों में से एक है जिनके दादा और चाचाओं पर बाबरी को मिट्टी में मिलवा देने के संगीन आरोप लगाए गए थे। चूंकि ऐसा देखा गया है कि वे भारत के स्वदेशी पुरातात्विक सर्वेक्षण और सरकार द्वारा चलाए जा रहे संग्रहालयों से भी प्यार करते हैं तो इसलिए उनको राष्ट्रीय संग्रहालय, दिल्ली के डायरेक्टर जेनरल डॉ बुद्ध रश्मि मणि से मिलना चाहिए. एएसआई के रिटायर्ड एडिशनल डायरेक्टर जेनरल डॉ मणि को 2016 में यह पद 70 साल की आयु पहुंचने, या “आगे के ऑर्डर्स आने तक” के लिए मिला ।

डॉ मणि की प्रसिद्धि का कारण: डॉ मणि ने अयोध्या में हुई पुरातात्विक खुदाई का नेतृत्व किया जिसने राम मंदिर के अस्तित्व को “साबित” कर दिया था।

इस लेख को डॉ बुद्ध रश्मि मणि के सही पद को दर्शाने के लिए अपडेट किया गया है। त्रुटि के लिए क्षमा याचना ।

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