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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतराहुल गाँधी से 15 मिनट की डिबेट में साबित हो जाएगा कि मोदी के बल्ले में नहीं विराट कोहली वाला दम

राहुल गाँधी से 15 मिनट की डिबेट में साबित हो जाएगा कि मोदी के बल्ले में नहीं विराट कोहली वाला दम

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मोदी आत्मभाषण में तो अच्छे वक्ता हो सकते हैं लेकिन वे बिना लिखे हुए किसी भी भाषण में काफी खराब हैं।

मने चुटकुलेबाजी, बढ़ाचढ़ा कर लगाए गए आरोप, बेवकूफ जोक्स और कुछ नई चुनौतियों को देखा है। इसी बात को लेकर नरेन्द्र मोदी और राहुल गाँधी ने कई बार एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी की है लेकिन फिर भी उन्होंने एक दूसरे से कभी भी सीधे बहस नहीं की है।

हाल ही में, राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी को कर्नाटक चुनाव से पहले 15 मिनट के लिये बहस की चुनौती दी थी।
आपको क्या लगता है मोदी के लिए यह चुनौती स्वीकार करना बच्चों का खेल होगा। लेकिन नहीं। चुनौती स्वीकार करने के बजाय मोदी ने बस इतना कहा कि ’मैं बहुत ठीक हूँ।’

मोदी ने चुटकुला मारते हुए कहा, “मैं कामदार हूँ, वह नामदार है, मैं उनसे कैसे बहस कर सकता हूँ?” इसके बजाय, मैं राहुल गाँधी को कर्नाटक सरकार की उपलब्धियों के बारे में 15 मिनट तक बोलने की चुनौती देता हूँ।“

इसके साथ ही यह मुद्दा एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया था और मोदी के समर्थकों द्वारा तब तक राहुल का मजाक उड़ाया गया जब तक उनको यह बात याद रही।

लेकिन जरा सोचें कि भारत के सबसे लोकप्रिय वक्ता ने एक ऐसे राजनेता पर बहस की है जिसको लोकप्रिय रूप से मजाक बनाते हुए पप्पू के नाम से जाना जाता है। चाय वाले से प्रधानमंत्री बने भारत के सबसे लोकप्रिय राजनेता, जिसके चार साल के शासन को देश ने देखा है,एक ऐसे राजनेता पर बहस कर रहे हैं जिसका 60 साल का राजवंश है। निश्चित रूप से, अगर मोदी राहुल गाँधी को बहस में हरा देते हैं तो ऐसी उम्मीद है कि इससे भाजपा के पक्ष में मतदाताओं का सकारात्मक बदलाव आयेगा? यह उनके समर्थकों के लिए एक सपना होगा।

सब कुछ बहुत आसान लगने के बावजूद भी ऐसा नहीं हो रहा है। ऐसी क्या बात है जो इन दोनों राजनेताओं को एक सार्वजनिक मंच पर सीधे एक-दूसरे से जुड़ने से रोकती है?

आइये जानें वास्तविकता 

किसी एक भाषा में तो मोदी अच्छे वक्ता हो सकते हैं लेकिन वह कोई भी बिना लिखा हुआ भाषण देने में काफी खराब हैं। असल में अपना साक्षात्कार देना पहले से ही उनके लिए काफी चुनौतीपूर्ण है इसलिए बहस करना तो बिलकुल असंभव ही है। मोदी अपने गले में झाँकने के मामले में काफी चालाक है। करण थापर के साथ होने वाला पाँच मिनट का साक्षात्कार ही उनको पानी मँगवाने के लिए काफी था। एक बार एक पत्रकार ने उनसे एक असहज सवाल पूछ लिया था इसके बाद उन्होंने अपनी हेलीकॉप्टर की पूरी यात्रा मौन व्रत रखकर गुजार दी थी। यह दो कारण उनको यह महसूस करवाने के लिए पर्याप्त थे कि जनसंपर्क और छवि निर्माण के लिए संवाद बहुत ही खतरनाक है। विशेष रूप से यदि आप उनके बारे में कुछ नकारात्मक विचार रखते हैं। उसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और ऐसी गलतियाँ दोबारा न हों इसके लिए वे हमेशा बहुत ही सतर्क रहते हैं।

प्रधानमंत्री बनने के बाद शायद ऐसा एक बार भी नहीं हुआ है कि मोदी द्वारा बिना लिखा हुआ भाषण दिया गया हो। इसके बजाय, उन्होंने अपने छवि निर्माण पर हजारों करोड़ रुपए खर्च किए हैं। जनसम्पर्क की सुंदरता ही आपको यह विश्वास दिला सकती है कि वास्तव में क्लब के औसत स्तर का बल्लेबाज (मोदी) अगला विराट कोहली है। दर्शकों को तब तक मूर्ख बनाया जा सकता है जब तक कि उनकी गलतियों पर उंगली न उठाई जाए। ऐसा होने के लिए, उनके द्वारा दिए गए भाषण पर उंगली उठाई जानी चाहिए, जिसमें इनकी औसत बल्लेबाजी (प्रदर्शन) दिखती है। इस तरह लोग वास्तविक तस्वीर देखेंगे। अन्यथा, यह सिर्फ दो विभिन्न चित्र हैं- एक उठाई गई उंगली, दूसरा विराट कोहली।

बहस से बचकर मोदी जो भी कर रहे हैं वह ठीक ही है। मोदी हमेशा अपने आलोचकों से स्वयं को दूर रखते हैं। बहस या भाषण की स्वीकृति का मतलब अपनी ओर सवालो को आमंत्रित करना है। जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए किसी नेता की छवि साफ-सुथरी होनी चाहिए।

वे बहस से दूर भागेंगे क्योंकि उनके द्वारा दिया गया बयान पूर्ण रुप से सत्य होना चाहिए। उनके द्वारा किए गए संपूर्ण कार्यों को निरंतर अच्छे कामों के रूप में देखा जाना चाहिए।

राहुल गाँधी के साथ की गई 15 मिनट की बहस मोदी की लोकप्रियता को धूमिल कर सकती है। उनके पास गिनाने के लिए अपनी उपलब्धियाँ कम हैं लेकिन विपक्ष के पास तथ्य अधिक हैं। इसलिए मोदी की लोकप्रियता और विश्वसनीयता के गुब्बारे को फोड़ने के लिए केवल एक ही सवाल काफी होगा।

व्यंग्यपूर्ण ढंग से, जब बात आती है बहस की, तो कर्नाटक के अन्य उम्मीदवार उनसे भी बदतर स्थिति में नजर आते हैं। प्रत्येक उम्मीदवार के पास अपनी बुद्धिमत्ता और सत्यनिष्ठा की कमी के कारण आत्मनिरीक्षण और स्वीकृति की क्षमता नहीं है। प्रत्येक उम्मीदवार के पास अत्यधिक लोगों से जनसंपर्क स्थापित करने के लिए पर्याप्त धन भी नहीं है। यही कारण है कि उन्होंने अपने प्रिय नेता की छवि को सुरक्षित रखने के लिए संबित पात्रा जैसे नेताओं को शामिल किया है।

भाजपा के मुख्यमंत्री उम्मीदवार येदियुरप्पा अपनी पार्टी में खनन माफिया रेड्डी की वापसी के कारण भ्रष्टाचार के आरोपों तले दबे हुए हैं।

मुझे खुशी होगी, यदि मोदी द्वारा इस वाद-विवाद को स्वीकार करके मुझे गलत साबित किया जाए। यदि हमें ‘मोदी मोनोलॉग’ (मोदी के आत्मभाषण) से मुक्त कर दिया जाए तो यह लोकतंत्र के लिए एक महान दिन होगा।

 

ध्रुव राठी एक एक्टिविस्ट और यूट्यूबर हैं, विचार निजी हैं

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