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Friday, 15 November, 2024
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प्यारी हेमा जी! मोदी जी से सीखिए: शोक के वक्त चुप रहते हैं…

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कमला मिल की आग का कारण हेमा मालिनी ने अत्यधिक जनसंख्या को बताया. कहीं बेहतर होता अगर वह रिपोर्टर के सवाल को नजरअंदाज कर देतीं और चुप रह जातीं.

मैं चाहती हूं कि हेमाजी ह्वाह्ट्सएप पर मोदीजी से ‘गुड मॉर्निंग जी’ कहना सीख लें. वह उनको केवल अपनी नकल करने को कहेंगे, एक शब्द भी बोलने को नहीं. बस, उनकी तरह हो जाइए, हेमाजी. इससे मतलब नहीं कि सरकारी अस्पतालों में कितने बच्चे मरते हैं, बस चुप रहिए. कोई फर्क नहीं पड़ता कि धर्म की वजह से कितने लोगों की जानें गयीं, बस शांत रहिए. कोई बात नहीं कि आग कहां लगी है, बस उनकी तरह हो जाइए. कुछ भी मत कहिए. कुछ भी हो जाए, चुप रहिए. इसलिए, क्योंकि जब भी आपके सुंदर मुंह से जटिल और दुरूह बोली झड़ती है, तो लोग आपको बुरा ही कहते हैं और मुझे इससे नफरत है.

आपको खुद पर फिल्माया गाना याद हैः क्या खूब लगती हो, बड़ी सुंदर दिखती हो? आपकी लाल पोशाक कितनी खूबसूरत थी और उस पर चमकदार हेयर बैंड. गाना कहता है, ‘क्या खूब लगती हो..’। क्या गाने के बोल थे कि ‘बहुत अच्छा बोलती हो…’.

इसलिए धैर्य…हे ‘ड्रीम गर्ल’. आपके चेहरे पर लगभग ठूंसे गए माइक्रोफोन में हरेक बार बोलने की इच्छा से उबरने का धैर्य रखना होगा.

आप जब फिल्मों में थीं, तो मैं सचमुच आपको पसंद करती थी. हालांकि, फिल्मों में आपको तैयार डायलॉग मिलते हैं, जिसे आप अपनी चढ़ती-उतरती आवाज़ में दुहराती थी. दरअसल, जय ने तो शोले फिल्म में ‘मितभाषी’ होने के लाभ पहले ही गिनाए थेः ‘बहुत ज्यादा बोलती है..।’ हम फिल्मों से जीने का सलीका सीखते हैं. आपने क्यों नहीं सीखा?

गब्बर ने भी आपके बारे में 1975 में कुछ कहा था, जहां वह इस पर आश्चर्यचकित था कि आप किस चक्की का आटा खाती हैं. कमला मिल में लगी आग का असली कारण जब आपने अत्यधिक जनसंख्या को बताया, तो शायद वह भी पूछ बैठेः ‘कौन सा नमक खाती है रे? आयोडीन की कमी लगती है’.
आपकी फिल्मों से मुझे प्यार है, लेकिन क्या भाजपा मुख्यालय वालों ने पार्टी में आते वक्त आपको दिशा-निर्देश नहीं दिए कि तयशुदा मौकों पर किस तरह के वक्तव्य देने हैं?

‘लापरवाही की वजह से, अथॉरिटी जो है परमीशन दे देते हैं…’ आपने स्वीकारा और यह शानदार है, लेकिन बीएमसी की लापरवाही मानते आप क्या भूल गयीं कि उसमें आपकी पार्टी और शिवसेना ही शामिल है? किस नेता ने भूल मानी है? केवल आपने हेमाजी, केवल आपने. मैं आपको बीएमसी मुख्यालय पर गाते हुए अपनी कल्पना में देख रही हूं—जान की कसम….खुशी हो या हो गम (दोष) ..बांट लेंगे हम आधा-आधा.

और, तभी आप कहती हैं-क्योंकि बहुत अधिक जनसंख्या भी है.

सच मानिए, तब मैं आपकी साड़ी में उलझ गयी थी, लेकिन अचानक ही सभी आहें भर रहे थें और मैं सोच रही थी कि काश मैं थोड़ा इसको पीछे कर पाती. सभी टीवी चैनल वाले उस एक पल को कितनाश लोकप्रिय बनाने वाले थे. साफ है, शशि कपूर पूरी तरह गलत थे, जब उन्होंने गाया, ‘कहते डरती हो…’.

सचमुच, जानेमन तुम कमाल करती हो. हालांकि, आप ने तब प्रायश्चित किया, जब कहा कि मुंबई शहर के ऊपर भी एक शहर होना चाहिए. मैं खुशी के मारे लगभग पागल हो गयी. बहुस्तरीय शहर तो सचमुच एक महान विचार हैं, हेमाजी. कोई इन्हें नीति-आयोग का अध्यक्ष बना दो, प्लीज.

इसके तुरंत बाद सीधा फिल्मी स्क्रिप्ट से क्लू लेते हुए उन्होंने शहरों में जनसंख्या को सीमित करने पर ज़ोर दिया. हालांकि, आपके मुताबिक शहरों में किसे रहना चाहिए? और, अगर यह अति जनसंकुल है, तो किसे जाना चाहिए?

याद है हेमाजी, जब आपकी ही पार्टी का कर्नाटक धड़ा आपको राज्य सभा से नहीं भेजना चाहता था, क्योंकि वे आपको बाहरी मानते थे. आपने कहा था कि आप पूरे देश की हैं.

तो, क्या आप उस ‘जनसंख्या’ का हिस्सा बनने के लिए वॉलंटियर कर रही हैं, जिसे ‘अगले दिन, अगले शहर” भेज दिया जाए.

कृपया मुझे आपका फैन होने पर अफसोस न करने दीजिए.

यह सचमुच जादू है, जो हेमाजी ने बलात-प्रवास (फोर्स्ड माइग्रेशन) पर रिपोर्टर्स से बात की. वे किसी और को संसद से  क्यों नहीं ढूंढ सके, जहां 543 सदस्य हैं? क्या वह रिपोर्टर जानता नहीं था कि हेमाजी ने कई फिल्मों में ‘ड्राइ-आइस’ पर नृत्य किया है? और, वह ड्राइ-आइस भी सचमुच नहीं…क्या होता अगर उन्होंने काफी अधिक कार्बन डाइऑक्साइड सांसों में ले लिया हो…क्या उनकी बात को गंभीरता से लेना चाहिए?

आखिर, वह व्याख्याता कहां है जब उसकी जरूरत है कि वह हेमाजी के बयान की व्याख्या कर कहे कि वह किसी भविष्य के सुजनन विज्ञान के बारे में हिंट नहीं दे रही थीं, न ही वह किसी पार्टी लाइन पर चल रही हैं (बैठ जा, बैठ गयी, खड़ी हो जा, खड़ी हो गयी)… हालांकि, सोशल मीडिया पर जो गुस्सा दिख रहा है, मैं निश्चित नहीं हूॅं कि हमारे बीच अब कैसा नाता रहेगा?

मैं हेमाजी, एक फैन रहना चाहती हूं और आपको कूढ़मगज कह खारिज नहीं करूंगी, लेकिन मैं तब क्या करूं, जब आपके बयान मुझे इस ठंड में पानी के नीचे खड़ा होकर यह गाने को मजबूर करें, ‘रामा-रामा गजब हुई गवा रे..’. मुझे लगता है कि आपको द्वितीय विश्वयुद्ध के उस पोस्टर से प्रेरणा लेनी चाहिए, जिसमें लिखा था ‘डैड की तरह बनो, चुप रहो’.

जैसा अमिताभ बच्चन ने आपके फैंस के लिए गाया हैः प्यार हमें किस मोड़ पर ले आया….

मनीषा लाखे एक लेखिका और फिल्म समीक्षिका हैं. 

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