भारत के कार्पोरेट प्रदर्शन और निवेश में बढ़ोत्तरी, कम से कम तीन साल तक बनी रहनी चाहिए।
पिछले सप्ताह मैंने लिखा था कि नया वित्तीय वर्ष आर्थिक सुधार का समय होगा। इस सप्ताह का यह विचार है कि कार्पोरेट प्रदर्शन में एक महत्वपूर्ण और निरंतर सुधार से व्यापक आर्थिक उन्नति में बढ़ोत्तरी होगी। लगभग 1000 सूचीबद्ध प्रतिष्ठित कंपनियों ने पहले से ही अपने प्रदर्शन को न्यूनतम स्तर तक पहुँचते देखा और अस्त-व्यस्त रहीं या पिछली कुछ तिमाहियों में सुधरी हुई संख्याओं के उतार चढ़ाव भरे संकेतों को देखा। नया साल इस बात की पुष्टि कर सकता है कि यह प्रवृत्ति और संकेत लंबे समय से कठिन अवधि से गुजर रही कई कंपनियों के लिए बहु-प्रतीक्षित अंत नहीं है बल्कि शानदार कार्पोरेट प्रदर्शन के साथ शायद केवल एक या दो साल दूर कई वर्षों की बढ़ोत्तरी का आरंभ है, जिसमें कमोडिटी चक्र में बढ़ोतरी के कारण कई कंपनियाँ कीमतों में बढ़ोत्तरी देखेंगी।
जैसा कि सभी जानते हैं कि 2008 के वित्तीय संकट के समय कॉर्पोरेट क्षेत्र प्रदर्शन के मामले में शिखर पर था, जब 1000 सबसे बड़ी सूचीबद्ध कंपनियों का सालाना मुनाफा 30 प्रतिशत से अधिक की दर से वृद्धि कर रहा था, इससे राजस्व में 20 से 30 प्रतिशत के बीच वृद्धि हुई थी। उन अवास्तविक ऊंचाइयों से पतन अपरिहार्य था, जो जारी रहा। जो अपरिहार्य नहीं था वह था पिछले कुछ वर्षों का प्रदर्शन, विशेष रूप से 2012 के बाद, जब लाभ में होने वाली वृद्धि अचानक गायब हो गई, निजी कार्पोरेट पूँजीगत व्यय छः साल तक लगातार गिरकर पाँचवे स्तर तक गिर गया, और राजस्व वृद्धि वस्तुतः लगभग शून्य तक गिर गयी। बड़े अंश के लिए यह, वृद्धि के वर्षों में की गई अति का परिणाम था, जब कंपनियों ने वित्त को लेकर अति-प्रतिबद्धता दिखाई थी, यहाँ तक कि उधारी बढ़ते बढ़ते उन परियोजनाओं में पहुँच गयी, जिन परियोजनाओं के मूल्य का आंकलन अति आशावादी था|
यह समायोजन की गंभीर अवधि है जो कुछ चरणों के बाद समाप्त हो गई। अक्टूबर-दिसंबर तिमाही के दौरान सबसे बड़ी इकाइयों की बिक्री दो अंकों में थी, लाभ वृद्धि वापस आ चुकी है, इक्विटी और ऋण का अनुपात अब करीब दो वर्षों से सुधार पर है – जो उलटी तरफ से दिखता था, वह निश्चित रूप से नए निवेश मे कमी का परिणाम था। हालांकि क्षमता के उपयोगीकरण के स्तर में कोई दरार नहीं देखी गई है, यहाँ स्पष्ट सुधार है, इसलिए निवेश की कमी का अंत दूर नहीं हो सकता है।
पहले से ही कई अनुमान लगाए गए थे कि साल 2018-19 पूर्ण कार्पोरेट सुधार देखेगा, लेकिन हाल ही के सप्ताहों में पर्यवेक्षकों ने इसके लिए एक साल की अवधि और बढ़ाकर 2019-20 बताई है। दिवालियापन की कार्यवाहियां अभी भी गति प्राप्त कर रही हैं और इन्होने उन कंपनियों को तंग किया है जो अपने आधिपत्य में बदलाव करती हैं और संभावित रूप से एक समय के अंतराल के बाद ही बेहतर प्रदर्शन दिखाना शुरू करती हैं। लाभ सीमाओं में अनुमानित सुधार से निवेश की रिकवरी में सहायता मिलेगी –2008 के बाद धन की लागत और इक्विटी पर प्रतिफल के बीच अंतराल के लम्बे समय तक संकुचन के कारण इक्विटी पर प्रतिफल आधा रह गया था। अब इसका विपरीत होना प्रारंभ हो गया है।
कॉर्पोरेट प्रदर्शन और निवेश में वृद्धि कम से कम तीन साल तक चलनी चाहिए। पिछले दशक की वृद्धि की तरह यह लगातार कायम नहीं रह सकता है, जैसा कि यह 2003 की शुरुआत में या इसके आसपास था और लगभग पाँच साल तक जारी रहा था। नब्बे के पिछले दशक में, वृद्धि के तीन वर्ष 1994 से 1997 तक ही थे। दोनों ही मौकों पर वृद्धि का यह चक्र क्षेत्रीय या वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारी परिवर्तनों के कारण विखंडित हो गया था और इसलिए भी कि भारत में कार्पोरेट क्षेत्र बहुत अधिक बढ़ गया था तथा इसको एक सुधारात्मक चरण की आवश्यकता थी। आज अत्यधिक कर्ज के कारण वैश्विक स्तर पर कुछ चिंताएं हैं जो हमारे लिए किसी अप्रत्याशित झटके का कारण बन सकती हैं। यदि घरेलू अर्थशास्त्री इस बारे में सतर्क हैं तो हम पहले जैसे झटके के दोहराव से बच सकते हैं।
इस दौरान, जैसी कि उम्मीद की जा रही है, शेयर बाजार, कॉर्पोरेट प्रदर्शन में वास्तविक वृद्धि से कुछ हद तक आगे आ गया है| 2016 में विमुद्रीकरण के कारण लगने वाले झटके से सेंसेक्स तेजी से उबर चुका है और अब नई ऊँचाइयों को छू रहा है। तीन महीने पहले सूचकांक चोटी पर था, लेकिन तब से विदेशों में कुछ विक्रय संबंधी दबावों के सामने लचीला रहा है। कुल मिलाकर, सूचकांक चार साल पहले की तुलना में लगभग 60 प्रतिशत अधिक ऊंचा है, जो बताता है कि कॉर्पोरेट प्रदर्शन में कुछ अपेक्षित बढ़ोत्तरी पहले ही शेयर कीमतों में दिखाई दे रही है।