बैंगलोर क्लब, मुझे जरूर स्वीकार करना चाहिए, मुझे भी अशिष्ठ महसूस हुआ, एक निर्लज्ज, जीवन भर का अनुभवी संवाददाता जिसे बिना आमंत्रण के सम्मलित होने हेतु प्रशिक्षित किया गया था, उसके वहां होने की उम्मीद नहीं थी। लेकिन मेरे दोस्तों ने मुझे बताया कि मैं अच्छी संगत में हूँ।
कुछ फैंसी स्थानों पर मुझसे मेरी पोशाक के बारे में पूछताछ की जाती थी वह भी केवल हंसी-मजाक में और फिर अंदर जाने की अनुमति मिल जाती थी। पिछली रात पहली बार मुझे बैंगलोर क्लब से बाहर निकाल दिया गया था, उन्होंने मुझे अकेले बैठकर वहां ड्रिंक पीने की भी इजाजत नहीं दी जिसके लिए मेरे मेजबानों ने भुगतान किया था। वे एकजुटता में भी अकेला रहना पसंद करते थे।
रात के करीब 10 बजे थे, दीवार पर लटकी टीवी में किंग्स इलेवन पंजाब को लगभग 82/4 के करीब दिखाया जा रहा था, जब फैबइंडिया कुर्ता-पायजामा पहने मैं बार में गया तो किसी ने मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया। फिर मैंने खड़े होकर बारटेंडर से थोड़ा सा बर्फ और माँगने की गुस्ताखी कर दी।
मैंनेजर जैसा दिखने वाला एक व्यक्ति, ढीली-ढाली लेकिन गंभीर पोशाक पहने जैसे कि एक शादी वाले बैंड में बच्चे के भाई से खरीदी हो, मुझ पर चढ़ बैठा।
“आपको यह पोशाक पहन कर इस क्लब में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है, और आप मस्ती में यहाँ-वहाँ घूम रहे हैं? यह सब क्या हो रहा है?”
मैं झूठा पछतावे का बहाना करके बैठ गया, और मैंने मान लिया कि मेरा यहाँ-वहाँ चलना ही समस्या है। वहाँ पर खाने में केवल डिनर था, मैंने सोंचा क्यों किसी (मेहमानों/मेजबानों) को परेशान किया जाए।
लेकिन कुछ मिनटों में ही वह चौकीदार मेरे पास आया।
उसने कहा “तुमको अब चले जाना चाहिए,” अन्य मेहमान आपकी पोशाक पर एतराज कर रहे हैं।”
मैंने तर्क दिया कि यह तो राष्ट्रीय पोशाक है, क्योंकि इसको पहन कर मैं दिल्ली, मुंबई और कोलकाता के ऐसे ही क्लबों में आराम से जा चुका हूँ।“मैंने उससे कहा कि ऐसे ही जिस क्लब में मैं ठहरा था वहाँ तो चेक इन करने में कोई परेशानी नहीं हुई थी, जबकि मैं अपने साथ शर्ट-पैंट भी नहीं लाया था। लेकिन मेरी बात से उसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, अब उसका चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था।
उसने कहा “कृपया आप चले जाइए, वरना स्टॉफ के अन्य कर्मचारी आएंगे और आपको बाहर जाने पर मजबूर करेंगे, जो आपको पसंद न हो।“
जब मैं क्लब से निकला था तो टीवी में किंग्स इलेवन पंजाब लगभग 92/6 पर थी। भारी मन से मैं कुछ भी न कर सका लेकिन कमर पर लटकती पॉलिस्टर की छपाई वाली शर्ट मेरे मन में कौंध रही थी। एक शर्ट हैंडलूम के सूती कुर्ते-पायजामे से बेहतर कैसे हो सकती है, जिसने मुझे हरा दिया।
तीन अन्य मौकों पर मुझे विरोधों का सामना करना पड़ा – उनमें से दो विदेशी थे – मुझे याद है कि वे मौके अलग-अलग थे। 1984 में, अमेरिका की अपनी पहली यात्रा पर, वाशिंगटन रेस्तरां में टाई पहनना अनिवार्य था, जो उस समय मेरे पास नहीं थी।गेट पर खड़ा दरबान बिना टाई पहने वालों को बाहर निकालने या बाहर से ही भगाने के लिए पर्याप्त था, जो इसी उद्देश्य के लिए खड़ा था।
तब मेरे मेजबान ने मुझे टाई खरीदने की सलाह दी, जो मैंने मेट्रो स्टेशन में छोटी सी दुकान पर वापस आकर खरीदी। मैंने दुकानदार से टाई खरीदी, मैं नहीं जानता था कि टाई कैसे पहनी जाती है। इसलिए उसने मेरी मदद के लिए दिशा-निर्देशों के साथ एक पुस्तिका दी। मैंने एक नया कौशल सीखा – स्वयं ही टाई को सिंगल-गाँठ में पहनना, हालांकि मैं इतने सही तरीके से टाई बाँधने का यह काम कभी नहीं कर सकता था।
कई विदेशी यात्राओं ने मुझे टाई पहनने का आदी बना दिया। जब तक राघवेन्द्र राठौर ने मेरे दोनों बच्चों की शादी में से हर शादी में बंद-गला पहना-पहना कर मुझे टाई से मुक्त नहीं कर दिया।
अन्य दोनों घटनाए साधारण थी। एक दोस्त ने मुझे कई साल पहले लंदन के एक रुचिकर नाइट क्लब एनाबेल में अपने साथ खींच लिया था, और सहज रूप से कुछ सेकंड के भीतर मेरे ब्लेज़र को बंद किया और मेरी आस्तीन को घुमाने लगा, किसी ने मुझे कंधे पर थपथपाया और कहा कि मुझे इसे वापस रखना चाहिए। और ओलिव, मुंबई के बांद्रा में स्थित रेस्तरां में, मुझे चप्पल पहन के अन्दर जाने से रोक दिया गया, लेकिन एक हलके फुल्के तर्क के बाद मुझे जाने की अनुमति दे दी गई।
बैंगलोर क्लब,जिसका मुझे जरूर स्वीकार करना चाहिए, मुझे भी अशिष्ठ महसूस हुआ, एक निर्लज्ज, जीवन भर का संवाददाता जिसे बिना आमंत्रण के सम्मलित होने हेतु प्रशिक्षित किया गया था, उसे यह उम्मीद नहीं थी। लेकिन फिर, बैंगलोर में दोस्तों ने मुझे बताया, चिंता मत करो, आप अच्छी संगत में हैं। इस शहर के गर्वान्वित व्यक्ति गिरीश कर्णद भी इसी तरह के कपड़े पहनने के लिए बाहर निकाले गये थे।
किसी ने मुझे एक ड्राफ्ट भेजा था सिद्दारमैया सरकार के समय, केवल स्थानीय प्रतीक्षालय में रुकने के लिए। अच्छा ही है। पूर्व औपनिवेशिक क्षेत्र के एक कोने को क्यों बदला जाए, क्या विंस्टन चर्चिल को अब भी गर्व होता?