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Saturday, 27 April, 2024
होममत-विमतअच्छा पोषण चाहते हैं? पेश है स्वास्थ्य मंत्रालय की यह मांसाहारी और मोटापे पर शर्मिंदगी भरी सलाह

अच्छा पोषण चाहते हैं? पेश है स्वास्थ्य मंत्रालय की यह मांसाहारी और मोटापे पर शर्मिंदगी भरी सलाह

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मंत्रालय द्वारा, कुछ ज्यादा ही स्वनिर्णयात्मक अवलोकन करते हुए, ट्वीट्स की एक श्रंखला पोस्ट की गई, कि यह कैसे सुनिश्चित हो कि आप पौष्टिक भोजन का उपभोग करते हैं या नहीं।

स्वास्थ्य मंत्रालय ने, पिछले कुछ दिनों में किये गये ट्वीट्स को हटा लिया है, जिनका मतलब शायद ‘अच्छे पोषण’ को प्रोत्साहित करने के लिए हो सकता था, लेकिन इसकी संगत चित्रोपमा केवल शाकाहार और मोटापे वाली शर्मिंदगी को प्रोत्साहित करती है|

ग्राफिक अलग-अलग आकृतियों के साथ दो महिलाओं की रूपरेखाओं को दर्शाता है। एक स्पष्ट रूप से बड़ा है, और इसमें मांस, अंडे, रोटी, बर्गर, बियर, डोनट्स, फ्राइज़ और फिजी पेय शामिल हैं। दूसरी महिला दुबली है और इसमें विदेशी फल और सब्जियां शामिल हैं जोकि विशिष्ट भारतीय महिला के लिए किफायती और वहन करने लायक फल, जैसे एवोकैडो और रास्पबेरी, माने जाते हैं।

ट्वीट का गौण-पाठ्य स्पष्ट है: आपकी पसंद क्या है? क्या आप मोटे और मांसाहारी होंगे या पतले और शाकाहारी होंगे?
स्वास्थ्य मंत्रालय ने मासिक धर्म स्वच्छता और तपेदिक जैसे कुछ सराहनीय अभियान किए हैं। लेकिन यह ट्वीट जीवन के एक तरीके के रूप में शाकाहार को प्रचारित करने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रचार के नियतन का सबूत हो सकता है। अतीत में, इन्होने “शाकाहारी दवा” के लिए एक बदलाव का प्रस्ताव भी दिया था जिसे दवा उद्योग ने खारिज कर दिया था।
ट्वीट किए गए ग्राफिक अनुचित रूप से न केवल वजन के लिए स्वास्थ्य को, बल्कि शाकाहार को भी समानता देते हैं – कई हानिकारक विचारों को भी मजबूत करते हैं।

सबसे पहली बात यह है, कि इससे सरकार का कोई लेना-देना नहीं है जिसके लिए आप शर्मिंदा हों, भले ही आपका वजन अधिक हो। हाँ, मोटापा भारत में एक बहुत ही वास्तविक समस्या है, लेकिन साथ ही देश में सबसे ज्यादा, कम वजन वाले लोग भी हैं। यह सुनिश्चित करना सरकार का काम है कि लोगों तक पर्याप्त पोषण पहुंचे।

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मांस और अंडे जैसे प्रोटीन से समृद्ध खाद्य पदार्थों के खिलाफ, बिना किसी कारण के लोगों को चेतावनी देने से कुछ नहीं होता है। अंडे अभी भी आधिकारिक तौर पर कुछ सरकारी स्कूलों में मिड-डे-मील का हिस्सा हैं, लेकिन कुछ राज्यों की योजनाओं में अण्डे को केले के साथ प्रतिस्थापित किया गया है ताकि शाकाहारी छात्रों की “धार्मिक संवेदनाओं” को नुकसान न पहुंचे।

शाकाहार के साथ स्वास्थ्य को जोड़ना जातिवादी भी है। इसे सनक के साथ शाकाहारी के रूप में परिभाषित करना और मांस के सभी रूपों को त्यागना कथित तौर पर इतिहास पर आधारित है। लेकिन वर्षों पहले “शाकाहारी राष्ट्र” के रूप में भारत की पूर्व-मौजूदा धारणा गलत साबित हुई थी। हालांकि भारत में गैर-शाकाहारियों की संख्या कम हो गई है, फिर भी 70 प्रतिशत भारतीय अभी भी मांसाहारी हैं।

और फिर वहाँ एक महिला के शरीर का उपयोग होता है। यह एक निर्दोष रचनात्मक निर्णय हो सकता है, लेकिन महिलाएं कई उद्योगों का लक्ष्य रही हैं जो उनकी असुरक्षा में उन्हें लाभ पहुंचाता है।

यह ग्राफिक नगरीय दर्शकों के लिए बनाया गया है, इसलिए निश्चित रूप से संदेश को समाज के केवल विशेषाधिकार प्राप्त स्तर तक पहुंचाने के लिए तैयार किया गया है। इसे ट्विटर पर एक अंग्रेजी कैप्शन के साथ पोस्ट किया गया था, जो स्पष्ट रुप से लक्षित दर्शकों को इंगित करता है। फिर भी, खाद्य पदार्थों की पसंद पश्चिमी है। उदाहरण के लिए, ग्राफिक में प्रेट्जेल और रसभरी हैं, जिनमें से दोनों ही महंगी हैं और यहां तक कि शहरी भारतीयों के लिए भी अन्यस्थानीय हैं।
मूल रूप से, स्वास्थ्य मंत्रालय आपसे एक वजन पर वाद-विवाद वाला, जातिवादी, विशेषाधिकार प्राप्त प्रश्न पूछ रहा है: यदि आप महंगा, जैविक भोजन और सुपरफूड स्मूदी ड्रिंक्स नहीं ले रहे हैं, तो आप क्या कर रहे हैं?

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