मोदी सरकार के वास्तविक नकारात्मक पहलू अर्थव्यवस्था के सम्बन्ध में नहीं हैं बल्कि प्रमुख संस्थानों को कमजोर करने के साथ सामाजिक ताने बाने को हानि पहुचाने के सम्बन्ध में हैं।
प्रधान मंत्री के रूप में मनमोहन सिंह के अंतिम वर्षों की निर्बलता के बाद, नरेंद्र मोदी के ये चार साल अत्यधिक क्रियाशील हैं। इस तीव्र बल के साथ क्या हासिल हुआ? विस्तृत आर्थिक स्थिरता के माहौल में, गरीब लोगों की अधिकता वाले एक देश में प्राथमिक आर्थिक मुद्दा है विकास और इस विकास का लाभ निचले तबके के लोगों तक पहुँचाना और साथ ही अर्थव्यवस्था को स्थिर रखना। इस सबको मापने के लिए कोई भी उनकी विशिष्ट योजनओं को देख सकता है कि उन्होंने कितना अच्छा कार्य किया है।
दूसरी ओर सिंह सरकार के पांच वर्षों की तुलना में विकास दर कुछ हद तक कम रही है, खासकर कि सकल घरेलू उत्पाद के नए आंकड़ों के मुताबिक जिसकी गणना नई तकनीक से की गयी है। अंतिम व्यक्ति समावेशन पर सरकार का ध्यान असमानता के कुछ रूपों को संबोधित करता है, लेकिन रोजगार वृद्धि की तस्वीर को साफ करने के लिए अधिक व्यापक आकड़ों का इंतजार करना चाहिए।
जहाँ तक विस्तृत आर्थिक प्रबंध का सम्बन्ध है, तेल की कीमतों में तेज गिरावट ने व्यापार अंतर को कम करने, राजकोषीय घाटे को कम करने और मुद्रास्फीति की दर को कम करने में मदद की है। अब ये तीनों फिर से खतरे में हैं क्योंकि तेल की कीमतों का चार्ट फिर ऊपर उठ रहा है।अपने अधिकांश प्रमुख कार्यक्रमों के कार्यान्वयन पर सरकार ने काफी अच्छी तरह से तैयारी की है। वित्तीय समावेश पर सार्वभौमिकता, बिजली की आपूर्ति, खाना पकाने हेतु गैस की उपलब्धता, सड़क कनेक्टिविटी और खुले शौचालय जैसी योजनाओं का क्रियान्वन या तो कर लिया गया है या लगभग किये जाने की स्थिति में है। प्रश्न यह है कि इस तरह की और अन्य सब्सिडी वाली आवासीय योजनाओं का आम नागरिकों के जीवन पर क्या असर पड़ा है। क्या जन धन बैंक योजना परिचालन में है, क्या बिजली वास्तव में घरों तक पहुंच रही है, और क्या खाना पकाने वाले खाली सिलेंडरों को वादा किए गए सब्सिडी मूल्य पर बदला गया है? इस बीच, लास्ट-मील इंटरनेट कनेक्टिविटी भी एक कमजोर कड़ी बनी हुई है।
यदि इसका निर्णय है “हाँ, लेकिन….”, तो उस प्रतिक्रिया के लिए और भी उम्मीदवार हैं। आधार के मामले में ये तो स्पष्ट है कि इसने लाभ हस्तांतरण के बेहतर विकल्प उपलब्ध कराए हैं, लेकिन यह गहन बहस का विषय है जो अदालत के फैसले का इंतजार कर रहा है। पॉवर और पोर्ट्स में अधिशेष क्षमता है (जहां एक सुधार पैकेज क्षेत्र की व्यवहार्यता में सुधार करने में विफल रहा है), लेकिन दोनों अपर्याप्त मांग को इंगित करते हैं। कोई भी कर मोर्चे के अलावा भारत में व्यवसाय करने की कठिनाइयों के बारे में कम सुनता है, जबकि पूंजी का अन्तर्वाह आसान हो गया है।
सरकार को अक्षय ऊर्जा की तरफ जोर देने और अभी तक कम निवेश वाले रेलवे में बड़े पैमाने पर निवेश करने के लिए श्रेय मिलता है। “मेक इन इंडिया” से संबंधित इशारा वास्तव में विनिर्माण का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान की तरफ नहीं किया गया है, और जबकि कौशल कार्यक्रमों के बारे में कोई कुछ भी नहीं सुनता चाहता है।
जब नीति की बात आती है तो महत्वपूर्ण सुधार के मुद्दों को हल करने के लिए सरकार की आलोचना की जाती है, जो उत्पादन के कारकों के अधिक कुशल उपयोग के लिए उत्पन्न होते हैं। लेकिन तथ्य यह भी है कि दिवालियापन कानून जल्द ही पारित किया गया था। आर्थिक नीति के लिए नया ढांचा और पेट्रोलियम उत्पादों के लिए नई मूल्य निर्धारण नीति भी पहले शुरू किए गये महत्वपूर्ण उपक्रम थे। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) ने अपने कई समझौतों से प्रभावित होकर 1990 के दशक में कर प्रणाली के वाटरशेड सुधार के रूप में कर में कमी और छूट दरों के लिए किए गये आंदोलन के साथ-साथ प्रतिष्ठा प्राप्त की है।
चिंता के बिंदु व्यापार और बैंकिंग होने चाहिए। जब भी प्रतिस्पर्धा की बात करते हैं तब हमारी ट्रेड पॉलिसी और घरेलू सुधार पर सवाल उठते हैं जिसकी वजह से गैर तेल निर्यात में लम्बे समय से अभूतपूर्व स्थिरता आई हुई है। सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों की गहराई तक पहुंचाना अभी बाकी है। समस्या विरासत के मुद्दों और अधिक पारदर्शी लेखांकन के प्रवर्तन के साथ बहुत कुछ करने की है, लेकिन बैंकों की व्यापार प्रथाओं, आंतरिक संरचनाओं, जोखिम मूल्यांकन क्षमताओं और प्रबंधन की गुणवत्ता में सुधार के लिए अपर्याप्त कार्रवाई पर भी काम करना है। सरकार को सुधार दिखाने के लिए चार साल पर्याप्त होने चाहिए थे।
असली कमियां अर्थव्यवस्था के संबंध में नहीं हैं बल्कि प्रमुख समूहों को नजरंदाज करने और सामाजिक ढांचे को नुकसान पहुंचाने के मामले हैं। विभाजन पर निर्मित राष्ट्रवाद देश को मजबूत नहीं कर सकता है, और न ही अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकता है।
बिज़नेस स्टैण्डर्ड के साथ विशेष व्यवस्था द्वारा
Read in English: Modi government hasn’t fared too badly on the economy. But can’t say the same on politics