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Friday, 20 December, 2024
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मुकेश अंबानी ने कम समय में ही दिलायी जियो को अपार सफलता लेकिन…

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टेलिकॉम व्यवसाय में कदम रखकर मुकेश अंबानी ने जनता को लाभ तो खूब पहुंचाया मगर इस उद्योग में स्वस्थ वातावरण भी उतना ही जरूरी है.

करीब 15 साल पहले हर महीने मेरा मेबाइल फोन बिल पांच-छह हजार रुपये का होता था. कुछ साल पहले यह घटकर 2000 रु. का हो गया और पिछले साल तो यह 1000 रु. पर आ गया. अब कुछ सौ रुपये का बिल आ रहा है. तकनीक जैसे-जैसे 2जी, 4जी करके ‘जी’ की सीढ़ियां चढ़ रही है और इस कारोबार में उतरने वाले नये खिलाड़ी पुरानों की जमीन खिसकाने में लगे हैं, सबसे ज्यादा फायदे में ग्राहक ही रहे हैं जिनकी संख्या में जबरदस्त इजाफा हुआ है.

अब बिल जबकि किसी सामान्य-से रेस्तरां में खाने के बिल के आसपास आता है, उतने में ग्राहकों को अनलिमिटेड कॉल और एसएमएस करने, मुफ्त में रोमिंग करने, गीगाबाइट में डाटा डाउनलोड करने के साथ-साथ अमेजन प्राइम से वीडियो-स्ट्रीमिंग जैसी मुफ्त सुविधाएं तक मिल रही हैं. अब वे लोग हैरत में हैं, जिन्होंने एक समय मोबाइल फोन से कॉल करने पर 16 रु. प्रति मिनट की दर से भुगतान किया था या रात के नौ बजने का इंतजार करते थे जब टैरिफ कुछ कम हो जाता था.

कीमतों में कटौती की शुरुआत बेशक मुकेश अंबानी ने ही की, जिन्होंने इस व्यवसाय में एक बार नहीं बल्कि दो बार कदम रखा. हर बार उन्होंने दरों में इतनी भारी कटौती की जिसे पहले अकल्पनीय माना जाता था. पहली बार में उन्होंने मोबाइल फोन आम लोगों की पहुंच में ला दिया, और अब उन्होंने डाटा के क्षेत्र में क्रांति ला दी है. इसके आंकड़े अलग-अलग स्रोत से अलग-अलग मिलेंगे, लेकिन ऐसा लगता है कि पिछले एक साल में प्रति ग्राहक डाटा उपयोग पांच से लेकर 25 गुना तक बढ़ा है.

टेलिकॉम क्षेत्र के खिलाड़ियों को लगता है कि भविष्य में वॉयस और डाटा की सेवाएं तो मुफ्त में ही उपलब्ध होगी, और व्यवसाय में आमदनी या स्थायित्व केवल मूल्य-सवंर्द्धित सेवाओं पर निर्भर होगा. यह टेलिकॉम क्षेत्र में शायद दूसरी या तीसरी क्रांति होगी.

और जब किसी मामले से किसी अंबानी का नाम जुड़ा हो तो विवाद तय मानिए. पहली बार में ही भारी विवाद छिड़ गया था और प्रतिद्वंद्वियों का कहना था कि अंबानी ने इस क्षेत्र में पिछले दरवाजे से कदम रखा है. इसके बाद रेडियो के स्पेक्ट्रम के आवंटन और लाइसेंस के बंटवारे पर भी बहुचर्चित विवाद छिड़ा. अब ताजा विवाद उस “लांच” को लेकर है “जिसे लांच कहा नहीं जा सकता” और यह कि मुकेश ने नियमं में खामी का फायदा उठाया है और एक कंपनी के नेटवर्क को दूसरे के नेटवर्क से जोड़कर दरों के मामले में बड़ी जीत दर्ज की है. नियमों में ताजा बदलाव से मुकेश की जियो सर्विस को ताजा तिमाही में मुनाफा हुआ है, जबकि उसके प्रतिद्वंद्वियों को घाटा झेलना पड़ा है.

इस तरह के सवाल तो कायम हैं कि मुकेश ने अपने दूसरे व्यवसायों की वित्तीय मजबूती का लाभ उठाते हुए टेलिकॉम क्षेत्र में कीमतों की जंग तो नहीं छेड़ी, जो कि इसके बिना संभव नहीं होता? और क्या इसे अनुचित प्रतिस्पद्र्धा नहीं माना जा सकता? उचित प्रक्रिया और उचित नियम क्या हैं, ऐसे सवालों पर हमेशा जारी रहने वाली बहस से आगे देखें, तो इसमें कोई संदेह नहीं नजर आएगा कि टेलिकॉम के व्यवसाय में मुकेश का पदार्पण जनता के लिए भारी लाभकारी रहा है. जो कुछ हुआ है उसका आहत प्रतिद्वंद्वियों को छोड़कर बाकी कोई हिसाब करने बैठेगा तो यही कहेगा कि नुकसान से ज्यादा फायदा ही हुआ है.

लेकिन क्या प्रतिस्पर्द्धियों की दुर्दशा की अनदेखी कर दी जाए? कतई नहीं, क्योंकि अगर एक को छोड़ बाकी सभी सेवादाता घाटे में रहते हैं तथा वे और ज्यादा निवेश करने की स्थिति में नहीं रहते, तो ग्राहकों को घाटा ही होगा. खराब सर्विस की शिकायतें तो व्यापक हैं ही- कॉल ड्रॉप की, डाउनलोड की सुस्त स्पीड की, कवरेज की समस्या की. ये समस्याएं बेशक पहले भी रही हैं लेकिन एक स्वस्थ उद्योग ही ग्राहकों को समुचित सेवा दे सकता है, और इसके लिए एक से ज्यादा मजबूत सेवादाताओं की जरूरत होगी. इसलिए बात नियमन संबंधी मसलों पर ज्यादा ध्यान देने पर आकर टिकती है वरना ग्राहकों को खुश नहीं रखा जा सकता.

जो भी हो, साहस दिखाने के लिए मुकेश की तारीफ तो की ही जानी चाहिए. भारत में भला कौन ऐसे व्यवसाय में 30 अरब डॉलर की भारी-भरकम रकम झोंक देने का साहस करेगा, जिसमें उसका एक भी ग्राहक न हो? यह कदम उठाकर अंबानी परिवार के बड़े भाई ने दिखा दिया है कि वे किस मिट्टी के बने हैं. बहरहाल, एक प्रतिद्वंद्वी का दावा है कि बाकी उद्योग को 50 अरब डॉलर का घाटा हुआ है. हम तो यही कहेंगे- जियो मुकेश! और यही उम्मीद रखेंगे कि उनके प्रतिद्वंद्वी भी जियें.

टी.एन. नैनन बिजनेस स्टैंडर्ड प्रा. लि. के चेयरमैन हैं
बिजनेस स्टैंडर्ड से, विशेष व्यवस्था के तहत

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