ममता बनर्जी और नरेंद्र मोदी के युद्ध में प्रधानमंत्री ने निष्कर्ष निकाला है कि बंगाली हृदय का रास्ता उनकी प्रिय दुर्गा पूजा से होकर जाता है|
भारत में बंगाली एकमात्र समूह हैं जो कुख्यात रूप से और अहमन्यतापूर्वक विश्व को बंगालियों और गैर-बंगालियों मे विभाजित करते हैं| श्यामा प्रसाद मुखर्जी के होते हुए भी बंगाल में भाजपा के प्रवेश की हमेशा से विशाल बाधा यह रही है कि बंगालियों की नज़र में यह एक गैर-बंगाली पार्टी है| भारतीय जन संघ के संस्थापक के पास कोलकत्ता में उनके नाम पर एक व्यस्त पथ है लेकिन उनकी विरासत से बाहर पली-बढ़ी पार्टी अभी तक उस गैर-बंगाली चेतना को झकझोरने में सक्षम नहीं हो पायी है|
यदि आप मिश्रित पौराणिक कथाओं को क्षमा करेंगे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोचते हैं कि उन्होंने बंगाली गढ़ में सेंध लगाने के लिए सभी युक्तियों की युक्ति ढूंढ निकाली है| उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि बंगाली हृदय का रास्ता उनकी प्रिय दुर्गा पूजा से होकर जाता है|
मिदनापुर में उनकी बड़ी रैली में उन्होंने यह संदेश दिया कि दुर्गा पूजा की पवित्रता की रक्षा के लिए ममता दीदी पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। “यहाँ तक कि पूजा भी खतरे में है,” मोदी ने आरोप लगाया कि “बंगाल की महान पारंपरिक विरासत को कमजोर करने” के प्रयास किए गए हैं। उन्होंने विशेष रूप से दुर्गा पूजा का उल्लेख नहीं किया था लेकिन वह क्या कहना चाह रहे थे वह सभी के लिए स्पष्ट था।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि पिछले साल इस मुद्दे उद्घाटन स्वयं ममता बनर्जी ने ही किया था।
दुर्गा पूजा विसर्जन की तिथियाँ और मुहर्रम एक साथ पड़ी थीं। शांत समय में हर कोई एक दूसरे के साथ अपने जुलूसों को समायोजित करता । लेकिन हम एक असाधारण समय मे रहते हैं जहाँ व्हाट्सएप पर कोई अफवाह जंगल में आग की तरह फैलती है और भीड़ को किसी व्यक्ति को पीट-पीटकर मार डालने तक के लिए प्रेरित कर देती है, और साथ ही मंत्री जमानत पर आए हुए आरोपियों को फूल-मालाएं भी पहनाते हैं। 2016 में बंगाल में कुछ संघर्ष हुए थे। सार्वजनिक सुरक्षा के नाम पर पश्चिमी बंगाल सरकार ने मुहर्रम के अवसर पर 30 सितंबर और 1 अक्टूबर 2017 को रात 10 बजे के बाद दुर्गा पूजा की अनुमति न देने का निर्णय लिया था। और इस प्रकार तृणमूल कांग्रेस ने फिर से स्वयं को मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोपों में घेर लिया था। तीन जनहित याचिकाओं ने अदालत में प्रतिबंधों को चुनौती दी थी और जजों ने सरकार के प्रति कड़ा रूख अपनाया था।
अदालत ने कहा था कि “लोगों को अपनी धार्मिक क्रियाओं का अभ्यास करने का अधिकार है, वह कोई भी समुदाय हो सकता है, और राज्य तब तक इसपर कोई प्रतिबंध नहीं लगा सकता जब तक कि यह भरोसा करने के लिए ठोस आधार न हो कि दोनों समुदाय एक साथ नहीं रह सकते हैं।” चूँकि एक सार्वजनिक बैठक में ममता ने स्वयं कहा था कि बंगाल में हिन्दू और मुस्लिम सद्भाव से एक साथ रहते हैं, तो फिर वही सरकार अचानक यह दावा कैसे कर सकती है कि उनके एक साथ सड़क साझा करने पर भरोसा नहीं किया जा सकता है?
तब 2017 था। काफी समय बीत चुका है दुर्गा की मूर्तियाँ तो बंगाल की नदियों में विघटित भी हो गईं। लेकिन तब भी नेता लोग ख़तरों से खेलते हैं। बंगाल में भाजपा कुछ समय से अपने बल को प्रदर्शित कर रही है। यह तलवार और त्रिशूल लेकर राम नवमी की रैलियों को पूरा करती है जैसा कोलकाता में अभी तक देखा भी नहीं गया है। तृणमूल ने अपनी ख़ुद की राम नवमी की यात्राएँ निकल के अपना बल भी दिखाया। तो फिर इसका आख़िरी परिणाम क्या निकला? कोलकाता में इस साल राम नवमी की 62 रैलियों का आयोजन किया गया था जिससे हर ओर यातायात बाधित हुआ था।
अधिकांश बंगाली राम नवमी पर तलवारबाजी से हतप्रभ है।। यह उनके लिए एक नई चीज है।
भाजपा जानती है कि उसे प्रामाणिक बंगाली पार्टी होने के लिए कुछ और बेहतर करने की जरूरत है पर हमारा मतलब बाबुल सुप्रियो से नहीं हैं। अगर भाजपा में कुछ टॉलीवुड सितारे हैं, तो दीदी के पास पूरी आकाशगंगा है। भाजपा बाजार में सस्ते दामों पर बंगालियों की प्रिय मछली हिल्सा की बाढ़ ला सकती थी लेकिन शायद शुद्ध शाकाहारी पार्टी संचालकों के गले में हिल्सा का काँटा फँस जाता। भाजपा ने नेताजी सुभाष बोस को अपना सहयोगी बनाने की कोशिश की, लेकिन ममता ने उनके भतीजे को पहले ही अपने सांसद के रूप में अभिषेक कर दिया है। भाजपा को अपना उम्मीदवार बनाने के लिए उनके वंशवृक्ष से एक और भतीजा मिला लेकिन वह चुनाव हार गया। उन्होंने बोस की कुछ लापता फाइलों को जारी किया। ममता ने पहले ही कोलकाता के पुलिस संग्रहालय में स्वयं इन फाइलों का पूरा ढेर जारी कर चुकी थीं। भाजपा अपने कुछ नेताओं जैसे कल्याण सिंह, जो पुराने और लंबे समय से अप्रमाणित षड्यंत्र सिद्धांत को प्रहार करते रहते हैं कि जन गण मन सम्राट जॉर्ज वी का एक विजयगीत है, को छोड़कर रवींद्रनाथ टैगोर को गले लगा सकती थी।
तो अब यह बेचारी माँ दुर्गा हैं जो बंगाल की महान रस्साकशी में फंस गई हैं।
दुर्गा किसकी है के युद्ध में काफ़ी पहले से ही गड़गड़ाहट हो रही है। पिछले साल, जावेद हबीब ब्यूटी सैलून पर ‘ट्रोल वाहिनी’ द्वारा हमला किया गया था, जब उन्होंने टैगलाइन ‘गोड्स टू विजिट जेएच सैलून’ के तहत दुर्गा और उनके परिवार को कुछ स्पा समय का आनंद लेते हुए प्रदर्शित कर एक सीधा सादा विज्ञापन दिया था। हिन्दू देवी देवताओं का ‘निरादर’ करने के लिए हबीब को ट्विटर पर माफी मांगनी पड़ी थी। बंगालियों ने अपने देवताओं को हमेशा परिवार के रूप में माना है। दुर्गा और उनके परिवार को एक स्पा दिन का आनंद लेते हुए, नाव की सवारी करते हुए या रॉक बैंड बजाते हुए प्रदर्शित इस तरह की तस्वीरों को वर्षों से बंगाली बच्चों की पत्रिकाओं की जिल्द के रूप में आम तौर पर देखा गया है। लेकिन अब निर्मित आक्रोश के समय, वे तस्वीरें अचानक विवादास्पद मुद्दा बन गई हैं।
अगर कोई चीज है जिसकी जरूरत देवी दुर्गा को नहीं है तो वह है हाल ही में आए हुए स्वयं नियुक्त संरक्षक। “बंगाल की महान पारंपरिक विरासत”, जिसके बारे में मोदी बात करते हैं, में इसकी देवी माँ के बारे में सेंस ऑफ ह्यूमर शामिल है। इसमें अंडा रोल और मटन बिरयानी खाने का पवित्र अधिकार शामिल है साथ ही पंडाल में चहलकदमी भी जबकि नवरात्रि में शेष पूरा देश उपवास रखता है। जिस प्रकार देवी बंगाल में विचरण करती हैं और राजनेता उन्हें अकेला छोड़ दें तो जादा अच्छा होगा। यूट्यूब चैनल बोंग ईट्स चलाने वाले सप्तर्षि चक्रवर्ती ने भी ऐसा कुछ लिखा (दुर्गा पूजा के लिए अंडा रोल रेसिपी वीडियो ट्रोल करने के बाद), “हमारी माँ दुर्गा विनम्र गाय नहीं है। वह एक आग उगलने वाली, राक्षसमर्दिनी कठोर महिला है जो मजा लेना जानती है।”
उसके पास दस भुजाएँ हैं और खुद का ख्याल रख सकती है, बहुत बहुत धन्यवाद। अगर मोदी अभी भी संभवतः राम नवमी जुलूस के बजाय अपनी पार्टी की बंगाली सड़क विश्वसनीयता को साबित करने का एक तरीका ढूंढ़ रहे हैं, तो भाजपा नेता बंगाली लोगों का अत्यंत प्रिय टॉनिक जो वह बदहजमी के लिए लेते हैं उसका घोल पी सकते हैं। इससे निश्चित रूप से बंगाली दिलों में जोश भरेगा और भाजपा के दिल की धड़कन शांत होगी।
संदीप रॉय एक पत्रकार, टिप्पणीकार और लेखक हैं।
Read in English : Narendra Modi, thank you very much but Durga has ten arms and can look after herself