बच्चों को परीक्षा के तनाव से निबटने के नुस्खे बताने वाली अपनी किताब को मोदी अपनी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा बनाने की तैयारी में दिख रहे हैं.
जब कि देशभर में करोड़ों छात्र डरावनी बोर्ड परीक्षा की तैयारी में जुटे हैं, उन्हें इसके तनाव से सबसे बड़ी राहत और कोई नहीं बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंचा रहे हैं. आज के ध्रुवीकरण के कारण गरम हो चुके माहौल में मोदी ने अपनी किताब में सबसे गैर-विभाजनकारी मसले को उठाया है.
भारी तनाव और खुदकशी तक के लिए कुुख्यात बोर्ड परीक्षा अब नई राजनीतिक रणनीति का हिस्सा बन गई है.
पच्चीस अध्यायों वाली 200 पृष्ठ की यह किताब ‘एग्जाम वारियर्स’ बताती है कि परीक्षा के तनाव से कैसे निबटा जाए, और यह कि जीवन में बड़े लक्ष्यों पर ध्यान देना कितना महत्वपूर्ण है. रंगबिरंगी यह किताब पाठ्यपुस्तक से ज्यादा अभ्यास पुस्तिका लगती है, जिस पर आप अपनी कलम या पेंसिल से फुरसत से बैठकर अपने विचारों को दर्ज कर सकते हैं. इसके अलावा इसके 38 पृष्ठ योग क्रियाओं को समर्पित हैं.
मोदी इस किताब को लिखने के बाद अब 16 फरवरी को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में 2000 स्कूलों तथा कॉलेजों के हजारों छात्र-छात्राओं के साथ-साथ अध्यापकों तथा प्रिंसिपलों से भी मिलेंगे. यह कोई राजनीतिक आयोजन नहीं है लकिन इसमें छिपी राजनीतिक मंशा काफी स्पष्ट है.
पिछले साल स्वतंत्रता दिवस पर दिए अपने भाषण में मोदी ने कहा था कि 21वीं सदी में जन्मे बच्चे अब 18 साल के होने वाले हैं और उन्हें तब अहम फैसले करने पड़ेंगे. उन्होंने खुल कर तो कुछ नहीं कहा था मगर संदेश को समझ पाना मुश्किल नहीं है. 18 साल की उम्र होते ही वोट देने का अधिकार मिल जाता है.
‘एग्जाम वारियर्स’ के पहले पन्ने पर ही राजनीतिक संदेश बहुत साफ-साफ दर्ज है- ‘‘चुनाव में अपनी पार्टी का नेतृत्व करके भारत में तीन दशक में पहली बार संसद में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने के बाद वे मई 2014 से प्रधानमंत्री के पद पर विराजमान हैं. उनकी जीत भारत के युवाओं, खासकर पहली बार वोट देने वालों की वजह से हुई.’’
2014 में 15 करोड़ युवाओं को वोट देने का अधिकार पहली बार मिला था. आजाद भारत के इतिहास में यह अधिकतम आंकड़ा था. 2014 में पहली बार वोट देने वालों में 39 प्रतिशत ने भाजपा का समर्थन किया था. 2019 में ऐसे वाटरों की संख्या 13.3 करोड़ रहने की उम्मीद है. इंडिया टुडे के ताजा सर्वेक्षण से साफ तस्वीर मिल जाती है कि मोदी भारतीय युवाओं में कितने ज्यादा लोकप्रिय हैं.
2014 के चुनाव में भाजपा को कुल 17 करोड़ वोट मिले थे और कांग्रेस को 11 करोड़. ऐसे में, पहली बार मताधिकार पाने वालों का ज्यादा से ज्यादा वोट भाजपा की तकदीर में बड़ा सुधार ला सकता है. कुछ समय से मोदी ने जनअभियानों में राजनीति की घालमेल करने में महारत हासिल कर चुके हैं. इसकी शुरुआत 2013 में हुई थी जब उन्होंने गुजरात में सरदार पटेल की प्रतिमा बनवाने के लिए किसानों से लोहे के टुकड़े दान करने की अपील की थी. इसने उन्हें देश के करोड़ों किसानों से जाति, रंग, क्षेत्र, भाषा आदि की सीमाएं तोड़कर भावनात्मक रिश्ता बनाने में मदद की थी. साथ ही, नेहरू की जगह पटेल की राजनीतिक तथा वैचारिक विरासत पर दावा करने में भी मदद मिली थी.
नवबंर 2016 में नोटबंदी लागू करके उन्होंने ‘सूट-बूट’ और ‘अडानी-अंबानी’ की सरकार की छवि को ध्वस्त कर दिया और रातोंरात खुद को गरीबों के मसीहा के रूप् में पेश कर दिया, जो अमीरों को सबक सिखाने के लिए अपने जीवन का भी दांव पर लगा सकता है.
उनकी पुस्तक ‘एग्जाम वारियर्स’ का लक्ष्य तो राजनीतिक फसल काटना है मगर इसे युवाओं से संवाद के आयोजन के तौर पर प्रस्तुत किया गया है. इससे पहले उन्होंने ‘चाचा नेहरू’ वाले आख्यान को फीका करने के लिए शिक्षक दिवस पर स्कूली बच्चों से मुलाकात की थी. पिछले सप्तााह इस पुस्तक के हिंदी संस्करण का दिल्ली में विमोचन करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रकाशक से अनुरोध किया कि वे ऐसा करें कि उनके प्रदेश के लाखों बच्चों को भी इस पुस्तक का लाभ मिले. इसलिए आश्चर्य नहीं कि 2019 से पहले इस पुस्तक का कई भाषाओं में अनुवाद हो जाए और यह मुफ्त में वितरित की जाए.