यदि सरकार को इस फिटनेस चैलेंज को कामयाब करना ही है तो वह आइस बकेट चैलेंज से सीख ले जिसने न सिर्फ एमियोट्रोफिक लैटरल स्लेरोसिस या लोउ गेहरिग रोग के बारे में लोगों को अवगत कराया, बल्कि उसके शोध के लिए $220 मिलियन डॉलर जुटाने में भी कामयाब रहा |
इस सरकार के फोटो प्रेम के क्या कहने । हाथों में झाड़ू पकड़ने से लेकर दलितों के साथ खाना खाने तक, यह सरकार सुर्ख़ियों में छाने और फोटो खिचवाने का कोई मौका नहीं गंवाती।
अब चाहे ये ट्रेंड करे या नहीं यह स्पष्ट है कि भारत कि स्वास्थ्य सेवाओं का निवारण एक हैशटैग से तो कतई मुमकिन नहीं
अब प्रधानमंत्री मोदीजी भी अपना कसरत करते हुए का एक वीडियो निकालने जा रहे हैं क्यूंकि इस चैलेंज के तहत क्रिकेटर विराट कोहली ने #FitnessChallenge के नाम से मोदी जी को चुनौती दी है. और इस सब की शुरुआत सूचना एवं प्रसारण मंत्री राज्यवर्धन राठौड़ ने की जिसमें उन्होंने आगे चार लोगों को टैग भी किया.
Challenge accepted, Virat! I will be sharing my own #FitnessChallenge video soon. @imVkohli #HumFitTohIndiaFit https://t.co/qdc1JabCYb
— Narendra Modi (@narendramodi) May 24, 2018
फिटनेस चैलेंज और योग दिवस के बावजूद भारत का #स्वास्थयचैलेंज सरकार को शर्मिंदा कर रहा है ।
यदि आप भारत के बजट पर ध्यान दें तो पता चलता है की हम स्वास्थ्य पर मुश्किल से अपनी जीडीपी का 4 प्रतिशत ही खर्च करते हैं । इसमें भी सरकार की भागीदारी केवल 1.3 प्रतिशत ही है । सरकार की राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2025 तक इस व्यय को जीडीपी के 2.5 प्रतिशत पहुँचाना चाहती है जहाँ विश्व की औसत 6 प्रतिशत है । यदि सरकार को इस मुकाम को हासिल करना है तो उसे अपने स्वास्थ्य के बजट को कम से कम 20 प्रतिशत की सालाना दर्ज से बढ़ाना होगा लेकिन 2018 के बजट में सरकार ने इसे केवल पांच प्रतिशत की दर से बढ़ाया है ।
प्राइवेट स्वास्थ्य सेवा आम नागरिक की पहुंच से तो बाहर है ही , और ऊपर से सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाने के लिए जो धक्के खाने पड़ते हैं वह तो और भी ज़्यादा परेशानी देने वाला है ।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के मुताबिक आज भी भारत की आधी से ज़्यादा युवा महिलाएं (आयु 15-49) एनीमिया से ग्रस्त हैं, बाल वृद्धिरोध ने रिकॉर्ड तोड़े हुए हैं और हमारा स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर भी 130 करोड़ की आबादी को संभालने के लिए पर्याप्त नहीं है । यह सब भविष्य में चिंता का कारण बनेंगे ।
भारत की स्वास्थ्य प्रणाली को भंग करने के लिए कोई महामारी की ज़रूरत नहीं है, हमारे स्वास्थ्य संसाधनों की कमी ही इसमें अपना पूरा योगदान डाल देंगे
पर जब अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य दिवस 7 अप्रैल को बीत चुका है और योग दिवस को आने में लगभग महीना बाकी है, तो ऐसे ट्रेंडिंग हैशटैग को इस समय डालने का क्या मतलब?
दरअसल बात यह है की कर्नाटक में जीती हुई बाज़ी हारने के बाद खासतौर पर कुमारस्वामी के मुख्यमंत्री बनने की बात को भाजपा अब छुपाना चाहती है । भाजपा नहीं चाहती की लोग इस घटना को याद रखें । भाजपा यह भी नहीं चाहती की लोग बढ़ते हुए पेट्रोल के दामों के ऊपर ध्यान दे । किसी समय पेट्रोल की कीमतें बढ़ने पर भाजपा भारतीय बंद का आयोजन करती थी पर क्योंकि अब वह सत्ता में है, लोगों को इन सब मुद्दों को भुलाने के लिए ‘विचार बंद’ का आयोजन बड़ी चालाकी से कर रही है
सुर्ख़ियों के सरताज बनने की कला अब मोदी जी से बेहतर कौन जानता है । जैसे ही मोदी जी अपना वीडियो ट्वीट करेंगे सारा मीडिया उसी तरफ भागेगा और सब पेट्रोल की बढ़ी कीमतें भूल जाएंगे वैसे ही जैसे लोग नीरव मोदी और सुप्रीम कोर्ट के संकट को भूल गए थे ।
यदि सरकार को इस फिटनेस चैलेंज को कामयाब करना ही है तो वह आइस बकेट चैलेंज से सीख ले जिसने न सिर्फ एमियोट्रोफिक लैटरल स्लेरोसिस या लोउ गेहरिग रोग के बारे में लोगों को अवगत कराया, बल्कि उसके शोध के लिए $220 मिलियन डॉलर जुटाने में भी कामयाब रहा । इस आइस बकेट चैलेंज में आपको अपने सर पर ठन्डे पानी की एक बाल्टी भरके डालनी थी और इसे लोगों ने पूरे रोमांच के साथ स्वीकारा था ।
मोदी की फिटनेस से प्रेरित राठौड़ का यह चैलेंज वास्तव में क्या रंग दिखाएगा? क्या इससे कोई चंदा इकठ्ठा हो पाएगा? क्या लोगों के व्यवहार में इससे कोई असर पड़ेगा?
जब मस्तिष्क ज्वर से गोरखपुर के बीआरडी कॉलेज में बच्चे मारे गए थे तब मुझे याद है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था “क्या अब बच्चों का लालन पालन भी सरकार करेगी?” ऐसी राजनीतिक धारणा भी हमारे स्वास्थ्य प्रणाली के लिए एक बड़ी चुनौती है ।
क्या आपको हरियाणा का बेटी बचाओ सेल्फी याद नहीं ? उसका क्या हुआ? नतीजों को तो भूल जाइये, क्या उसके कोई मापदंड भी तैयार थे?
यह सोशल मीडिया पर चलने वाला #FitnessChallenge उन रईस लोगों के लिए है जो एक स्मार्टफोन खरीद सकते हैं ताकि वीडियो को सोशल मीडिया पर डाल सके जिसे कोई गरीब आदमी कैसे देखेगा । इन चैलेंजों को यदि सरकार गंभीरता से ले तब ही कोई निवारण निकाला जा सकता है
#BedMyHospitalChallenge, #FundOurHealthChallenge, #ImproveHealthInfraChallenge, #SexEducationChallenge और #कुपोषणमुक्तभारत