मुख्यमंत्री खट्टर की टिप्पणियों ने संयुक्त हिन्दू संघ समिति के विचारों को दोहराया है, जिसके उग्र लोग हालिया हफ़्तों में नमाज में बाधा डालते रहे हैं।
मैं व्यक्तिगत रूप से किसी भी प्रकार की धार्मिक प्रक्रियाओं को बहुत नापसंद करती हूं। कोई भी जुलूस, विसर्जन, जगराता या भीड़ – भक्ति की एक व्यापक अभिव्यक्ति जो नागरिक जीवन को बाधित करती है और हमारे पहले से ही तंग संसाधनों पर और तनाव डालती है – निंदनीय है है और इसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। धार्मिक उत्साह के अनुष्ठान के रूप में सार्वजनिक शो का विचार मेरे जैसे नास्तिक के लिए चिढ़ और परेशानी वाला है। इनमें से कई प्रदर्शनों का वातावरणीय प्रभाव मुझे इनकी राह का रोड़ा बनने पर मजबूर करता है क्योंकि वे भारी मात्रा में कचरा पैदा करते हैं। अगर मेरा बस चलता तो धर्म घरों के अन्दर एक व्यक्तिगत मामला होता।
लेकिन मेरे व्यक्तिगत विचारों का मतलब एक ऐसे देश में बिल्कुल कुछ भी नहीं है जो मेरी संकीर्ण क्षमताओं की तुलना में कहीं ज्यादा सहनशील है। हालाँकि, राज्य के मुखिया के रूप में, हरियाणा के मुख्यमंत्री निरंकुश अराजकता के किनारे पर लगातार लड़खड़ा रहे हैं। हरियाणा का पित्रसत्तात्मक व जातिवादी समाज अब कई वर्षों से सुर्खियों में रहा है। जाहिर है, इसके एक क्रूर और सांप्रदायिक पक्ष ने अपना सर उठाने के फैसला कर लिया है।
जब खट्टर ने कहा कि नमाज केवल मस्जिदों और ईदगाहों में पढ़ी जानी चाहिए, तो वह संयुक्त हिन्दू संघर्ष समिति, जो कई हिन्दू संगठनों का एक संगठन है, के विचारों को दोहराते हुए दिखाई दिए। पिछले दो हफ़्तों से कथित संगठन के उपद्रवी नमाज में बाधा डाल रहे हैं।
उनकी चार मांगों में शामिल है: हिन्दू कॉलोनियों, सेक्टरों और आस-पड़ोस में नमाज के लिए अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, अनुमति केवल उन स्थानों पर दी जानी चाहिए जहाँ मुस्लिम आबादी 50% प्रतिशत से अधिक हो।
बीजेपी मंत्री अनिल विज ने यह कहते हुए एक और सुंदर पहलू जोड़ा कि ‘भूमि पर कब्जे’ के लिए नमाज की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
मैं, मेरे दक्षिणपंथी मित्रों के विपरीत, क्या है, क्या नहीं है में पड़ने की कोशिश नहीं करती। इसलिए, मैं हर साल कांवड़ यात्रा के कारण होने वाले हंगामे या प्रत्येक गणपति विसर्जन के दौरान कैसे पानी गन्दा और बर्बाद होता है, को इंगित नहीं करूंगी। इसके बजाय मैं संविधान का रुख करूंगी। अनुच्छेद 25 ये कहता है कि भारत के सभी लोगों के पास ‘विवेक और स्वतंत्र पेशे, प्रथा और धर्म के प्रचार का अधिकार है लेकिन ये सार्वजानिक आदेश, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है। वर्षों से बिना किसी अड़चन के नमाज पढ़ते आ रहे मुसलमानों को देखें तो अचानक से ये एक समस्या कैसे बन गयी?
चलो दो साल पहले 2016 की बात करते हैं, जब जैन मुनि तरुण सागर ने दिगंबर अवस्था में हरियाणा विधानसभा में 40 मिनट बिताये थे। यदि यह भारतीयों को दी जाने वाली धार्मिक स्वतंत्रता के दायरे में आता है (राज्य और धर्म को अलग करना स्पष्ट रूप से कुछ ऐसा है जिसे हम कभी नहीं सीखेंगे), तो शांति पूर्वक प्रार्थना करना इस दायरे में क्यों नहीं आ सकता।
संयुक्त हिन्दू संघर्ष समिति की ‘मांग’ पर आते हैं, जिसे खट्टर की टिप्पणी ने अत्यंत खुले तौर पर सत्यापित किया, इसका लक्ष्य स्पष्ट रूप से नजर आता है। यदि एक हिन्दू बहुसंख्यक क्षेत्र में कुछ मुस्लिम रहते हैं तो यह उन्हें छिपने या शायद अंततः जगह छोड़ने के लिए बाध्य कर सकता है। अल्पसंख्यक के रूप में भारत में आवास किराये पर लेने की परिपूर्ण असम्भवता काफी अच्छी तरह से व्याप्त और स्थापित है और ये कुछ नया नहीं है। हालाँकि, नई अलिखित शहरी आम सहमति, उन पूर्वाग्रहों और इनकारों को कहीं अधिक स्पष्ट, विषाक्त और उग्र होने की अनुमति देती है।
हालांकि, यह एक अलग स्थिति नहीं है।देश भर में, अल्पसंख्यकों के प्रति अन्तर्निहित नफरत ने 2014 के बाद से अविश्वसनीय अनावरण देखा है। यहाँ तक कि यदि सत्तारूढ़ पार्टी ने शत्रुता की नई लहरों को उत्तेजित नहीं भी किया है, लेकिन इसने उन लोगों को वैधता दी है जो सभ्यता का जामा पहने हुए हैं। जबकि लोग तर्क दे सकते हैं कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ लक्षित अपराधों की दरों में ख़ासा बदलाव नहीं आया है,चुप्पी और निहित-परिणामी अनुमोदन को अब अनदेखा नहीं किया जा सकता है। इस देश की वर्तमान संरचनाओं ने अल्पसंख्यकों पर छोड़ी गयी भयानक ताकतों के सामने खुद को झुका लिया है। भारतीय राज्य कभी भी उनके लिए बहुत दयालु नहीं रहा है, लेकिन अब हम जो निठुराई देखते हैं वह सिर्फ दुखद ही नहीं डरावनी भी है।
यह डर, कुछ हद तक सरकार की ढिलाई के साथ साथ उन लोगों की उपज है जो कानूनी रूप से पूर्णतः सक्षम हैं और जो नमाज पढ़ने वालों को उनके नमाज पढ़ने के अधिकार क्षेत्र से वंचित कर रहे हैं। जब इस प्रकरण में छह लोगों को गिरफ्तार किया गया, तो संयुक्त हिंदू संघर्ष समिति ने जुलूस निकालते हुए गिरफ्तार लोगों की रिहाई और सार्वजनिक स्थानों पर नमाज पर प्रतिबंध लगाने की मांग की। सरकार, इस तरह के ठगों के खिलाफ मजबूत बयान न देकर, कानून और व्यवस्था दोनों को बनाए रखने की कार्यकारी क्षमता में बाधा डाल रही है, और पहले से ही कमजोर अल्पसंख्यकों को बेसुध रूप से छोड़ रही है।
पिछले कुछ वर्षों ने अधिकांश अल्पसंख्यकों के खिलाफ अत्यधिक असमानता और गलत तरीके से गुमराह हुए क्रोध को देखा है, और मुसलमानों को इस आघात का सामना करना पड़ा है। मुसलमानों के खिलाफ हो रहा हर एक अपराध यह कहते हुए मंद हो जाता है कि, ‘वे भारतीय नहीं हैं और यह देश उनका नहीं है’। गलत । यह देश पूरी तरीके से उनका भी है, और वे भी भारतीय हैं। हालांकि, यह स्पष्ट करके कि कानूनी सहारे का मतलब बहुसंख्यको की मांगों के सामने कुछ भी नहीं, सरकार अपना रुख स्पष्ट करती है, और देश इसे पचा नहीं पायेगा।
जब भी मैं धार्मिक हिंसा के बारे में सोचता हूं, जे-ज़ी का ‘नो चर्च इन द वाइल्ड‘ दिमाग में आता है, विशेष रूप से आज जो भारत में हो रहा है उसके संदर्भ में: मानव ‘एक भीड़ में क्या है / राजा के लिए भीड़ क्या है? / भगवान के लिए राजा क्या है? / एक नास्तिक के लिए भगवान क्या है? / वह व्यक्ति जो किसी भी चीज़ पर विश्वास नहीं करता?’
ऐसी दुनिया में जहां सरकार शांति और मध्यस्थता की ताकत होने के बजाय सांप्रदायिक क्रोध को अपने फायदे के लिये भड़काती है, शायद वहां तर्कसंगत, संदेही व नास्तिक लोग ही होंगे जो एक दिन मुसीबत से बचाएंगे । हमारी आवाज बहुत जोरदार नहीं है, और अक्सर डूब भी जाती है (जैसे एम.एम. कलबुर्गी की), लेकिन वे अकेले ही हैं जो कुछ धीरज देते हैं और वो भी एक ऐसी दुनिया में जहां भक्ति और आस्था एक हथियार बन जाती है।
हरनिध कौर एक कवि और नारीवादी हैं। विचार निजी हैं
Read this article in English: A naked Jain monk spoke in Haryana assembly, but a Muslim can’t offer namaz in public?