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Thursday, 28 March, 2024
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‘अंकल कम्युनलिज़्म’ का शिकार हो रहे युवा, क्या होगा 20 साल बाद

आज से 7-8 साल पहले तक भारत का युवा तकनीक में आगे बढ़ने के सपने देखा करता था, अब वो गोबर और गोमूत्र के सहारे विश्वगुरू बनने के सपने देख रहा है.

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भारत एक युवा देश है. पर यहां के युवा को जो चीज़ सबसे ज़्यादा भा रही है, वो है- ‘अंकल कम्युनलिज़्म’. दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान ये चीज़ व्यापक रूप से देखने को मिली है. इसके प्रभाव का सबसे बड़ा उदाहरण है, भाजपा के युवा सांसद तेजस्वी सूर्या का संसद में दिया गया वक्तव्य, ‘अगर देशभक्त इकट्ठा नहीं होंगे तो मुगलों का राज वापस आ जाएगा.’ इस बात का क्या मतलब है, मुगल भी नहीं बता सकते. पर इसका एक पॉज़ीटिव प्रभाव है. हो सकता है कि तेजस्वी अपने बयान से पीएम नरेंद्र मोदी के नवरत्नों में शामिल हो जाएं.

क्या है ‘अंकल कम्युनलिज़्म’?

‘अंकल कम्युनलिज्म’ क्या है? ये एक ऐसी पीढ़ी का ज्ञान है जो गलतफहमियों पर आधारित है. ये पीढ़ी इंटरनेट क्रांति से पहले ही अपना बचपन और युवावस्था बिता चुकी थी. उस वक्त इतिहास, भूगोल, मेडिकल साइंस, साहित्य इत्यादि को लेकर इन्होंने मनगढ़ंत थ्योरी बना ली थी. जो बात पसंद नहीं आई, उसके काउंटर में अपनी थ्योरी गढ़ ली. व्हॉटसऐप क्रांति के बाद इस पीढ़ी को अपनी बात कहने और फैलाने का मौका मिला है. ‘अंकल कम्युनलिज़्म’ सीधा-सीधा कॉन्सपिरेसी थ्योरी से ही जुड़ा है.

मसलन, अगर आज किसी ‘अंकल कम्युनलिज़्म’ से ग्रसित व्यक्ति का मन कर जाए और वो कह दे कि धरती चपटी है, तो इसके समर्थन में हज़ारों ट्वीट और व्हॉटसऐप मैसेज फैला दिए जाएंगे. ये कहा जाएगा कि पश्चिमी सभ्यता ने ज़बर्दस्ती लोगों से कहा है कि धरती गोल है. ये ईसाई मिशनरियों की साजिश है.


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दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान ये प्रवृत्ति और ज़्यादा देखने को मिली है. भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ट्वीट कर देते हैं जिसमें बताया जाता है कि शाहीनबाग में 500 रुपये मिल रहे हैं और बिरयानी बंट रही है. इस बात का क्या आधार है, नहीं पता. फिर वो ‘प्रूफ’ के रूप में बिरयानी बंटती हुई एक फोटो शेयर कर देते हैं. इस बात से कोई मतलब नहीं है कि बिरयानी बंटने से क्या हो गया. वैसे तो पूरी दिल्ली में रोज़ ही कहीं ना कहीं स्टॉल लगाकर हलवा, पूरी-सब्ज़ी इत्यादि बंटती रहती है. ऐसे फोटो शेयर करने का क्या मतलब?

भाजपा नेता संबित पात्रा एक वीडियो शेयर करते हैं जिसमें बोले गये शब्द ‘ज़रिया’ को ‘शरिया’ बता देते हैं और लोगों को आगाह करते हैं कि क्या आप शरिया होना पसंद करेंगे. कोई व्यक्ति शरिया कैसे हो सकता है? शरिया इस्लामी मान्यताओं का कानून है. संबित पात्रा की इस बात का क्या मतलब है?

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युवाओं को कैसे प्रभावित कर रहा है ‘अंकल कम्युनलिज़्म’?

भारत एक युवा देश है, जहां पर 35 साल से नीचे के लोगों की आबादी सबसे ज़्यादा है. अगर सोशल मीडिया की धारा को देखें तो इस आबादी के जीवनकाल में जो सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाएं हुई हैं, वो इस प्रकार हैं- अयोध्या में राजीव गांधी द्वारा राम मंदिर का ताला खुलना, कारसेवकों पर गोली चलना, बाबरी मस्जिद का गिरना, बम ब्लास्ट, आरक्षण, परमाणु परीक्षण, संसद पर हमला, 9/11, करगिल की लड़ाई, गुजरात के दंगे, कश्मीर में आतंकवाद और कश्मीरी पंडितों का पलायन इत्यादि. इसके बाद जो सबसे बड़ी घटनाएं हुई हैं वो 2014 के बाद हुई हैं, जिनमें इतिहास, वर्तमान और भविष्य को मिलाकर एक अद्भुत मिश्रण तैयार किया गया है.

इसमें किसी बात का विश्लेषण नहीं है. धर्मविशेष के हिसाब से घटनाएं चुन ली जाती हैं और आज के नज़रिए से हमला किया जाता है. मसलन, कश्मीर की आज की राजनीतिक स्थिति की बात करते हुए अचानक कोई अकबर पर हमला कर देगा. या फिर इतिहासकारों पर कि हमें गलत इतिहास पढ़ाया गया है. ये कुछ वैसा ही है कि पी यू टी को अगर पुट पढ़ा जाता है तो बी यू टी को बट क्यों पढ़ा जाता है? किसी भी घटना की जटिलता को समझने की ना ख्वाहिश है और ना ही काबिलियत.

विडंबना ये है कि यहीं से नेताओं की अगली पौध तैयार हो रही है

अगर हम एक पीढ़ी पहले के नेताओं को देखें तो ये लोग इमरजेंसी के खिलाफ आंदोलन, नेहरू के समाजवाद के खिलाफ प्रतिरोध, भारत की कन्जर्वेटिव आर्थिक नीति के खिलाफ असंतोष, विभाजन के दुख इत्यादि से निकले हैं. मतलब इनके पास कुछ मुद्दे थे जिनसे लड़कर वो राजनीतिक पटल पर आए. आप उम्मीद करेंगे कि इन चीजों को देखकर इन नेताओं ने जनतंत्र की अवधारणा को देश में मज़बूत किया होगा. पर नहीं, ऐसा नहीं हुआ. जब इनको मौका मिला तो आर्थिक सुधार होने के बावजूद इनका ध्यान मंदिर और आरक्षण को लेकर फैलाए गए भ्रम में लगा रहा.

यहां पर क्रोनोलॉजी समझने की ज़रूरत है. ये नेता इमरजेंसी से लड़कर राम मंदिर तक आए. उस वक्त जिन युवाओं ने राम मंदिर का आंदोलन देखा, वो अभी नेता बने हुए हैं. उदाहरण के तौर पर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ. जो कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में आए तो सोशल मीडिया पर ऐसी चहलकदमी हुई मानो किसी क्रिकेट मैच में विकेट गिरने के बाद क्रिस गेल की एंट्री हुई हो. ज्ञात रहे कि इनके आने से पहले भाजपा सांसद प्रवेश वर्मा को नफरती भाषा बोलने के लिए इलेक्शन कमीशन ने प्रचार से रोक दिया. पर योगी ने आते ही कमान संभाल ली, ‘शिवभक्तों पर कोई व्यक्ति गोली चलाएगा, दंगा कराएगा, बोली से नहीं मानेगा तो गोली से तो मान ही जाएगा.’ दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बात का क्या मतलब है?


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इस पूरे चुनाव में गोली मार दो, शाहीनबाग की औरतें ये हैं, वो हैं, फलाने ने गोली मार दी जैसी बातें ही गूंज रही हैं. देश के गृहमंत्री गली-गली परचे बांट रहे हैं और दिल्ली में दो बार गोली चल गई. क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि युवा किस कदर दिग्भ्रमित हो चुका है? अगर किसी बाहरी देश का व्यक्ति इन घटनाओं को ध्यान से देखे तो उसे कैसा लगेगा? दुनिया के एक सुपरपावर देश की राजधानी में चुनावी प्रचार-प्रसार के बीच गोलियां चल रही हैं? और वो भी तब जब हमें बताया गया है कि देश को पटेल के बाद सबसे ‘मजबूत गृहमंत्री’ मिले हैं.

आज से 7-8 साल पहले तक भारत का युवा तकनीक में आगे बढ़ने के सपने देखा करता था, अब वो गोबर और गोमूत्र के सहारे विश्वगुरू बनने के सपने देख रहा है. वो हर फेक न्यूज़ पर यकीन कर रहा है. क्या होगा 20 साल बाद, जब यही युवा नेता बनेगा? पिछले दस साल में सोशल मीडिया पर योद्धा बन चुके तेजिंदर बग्गा को आखिरकार टिकट मिला ही है और वो अगली पीढ़ी के युवा नेता बनने की दिशा में आगे बढ़ चले हैं.

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