दिप्रिंट के संपादकों द्वारा चयनित कार्टून पहले अन्य प्रकाशनों में प्रकाशित किए जा चुके हैं. जैसे- प्रिंट मीडिया, ऑनलाइन या फिर सोशल मीडिया पर.
आज के विशेष रूप प्रदर्शित कार्टून में, सतीश आचार्य “अविश्वास प्रस्ताव डिबेट” को, मणिपुर मुद्दे को दबाने के लिए एक आवरण के रूप में चित्रित करते हैं, जो ‘ध्यान भटकाने की रणनीति’ को उजागर करता है.
आलोक निरंतर के कार्टून में तीन पार्ट को दर्शाया गया है: मोदी सरकार का ‘पूर्ण विश्वास’, राहुल गांधी का प्रस्ताव में ‘अविश्वास’, और ‘मासिक खर्च’ का बिल लिए एक चिंतित आम आदमी, जो मध्यम वर्ग के बीच मौजूद भय और चिंताओं का प्रतीक है.
साजिथ कुमार अपने विचारोत्तेजक कार्टून में जारी मानसून सत्र के माहौल को दर्शाते हैं और इस बात पर जोर देते हैं कि सार्थक शासन के लिए नेताओं और जनता के बीच बातचीत की जरूरत होती है, जिसका कि वे प्रतिनिधित्व करते हैं, न कि केवल ‘चुनावी मुद्दे’.
संदीप अधर्व्यु अपने कार्टून में नूंह में बुलडोजर चलाने से विस्थापित लोगों को चांद की ओर देखते हुए दिखाते हैं, साथ-साथ ‘मानवयुक्त चंद्रमा मिशन’ जैसी भव्य महत्वाकांक्षाओं की ओर इशारा करते हुए तंज कसते हैं.
आर प्रसाद का कार्टून मणिपुर के हिंसा पीड़ितों को लेकर “राहत, उपचारात्मक उपाय, मुआवजा, घरों की वापसी सुनिश्चित करने” और अन्य मानवीय मुद्दों की जांच करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तीन सदस्यीय महिला न्यायिक समिति की ओर इशारा करता है, जिसमें तीन पूर्व उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शामिल हैं.
(इन कार्टून्स को अंग्रेजी में देखने के लिए यहां क्लिक करें)