पटियाला, 19 मई (भाषा) क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू को 1988 के ‘रोड रेज’ मामले में बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय द्वारा एक साल के कारावास की सजा सुनाए जाने के बाद पीड़ित गुरनाम सिंह के परिवार ने ईश्वर का शुक्रिया अदा किया।
फैसले पर प्रतिक्रिया मांगे जाने पर गुरनाम सिंह की बहु परवीन कौर ने कहा, “हम बाबा जी (भगवान) का शुक्रिया अदा करते हैं। हमने इसे बाबाजी पर छोड़ दिया था। बाबाजी ने जो किया सही किया।”
उन्होंने और कुछ कहने से इनकार कर दिया। परिवार पटियाला शहर से पांच किलोमीटर दूर घलोरी गांव में रहता है। गुरनाम सिंह के पोते सैबी सिंह ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, “हम भगवान के शुक्रगुजार हैं।”
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति एस के कौल की पीठ ने सिद्धू को दी गई सजा के मुद्दे पर पीड़ित परिवार द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका को स्वीकार कर लिया था।
शीर्ष अदालत ने हालांकि मई 2018 में सिद्धू को मामले में 65 वर्षीय गुरनाम सिंह को ‘जानबूझकर चोट पहुंचाने’ के अपराध का दोषी ठहराया था, लेकिन 1,000 रुपये का जुर्माना लगाकर छोड़ दिया था।
पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘…हमें लगता है कि रिकॉर्ड में एक त्रुटि स्पष्ट है…. इसलिए, हमने सजा के मुद्दे पर पुनर्विचार आवेदन को स्वीकार किया। लगाए गए जुर्माने के अलावा, हम एक साल के कारावास की सजा देना उचित समझते हैं।’’
सितंबर 2018 में शीर्ष अदालत मृतक के परिवार द्वारा दायर की गई पुनर्विचार याचिका पर गौर करने पर सहमत हो गई थी और नोटिस जारी किया था, जो सजा के अनुपात तक सीमित था।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, सिद्धू और उनके सहयोगी रुपिंदर सिंह संधू 27 दिसंबर, 1988 को पटियाला में शेरांवाला गेट क्रॉसिंग के पास एक सड़क के बीच में खड़ी एक जिप्सी में थे। उस समय गुरनाम सिंह और दो अन्य लोग पैसे निकालने के लिए बैंक जा रहे थे।
जब वे चौराहे पर पहुंचे तो मारुति कार चला रहे गुरनाम सिंह ने जिप्सी को सड़क के बीच में पाया और उसमें सवार सिद्धू तथा संधू को इसे हटाने के लिए कहा। इससे दोनों पक्षों में बहस हो गई और बात हाथापाई तक पहुंच गई। गुरनाम सिंह को अस्पताल ले जाया गया जहां उनकी मौत हो गई।
निचली अदालत ने सितंबर 1999 में सिद्धू को हत्या के आरोपों से बरी कर दिया। हालांकि दिसंबर 2006 में उच्च न्यायालय ने निचली अदालत का फैसला पलटते हुए सिद्धू और संधू को भारतीय दंड संहिता की धारा 304 (गैर इरादतन हत्या) के तहत दोषी ठहराया। उच्च न्यायालय ने दोनों को तीन-तीन साल कैद और एक-एक लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई।
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प्रशांत मनीषा
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