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Friday, 22 November, 2024
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भाजपा तीन तलाक के मुद्दे पर चाहती है सर्वसहमति, लेकिन बल-प्रयोग के लिए भी तैयार

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सर्वसम्मति के लिए भाजपा ने बढ़ाए विपक्ष की तरफ हाथ. अपने सभी सांसदों को ‘किसी कीमत पर’ संसद में रहने के लिए जारी किया ह्विप.

नयी दिल्लीः गुरुवार को लोकसभा में ‘तीन तलाक’ को गैर-कानूनी बनाने वाला महत्वाकांक्षी विधेयक रखा जाएगा. प्रधानमंत्री की इसमें व्यक्तिगत रुचि को देखते हुए भाजपा ने अपने शस्त्रागार में सारे शस्त्र तैयार रखे हैं, ताकि यह आसानी से पारित हो जाए.

विपक्षी दलों के विरोध की प्रत्याशा में सत्ताधारी दल ने बिल को पारित करने के लिए अभी बहुआय़ामी रणनीति  बना रखी है. गृहमंत्री राजनाथ सिंह के के नेतृत्व में कई केंद्रीय मंत्री फोन पर विपक्षी दलों के नेताओं और विभिन्न मुख्यमंत्रियों तक पहुंच रहे हैं. साथ ही पार्टी ने सांसदों को अपना रुख बताने के लिए एक नोट भी भेजा है.

हालांकि, यह सर्वसम्मति बनाने पर काम कर रही है, लेकिन पार्टी ने अपने सभी सांसदों को 28 और 29 दिसंबर को ‘किसी भी कीमत पर’ पहुंचने के लिए ह्विप भी जारी किया है. भाजपा सांसदों को बताया गया है कि किसी भी सूरत में अनुपस्थिति बर्दाश्त नहीं की जाएगी. यह साफ संकेत है कि पार्टी बहुमत के ज़ोर पर भी इस विधेयक को पारित कराना चाहती है.

सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि केंद्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने राज्य सभा में विपक्षी नेता गुलाम नबी आज़ाद और तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन के साथ कुछ और विपक्षी नेताओं से बात की है. सरकार ने इस बात पर भी जोर दिया है कि बिल केवल ‘तलाक-ए-बिद्दत’ के संदर्भ में है, और मुस्लिम मैरेज एक्ट के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं करता। यह एक ऐसा मसला है, जिसे अधिकतर विपक्षी दल उठाएंगे.

सांसदों को नोट

सांसदों को भेजे गए नोट में सरकार ने अपनी स्थिति साफ की है कि बिल को अभी संसद मे पेश करना क्यों जरूरी है. एक सूत्र ने बताया, ‘सरकार विपक्षी दलों को यह समझाएगी कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद तीन तलाक के कुछ मामले सामने आए हैं औऱ इसीलिए इसके खिलाफ कानून जरूरी है’.

नोट के पहले भाग में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का एक हिस्सा दिया गया है, जहां अगस्त में पांच न्यायाधीशों की एक बेंच ने ‘तलाक-ए-बिद्दत’ को बेकार का प्रचलन बताया. पूर्व मुख्य न्यायाधीश, जस्टिस जे एस खेहर के उस व्क्तव्य को भी प्रकाश में लाया गाय है, जिसमें उन्होंने राय दी है कि विधायिका को इस पर कानून बनाना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट को इससे अलग रखा जाए. जस्टिस कूरियन जोसेफ की भी राय दी गयी है कि जो भी कुरान में मना है, वह शरीयत में अच्छा नहीं हो सकता. जो धर्मशास्त्र में मना है, वह कानून में कैसे सही हो सकता है- जस्टिस जोसेफ को ऐसा कहते हुए दिखाया गया है.

नोट के दूसरे हिस्से में एक अंतरराष्ट्रीय संधि का उल्लेख है, जिस पर भारत ने भी हस्ताक्षर किए हैं. वह संधि सीईडीएडब्ल्यू (द कनवेंशन ऑन द एलिमिनेशन ऑफ ऑल फॉर्म्स ऑफ डिसक्रिमिनेशन अगेंस्ट वूमन) है. इस पर नौ इस्लामिक देशों-पाकिस्तान, बांगलादेश, तुर्की, ट्यूनीशिया, अफगानिस्तान, मिस्र, ईरान, इंडोनेशिया और मोरक्को- ने भी दस्तखत किया है और तलाक पर कानून बनाया है.

नोट के तीसरे भाग में विधेयक के बारे में चर्चा की गयी है. यह कहता है कि प्रस्तावित कानून केवल तीन तलाक से संबंधित मामलों के लिए है जो गैरकानूनी है, इसमें तीन वर्ष की कैद और/या जुर्माना, महिला और आश्रितों के लिए गुजारा भत्ता औऱ बच्चों की कस्टडी के लिए है. सूत्र ने बताया कि बच्चों की कस्टडी शाहबानो मामले से अलग होगा. शाहबानो मामले में तलाक देने के बाद कस्टडी पर विचार किया गया है.

अपेक्षित प्रतिक्रिया

इस मसले पर विपक्ष का रुख अभी तक साफ नहीं है. कांग्रेस के एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि आम भावना तो यही है कि बिल को सार्वजनिक किया जाना चाहिए था और विपक्षी दल बिल की समीक्षा स्टैंडिंग कमिटी से कराने पर ज़ोर देंगे.

सूत्र ने कहा. ‘बिल को वैधानिक स्क्रूटनी की जरूरत है और पार्टी (कांग्रेस) इस बारे में सवाल उठाएगी कि सरकार सभी को साथ लेकर क्यों नहीं चली?’

हालांकि, कांग्रेस ऐसी पार्टी के तौर पर भी नहीं दिखना चाहती जो मुस्लिम महिलाओं के सुधार के खिलाफ हो और इसीलिए उसने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं.

गुलाम नबी आज़ाद ने कहा, ‘हमारा रुख हम सदन में साफ करेंगे। कांग्रेस वही करेगी, जो लोगों के हित में होगा’.

दूसरे दल भी तभी अपनी रुख साफ करेंगे, जब सदन के पटल पर विधेयक पेश होगा.

समाजवादी पार्टी के सांसद जावेद अली खान ने कहा, ‘हमने विधेयक को देखा नहीं है और बिना किसी समीक्षा के रुख बताना मुश्किल है. हम बिल का अध्ययन करने के बाद ही सपा का रुख साफ करेंगे’.

भाजपा की सहयोगी पार्टी जद-यू के वरिष्ठ नेता के सी त्यागी के विचार भी कुछ ऐसे ही हैं.

उन्होंने कहा, ‘हम सुधारों के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन सराकर को सभी साझीदारों को शामिल कर सर्वसम्मति तक पहुंचना चाहिए. वैसे, हम बिल की समीक्षा करने के बाद ही कुछ कहेंगे’.

भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की स्थापना करनेवाली ज़किया सोमन, जो इस प्रचलन को खत्म करने के लिए हुए आंदोलन में आगे थीं, ने कहा कि वह इस बिल का समर्थन करेंगे अगर अपराध को असंज्ञेय (नॉन-कॉग्निज़िबल) बना दिया जाए.

वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने पहले ही संकेत दिए हैं कि बिल को अगर लागू किया तो उसे कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है.

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