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अम्बासा, 14 फरवरी (भाषा) कुर्सी पर बैठे दुबले-पतले शरीर वाले 76 वर्षीय शख्स को देखकर यह यकीन करना मुश्किल है कि 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर से पहले उनका नाम बिजॉय कुमार हरंगखाल त्रिपुरा की पहाड़ियों में आतंक का पर्याय था।
हरंगखाल फिलहाल आदिवासी पार्टी टिपरा मोथा के अध्यक्ष हैं। प्रदेश के विधानसभा चुनाव के त्रिकोणीय मुकाबले में इस पार्टी के ‘किंग मेकर’ के तौर पर उभरने के आसार हैं। हालांकि अलग आदिवासी राज्य टिपरालैंड का मुद्दा पार्टी को मजबूती प्रदान करता है, लेकिन अब वह (हरंगखाल) भी मानते हैं कि इसे हासिल करने के लिए ”बंदूक सबसे बेहतर तरीका नहीं था”।
हरंगखाल का कहना है कि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में जो भी पार्टी उनकी इस मांग पर कागजों पर और सदन में सहमत होगी, वह उसका समर्थन करेंगे ।
प्रतिबंधित उग्रवादी संगठन त्रिपुरा नेशनल वॉलिंटियर (टीएनवी) के पूर्व प्रमुख ने मार्च 1983 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पत्र लिखा था। पत्र में उन्होंने कहा था, ‘‘आपके दिल तक पहुंचने के लिये सशस्त्र विद्रोह आवश्यक था। आप या तो 15 अक्टूबर 1947 के बाद त्रिपुरा में घुसपैठ करने वाले सभी विदेशी नागरिकों को वापस भेज दें अथवा त्रिपुरा के अलावा भारत में उन्हें कहीं और बसा दें…..हमारी मांग एक आजाद त्रिपुरा की है ।’’
त्रिपुरा के धलाई जिले के अंबासा में अपने दो मंजिले आवास पर पीटीआई भाषा के साथ विशेष साक्षात्कार में हरंगखाल ने कहा, ‘‘जब मैने 1960 में संघर्ष शुरू किया था, तो लोगों ने मुझे बंगालियों का विरोधी करार दिया ।’’
हवा में अपना हाथ लहराते हुये उन्होंने कहा, ‘‘मैने अपने काम से यह साबित किया है कि मैं सांप्रदायिक नहीं हूं । त्रिपुरा आदिवासी क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (टीटीडीएसी) में क्या किसी बंगाली अथवा अन्य बाहरी पर कभी हमला हुआ है ।’’
प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ हरंगखाल ने शांति संधि पर हस्ताक्षर किये थे जिसने उनके (हरंगखाल) और 447 साथी उग्रवादियों के आत्मसमर्पण का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने इसके बाद एक पार्टी गठित की । जिसका नाम – द इंडिजीनियस नेशनलिस्ट पार्टी आफ त्विप्रालैंड रखा गया ।
इसके साथ ही मौजूदा आदिवासी स्वायत्त जिला परिषद में और क्षेत्रों को शामिल करना तथा राज्य विधानसभा में आदिवासियों के लिए और अधिक सीटें आरक्षित करने की मांग की।
टिपरा मोथा पार्टी के प्रचारकों के टेलीफोन कॉल के बीच उन्होंने कहा, ‘‘मैं जानता था कि बंदूक बेहतर तरीका नहीं है, लेकिन कुछ कारणों से मुझे इसे अपनाना पड़ा था । मेरे खिलाफ कम से कम 50 से 60 मामले दर्ज थे ।’’
उन्होंने कहा, ‘‘लोकतंत्र एक बेहतर माध्यम है । (अलग राज्य की मांग के लिये) संवैधानिक समाधान सबसे बेहतर है । साथ ही उन्होंने कहा कि संभव है कि मैने हथियार उठा कर मैने इसे (लक्ष्य को) हासिल करने के अपने कुछ साल गंवा दिये।
हरंगखाल ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत 1967 में जातीय नेशनलिस्ट ट्राइबल त्रिपुरा उपजाति जुबा समिति के संगठन सचिव के तौर पर की, और इसके बाद 1977 में संगठन की उग्रवादी शाखा त्रिपुरा सेना के नेता बन गये। दशकों तक कांग्रेस के शासन के बाद इस दौरान इस सीमाई प्रदेश में वाम मोर्चा सत्ता में आया।
दो साल के भीतर इस उग्रवादी संगठन में टूट हो गयी और मिजो विद्रोहियों की मदद से टीएनवी का गठन किया गया, जो एक चरमपंथी बल था।
राजधानी अगरतला से 30 किलोमीटर उत्तर में स्थित मनदायी में जून 1980 में उग्रवादियों ने हमला कर किया जिसमें 255 मैदानी लोगों को मारा गया था।
उनकी पार्टी क्यों अलग राज्य की मांग कर रही है, इसके बारे में हरंगखाल ने कहा, ‘‘जनसंख्या के आधार पर प्रदेश में आदिवासी एक तिहाई हैं, तो वे (अधिकारी) हमें बजट का एक तिहाई क्यों नहीं देते हैं । त्रिपुरा का बजट 27,000 करोड़ रुपये का है, फिर भी वे 5,000 करोड़ रुपये देना चाहते थे और वास्तव में हमें केवल 1,000 करोड़ रुपये दिए गए।’’
भाजपा, कांग्रेस और माकपा सहित अन्य राजनीतिक दल संभवत: संविधान में एक संशोधन जिसे 125वां संशोधन कहा गया, के माध्यम से अधिक कार्यकारी, वित्तीय और विधायी शक्तियों को प्रदान करने को लेकर तैयार हैं । लेकिन हरंगखाल इससे संतुष्ट नहीं हैं।
पूर्व बागी ने कहा, ‘‘अधिक शक्तियां प्रक्रिया का हिस्सा हैं… लेकिन आखिरकार हमारे पास एक विधायिका के साथ-साथ एक अलग राज्य होना चाहिए।’’
भाषा रंजन रंजन पवनेश
पवनेश
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