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Tuesday, 24 September, 2024
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दिल्ली दंगा मामले में खालिद की जमानत याचिका पर अदालत ने पूछा पुलिस का रुख

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नयी दिल्ली, 22 अप्रैल (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली दंगा मामले में आरोपी उमर खालिद की जमानत याचिका पर शुक्रवार को दिल्ली पुलिस से उसका रुख पूछा है। अदालत ने कहा कि उमर खालिद का एक भाषण, जो फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों के पीछे एक बड़ी साजिश के लिए आरोपी के खिलाफ मामले का आधार बना, वह “अपने आप में आपत्तिजनक” था और प्रथम दृष्टया स्वीकार्य नहीं है।

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि भाषण में कुछ बयान आपत्तिजनक थे और उसने यह धारणा दी कि केवल एक संस्था ने देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी।

अदालत में विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने दिल्ली पुलिस का प्रतिनिधित्व किया। अदालत ने दिल्ली पुलिस को कड़े यूएपीए के तहत मामले में दायर जमानत अर्जी पर अपना संक्षिप्त जवाब दाखिल करने के लिए तीन दिन का समय दिया और मामले को आगे की सुनवाई के लिए 27 अप्रैल को सूचीबद्ध किया।

फरवरी 2020 में अमरावती में खालिद द्वारा दिए गए भाषण का एक हिस्सा उनके वकील ने पीठ के समक्ष पढ़ा। पीठ में न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर भी शामिल थे।

खालिद की टिप्पणी ‘जब आपके पूर्वज दलाली कर रहे थे’ के संदर्भ में अदालत ने कहा, “यह आपत्तिजनक है। इन अभिव्यक्तियों का इस्तेमाल किया जा रहा है, क्या आपको नहीं लगता कि वे लोगों को उकसाते हैं?” अदालत ने कहा, “स्वतंत्र भाषण से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन आप क्या कह रहे हैं?”

अदालत ने कहा, “यह अपने आप में आपत्तिजनक है। आपने इसे कम से कम पांच बार कहा … क्या आपको नहीं लगता कि यह समूहों के बीच धार्मिक उत्तेजना को बढ़ावा देता है? क्या गांधी जी ने कभी इस भाषा का इस्तेमाल किया था? क्या भगत सिंह ने इस भाषा को अंग्रेजों के खिलाफ इस्तेमाल किया था? क्या यही गांधी जी ने हमें सिखाया कि हम लोगों और उनके ‘पूर्वज’ के खिलाफ ऐसी अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर सकते हैं?”

अदालत ने पूछा कि क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता “आपत्तिजनक बयानों” तक विस्तारित हो सकती है और क्या भाषण धार्मिक समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देने के खिलाफ कानून को आकर्षित नहीं करता है।

पीठ ने कहा, “क्या अभिव्यक्ति की आजादी का विस्तार इस तरह के आपत्तिजनक बयान देने तक हो सकता है? क्या यह धारा 153 ए और धारा 153 बी (भादंवि) के तहत नहीं आता है? प्रथम दृष्टया यह स्वीकार्य नहीं है।”

अदालत ने कहा, “भगत सिंह का आह्वान करना बहुत आसान है लेकिन उनका अनुकरण करना मुश्किल है… एक सज्जन थे जिन्हें अंततः फांसी दी गई …. वह वहीं रहे …, वह भाग नहीं गए। आप कह रहे हैं कि आप वहां थे भी नहीं।”

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिदीप पाइस ने कहा कि अमरावती का भाषण संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के विरोध और जामिया मिल्लिया इस्लामिया में हुई हिंसा के संदर्भ में दिया गया था।

उन्होंने यह भी कहा कि भाषण से कोई “प्रतिक्रिया” नहीं थी और इसने हिंसा को उकसाया नहीं।

खालिद और कई अन्य पर फरवरी 2020 के दंगों के “मास्टरमाइंड” (मुख्य षड्यंत्रकारी) होने के मामले में आतंकवाद विरोधी कानून के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिसमें 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हो गए थे।

भाषा

प्रशांत दिलीप

दिलीप

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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