चेन्नई, 19 मई (भाषा) केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने बृहस्पतिवार को कहा कि चमड़ा प्रसंस्करण गतिविधियों से होने वाले कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को शून्य के स्तर पर ले जाया जाना चाहिए।
सिंह ने कहा कि यदि चमड़ा बनाने वाली अगली पीढ़ी की प्रौद्योगिकियों में चूने, सल्फाइड और अन्य संवेदनशील रसायनों के साथ खाल आधारित सामग्रियों को दूषित नहीं किया जाता है, तो मानव स्वास्थ्य में अनुप्रयोगों के लिए ‘कोलेजन’ आधारित नवोन्मेषी जैव सामग्रियां नए अवसर हो सकती हैं और वे चमड़े का सह-उत्पाद बन सकती हैं।
कोलेजन, पशुओं के शरीर में पाया जाने वाला एक मुख्य तत्व (प्रोटीन) है, जो अंगों को जोड़ने में सहायक होता है।
सिंह ने केंद्रीय चमड़ा अनुसंधान संस्थान (सीएलआरआई), चेन्नई के प्लेटिनम जयंती समारोह में कहा कि चमड़े के जूतों को पैरों की स्वच्छता और पहनने में सहजता को ध्यान में रखते हुए बनाए जाने की आवश्यकता है तथा इन्हीं के आधार पर इनका प्रचार करके बिक्री की जानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारत में व्यक्ति के पैर को 3डी तकनीक के इस्तेमाल से स्कैन करके उनके अनुरूप जूते तैयार करने के प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि पहले चरण में इस परियोजना के क्रियान्यवन के लिए देश के करीब 73 जिलों को शामिल किया गया है।
सिंह ने कहा कि भारतीय चमड़ा उद्योग को पर्यावरणीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए शून्य हरित गैस उत्सर्जन की ओर बढ़ना चाहिए।
उन्होंने कहा कि आगामी 25 वर्षों में चमड़ा अनुसंधान एवं उद्योग को स्थिरता,शून्य हरित गैस उत्सर्जन, पशुओं की खाल से बने उत्पादों की जैविक-अर्थव्यवस्था और ब्रांड की साख बनाने के साथ-साथ कर्मचारियों के वेतन की समानता को ध्यान में रखते हुए विकसित किया जाना चाहिए।
सिंह ने कहा कि 1947 में भारतीय चमड़ा क्षेत्र करीब 50,000 लोगों को आजीविका मुहैया कराता था और अब यह 45 लाख से अधिक लोगों को आजीविका प्रदान करता है।
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भारतीयों के जूते तैयार करने के लिए उनके पैरों को स्कैन करने के लिए 3डी तकनीक का उपयोग करके भारतीयों के लिए अनुकूलित जूते तैयार करने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि पहले चरण में इस परियोजना को लागू करने के लिए देश के लगभग 73 जिलों को शामिल किया गया है। सिम्मी सुभाष
सुभाष
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