नयी दिल्ली, 19 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे निर्माण की निगरानी के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति का मंगलवार को पुनर्गठन किया।
न्यायालय ने समिति के अध्यक्ष को हटा दिया और कुछ अतिरिक्त सदस्य इसमें शामिल किये।
एनजीटी ने दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेसवे के लिए अनिवार्य अवानिकीकरण और अन्य उपायों की निगरानी के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित की थी।
न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की पीठ ने पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में वन महानिदेशक सी. पी. गोयल को विशेषज्ञ समिति का अध्यक्ष बनाया।
एनजीटी ने उत्तराखंड सरकार के मुख्य सचिव को विशेषज्ञ समिति का अध्यक्ष बनाया था। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अध्यक्ष के बदलने को उत्तराखंड के मुख्य सचिव में भरोसे की कमी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसे एक्सप्रेसवे निर्माण में व्यापक समझ सुनिश्चित करने के तौर पर देखा जाना चाहिए।
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) की योजना के अनुसार छह लेन वाले इस नये राजमार्ग के बन जाने से दिल्ली से देहरादून की साढ़े छह घंटे की यात्रा घटकर महज ढाई घंटे की रह जाएगी। इस एक्सप्रेसवे के तहत 12 किलोमीटर मार्ग एलिवेटेड होगा, ताकि वनों एवं वन्यजीवों का संरक्षण संभव हो सके।
शीर्ष अदालत ने ‘हिमालयन स्टडीज एंड कंजर्वेशन ऑर्गेनाइजेशन’ के संस्थापक अनिल प्रकाश जोशी और पर्यावरणविद विजय धसमाना को भी समिति का अतिरिक्त सदस्य नियुक्त किया है।
न्यायालय का यह आदेश गैर-सरकारी संगठन ‘सिटीजन्स फॉर ग्रीन दून’ की ओर से दायर अपील पर आया है। एनजीओ ने एनजीटी द्वारा एक्सप्रेसवे के निर्माण को हरी झंडी दिये जाने के आदेश को चुनौती दी थी।
सुनवाई के प्रारंभ में एनजीओ की ओर से पेश वकील ऋत्विक दत्ता ने न्यायालय की सलाह के मद्देनजर स्वतंत्र सदस्यों के तौर पर विभास पांडव, एम के सिंह और विजय धसमाना के नाम सुझाए थे। उन्होंन अध्यक्ष को भी बदलने की मांग की थी।
केंद्र सरकर की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल और एनएचएआई की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिकाकर्ता के वकील की सलाह पर अपनी हामी भरी। हालांकि वेणुगोपाल ने वरीयता के आधार पर पांडव के नाम पर आपत्ति की।
न्यायालय ने मामले का निपटारा कर दिया और कानून के प्रश्नों को खुला रखा है।
भाषा सुरेश देवेंद्र
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