नयी दिल्ली, चार मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने विभिन्न उच्च न्यायालयों में आपराधिक मामलों से संबंधित अपील काफी समय से लंबित रहने को लेकर बुधवार को चिंता व्यक्त की और इस मुद्दे पर रिपोर्ट मांगी।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, बम्बई और ओडिसा में बड़ी संख्या में मामले लंबित रहने का उल्लेख किया और इस मुद्दे पर उच्च न्यायालयों से एक कार्ययोजना मांगी।
पीठ ने उच्च न्यायालयों को उसे यह सूचित करने का निर्देश दिया कि कितनी संख्या में दोषी अपनी अपीलों की सुनवाई की प्रतीक्षा कर रहे हैं। पीठ ने साथ ही एकल न्यायाधीश और खंडपीठ के मामलों को अलग करने, मामलों की सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए प्रस्तावित कदमों के बारे में सूचित करने का भी निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत ने यह उल्लेखित करते हुए कि मामले लंबित रहने से संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत संरक्षित त्वरित सुनवाई के अधिकार प्रभावित होंगे, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज को इस मामले में उसकी सहायता करने के लिए कहा।
सुनवाई के दौरान पीठ को बताया गया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में आपराधिक मामलों में अपील 1980 से लंबित है।
पीठ ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘व्यक्ति ने 1970 के दशक में अपराध किया होगा, यह देखते हुए कि मुकदमे की सुनवाई पांच या छह साल में समाप्त हो गई, उसने 1980 में अदालत का दरवाजा खटखटाया होगा। यदि वह तब 40 वर्ष का था, तो वह अब 80 वर्ष से अधिक का होना चाहिए।’’
शीर्ष अदालत भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत एक मामले में जमानत के अनुरोध वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें निचली अदालत ने व्यक्ति को उम्रकैद की सजा सुनाई है।
अपील इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष काफी समय से लंबित थी और जब तक व्यक्ति ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया, तब तक वह तीन साल की कैद की सजा काट चुका था।
भाषा अमित माधव
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