मुखर्जी नगर में 4 घंटे लंबी कोचिंग क्लास में हिस्सा लेने के बाद 21 वर्षीय श्वेता डागर शहर के दूसरे छोर पर दिल्ली यूनिवर्सिटी के साउथ कैंपस स्थित अपने कॉलेज पहुंचने की तैयार कर रही हैं. वह इसके लिए मेट्रो लेती हैं लेकिन सफर में लगने वाले 50 मिनट के समय को यूं ही खाली बैठकर ‘बर्बाद’ नहीं किया जा सकता. और मेट्रो पर सवार होते ही वह अपनी क्यूरेटेड प्लेलिस्ट निकालती है. नहीं, यह स्पॉटीफाई की नहीं है बल्कि यूट्यूब पर यूपीएससी स्टार्स वाली प्लेलिस्ट है. जब लक्ष्य बहुत बड़ा हो तो एक-एक मिनट बहुत कीमती होता है.
डागर जैसे तमाम युवा यूपीएससी उम्मीदवारों के बीच यूट्यूब तेजी से नया मुखर्जी नगर बनता जा रहा है. टीचर्स की एक पूरी फौज ही ऑनलाइन को अपना बेस बना चुकी है और करिकुलम से बहुत आगे की बेहद कड़ी प्रतिस्पर्धा वाली सिविल सेवा परीक्षाओं को पास करने के लिए टिप्स और ट्रिक्स बता रही है. ये टीचर्स खुद किसी इंफ्लूएंसर से कम नहीं हैं, लाखों अभ्यर्थी उनके एक-एक शब्द को बहुत ध्यान से सुनते हैं.
डागर की दोस्त काजल ने कहा, ‘क्लास में डाउट क्लियर करना हमेशा संभव नहीं हो पाता है. वहां बहुत से स्टूडेंट होते हैं. ऐसे में यूट्यूब वीडियो अक्सर काफी ज्यादा मददगार साबित होते हैं.’ वह हर दिन आठ से दस वीडियो देखती हैं.
मेट्रो कोच यात्रियों से भर जाने के बीच श्वेता डागर यूट्यूब पर जियोग्राफी का लेसन सुनते-सुनते उनके लिए जगह बनाती है. वह काफी संभालकर अपना फोन जेब में रखती हैं, बैग को सामने की ओर रखकर, एक हाथ को पास के पोल में फंसा लेती है. फिर हवा में लटके अपने इयरफोन के एक्सटेंशन को निकालती है और अपना लेसन फिर से सुनना चालू करने के लिए फोन निकालती हैं. सिविल सेवा परीक्षा क्रैक करने की एक लंबी यात्रा में यह उनकी नियमित दिनचर्या है.
देश में यूपीएससी के सबसे ज्यादा कोचिंग सेंटर दिल्ली में ही हैं, इसके बाद केरल, महाराष्ट्र और उड़ीसा का नंबर आता है. राष्ट्रीय राजधानी में ओल्ड राजिंदर नगर और करोल बाग के अलावा मुखर्जी नगर ऐसे सेंटर्स का हब है.
लेकिन, निश्चित तौर पर धीरे-धीरे फोकस ऑनलाइन पर केंद्रित होता जा रहा है. सोशल मीडिया ने टीचर्स को ईंट-गारे की दीवारों वाली कक्षाओं की जगह वर्चुअल क्लासेज में अपना प्रभाव बढ़ाने का अच्छा मौका उपलब्ध कराया है.
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यूपीएससी के यूट्यूब स्टार्स
यूपीएससी कोचिंग इंस्टीट्यूट दृष्टि आईएएस के एजूकेटर और मैनेजिंग डायरेक्टर विकास दिव्यकीर्ति के लिए ऑनलाइन स्विच करना रणनीतिक के बजाय आकस्मिक अधिक था. कोविड लॉकडाउन के बीच जब इंस्टीट्यूट अपना करिकुलम ऑनलाइन लाने की तैयारी कर रहा था तभी उसे अपने कंटेंट के ‘क्लोन’ के बारे में पता चला—हैशटैग #vikasdivyakirtisir (8,000 से अधिक चैनल) और #vikasdivyakirti (5,000 से अधिक चैनल) के तहत तमाम यूट्यूब हैंडल चल रहे थे.
वे उस इंस्टीट्यूट की विश्वसनीयता को भुना रहे थे, जिसे उन्होंने दो दशकों में बड़ी मेहनत से बनाया था. कई चैनल तो वीडियो के जरिए अच्छी-खासी कमाई भी कर रहे थे.
दिव्यकीर्ति ने बताया, ‘हमने शिकायतें दर्ज कराईं, लेकिन वे थमने का नाम ही नहीं ले रही थीं. हम एक के खिलाफ शिकायत करते तभी दूसरा सामने आ जाता.’ उनकी मौजूदगी 100 से अधिक छात्रों से भरी पूरी कक्षा में काफी प्रभावशाली होती है. संस्थान की तरफ से प्रकाशित यूपीएससी से संबंधित तमाम किताबें भी इसकी 23 साल की ब्रांड सक्सेस को रेखांकित करती हैं.
एक तरह से दिव्यकीर्ति पर अपनी ही सफलता भारी पड़ रही थी. ऑनलाइन ट्यूटोरियल में हिस्सा लेने वाले कई छात्रों में से एक प्रशांत झा कहते हैं कि छात्रों को समझाकर पढ़ाने का उनका तरीका एकदम ‘मां की तरह’ वाला है.
दिव्यकीर्ति ‘अनुच्छेद 370 और 35ए—जम्मू-कश्मीर (1947 से 2019)’ पर अपना लेक्चर शुरू करने से पहले कहते हैं कि हर कोई यह जानकार हैरान था कि ऐसा कैसे हुआ. इस पर छात्रों के बीच हंसी की लहर दौड़ जाती है लेकिन वह जल्द ही पढ़ाई की मुद्रा में आ जाते हैं और ध्यान से उनका लेक्चर सुनने लगते हैं.
वो जो विषय पढ़ा रहे हैं, काफी जटिल है. और दिव्यकीर्ति छात्रों को बताते हैं कि इस विषय की बारीकियां और इतिहास समझने में कुछ समय लगेगा. लेकिन थोड़े हंसी-मजाक वाले माहौल और जटिल विषयों पर उनकी अच्छी पकड़ छात्रों के लिए पढ़ाई को बोझिल नहीं होने देती. उनके 3 घंटे से अधिक लंबे लेक्चर को यूट्यूब चैनल पर 28 मिलियन से अधिक बार देखा जा चुका है.
दिव्यकीर्ति ने अपना लेक्चर शुरू करने के साथ ही छात्रों को सलाह दी कि वे 2019 की घटनाओं को अलग करके न देखें, बल्कि 1947 से सभी ऐतिहासिक घटनाओं के क्रम को समझें. इस दौरान उन्होंने कहा, ‘मैं कोशिश करूंगा की किसी भी ऐतिहासिक व्यक्ति पर झूठे आरोप लगाने से बचूं.’ वे अपने अन्य लेक्चर में भी इस तरह का वाक्यांश इस्तेमाल करते हैं, संभवतः, छात्रों के बीच निष्पक्षता की भावना पैदा करने के लिए वे ऐसा करते हैं.
आगे के लेक्चर में वह 1947 में स्वतंत्रता मिलने के बाद से लेकर विभाजन की वजहों और इंदिरा-शेख समझौते से लेकर अगस्त 2019 के घटनाक्रम तक के बारे में बताते हैं.
वीडियो के नीचे एक कमेंट में कहा गया है, ‘यह व्याख्यान किसी भी वेब सीरिज से कहीं बेहतर है.’ जिस पर अपनी टिप्पणी में कई व्यूअर इस बात का समर्थन करते हैं.
दिव्यकीर्ति के मामले में केवल उनके स्टूडेंट ही नहीं, बल्कि विभिन्न व्यवसायों से जुड़े लोग भी उनसे मिलने वाले ‘ज्ञान’ का सहारा लेते हैं. वह इतना ज्यादा प्रभावित करते हैं कि जाने-माने अभिनेता पंकज त्रिपाठी भी जटिल से जटिल विषय पर उनकी पकड़, पढ़ाने के तरीके और उनकी ‘सरलता’ के कायल हैं. 18वीं रैंक हासिल करके यूपीएससी सीएसई 2021 में हिंदी मीडियम के टॉपर बने रवि कुमार सिहाग भी त्रिपाठी की राय से सहमत हैं.
दिव्यकीर्ति 3 लाख से अधिक बार देखे गए एक वीडियो में सुझाव देते हैं कि स्टूडेंट अपनी पहली डेट पर एक गिलास पानी लेकर जाएं. उन्होंने कहा, ‘जब कोई बहुत तैयार होकर आए तो एक बरसात तो बनती है.’ उन्होंने लड़के-लड़कियों दोनों से कहा कि यह ट्रिक आजमाएं ताकि ‘असली’ चेहरे को जान और समझ सकें. इतना सुनते ही पूरी कक्षा में कुछ देर के लिए ठहाकों की आवाज गूंज उठती है.
वीडियो के नीचे एक कमेंट में लिखा है, ‘वह न केवल एक टीचर बल्कि शानदार कलाकार भी हैं.’ दिव्यकीर्ति जहां विभिन्न विषयों के साथ लाइफ लेसन्स को जोड़ना नहीं भूलते हैं, वहीं अनअकेडमी के पाथफाइंडर यूट्यूब चैनल का नेतृत्व कर रहे करंट अफेयर्स और हिस्ट्री विषय पर यूपीएससी के एक्सपर्ट महिपाल सिंह राठौर विवादास्पद विषयों पर चर्चा करने से नहीं कतराते.
‘भारत में वामपंथी चरमपंथ’ शीर्षक वाला उनका लेक्चर सबसे अधिक देखे जाने वाले वीडियो में शुमार है, जिसे यूट्यूब पर 5 लाख से अधिक बार देखा गया है और यह 1:33 घंटे लंबा है.
राठौर का तर्क है कि किसी सिविल सेवा उम्मीदवार को पाठ्यक्रम के इस ‘व्यापक विषय’ को अच्छी तरह समझना चाहिए. राठौर कहते हैं, ‘यूपीएससी सिलेबस में एक विषय आंतरिक सुरक्षा भी है जिसमें पूरा एक खंड ‘वामपंथी उग्रवाद’ पर केंद्रित है. इसलिए, छात्रों को इसके विस्तृत इतिहास और वर्तमान परिदृश्य के बारे में पढ़ाना बेहद महत्वपूर्ण है. और जहां एक वीडियो वामपंथी उग्रवाद पर है, मैंने ‘आरएसएस के इतिहास’ पर भी एक वीडियो बनाया है, जिसे लगभग 30 लाख बार देखा गया है.’ राठौर ने 2016 में राजस्थान पीसीएस और आईबी परीक्षा पास की थी, लेकिन अध्यापन जैसे पेशे के प्रति जुनून उन्हें इसी क्षेत्र में ले आया.
कुछ व्यूअर को जटिल विषय डिकोड करने वाले राठौर के वीडियो काफी पसंद आते हैं और वे इसकी सराहना करते हैं, वहीं कई लोग कमेंट बॉक्स में सीआरपीएफ में सेवा करते हुए अपनी जान गंवा देने वाले अपने परिजनों के बारे में बताते हैं और उनकी यादें साझा करते हैं.
एक टिप्पणी में लिखा है, ‘अगर इतिहास पढ़ाना एक कला है, तो महिपाल सर पिकासो हैं. वहीं, राठौर करीब 34 मिनट के एक वीडियो में 9/11 हमलों के ‘असली अपराधियों’ के बारे में बताते हैं.
राठौर खुद को इंस्टाग्राम पर भी स्थापित करने की कोशिश में जुटे हैं. माध्यम बदलने के साथ उनका पढ़ाने का पूरा तौर-तरीका बदल जाता है. उनके अधिकांश इंस्टाग्राम पोस्ट राजस्थानी विरासत की एक झलक दिखाते हैं, लेकिन हाल में उन्होंने ईंधन की बढ़ती कीमतों से लेकर महारानी एलिजाबेथ द्वितीय की मृत्यु तक समसामयिक मुद्दों पर रील अपलोड की हैं. राठौर बताते हैं, ‘मैंने 2017 में अपनी कक्षाएं पूरी तरह ऑनलाइन मीडियम में कर दी थीं. और, पिछले दो सालों से मैं रील और शॉर्ट्स बनाने में भी एक्टिव रहा हूं. यह मीडिया के सभी रूपों के ‘टिक्टोकिफिकेशन’ का युग है. आप एक मिनट में इतिहास तो नहीं पढ़ा सकते हैं लेकिन निश्चित तौर पर इस समयसीमा के भीतर दिलचस्प लेकिन प्रासंगिक कंटेट क्रिएट कर सकते हैं.’
बैकग्राउंड में जैसे ही इमेज चलती हैं, राठौर एक विस्तृत पॉडकास्ट सेटअप के साथ बैठे नजर आते हैं. उनके यूट्यूब वीडियो के विपरीत यहां कंटेंट क्विकर और क्रिस्प है. उनकी रील सामान्य ज्ञान देने वाली होती हैं, मसलन ‘उन देशों की संख्या कितनी है जिन्हें महारानी के अंतिम संस्कार में नहीं बुलाया गया’ या ‘भारत कच्चे तेल का आयात कहां से करता है’ आदि.
राठौर और दिव्यकीर्ति जैसे एजूकेटर जिनके पहले ही काफी ज्यादा ‘फॉलोअर’ थे, उनके ऑनलाइन आने से प्रशंसकों का आधार बहुत ही ज्यादा बढ़ गया है. बतौर शिक्षक करीब तीन दशकों का अनुभव रखने वाले मणिकांत सिंह ने भी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर स्विच करने के साथ तेजी से सफलता हासिल की है. लेकिन उनके संस्थान की तरह उनकी पढ़ाई का तरीका भी इंट्रोस्पेक्टेड, मॉडिफाइड और अपग्रेडेड है.
पुराने शिक्षकों को समय के साथ बदलना पड़ता है और वे कक्षा के पुराने प्रारूप पर टिके नहीं रह सकते. मणिकांत सिंह कहते हैं कि नई पीढ़ी को पढ़ाना ‘सबसे चुनौतीपूर्ण’ है.
उन्होंने आगे कहा, ‘सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के बीच तमाम राय और विचार अक्सर ध्रुवीकरण वाले और आधे-अधूरे होते हैं. इनसे निपटना एक बड़ी चुनौती है. कुछ हफ्ते पहले, एक छात्र ने किसी कार्यक्रम में रोमिला थापर की कही किसी बात पर आपत्ति जताई. मुझे उसके साथ तर्क करना था और उसे असहमति और अपराध के बीच अंतर को समझाना था.’
उनका सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला लेक्चर ‘इतिहास को कैसे समझें?’ उनकी विकसित शिक्षण पद्धति का एक उदाहरण है जिसे 5.6 मिलियन बार देखा गया है. मणिकांत 2 घंटे लंबे इस लेक्चर में बताते हैं, ‘इतिहास का सबसे बड़ा सबक परिवर्तन ही है. फैक्ट सिर्फ उदाहरण हैं.’ वह अपनी सबसे बड़ी सीख को रेखांकित करते हुए बताते हैं कि इतिहास नहीं बदलता, लेकिन समय के साथ उसके बारे में समाज की धारणा बदल जाती है.
वीडियो के नीचे एक कमेंट में लिखा है, ‘इतिहास को इतना रोचक बनाया, कमाल है.’ यह न केवल विषय बल्कि छात्रों को लेकर भी मणिकांत सिंह की समझ का एक प्रमाण है.
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मॉडर्न गुरू
जैसे-जैसे दुनिया ‘पाठशाला’ से ऑनलाइन कक्षाओं में बदली है, वैसे ही शिक्षकों को भी बदलना पड़ा है. अब केवल सिलेबस के अनुरूप पढ़ाना ही पर्याप्त नहीं है. ये ‘मॉडर्न गुरू’ छात्रों को यह बताने में पीछे नहीं रहते कि उन्हें कितने घंटे सोना है, कितने घंटे पढ़ना है और बेहद ही प्रतिस्पर्धी सिविल सेवा परीक्षाओं के लिए उन्हें अपनी साइकोलॉजिकल फिटनेस कैसे बढ़ानी है.
एक ऑनलाइन स्टडी प्लेटफॉर्म स्टडीआईक्यू से जुड़े 30 वर्षीय यूपीएससी शिक्षक शशांक त्यागी का कहना है ऑनलाइन एजूकेशन कंटेंट भरा पड़ा है लेकिन छात्रों के लिए इसके लिए सिलेक्टिव होना पड़ेगा और परीक्षा के लिहाज से उपयोगी सामग्री पढ़ने के लिए सही नजरिया अपनाना होगा.
बहरहाल, यूट्यूब ने त्यागी जैसे कई लोगों को चारदीवारी के दायरे से बाहर छात्रों तक पहुंचने में काफी मदद की है. त्यागी कहते हैं, ‘रूस से भारत के तेल आयात की वास्तविकता’ पर मेरे एक वीडियो ने केवल 2 महीनों में 1 मिलियन का आंकड़ा पार कर लिया. यूट्यूब के बिना इतने सारे छात्रों को पढ़ाना कभी संभव नहीं होता.’
पटना के ‘खान सर’ इसका एक और उदाहरण हैं कि कैसे ये मॉडर्न गुरू सोशल मीडिया पर छाये हुए हैं, जिनके लाखों फॉलोअर्स उनके पढ़ाने के तरीके के कायल हैं. उनके ऑनलाइन वीडियो के नीचे कमेंट में ऐसे कई कमेंट देखने को मिल जाएंगे, ‘मैं कोई स्टूडेंट नहीं हूं और न ही मैं किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा हूं, लेकिन मैं खान सर के वीडियो नियमित तौर पर देखता हूं.’
बात चाहे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की मौत के पीछे ‘पूरी कहानी’ की हो, या फिर यह डिकोड करना कि क्या ओसामा बिन लादेन एक वैज्ञानिक था फिर हाल में अल्लू अर्जुन अभिनीत पुष्पा: द राइज की, हर किसी विषय पर ही हिंदी में खान सर के विचार को लाखों व्यूज मिलते हैं. वजह सिर्फ ये नहीं है कि वह जटिल से जटिल विषय एकदम ‘सरलता’ से समझाते हैं बल्कि उसमें मिला हास्य का पुट भी लोगों को काफी आकर्षित करता है. इसी ने उनके प्रशंसक का आधार बहुत बड़ा बना दिया है. क्या आपको तेलुगु ब्लॉकबस्टर में पुष्पा की अजीबोगरीब चाल याद है? खान सर वैसे चलकर दिखाते हुए यह बात सिर्फ छात्रों को हंसाने के लिए नहीं कहते, बल्कि थर्मोडायनामिक्स पढ़ाते समय अपनी बात समझाने के लिए भी करते हैं.
इंफ्लूएंसर टीचर्स ने इस बात पर विचार करना भी शुरू कर दिया है कि वे अपनी कक्षा में छात्रों से अलग अनजान लोगों को कैसे दिखते हैं. ठीक से कपड़े पहनने पर भी ‘मॉडर्न टीचर’ काफी ध्यान देते हैं. काले-सफेद रंग के कपड़े और एक वास्कट पहने और चमड़े का बैग लिए त्यागी अक्सर सोशल मीडिया के लिए रील बनाने से पहले छात्रों से पूछते हैं कि कैसे लग रहे हैं. वह उनकी अपेक्षाओं और सपनों को समझते हैं जो उन्हें और अधिक विश्वसनीय बनाता है.
यूपीएससी परीक्षा पास करने के अपने प्रयास को याद करते हुए उन्होंने एक कांफ्रेंस टेबल पर बैठे हुए कहा, ‘किसी व्यक्ति के जूते देखकर मैं उसके दिन-प्रतिदिन के संघर्ष के बारे में जान-समझ सकता हूं.’
ऑनलाइन सूचनाएं बहुतायत में भारी पड़ी हैं, लेकिन इसमें कुछ गलत नहीं है. अपनी तैयारी के दिनों को याद करते हुए पूर्व केंद्रीय सचिव और सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अनिल स्वरूप मानते हैं कि वीडियो से लेकर पॉडकास्ट तक विभिन्न रूपों में ज्ञान बहुतायत में उपलब्ध है. उन्होंने 1980 के दशक में सिविल सर्विस परीक्षा पास की थी.
उम्मीदवारों को क्या चाहिए ‘कोचिंग से ज्यादा गाइडेंस की जरूरत होती है.’ अनिल स्वरूप कहते हैं, ‘मुझे नहीं पता कि कोचिंग कितनी मददगार होगी. लेकिन यह मेरी निजी राय है. कोचिंग के जरिये से एक साल में फंडामेंटल क्लियर नहीं किए जा सकते हैं लेकिन गाइडेंस से जरूर मदद मिल सकती है.’
त्यागी भी करिकुलम से आगे की बात करते हैं. उनके इंस्टाग्राम पोस्ट और रील छात्रों को ज्यादा पसंद आते हैं. त्यागी की कुछ ‘मोटिवेशनल’ रील इस तरह होती है—जैसे ‘एक वॉरियर की अपने संदेहों को कैसे दूर करें’, ‘असफलता से कैसे उबरें’, या ‘जब आपका कुछ करने का मन न हो….’ इन्हें हजारों की संख्या में लाइक्स मिलते हैं.
उनके वीडियो के नीचे एक कंमेट में लिखा है, ‘आपके शब्द हमेशा सुकून देते हैं.’ जबकि दूसरे में लिखा है, ‘गुरू जी, आप मेरा साथ दीजियेगा, मैं भी मंजिल छू लूंगा.’
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