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Monday, 25 November, 2024
होमदेशकानून-व्यवस्था पर योगी के भरोसेमंद अफसर अवनीश अवस्थी रिटायरमेंट के 15 दिन बाद ही ‘CM के एडवाइजर’ बने

कानून-व्यवस्था पर योगी के भरोसेमंद अफसर अवनीश अवस्थी रिटायरमेंट के 15 दिन बाद ही ‘CM के एडवाइजर’ बने

अवनीश अवस्थी की नियुक्ति यूपी के राज्यपाल की तरफ से सीएम योगी आदित्यनाथ के ‘एडवाइजर’ के ‘अस्थायी पद’ को मंजूरी देने के बाद की गई है.

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लखनऊ: यूपी सरकार ने 31 अगस्त को रिटायर हुए वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अवनीश अवस्थी को शुक्रवार को फरवरी 2023 तक सीएम योगी आदित्यनाथ का सलाहकार नियुक्त कर दिया, और इसके साथ ही उनकी नई भूमिका को लेकर चल रही तमाम अटकलों पर विराम लग गया है.

मुख्यमंत्री के सबसे भरोसेमंद अफसरों में शुमार अवस्थी की नियुक्ति राज्यपाल आनंदीबेन पटेल की तरफ से सलाहकार का ‘अस्थायी’ पद बनाए जाने को मंजूरी देने के बाद की गई है.

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि हाल के वर्षों में यूपी में यह ‘पहला मौका है जब किसी अफसर को रिटायरमेंट के बाद’ किसी मुख्यमंत्री का सलाहकार नियुक्ति किया गया है. अधिकारी ने बताया, ‘पहले भी सेवानिवृत्ति के करीब होने वाले कुछ अधिकारियों को सलाहकार की भूमिका दी गई है. लेकिन उन्हें आमतौर पर सेवानिवृत्ति से पहले या सेवानिवृत्ति के दिन ही नियुक्त किया गया.’

वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के मुताबिक, यूपी में सबसे शक्तिशाली नौकरशाह माने जाने वाले 1987 बैच के आईएएस अधिकारी अवनीश अवस्थी 80 सांसदों को लोकसभा भेजने वाले इस राज्य में ‘प्रशासनिक मामलों पर मुख्यमंत्री को सलाह देंगे.’

अपने रिटायरमेंट से पहले अवस्थी गृह, गोपनीयता, सतर्कता, ऊर्जा, धार्मिक मामलों आदि महत्वपूर्ण विभागों का कामकाज देख रहे थे.

योगी के विश्वासपात्र, गोरखपुर के पूर्व डीएम

अवस्थी को जुलाई 2019 में अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) नियुक्त किया गया और सरकार के तमाम अहम घटनाओं से निपटने के दौरान वही इस महत्वपूर्ण विभाग का कामकाज संभाल रहे थे, मसलन 2020 के सीएए विरोध प्रदर्शनों के दौरान कार्रवाई, हाथरस में एक 20 वर्षीय दलित लड़की का मध्यरात्रि में दाह संस्कार और इस साल की शुरू में प्रयागराज में हिंसा भड़काने के आरोपियों के स्वामित्व वाली संपत्तियों पर बुलडोजर चलाया जाना आदि.

आईआईटी-कानपुर से ग्रेजुएट अवनीश अवस्थी ललितपुर, आजमगढ़, बदायूं, फैजाबाद, वाराणसी, मेरठ के अलावा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्वाचन क्षेत्र गोरखपुर में भी जिला मजिस्ट्रेट के तौर पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं.

अवस्थी के सेवा विस्तार पर केंद्र सरकार के चुप्पी साधे रहने के बाद राजनीतिक गलियारों में ऐसी अटकलें लगाई जा रही थीं कि वह ‘सलाहकार की भूमिका’ में सरकार में लौट सकते हैं. पिछले हफ्ते वृंदावन में राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों और यूपी ब्रज तीर्थ विकास परिषद के सदस्यों की बैठक में उनकी मौजूदगी ने इन अटकलों को और तेज कर दिया था.

बैठक में अवस्थी के अलावा प्रमुख सचिव (पर्यटन) मुकेश मेश्राम, ब्रज तीर्थ विकास परिषद उपाध्यक्ष शैलजा कांत मिश्रा, मथुरा के जिलाधिकारी नवनीत सिंह चहल, अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (वित्त) योगानंद पांडे और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक गौरव ग्रोवर भी मौजूद थे.

एक हफ्ते बाद, यूपी के अतिरिक्त मुख्य सचिव देवेश चतुर्वेदी ने शुक्रवार शाम जारी एक आदेश में पुष्टि की कि राज्यपाल ने 28 फरवरी 2023 तक के लिए ‘सीएम के सलाहकार’ का ‘अस्थायी’ पद गठित करने मंजूरी दे दी है और अवस्थी को इस पद पर नियुक्त किया गया है.

आदेश में लिखा है, ‘यह आदेश 16 सितंबर को (राज्य) वित्त विभाग की स्वीकृति मिलने के बाद जारी किया जा रहा है.’ इसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास मौजूद है.

राज्य के नियुक्ति एवं कार्मिक विभाग (डीओएपी) की तरफ से शुक्रवार को जारी एक अन्य आदेश में भत्तों के साथ-साथ उनकी नियुक्ति की शर्तों का उल्लेख किया गया है. दूसरे आदेश के मुताबिक, अवस्थी को मुख्यमंत्री के सलाहकार के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान ‘अस्थायी सरकारी सेवक’ माना जाएगा.


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अन्य नौकरशाहों को भी मिली बड़ी जिम्मेदारियां

हालांकि, यह पहला मौका नहीं है जब किसी नौकरशाह को उत्तर प्रदेश में सीएम का सलाहकार नियुक्त किया गया है.

30 जून 2016 को 1978 बैच के आईएएस आलोक रंजन को तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का मुख्य सलाहकार नियुक्त किया गया था. रंजन की नियुक्ति राज्य के मुख्य सचिव के तौर पर उनके सेवा विस्तार के आखिरी दिन की गई थी.

समाजवादी पार्टी (सपा) नेता अखिलेश यादव के करीबी माने जाने वाले रंजन को कैबिनेट मंत्री का पद भी दिया गया था.

अपने रिटायरमेंट के समय आलोक रंजन उस विशेष समिति की अध्यक्षता कर रहे थे जिसकी निगरानी में गोमती रिवरफ्रंट प्रोजेक्ट के साथ-साथ इटावा में लायन सफारी, कन्नौज में परफ्यूम पार्क और लखनऊ मेट्रो जैसी अखिलेश की पसंदीदा परियोजनाओं पर काम चल रहा था.

वही, 2007 में पायलट से सिविल सेवक बने शशांक शेखर सिंह को कैबिनेट सचिव के रूप में नियुक्त करने का मायावती सरकार का फैसला एक विवाद में तब्दील हो गया था. इस पद को हाईकोर्ट की तरफ से ‘असंवैधानिक’ करार दिया गया था.

मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो यूपी सरकार को ‘कैबिनेट सचिव’ पद के गठन का आधार बताने को कहा गया, साथ ही यह भी स्पष्ट करने को कहा गया कि किसी ऐसे व्यक्ति, जो न तो आईएएस था और न ही राज्य प्रशासनिक सेवा का अधिकारी था, को इतने प्रभावशाली पद पर कैसे पदोन्नत किया गया.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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