नई दिल्ली: योगी आदित्यनाथ सरकार के अनुसार, अवैध धर्मांतरण के लिए कानून लोगों निजी स्वतंत्रता को सुरक्षित करता है, एक ‘लुप्तप्राय समुदाय’ की रक्षा करता है जो कि बलपूर्वक धर्मांतरण के आगे दबता है या झुकता है, और वैश्विक समझौतों के अनुरूप है, जो किसी एक के धर्म को चुनने की स्वतंत्रता की रक्षा करता है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के समक्ष गुरुवार को दायर एक हलफनामे में, अंतर-विवाह सहित जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए 27 नवंबर 2020 को लागू किए गए अपने अध्यादेश को सही ठहराते हुए सरकार ने कहा कि इस कानून का उद्देश्य दो व्यक्तियों की सहमति को ‘रेग्युलेट’ करना है, जिसमें ‘समुदाय और परिवार की भावना को सुरक्षित रखना’ और जिसके परिणस्वरूप समाज में संतुलन बनाए रखना है.
अध्यादेश को चुनौती देने वाली दायर याचिकाओं के जवाब में दिए गए हलफनामे में कहा गया कि राज्य का एकमात्र कर्तव्य है कि यह सुनिश्चित करना कि स्वतंत्रता को जिया जाए न कि पर्दा डाला जाय.
उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्मांतरण निषेध अध्यादेश 2020, गलत बयानी, अनुचित प्रभाव, जबर्दस्ती और प्रलोभन, किसी कपटपूर्ण तरीके से या विवाह द्वारा एक से दूसरे में धर्म परिवर्तन को आपराधिक बनाता है.
राज्य सरकार ने कहा कि जैसा कि याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया है उसने इसे ‘लव जिहाद’ नहीं कहा है और कानून बलपूर्वक धर्मांतरण के सभी रूपों पर लागू है और केवल अंतर-विवाह तक ही सीमित नहीं.
एफिडेविट पढ़ें तो सामुदायिक हित दो वयस्क व्यक्तियों के बीच विवाह की सहमति से अधिक अहमियत वाला है.
मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर की अगुवाई वाली पीठ ने गुरुवार को हलफनामे को रिकॉर्ड में लिया और मामले की आगे की सुनवाई 15 जनवरी तय की. हालांकि, राज्य सरकार के अनुरोध पर सुनवाई अनिश्तिकाल के लिए स्थगित कर दी गई.
प्रशासन ने शीर्ष अदालत के बुधवार के आदेश के मद्देनजर मामले को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने की मांग की थी, जिसमें उत्तर प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों को धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर नोटिस जारी करना शामिल है.
याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया है कि कानून संविधान में दिए उनके मौलिक अधिकारों का हनन करता है और अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (धर्म के आधार पर भेदभाव का निषेध), 21 (जीवन का अधिकार) और 25 (अंतरात्मा की स्वतंत्रता, आदि) का उल्लंघन करता है).
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धर्मांतरण व्यक्ति की गरिमा से समझौता करता है
हलफनामे में कहा गया है कि जब भी कोई व्यक्ति व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का इस्तेमाल करता है और धर्मांतरण का विकल्प चुनता है, तो इससे जटिलताएं पैदा होती हैं क्योंकि व्यक्ति की गरिमा से समझौता हो जाता है.
हलफनामे में दावा किया गया है इस तरह के किसी व्यक्ति के हालात की समानता का आश्वासन नहीं दिया जाता है. ‘इस प्रकार क्या होता है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का प्रयोग करते हुए अपनी प्रतिष्ठा और धर्म के प्रति समानता की भावना को खो देता है, जिसे वह अपनाता नहीं है, लेकिन दूसरे धर्म का सदस्य होकर समाज में किसी प्रकार का लाभ लेने की कोशिश करता है.
एक व्यक्ति जो अपने धर्म को नहीं बदलता है, लेकिन किसी अन्य धर्म के सदस्य के साथ जुड़कर केवल स्वतंत्रता या पसंद के अधिकार का उपयोग करता है, कि जब तक कि धर्मांतरण नहीं होगा है तब तक वह लाभ से वंचित रहेगा. हलफनामे में कहा गया है कि इस तरह का रूपांतरण एक ऐसे व्यक्ति की पसंद के खिलाफ होगा जो समाज में दूसरे धर्म के सदस्य के साथ रहना चाहता है, लेकिन अपना विश्वास नहीं छोड़ना चाहता.
योगी आदित्यनाथ सरकार ने कहा कि यह हितों का टकराव है, कानून का उद्देश्य किसी व्यक्ति के अंतर-मौलिक अधिकार की रक्षा करना है.
प्रस्तुत किए गए हलफनामे में कहा गया है कि यह अच्छी तरह से तय किया गया है कि सामुदायिक हित हमेशा व्यक्तिगत हित के ऊपर रहेगा.
याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता शाश्वत आनंद ने दिप्रिंट को बताया कि यूपी सरकार अदालत को गुमराह करने की कोशिश कर रही थी. उन्होंने कहा कि हलफनामा उन याचिकाकर्ताओं की चिंताओं को दूर करने में विफल रहा जिन्होंने कानून को इस आधार पर चुनौती दी है कि यह अस्पष्ट और व्यापक रूप से प्रचलित है, जो लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बाधित करने की धमकी देता है.
सरकार ने कहा, बलपूर्वक धर्मांतरण पर यूएन सभा ने नोटिस लिया है
योगी आदित्यनाथ सरकार ने आगे जोर देकर कहा कि समुदाय में फैले डर के मनोविकार अपने सदस्यों को अवैध धर्मांतरण के दबाव के आगे झुकने के लिए मजबूर करते हैं. इसलिए, ऐसे परिदृश्य में ‘व्यक्तिगत हित के माइक्रोएनालिसिस’ पर ध्यान नहीं दिया जा सकता है.
सरकार की ने दावा किया है, संविधान के अनुच्छेद 25 में धर्म के अभ्यास, पेशा या प्रचार का अधिकार है लेकिन इसमें धर्मांतरण का अधिकार शामिल नहीं है, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने माना है.
साथ ही, यह भी कहा कि यह अनुच्छेद 51 के तहत राज्य का कर्तव्य था कि वह अंतरराष्ट्रीय कानून संधियों के दायित्वों के प्रति सम्मान बढ़ाए. यूपी के कानून के अनुसार, अध्यादेश 1966 और 1981 में संयुक्त राष्ट्र के दो प्रस्तावों के अनुरूप है.
सरकार ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट राज्य के सकारात्मक दायित्व की सिफारिश करती है ताकि ऐसे व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा की जा सके जो कि गैर-राज्य के लोगों द्वारा अतिक्रमित किए जा रहे हो.
‘संविधान किसी तरह से बलपूर्वक धर्म परिवर्तन के खिलाफ है’
हलफनामे में कहा गया है कि राज्य सरकार को HC के समक्ष जाने वाले याचिकाकर्ताओं की योग्यता पर संदेह है और अदालत को उनकी ‘छोटी सोच’ पर विचार करने की सलाह दी.
हलफनामे के अनुसार यह बताना गलत है कि हर धर्मांतरण को गैरकानूनी माना जाता है जब तक कि सरकार द्वारा प्रमाणित नहीं किया जाता है. बल्कि, प्रक्रिया कानून में निर्धारित नियामक में हो, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक रूपरेखा को बरकरार रखा गया है.
धर्मांतरण के लिए स्वतंत्र अभ्यास या विकल्प कानून के तहत अपराध नहीं है, जो राज्य ने दावा किया है, इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति को जबरन धर्म परिवर्तन के लिए आतंकित या जोर-जबर्दस्ती धर्मांतरण पर नजर रखना है.
संविधान की प्रस्तावना का हवाला देते हुए, योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्रस्तुत किया कि संविधान बलपूर्वक धर्मांतरण को रोकता है और यह एक धर्मनिरपेक्ष राज्य का कर्तव्य था कि वह अपने नागरिकों को किसी भी प्रकार के गैरकानूनी या बलपूर्वक धर्मांतरण से बचाए ताकि विचार की स्वतंत्रता, विश्वास और पूजा की स्वतंत्रता हो. साथ ही स्थिति की समानता सुरक्षित रखी गई है.
सरकार का कहना है कि न्यायालय कानूनों की जांच नहीं कर सकते
उत्तर प्रदेश सरकार ने अदालत के अधिकार क्षेत्र पर, अध्यादेश की शक्तियों की जांच करने को लेकर सवाल किया है, क्योंकि यह भगोड़े जोड़ों द्वारा दायर मामलों में दिए गए आदेशों पर आधारित थी.
एचसी इस बात की जांच कर रही कि क्या विधिसम्मत विवाह हुए हैं या नहीं, राज्य सरकार ने कहा कि ऐसी चीजों को कार्यपालिका के हाथों में छोड़ देना चाहिए. उसने इस विवाद के समर्थन में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक निर्णय को पेश किया.
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