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Friday, 26 April, 2024
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यूपी में गोवंशीय पशुओं को शारीरिक नुकसान पहुंचाने पर 7 साल का कठोर कारावास, अध्यादेश मंजूर

गोवध निवारण कानून को और अधिक प्रभावी बनाने के मकसद से 1955 के इस कानून में संशोधन के प्रस्ताव को सरकार ने हरी झंडी दे दी.

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश सरकार ने गोवंशीय पशुओं को शारीरिक क्षति पहुंचाने पर अधिकतम सात साल के कठोर कारावास और तीन लाख रूपये तक के जुर्माने के प्रावधान वाले एक अध्यादेश को मंगलवार को मंजूरी दे दी .

गोवंशीय पशुओं की रक्षा एवं गोकशी की घटनाओं से संबंधित अपराधों को पूर्णतया रोकने तथा गोवध निवारण कानून को और अधिक प्रभावी बनाने के मकसद से 1955 के इस कानून में संशोधन के प्रस्ताव को सरकार ने हरी झंडी दे दी.

अपर मुख्य सचिव :गृह एवं सूचना: अवनीश कुमार अवस्थी ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में उनके सरकारी आवास पर हुई मंत्रिपरिषद की बैठक में यह महत्वपूर्ण फैसला किया गया .

अवस्थी ने बताया कि मूल कानून :संशोधन के साथ: की धारा—5 में गोवंशीय पशुओं को शारीरिक क्षति पहुंचाकर उनके जीवन को संकट में डालने या उनका अंग भंग करने और गोवंशीय पशुओं के जीवन को संकट में डालने वाली परिस्थितियों में परिवहन करने के लिए दंड के प्रावधान नहीं हैं .

उन्होंने बताया कि मूल कानून में धारा—5 ख के रूप में इस प्रावधान को शामिल किया जाएगा और न्यूनतम एक वर्ष के कठोर कारावास के दंड की व्यवस्था रहेगी, जो सात वर्ष तक हो सकता है और जुर्माना न्यूनतम एक लाख रूपये होगा, जो तीन लाख रूपये तक हो सकता है . मूल कानून में कुछ और संशोधन अध्यादेश के माध्यम से करने का प्रस्ताव है .

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अवस्थी ने बताया कि राज्य कैबिनेट ने उत्तर प्रदेश गोवध निवारण :संशोधन: अध्यादेश, 2020 लाने का फैसला किया . इस अध्यादेश को लाने तथा उसके स्थान पर विधानमंडल में विधेयक पेश कर पुन: पारित कराये जाने का फैसला भी कैबिनेट ने किया .

उन्होंने बताया कि राज्य विधानमंडल का सत्र नहीं होने तथा शीघ्र कार्रवाई किये जाने के मददेनजर अध्यादेश लाने का फैसला किया गया .

अवस्थी ने बताया कि अध्यादेश का उददेश्य उत्तर प्रदेश गोवध निवारण कानून, 1955 को और अधिक संगठित एवं प्रभावी बनाना तथा गोवंशीय पशुओं की रक्षा एवं गोकशी की घटनाओं से संबंधित अपराधों को पूर्णतया रोकना है .

उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश गोवध निवारण कानून, 1955, छह जनवरी 1956 को प्रदेश में लागू हुआ था . वर्ष 1956 में इसकी नियमावली बनी . वर्ष 1958, 1961, 1979 एवं 2002 में कानून में संशोधन किए गए तथा नियमावली का 1964 व 1979 में संशोधन हुआ. लेकिन कानून में कुछ शिथिलताएं बनी रहीं. प्रदेश के भिन्न-भिन्न भागों में अवैध गोवध एवं गोवंशीय पशुओं के अनियमित परिवहन की शिकायतें प्राप्त होती रहीं हैं.

उन्होंने बताया कि गोवध निवारण कानून को और अधिक सुदृढ़, संगठित एवं प्रभावी बनाने तथा जन भावनाओं का आदर करते हुए उत्तर प्रदेश गो-वध निवारण (संशोधन) अध्यादेश, 2020 मंजूर करने का निर्णय लिया गया है . इस अध्यादेश से गोवंशीय पशुओं का संरक्षण एवं परिरक्षण प्रभावी ढंग से हो सकेगा तथा गोवंशीय पशुओं के अनियमित परिवहन पर अंकुश लगाने में परोक्ष रूप से मदद मिलेगी .

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