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Wednesday, 6 November, 2024
होमदेशअखिलेश यादव ने यूपी के पत्रकारों की मदद के लिए शुरू की थी हेल्पलाइन, अब पड़ी है बंद

अखिलेश यादव ने यूपी के पत्रकारों की मदद के लिए शुरू की थी हेल्पलाइन, अब पड़ी है बंद

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी ) के आंकड़ों की मानें तो देश में पत्रकारों के साथ हिंसा और मारपीट के मामलों में उत्तर प्रदेश टॉप पर है.

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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में लगातार पत्रकारों पर प्रशासन द्वारा की जारी रही कार्रवाई को लेकर चौतरफा आलोचना हो रही है. मिर्जापुर के एक सरकारी स्कूल में नमक-रोटी खा रहे बच्चों पर स्टोरी करने के लिए पत्रकार पवन जायसवाल पर हुई एफआईआर के बाद मामलों की बाढ़ सी आ गई है.

लेकिन, उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के लिए ये कोई नई बात नहीं है. अगर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी ) के आंकड़ों की मानें तो देश में पत्रकारों के साथ हिंसा और मारपीट के मामलों में उत्तर प्रदेश टॉप पर है. एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक ही यहां पिछले छह सालों में पत्रकारों के खिलाफ हुई हिंसा के लगभग 70 मामले दर्ज हो चुके हैं. इस दौरान कई पत्रकारों की मौत भी हुई है.

ज्ञात हो इन घटनाओं के चलते ही साल 2016 में अखिलेश सरकार को पत्रकारों की मदद के लिए एक हेल्पलाइन शुरू करनी पड़ी थी. मीडिया के लिए शुरू हुई इस हेल्पलाइन 1880–1800–303 का उद्देश्य पत्रकारों को सुरक्षा और संरक्षण देना था. इस तरह उत्तर प्रदेश पत्रकारों के लिए कोई हेल्पलाइन लॉन्च करने वाला पहला राज्य बन गया था. इस हेल्पलाइन को लागू करने का जिम्मा राज्य के सूचना एवं जनसपंर्क विभाग को दिया गया था. हालांकि विभाग के पास इस हेल्पलाइन के जरिए मदद देने के आंकड़ें नहीं है.

लेकिन चार साल बाद ये हेल्पलाइन अब वजूद में नहीं है. दिप्रिंट ने पिछले दिनों हिंसा और प्रशासनिक कार्रवाई का शिकार हुए पत्रकारों से इस हेल्पलाइन के बारें में पूछा तो ज्यादातर ने बताया कि उन्हें इस बात की कोई जानकारी नहीं है. कुछेक ने बताया कि इस हेल्पलाइन से कोई मदद नहीं मिली. ज्यादातर पत्रकार छोटे शहरों और कस्बों से आते हैं.

गौरतलब है कि साल 2015 में अखिलेश सरकार के मंत्री राम मूर्ति के आदमियों पर आरोप लगे थे कि उन्होंने शाहजहांपुर जिले के एक स्वतंत्र पत्रकार जगेंद्र सिंह पर पेट्रोल छिड़कर जिंदा जला दिया. चौतरफा दबाव के चलते ही अखिलेश सरकार को कई कदम उठाने पड़े थे. ये हेल्पलाइन भी उसी प्लान का हिस्सा था.

उस वक्त अखिलेश सरकार के प्रिंसिपल सेक्रेटरी नवनीत सेहगल ने कहा था, ‘जो सुदूर इलाकों के पत्रकार हैं उनको अपनी हर समस्या के लिए लखनऊ नहीं आना पड़ेगा. इस हेल्पलाइन के जरिए उनकी समस्याओं का निदान डिस्ट्रिक्ट मेजिस्ट्रेट या उच्च अधिकारी करेंगे.’

पत्रकारों को नहीं मिला कोई फायदा

हेल्पलाइन बनने के बाद ट्वीटर पर एक अकाउंट भी बना, जिसके अब तक सिर्फ पांच फॉलोअर्स हैं. ये अकाउंट सीएम दफ्तर को फॉलो करता है. इस हैंडल पर कुल छह ट्वीट किए गए हैं और 20 जनवरी 2016 के बाद के कोई ट्वीट नहीं किया गया है.

बिजनौर में मकान बिकाऊ होने की खबर दिखाने वाले आशीष तोमर नाम के पत्रकार पर मामला दर्ज हुआ है. दिप्रिंट से बात करते हुए आशीष ने बताया, ‘पहले मुझे ऐसी कभी जरूरत नहीं पड़ी. अब फोन करके देखा है तो फोन लग ही नहीं रहा है.’

वहीं, 2 सितंबर को मिर्जापुर की चुनार तहसील में भीड़ द्वारा पीटे गए कृष्ण कुमार को भी इस हेल्पलाइन से कोई मदद नहीं मिली. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘दो सितंबर के बाद से मेरा एक्सरे तक नहीं करवाया गया. मुझे बुरी तरह पीटा गया था. लेकिन सारे दरवाजे खटखटाने के बाद कोई मदद नहीं मिली.’

हाल ही में नमक रोटी की स्टोरी से चर्चा में आए पत्रकार पवन जायसवाल का कहना है, ‘हमें इस हेल्पलाइन का पता तो है, लेकिन इससे कोई मदद नहीं मिली है. कई लोगों ने शिकायतें दर्ज कराई है , लेकिन कोई निदान नहीं निकाला गया. फिर पत्रकारों ने फोन करना बंद कर दिया. मैं भी इस हेल्पलाइन पर फोन करने से लेकर बाकी जगहों पर शिकायत लिखवा चुका हूं.’

हेल्पलाइन को दोबारा शुरू करने पर विचार करेगी सरकार

उत्तर प्रदेश सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के डायरेक्टर शिशिर सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘ये हेल्पलाइन चलाई गई थी लेकिन कुछ समय बाद ये सुस्त पड़ गई. हमारे पास बहुत कम शिकायतें दर्ज हुईं. बाद में ये हेल्पलाइन बंद कर दी गई. लेकिन मैंने 12 सितंबर को मान्यता समिति और पत्रकारिता संस्थाओं के कम से कम 18 लोगों की बैठक बुलाई. जहां हाल ही में पत्रकारों के साथ हुई इन घटनाओं पर चर्चा की गई और साथ ही हेल्पलाइन को दोबारा चलाने का प्रोपोजल रखा.’

वो आगे बताते हैं, ‘ऑनलाइन प्रोसेस करने से पत्रकार की शिकायत हम तक पहुंचना आसान हो जाता है, क्योंकि कई बार दफ्तर आकर शिकायत दर्ज कराने में पत्रकार को ऐड या काम ना मिलने का डर सताने लगता है. हम पत्रकारों की समस्याओं का निपटान करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.’

पत्रकारों पर कार्रवाई को लेकर बयानबाजी महज एक सियासत

हालांकि, उत्तर प्रदेश के शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने पत्रकारों पर हो रहे हमलों की निंदा की है और मिर्जापुर पत्रकार मामले में जांच करवाने का आश्वासन भी दिया है. लेकिन पत्रकारों के लिए बनाई गई हेल्पलाइन पर ना ही भाजपा नेताओं को ज्यादा जानकारी है और ना ही समाजवादी पार्टी के नेताओं को.

खैर! समाजवादी पार्टी के प्रमुख प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी को इस हेल्पलाइन के बारे में याद दिलाने पर उन्होंने कहा, ‘ये पार्टी जनता के लिए चलाई गई कौनसी स्कीम को चला पा रही है? लोकतंत्र रहा ही नहीं है. हमने पत्रकारों के लिए हेल्पलाइन शुरू की. लेकिन इस सरकार ने पत्रकारों को ही धमकाना शुरू कर दिया है.’

हालांकि, टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए लिखने वाले पत्रकार पीयूष राय नेताओं की बयानबाजी से इत्तेफाक नहीं रखते. वो कहते हैं, ‘कोई भी पार्टी सत्ता में आते ही धमकाना शुरू करती है. उत्तर प्रदेश में पत्रकारों के हकों की रक्षा करने के लिए कोई महत्वपूर्ण संस्था नहीं है.’

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