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Monday, 23 December, 2024
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मोदी सरकार 70 सालों में सबसे किसान विरोधी सरकार है: योगेंद्र यादव

किसान समस्या पर लिखी किताब में योगेंद्र यादव ने कहा, देश में सभी सरकारें किसान विरोधी रही हैं, पर मोदी सरकार सबसे ज्यादा किसान विरोधी है.

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‘इस देश में कभी भी किसान हितैषी सरकारें नहीं आईं. लेकिन मोदी सरकार ने किसान विरोध के मामले में पिछली सब सरकारों को मात दे दी है. यह देश की पहली सरकार है जो हर स्तर पर किसान विरोधी साबित हुई है. क्योंकि इसने आपदा में किसानों की मदद नहीं ​की, बल्कि जानबूझ कर किसानों पर नियोजित हमले करके उनकी कमर तोड़ दी. मोदी सरकार इस देश की अब तक की सबसे किसान विरोधी सरकार है.’ यह कहना स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव का.

सोमवार को योगेंद्र यादव की किताब ‘मोदी राज में किसान: डबल आमद या डबल आफत’ का दिल्ली में लोकार्पण हुआ. इस मौके पर योगेंद्र यादव ने किताब पर चर्चा करते हुए मोदी सरकार की कृषि नीतियों पर अपनी बातें रखीं और सरकार के कृषि और किसान संबंधी दावों को झूठा बताया.

29 और 30 नवंबर को दिल्ली में होने जा रहे किसान मुक्ति मार्च के पहले इस किताब का लोकार्पण किया गया. इस मौके पर किसान नेता अभीक साहा ने कहा कि इस किताब को हम किसानों के बीच में वितरित करेंगे ताकि वे सच्चाई जान सकें.

योगेंद्र यादव ने कहा, ‘मोदी सरकार इस देश की सबसे किसान विरोधी सरकार है. इस बात पर लोग चौंकते हैं कि ये कैसे हो सकता है. किसान विरोधी होने के तीन मायने हो सकते हैं. एक, आप किसान विरोधी हैं क्योंकि आपका मानना है कि किसान इतिहास का अवशेष है जिसे कूड़ेदान में जाना ही है. ये किसान का वैचारिक विरोध है. दूसरा है व्यवस्थागत विरोध. आप ऐसी नीतियां बनाते हैं कि जिससे किसान अपने आप हाशिए पर चला जाएगा. तीसरा है एक तरह की वर्गशत्रुता, जिसे हम आम भाषा में बैर कह सकते हैं, हमारे देश में पिछले 70 साल इन तीन में से तरह तरह के विरोध चलते रहे हैं. किसान हितैषी सरकार इस देश में कभी नहीं आई है.’

लेकिन ये पहली सरकार है जो तीनों तरह के किसान विरोध को एक साथ जोड़ती है. जहां वैचारिक विरोध भी है, व्यवस्थागत विरोध भी है और वर्गविरोध भी है.

उन्होंने इस आरोप का बचाव करते हुए कहा कि नरेंद्र मोदी का सबसे बड़ा वादा था कि फसल की लागत का डेढ़ गुना दाम देना. सत्ता में आते ही सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि यह लागू नहीं हो सकता. फिर जब बहुत दबाव पड़ा तो कृषि मंत्री ने संसद में कहा कि हमने तो ऐसा वादा किया ही नहीं था. फिर वित्त मंत्री ने कहा कि हम इसे लागू कर रहे हैं. जो वादा किया ही नहीं था, उसे लागू कर रहे हैं. और जब लागू किया तो उसमें भी डंडी मार दी. उसकी परिभाषा ही बदल दी. सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य के एतिहासिक होने का जो दावा कर रही है कि वह झूठ है.

योगेंद्र यादव ने कृषि पर खर्च दोगुना करने के दावें को भई ग़लत बताया. वे कहते हैं, ‘ प्रधानमंत्री मंच पर खड़े होकर झूठ बोलते हैं. तमाम दावों के बाद सरकार ने जो किया है, वह कुछ भी नहीं है. सिंचाई के क्षेत्र में जो दावे किए गए, उसमें से 90 प्रतिशत पूरे ही नहीं हुए.’

उन्होंने कहा कि यह किताब कोई वि​शेष अकादमिक काम का नतीजा नहीं, बल्कि अब तक जो तथ्य सार्वजनिक थे, जिनके बारे में तमाम लोग बात कर रहे हैं, लेकिन कहीं पर इसे एकत्र नहीं किया गया था, हमने उन्हीं बातों को एकत्र ​करने की कोशिश की है.

सभी सरकारे किसानों के प्रति उदासीन

उन्होंने ​कहा कि सभी ​सरकारें किसानों के प्रति या तो उदासीन रहीं, या अपनी नीतियों में किसान विरोधी रहीं. पहले की सरकारों ने किसानों को बीमार करके अस्पताल में पहुंचाया था. इस सरकार ने उन्हें बचाने की जगह आईसीयू में पहुंचा दिया.

मोदी सरकार का वादा था कि किसान की आमद दोगुनी करेंगे लेकिन किसानों की आफत दोगुनी हो गई है. उन्होंने कहा, ‘प्रमाणिक तथ्यों और आंकड़ों के साथ यह पुस्तक मोदी सरकार के किसान संबंधी चुनावी वादों, सरकारी दावों और डबल आय के नारे का सच उजागर करती है.’

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार का दावा है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य में ऐतिहासिक वृद्धि की है ​लेकिन वास्तव में यह 2008 की वृद्धि से भी कम है. जो न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित भी किया गया है वह भी किसानों को नहीं मिल रहा है. उन्होंने कहा कि फसल बीमा योजना से सरकारी खर्च 450 प्रतिशत बढ़ा लेकिन इसका लाभ 10 प्रतिशत किसानों को भी नहीं मिला.

उन्होंने कहा कि ‘गोहत्या रोकने के नाम पर देशभर में पशु व्यापार की कमर तोड़ दी गई. पशुओं के दाम गिर रहे हैं. किसानों की अतिरिक्त आय बंद हो गई और किसान आवारा पशुओं की समस्या से त्रस्त हैं.

उन्होंने अधिग्रहण कानून, वनाधिकार कानून आदि को लेकर भी सरकार की मंशा पर सवाल उठाए.

इस अवसर पर बतौर वक्ता प्रोफेसर अशोक गुलाटी ने भारतीय कृषि व किसानों की समस्या व समाधान के कई सुझाव दिए. उन्होंने कहा कि किसानों को प्राइस सपोर्ट की जगह इनकम सपोर्ट पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि कर्ज़माफी, न्यूनतम समर्थन मूल्य आदि से किसानों का भला नहीं हो रहा है. उन्होंने बाज़ार की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि कोई भी सरकार बाज़ार से नहीं लड़ सकती. लेकिन वह किसानों को कृषि के साथ साथ गैर कृषि क्षेत्र में रोज़गार बढ़ाकर मदद कर सकती है.

पत्रकार हरवीर सिंह ने कहा कि किसान कृषि भवन, उद्योग भवन,आपदा विभाग व खाद्य आपूर्ति मंत्रालय के चक्करों में पिस रहा है. वक्ता और किसान संगठनों से जुड़े अजयवीर जाखड़ ने कहा कि देश में सातवां वेतन आयोग भी किसानों के ख़िलाफ़ है. कुछ करोड़ लोगों के वेतन में बढ़ोतरी करने की जगह इसमें कटौती कर उस पैसे से नौकरियां सृजित की जानी चाहिए. इस अवसर पर किसान नेता बीएम सिंह, अवीक साहा, किरण बिस्सा, प्रशांत भूषण भी मौजूद थे.

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