नई दिल्ली: विश्व मौसम विज्ञान संगठन (वर्ल्ड मेट्रोलॉजिकल आर्गेनाइजेशन – डब्ल्यूएमओ), जो एक संयुक्त राष्ट्र के तहत काम करने वाली एजेंसी है, ने कहा है कि इस बात की 93 प्रतिशत संभावना है कि 2022 और 2026 के बीच के वर्षों में से कोई एक वर्ष इतिहास में सबसे गर्म होगा, जब वैश्विक तापमान में 1.1-1.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने की उम्मीद है.
बता दें कि अब तक दर्ज किया गया सबसे गर्म साल 2016 है.
इसके अलावा, डब्ल्यूएमओ के नवीनतम अनुमानों के अनुसार, अगले पांच वर्षों के भीतर एक संक्षिप्त अवधि के लिए, वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस अधिक के निशान को पार कर सकता है. यह 2015 के पेरिस समझौते – एक अंतरराष्ट्रीय समझौता जो ग्लोबल वार्मिंग को नियंत्रण में रखने का वचन देता है – द्वारा निर्धारित निचली सीमा है, जबकि इसकी ऊपरी सीमा 2 डिग्री सेल्सियस है. सभी पक्षों में आम सहमति यह है कि ऊपरी सीमा के उल्लंघन के बाद जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव और बिगड़ जाएंगे.
डब्ल्यूएमओ ने मंगलवार को जारी किये गए अपने ‘ग्लोबल एनुअल टू डेकाडल क्लाइमेट अपडेट’ में कहा कि साल 2015 में वैश्विक तापमान में वृद्धि के अस्थायी रूप से 1.5 डिग्री के निशान तक पहुंचने की लगभग शून्य संभावना थी. साल 2017 और 2021 के बीच यह संभावना बढ़कर 10 प्रतिशत हो गई, और अब 2022-26 के लिए यही संभावना 50 प्रतिशत है.
वैश्विक तापमान पहले ही पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.1 डिग्री सेल्सियस ऊपर पहुंच कर लगभग स्थिर हो चुका है.
हालांकि वैश्विक तापमान में अनुमानित वृद्धि के अस्थायी होने की संभावना है, मगर विशेषज्ञों का मानना है कि इसके प्रभाव अभी भी हानिकारक हो सकते हैं और कुछ पारिस्थितिक तंत्रों में अनुत्क्रमणीय (इररेवेर्सिबले) परिवर्तन हो सकते हैं.
डब्ल्यूएमओ के महासचिव प्रो. पेटेरी तालास ने अपने एक बयान में कहा, ‘1.5 डिग्री सेल्सियस का आंकड़ा कोई रैंडम (मनमाना) आंकड़ा नहीं है. यह उस बिंदु का संकेतक है जिस पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव लोगों के लिए और वास्तव में पूरे ग्रह के लिए हानिकारक हो जायेंगे.’
तापमान का अस्थायी रूप से भी सीमा पार जाना है चिंताजनक बात
इस साल फरवरी में, ‘इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी)’ ने अपनी एक रिपोर्ट में चेतावनी दी थी कि 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा के अस्थायी उल्लंघन से भी विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों में अनुत्क्रमणीय परिवर्तन हो सकते हैं.
रिपोर्ट में कहा गया था, ‘इसके सीमा के परे जाने की मात्रा और अवधि के आधार पर, कुछ प्रभाव अतिरिक्त ग्रीनहाउस गैसों को छोड़ेंगे और कुछ अनुत्क्रमणीय (कभी भी खत्म न होने वाले) होंगे, भले ही ग्लोबल वार्मिंग कम हो जाए.’ इसमें यह भी कहा गया है कि इसके जोखिम में आने वाले कुछ पारिस्थितिक तंत्र ‘कम प्रतिरोधक्षमता‘ वाले हैं, जैसे कि ध्रुवीय, पर्वतीय और तटीय पारिस्थितिक तंत्र, जो बर्फ की चादर, ग्लेशियर के पिघलने, या समुद्र के स्तर में तेज और ऊंचीं वृद्धि से प्रभावित होते हैं.
आईपीसीसी के अनुसार, जब तक ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भारी कमी नहीं आती है, वैश्विक तापमान में वृद्धि 2040 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस पर स्थिर हो जाएगी. डब्ल्यूएमओ ने पाया कि 2022-26 के बीच इसके स्थिर होने की संभावना केवल 10 प्रतिशत है.
डब्ल्यूएमओ के ये निष्कर्ष उन दूसरों निष्कर्षों के अनुरूप हीं हैं जो ये भविष्यवाणी करते हैं कि दुनिया 2015 के पेरिस जलवायु समझौते में निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अभी भी जूझ रही है.
स्वतंत्र अनुसंधान संस्था ‘क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर’ ने यह भविष्यवाणी की हुई है कि दुनिया भर में मौजूदा सरकारी नीतियां इस वैश्विक तापमान में 2.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि की राह पर ले जा रही हैं.
इस डब्ल्यूएमओ रिपोर्ट के लेखकों में से एक डॉ लियोन हरमनसन ने कहा, ‘1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक वृद्धि वाले तापमान के साथ के एक वर्ष का मतलब यह नहीं है कि हमने पेरिस समझौते
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