नई दिल्ली: दिल्ली के प्रगति मैदान में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा आयोजित वार्षिक कार्यक्रम भारत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेला (आईआईटीएफ), जो फिलहाल चल रहा है, में पिछले वर्ष की तुलना में अफगान स्टालों की संख्या दोगुनी से अधिक होते देखी गई है. हालांकि, इनमें अधिकांश व्यापारी वही हैं जो काबुल में तालिबान द्वारा सत्ता हथियाए जाने से पहले से भारत में रह और काम कर रहे थे.
पिछले वर्षों की तरह इस बार भी ट्यूनीशिया, थाईलैंड, तुर्की और ईरान सहित 14 विदेशी देशों ने इस मेले में भाग लिया है. इसके अलावा 29 भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के स्टॉल भी लगे हैं. यह मेला 14 नवंबर से शुरू हुआ है और आम जनता के लिए 19 नवंबर को खुलेगा.
नई दिल्ली में अफगानिस्तान के दूतावास के व्यापार कार्यालय के प्रमुख (काउंसलर) कादिर शाह ने विशेष रूप से दिप्रिंट से बात करते हुए कहा कि आईआईटीएफ जैसे मेले अफगान मूल के उत्पादों के लिए भारतीय बाजार में जगह बनाने और भारत के माध्यम से ही अंतराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचने का एक आदर्श तरीका हैं.
उन्होंने कहा, ‘इस वर्ष, यह पवेलियन अफगानिस्तान के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कोविड महामारी के दो कठिन वर्षों के बाद, अफगान अपना व्यवसाय फिर से शुरू कर रहे हैं. इस वर्ष हमारे पास 28 स्टॉल हैं और उनमें से अधिकांश सूखे मेवे, कालीन, गोमेद, केसर और अन्य उत्पादों को बेच रहे हैं.’ पिछले साल इस देश के सिर्फ 11 स्टॉल लगे थे.
यह कहते हुए कि वह अगले साल इस मेले में अफगान व्यापारियों की संख्या दोगुनी करना चाहते हैं, उन्होंने कहा, ‘इस वर्ष, हमें ई-वीजा के साथ समस्या हो रही थी. अफगानिस्तान में रह रहे व्यापारियों के लिए वे अभी भी फिर से शुरू नहीं हुए हैं. अधिकांश व्यापारी वे हैं जो पहले से ही भारत में थे, केवल वे ही भाग लेने में सक्षम हैं.’
शाह ने कहा कि इस वर्ष के मेले में भाग लेने के लिए अफगानिस्तान के व्यापारियों और व्यवसायों से 50 से अधिक अनुरोध मिले थे लेकिन इनमें से अधिकांश भारत के लिए ई-वीजा प्राप्त करने में असमर्थ रहे.
हालांकि, तालिबान के सत्ता अधिग्रहण के बाद अफगानों को एकल-प्रवेश वाली ई-वीजा सुविधा प्रदान करने वाले सबसे पहले देशों में भारत भी एक था, लेकिन खबरों के अनुसार भारत सरकार द्वारा अब तक केवल लगभग 300 ई-वीजा ही जारी किए गए हैं. उनमें से भी ज्यादातर अफगान सिखों और हिंदुओं को जारी किये गए थे.
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अभी भी बने हुए हैं ई-वीजा, परिवहन के मसले
दिप्रिंट ने सूखे मेवों के व्यापारी इस्माइल कालाखेल से बात की, जिनका पिछले साल भी इस मेले में स्टॉल था.
कालाखेल ने कहा, ‘मैं पिछले 15 सालों से भारत में सूखे मेवे बेच रहा हूं. लगभग छह महीने पहले, मैं अपनी बीमार मां से मिलने के लिए अफगानिस्तान लौटा था. मैंने व्यापार मेले का हिस्सा बनने के लिए तीन से चार महीने पहले ही ई-वीजा के लिए आवेदन किया था लेकिन मुझे अभी तक यह नहीं मिला है.’
42 वर्षीय कालाखेल, जो इस समय काबुल में हैं, की नोएडा के पास बने ‘ग्रेट इंडिया प्लेस मॉल’ में सूखे मेवों की दुकान है, जिसे उनके भारतीय कर्मचारी चलाते हैं. उनकी कंपनी, नवी अक्ची वाल, साल 2013 से इस मेले में अपने उत्पादों का प्रदर्शन कर रही है.
कालाखेल के पासपोर्ट पर एक नजर डालने से पता चलता है कि वह आखिरी बार 10 अगस्त 2021 को- तालिबान द्वारा सत्ता अधिग्रहण से पांच दिन पहले- एक साल के वीजा पर भारत आये थे.
पिछले साल, दिप्रिंट ने खबर दी थी कि इस मेले में आये अफगान व्यापारियों ने दिल्ली और काबुल के बीच सीधी उड़ानें नहीं होने के कारण हो रही कठिनाइयों का हवाला दिया था. कई लोगों ने अपने देश में सुरक्षा की स्थिति के बारे में भी चिंता व्यक्त की.
ये मुद्दे इस साल भी बने हुए लगते हैं.
26 वर्षीय नवीद हुसैन, जो इस साल मेले में अपने परिवार की कालीन कंपनी- अयान ऑर्गेनिक ट्रेडिंग- का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, ने दिप्रिंट को बताया कि उनका परिवार हवाई गलियारों (एयर कोर्रिडोर्स) के माध्यम से अफगानिस्तान से कालीन और अन्य असबाब का आयात करता है.
उन्होंने कहा, ‘वाघा सीमा पर अभी भी कई समस्याएं हैं. न केवल जमीनी सीमा के माध्यम से आयात करने में काफी अधिक समय लगता है, बल्कि कभी-कभी पाकिस्तान की ओर से सामान लाने की अनुमति भी नहीं दी जाती है.’
वर्तमान में, पाकिस्तान केवल अटारी-वाघा सीमा के माध्यम से अफगानिस्तान को भारत में माल निर्यात करने और किसी असाधारण स्थिति में भारतीय मानवीय सहायता को अफगानिस्तान भेजने की ही अनुमति देता है. इस्लामाबाद सीमा पार से अन्य किसी भी तरह के दो-तरफा व्यापार की अनुमति नहीं देता है.
(अनुवाद: रामलाल खन्ना | संपादन: कृष्ण मुरारी)
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