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Tuesday, 24 December, 2024
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G20 को लेकर यमुना की सफाई चल रही है लेकिन क्या दिल्लीवासियों का मिल रहा है सहयोग?

सितंबर में होने वाली G20 की मीटिंग को लेकर यमुना की सफाई चल रही है. दिल्ली के एलजी ने फरवरी में यमुना के दिल्ली क्षेत्र की सफाई के लिए 30 जून तक का लक्ष्य रखा था. लेकिन दिल्ली में यमुना नदी में अपशिष्ट पदार्थों का फेंका जाना जारी है.

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नई दिल्ली: समय दिन के 11 बजे, स्थान आइटीओ ब्रिज दिल्ली, एक हुंडई क्रेटा रुकती है और उससे एक व्यक्ति निकलते हैं. उनके हाथ में काले रंग की दो पन्नी है जिसमें पूजा पाठ के बाद बचा हुआ सामान रखा है. वह उस काली पन्नी को पुल के दोनों ओर लगी जाली के बीच से नीचे फेंकते हैं और चले जाते हैं. उनके जाने के थोड़ी देर बाद ही एक और व्यक्ति बाइक से आता है और अपशिष्ट पदार्थों की भरी हुई दो पन्नी यमुना में प्रवाहित करता है.

जहां से ये दोनों यमुना अपशिष्ट पदार्थ नीचे फेंक रहे थे वहीं नीचे यमुना की सफाई हो रही है. एक दर्जन से अधिक मजदूर यमुना के पानी में से प्लास्टिक, जलकुंभी और अन्य अपशिष्ट पदार्थ छानकर एक नाव में रख रहे हैं. साथ ही कई अधिकारी एक अलग बोट में बैठकर उन्हें निर्देश दे रहे हैं.

यमुना की सफाई में जुटे मजदूर | फोटो: ऋषभ राज | दिप्रिंट

सितंबर में होने वाली G20 की मीटिंग को लेकर यमुना की सफाई कई महीनों से जोर-शोर से चल रही है. दिल्ली में वजीराबाद बैराज से लेकर ओखला बैराज तक यमुना से कूड़ा-करकट को बाहर निकाला जा रहा है. दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने बीते 16 फरवरी को यमुना के दिल्ली वाले हिस्से को 30 जून तक साफ करने का लक्ष्य रखा था. बीते दिनों मीडिया से बात करते हुए दिल्ली के एलजी ने कहा था कि यमुना की सफाई का अभियान तीव्र गति से चल रहा है और इसे समय पर पूरा होने की संभावना है.

उन्होंने कहा था, “यमुना की सफाई तय समय पर हो जाएगी. हमने यमुना में गिरने वाले लगभग 20 नालों को साफ करवाया है. काम युद्धस्तर पर जारी है.”

दिल्लीवासियों का मिल रहा है सहयोग?

क्या यमुना की सफाई को लेकर दिल्लीवासी सजग हैं. दिप्रिंट ने दिल्ली के दो सबसे व्यस्त यमुना ब्रिज- निजामुद्दीन ब्रिज और आईटीओ ब्रिज का दौरा किया. दोनों जगह लोग अपनी गाड़ियों से आते और प्लास्टिक की थैली सीधे यमुना में फेंकते दिखे. आईटीओ ब्रिज पर दिल्ली सरकार की ओर से बोर्ड भी लगा है जिसमें लिखा है, “माननीय नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल, प्रिंसिपल बेंच, नई दिल्ली के अनुसार, यमुना नदी में पूजा सामग्री, हवन सामग्री, फूल, पॉलीथिन, कूड़ा करकट इत्यादि डालना सख्त मना है.”

जहां यह बोर्ड लगा है वहीं नीचे लोग यमुना में कूड़ा करकट, पॉलीथिन इत्यादि फेंक रहे थे.

आईटीओ ब्रिज पर लगा बोर्ड | फोटो: ऋषभ राज | दिप्रिंट

दिल्ली के आईटीओ ब्रिज के पास बीते 5 साल से यमुना से कचरा बीनने वाले आरिफ का कहना है अधिकतर लोग नदी पूजा-पाठ के बाद बची हुई सामग्री ही यमुना में प्रवाहित करते हैं लेकिन उसके साथ-साथ पॉलीथिन में भरे कूड़े भी लोग यमुना में प्रवाहित करते हैं.

उन्होंने कहा, “हर दिन लगभग 100 से अधिक लोग अपनी गाड़ियों से यहां आते हैं और कुछ न कुछ यमुना में प्रवाहित करते हैं. हम कई बार उनके द्वारा प्रवाहित की गई चीजों को पानी से निकाल लेते हैं और उसमें से हमें अपने काम का कुछ मिल जाता है.”


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बीते दिनों केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने कहा था कि यमुना लगभग मर चुकी है. सीपीसीबी की एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ यमुना ही नहीं, देश भर की कई नदियां शहरी कचरे और औद्योगिक कचरे के अभूतपूर्व बोझ से जूझ रही हैं. नाले का पानी सीधे नदी में बहा देने के कारण देश के कई नदियों के पानी की गुणवत्ता में काफी गिरावट आई है.

यमुना का जहरीला पानी | फोटो: ऋषभ राज | दिप्रिंट

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट के अनुसार, यमुना नदी में बायोमेडिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) अधिकतम 83 मिलीग्राम प्रति लीटर है.

रिपोर्ट के मुताबिक यमुना में वजीराबाद बैराज के पास जहां बायोमेडिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) अधिकतम 10 मिलीग्राम प्रति लीटर है वहीं ओखला बैराज के पास यह 83 मिलीग्राम प्रति लीटर पहुंच जाता है.

ऑक्सीजन की वह मात्रा जो जल में कार्बनिक पदार्थों के जैव रासायनिक अपघटन के लिये आवश्यक होती है, वह BOD कहलाती है. जल प्रदूषण की मात्रा को BOD के माध्यम से मापा जाता है. हालांकि BOD के माध्यम से केवल जैव अपघटक का पता चलता है. इससे नदियों में BOD को प्रदूषण मापन में प्रयोग नहीं किया जाता है.

‘पांच साल में 6800 करोड़ खर्च’

इसी साल मार्च में विधानसभा में एक प्रश्न का जवाब देते हुए सरकार ने कहा कि दिल्ली सरकार ने यमुना नदी के दिल्ली खंड को साफ करने के लिए 2017 से 21 के बीच पांच साल में लगभग ₹6,856.91 करोड़ खर्च किए गए थे. साल 2020 में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 10 प्वाइंट गारंटी कार्ड का वादा किया था. उन्होंने कहा था, “हम वादा करते हैं कि यमुना को पांच साल में पूरी तरह साफ कर देंगे. यमुना इतनी साफ होगी कि लोग सीधे यमुना में डुबकी लगा सकेंगे. यमुना में नहाने से किसी भी प्रकार की बीमारी का डर नहीं लगेगा.” हालांकि, उनका यह वादा कभी पूरा होता नजर नहीं आया.

साल 2015 में एक मामले पर एक फैसला सुनाते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने ‘मैली से निर्मल यमुना पुनरुद्धार योजना, 2017’ का गठन किया, जिसमें यह निर्धारित किया गया कि यमुना की सफाई 31 मार्च, 2017 तक पूरा किया जाएगा. हालांकि, यह उद्देश्य कभी पूरा नहीं हुआ.

पर्यावरणविद का क्या है कहना

यमुना सफाई अभियान पर करीब से नजर रखने वाले पर्यावरणविद विमलेंदु झा का कहना है कि यमुना की सफाई की जिम्मेदारी सरकार के साथ-साथ दिल्लीवासियों की है ही लेकिन बाहर से यमुना में लोगों द्वारा फेंके जानेवाले कचरों में अधिकतर पूजा-पाठ से बची हुई सामग्री ही होती है.

उन्होंने कहा, “यमुना में अक्सर लोग पूजा पाठ के बाद बीच हुई सामग्री फेंकते हैं. हालांकि यह भी यमुना में प्रदूषण का कारण है. लेकिन यमुना के प्रदूषण में इसका योगदान 1% से भी कम है. इसमें लोगों की धार्मिक आस्था भी जुड़ी है.”

वो कहते हैं, “लोगों में जागरूकता फैली है. हालांकि, जब तक यमुना में सीधे तौर पर नाले का गंदा पानी और अन्य दूसरे अपशिष्ट पदार्थ को सीधे बहने से रोका नहीं जाएगा, यमुना की सफाई नहीं हो सकती.”


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